कहानी १७३: पूर्ति

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यहूदियों के पास एक चिंता का विषय था। यरूशलेम के फाटकों के ठीक बाहर, तीन मृत या मरते हुए आदमी क्रूसों पर टंगे थे। परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार, उनके शरीर भूमि को अशुद्ध कर रहे थे। यह एक विशेष रूप से बड़ी समस्या थी क्योंकि सूर्यास्त के बाद सबत शुरू होने को था। विश्राम के दिन पर एक क्रूस से लटका हुआ, मरा आदमी, परमेश्वर की व्यवस्था को तोड़ने वाली बात थी। और सबसे बदतर बात यह थी कि यह कोई नियमित विश्राम का दिन नहीं था। यह एक उच्च और पवित्र दिन था। यह फसह का पर्व था! इसलिए वे पेंतुस पीलातुस के पास क्रूस पर चढ़ाये हुए के टूटे पैर मांगने गए।

यह एक अजीब अनुरोध लग सकता है, लेकिन यह वास्तव में समझ की बात थी। सूली पर चढ़ाये जाने की भयावहता यह थी कि लोग घुट घुट कर मरते थे। उनको हाथों को ऐसे क्रूस पर टांगा जाता था, कि जब वो सांस लेते थे तो फेफड़ों में उसका प्रवाह नहीं होता था। उन्हें सांस लेने के लिए कीलों पर अपने पंजों पर उठाना पड़ता था। सांस लेने की प्राकृतिक मानव वृत्ति उन्हें घंटे पे घंटे के लिए उन घावों पर कष्टदायी दुख सहन करने को मज्बोर करती। उनके कष्ट को जल्दी समाप्त करने का यही रास्ता था कि उनके पैरों को तोड़ दिया जाए ताकि वो अपने शरीरों को सांस लेने के लिए और न अघात करें। यह एक भयानक धंदा था, लेकिन रोमी साम्राज्य की दुनिया यही थी।

पिलातुस ने धार्मिक नेताओं के साथ सहमति व्यक्त की। उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि उस दिन क्रूस पर चड़ाए जाने वाले आदमियों के पैर तोड़ दिए जाए। लेकिन सिपाही जब यीशु तक पहुंचे,वह मर चुके थे। उनके पैर तोड़ने की बजाय, सैनिकों ने उनके कमर को भाले से भेदा। रक्त और पानी बाहर बह आया।

यूहन्ना के सुसमाचार में इस बिंदु पर,यूहन्ना इस बात की साक्षी देना चाहता है कि यह सब बातें पूरी तरह सच है। वह खुद वहां था और उसने यह सब बातें देखी। वह क्रूस के एकदम पास खड़ा हुआ था जब यह सब हुआ। आने वाले दिनों में, यीशु के जीवन और मौत के बारे में कई अफवाहें फैलने को थी। कई लोग यीशु के पुनुरुथान को झूठा बोलने को थे।वे ऐसा बोलेंगे की शिष्यों ने यीशु के जी उठने के बारे में मन गड़ंत कहानी बनाई है, या फिर यीशु वास्तव में मरा नहीं था। लेकिन यूहन्ना अपने प्यारे दोस्त की सच्ची मौत को वहां खड़ा देख रहा था। उन्होंने कुल पीड़ा में तीन दिन बिताए, लेकिन तब यीशु फिर से जी उठे! वह चाहता था कि हम निश्चित रूप से विश्वास करें, जैसा उसने किया था! यही कारण है कि उसने यह पुस्तक लिखी।

यूहन्ना इस बात की ओर भी संकेत करना चाहता था कि अपने पुत्र के मौत के द्वारा, परमेश्वर अपने वचन की पूर्ती भी ज़ारी रख रहा था। क्या आपको फसह के पर्व की प्राचीन कहानी याद है? मिस्र के फिरौन ने परमेश्वर  के लोगों को अपनी भयानक, जानलेवा उत्पीड़न से मुक्त करने से इनकार कर दिया था। परमेश्वर ने महामारी के ऊपर महामारी भेजी, लेकिन तो भी उसने इनकार कर दिया। अंत में, परमेश्वर अपने सबसे भयानक दंड के साथ आने वाले थे। फिरौन परमेश्वर की सबसे क़ीमती चीज़ को रिहा करने से इनकार कर रहा था, तो परमेश्वर मिस्र के लोगों का सबसे बड़ा खजाना लेने जा रहा था। वह उनके पहले पैदा हुए बेटों की जान लेने जा रहा था। इस्राएलियों के पुत्रों की रक्षा करने के लिए, परमेश्वर ने उन्हें सावधान निर्देश दिए। उन्हें एक बेदाग मेमने का बलिदान करना होगा और उसे भोजन के रूप में लेना होगा। फिर उन्हें उस मेमने का खून लेकर अपने घर के चौखट पर लगाना था। जब परमेश्वर का स्वर्गदूत मिस्र के लिए आएगा, तो वह खून से संरक्षित घरों को छोड़ देगा। यहाँ, मेमने के बारे में परमेश्वर की अपने लोगों को दिए निर्देश हैं:
उसका खाना एक ही घर में हो; अर्थात तुम उसके मांस में से कुछ घर से बाहर न ले जाना; और बलिपशु की कोई हड्डी न तोड़ना। पर्ब् को मानना इस्राएल की सारी मण्डली का कर्तव्य कर्म है।
निर्गमन १२:४६-४७

यीशु वह फसह का मेमना था, और उसका खून उसके लोगों की सुरक्षा होना था। यह सब घटनाएं जो इतनी पहले हुई, उस बात की एक तस्वीर थी कि परमेश्वर मसीह के द्वारा क्या करने जा रहा है। और जिस प्रकार लोगों को पहले फसह के मेमने का पैर नहीं तोडना था, ठीक उसी तरह इस महान फसह के मेमने का पैर भी नहीं तोड़ा जाना था।

पुराने नियम में एक और पद है जो यीशु के छेदे जाने की भविष्वाणी करता है। ज़करिया की किताब में परमेश्वर यूं कहते है:
और मैं दाऊद के घराने और यरूशलेम के निवासियोंपर अपना अनुग्रह करनेवाली और प्रार्यना सिखानेवाली आत्मा उण्डेलूंगा, तब वे मुझे ताकेंगे अर्थात जिसे उन्होंने बेधा है, और उसके लिए ऐसे रोएंगे जैसे एकलौते पुत्र के लिथे रोते-पीटते हैं, और ऐसा भारी शोक करेंगे, जैसा पहिलौठे के लिए करते हैं।
ज़कारिया १२:१०

यूहन्ना और मसीह के अनुयायियी इस बात को मानोभावपूर्वक मानते थे कि जो कुछ मसीह के साथ हुआ है वो परमेश्वर के पुराने नियम में कार्यों का उत्प्रवाह है। परमेश्वर ने मसीह के जीवन, मृत्यु और जी उठने के हर पल को ठहराया था। पर उसने अपने पवित्र लोगों के जीवन के हर पहलू को भी ठहराया था ताकि वो उद्धारकर्ता की और रास्ता दिखा सकें। जैसे जैसे  चेलों ने आने वाले वर्षों में यीशु के जीवन पर विचार किया, उन्हें परमेश्वर के वचन में पद पे पद में यीशु की छाप दिखने लगी। परमेश्वर ने उन्हें वहां सैकड़ों और हजारों वर्ष पहले रखा ताकि आगे सुसमाचार सुनने वालों को आत्मविश्वास हो सके। यीशु वास्तव में वह था जिसके बारे में वो इतने समय से बात कर रहा था!