पाठ 168
जब परमेश्वर इस्राएल के राष्ट्र को अपनी भूमि को प्राप्त करने में मदद कर रहा था, वह उन्हें एक जबरदस्त बदलाव के लिए भी तैयार कर रहा था। मूसा जो उसका प्रिय सेवक था, अपने लोगों के साथ वादे के देश में नहीं जाने वाला था। क्यूंकि मूसा और उसके भाई हारून भी विद्रोह में शामिल हो गए थे। सीन के रेगिस्तान में, मूसा और हारून को परमेश्वर के आदेश पर चट्टान से पानी बोल कर निकालना था। इसके बजाय, उन्होंने अपना तरीका अपनाया। उन्होंने परमेश्वर की छड़ी से चट्टान पर मारा। उसकी महान दया में, परमेश्वर ने तभी भी जल प्रवाह कर दिया, लेकिन उसके सच्चे न्याय में, वह अपने अगुवों को कनान देश में लोगों को लाने कि अनुमति नहीं देगा। मूसा को कितना दुःख हुआ होगा जब वे वादे के देश के करीब आ रहे थे।
यरीहो के भव्य शहर को ध्यान में रखते हुए जब वे मोआब के मैदानों पर डेरा लगा रहे थे, समय आ गया था की मूसा अलविदा कहे। परमेश्वर ने उसे एक पर्वत की चोटी दिखाई जिस पर उसे चढ़ना था। परमेश्वर उसे स्वयं उस देश का मोयना कराएगा, लेकिन मूसा खुद से वहां प्रवेश नहीं कर पाएगा। अब समय आ गया था की मूसा उसे अधिकार सौंपे जो परमेश्वर के लोगों का नेतृत्व करेगा।
"'मूसा ने यहोवा से कहा, “यहोवा परमेश्वर है वही जानता है कि लोग क्या सोच रहे हैं। यहोवा मेरी प्रार्थना है कि तू इन लोगों के लिए एक नेता चुन। मैं प्रार्थना करता हूँ कि यहोवा एक ऐसा नेता चुन जो उन्हें इस प्रदेश से बाहर ले जाएगा तथा उन्हें नये प्रदेश में पहुँचायेगा। तब यहोवा के लोग गड़ेरिया रहित भेड़ के समान नहीं होंगे।”
इसलिए यहोवा ने मूसा से कहा, नून का पुत्र यहोशू नेता होगा। यहोशू बहुत बुद्धिमान है उसे नया नेता बनाओ। उससे याजक एलीआज़ार और सभी लोगों के सामने खड़े होने को कहो। तब उसे नया नेता बनाओ। “लोगों को यह दिखाओ कि तुम उसे नेता बना रहे हो, तब सभी उसका आदेश मानेंगे।"'(गिनती 27:15)
यहोशू, जो मूसा का वफ़ादार सहयोगी था, मूसा कि जगह लेगा। उसने अपने जीवन भर मूसा के हर क़दम को देखते हुए उसकी छाया में बिताया था। जब मंदिर का निर्माण हो रहा था, तब वह मिलापवाले तम्बू में परमेश्वर की उपस्थिति में रहा। वह मूसा के साथ सीनै पर्वत पर चढ़ा। वह वादे के देश में गया और वहां के अच्छे फलों और खेतों की अच्छी ख़बर सुनाई। वह अच्छी तरह से प्रशिक्षित था, और वह वफ़ादार था।
तब मूसा ने लोगों के पास जाकर उन्हें मंदिर के प्रति उनके पवित्र कर्तव्यों को उन्हें याद दिलाया। यह स्मरण रखना ज़रूरी है की मंदिर के बलिदान और भेंटें रुकी नहीं थीं। मरुभूमि में उन अड़तीस साल फिरने के समय, जब मूसा ने हारून और मरियम के विद्रोह का सामना किया था, हारून और उसके पुत्र मंदिर की सेवा में लगे थे। हर सुबह, वे एक बछड़े की बलि चढ़ाते थे, और गोधूलि के समय, अन्नबलि चढ़ाते थे। वे शुद्धिकरण के काम को दैनिक रूप से करते थे जब इस्राएली अपनी धन्यवाद की भेटें चढ़ाने आते थे या जब उन्हें अपने पापों का एहसास होता था।
अब मूसा उन्हें पर्वों को मनाने और उन सब चीज़ों को याद दिला रहा था जो उन्हें लानी थीं। हर सब्त पर, दो भेड़ के बच्चे एक सब्त के दिन के लिए भेंट के रूप में चढ़ाये जाते थे। हर नए चाँद पर बलिदान करने के लिए मासिक होमबलि चढ़ाई जाती थी। उन्हें फ़सह, सप्ताह का पर्व, और तुरहियों के पर्व को मनाना था। उन्हें वार्षिक प्रायश्चित के दिन को मनाना था, जब पूरे राष्ट्र के और याजकों के पापों को अति पवित्र स्थान के अंदरूनी अभयारण्य से साफ़ किया जाता था। उन्हें फ़सह का पर्व मनाना था, और उन्हें परमेश्वर के आगे बनाये वादों को निभाना होगा। उनकी उपासना पूर्ण होगी। यह उसी सच्चाई और आदर के साथ किया जाना था जिस प्रकार एक उच्च और पवित्र राजा की सेवा करने के लिए लोगों को ठहराया गया था। बहुत जल्द मूसा लोगों से दूर यात्रा पर निकल जाएगा, लेकिन वह खुद परमेश्वर द्वारा दिए उस अविश्वसनीय विरासत को छोड़ कर जाएगा। यहोशू एलीआजर जैसे महायाजक और उसके पुत्र पीनहास के साथ, उस विरासत को आगे लेकर जाएगा। वे उसे ठीक वादे के देश तक ले जाएंगे।