कहानी १५९: त्रिएकता के प्रेम में
यीशु जब ऊपरी कक्ष में अपने चेलों के साथ बैठे थे, वह क्रूस पर जाने से पहले उन्हें अपना अंतिम सन्देश दे। बार बार वह उन्हें यीशु और पिता के बीच उस बंधन के विषय में सिखाता था जो पवित्रके द्वारा होता है। यह जानना इतना महत्वपूर्ण था की वह उन्हें बार बार समझाता था। इस बार, वह यह कल्पना करता था कि वह दाखलता है और उसके चेले उसकी टहनियाँ।
उसने कहा:
“'सच्ची दाखलता मैं हूँ। और मेरा परम पिता देख-रेख करने वाला माली है। मेरी हर उस शाखा को जिस पर फल नहीं लगता, वह काट देता है। और हर उस शाखा को जो फलती है, वह छाँटता है ताकि उस पर और अधिक फल लगें। तुम लोग तो जो उपदेश मैंने तुम्हें दिया है, उसके कारण पहले ही शुद्ध हो। तुम मुझमें रहो और मैं तुममें रहूँगा। वैसे ही जैसे कोई शाखा जब तक दाखलता में बनी नहीं रहती, तब तक अपने आप फल नहीं सकती वैसे ही तुम भी तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक मुझमें नहीं रहते।'" यूहन्ना १५:१८-२५
जब यीशु अपने पिता के पास वापस जा रहा था, वह जनता था कि वह अपने चेलों को एक ऐसी परिस्थिति में छोड़ कर जा रहा है जिसके साथ उन्हें रहना पड़ेगा। चेलों के साथ भी व्यवहार हो सकता है जो यीशु के साथ वे लोग क्रूस पर चढ़ाएंगे।
धार्मिक अगुवे और वे जो उनके चलते थे अपने पाप के कारण शर्मिंदा थे जो उन्होंने किये। उन्हें चमत्कारों को देखने के बहुत से मौके मिले। वे पुराने नियम को जानते थे और नबियों को भी समझा। यीशु ने जब परमेश्वर के वचन को परमेश्वर कि दृष्टी से समझाया तो वे उसके द्वारा अपने राह को और गहरायी से समझ सकते थे। इन फरीसियों और महायाजकों को परमेश्वर के देश को चलने का महान सम्मान मिला था परन्तु जब परमेश्वर उनके पास आया तो उन्होंने उसे मार डाला। जब उन्होंने यीशु के वचन के प्रति घृणा दिखाई, उन्होंने यह दिखाया कि वे परमेश्वर पिता से घृणा करते हैं। जब वे परमेश्वर से इतनी घृणा कर सकते थे तो वे यीशु के चेलों से क्यूँ नहीं नफरत करेंगे जो उसके सुसमाचार को सुनते हैं?
यीशु के पीछे चलने वाले वही घृणा भरे विरोध का सामना करेंगे जो उनके अपने वंश के हैं। यीशु ज्योति के राज्य को अन्धकार के राज्य में लेकर आ रहा था, और वे जो परमेश्वर के विरोधी से नफरत करेंगे वे हमेशा उसके कार्य के लिए उससे विरोध करते रहेंगे।