कहनी ११९: राज्य पद
फरीसी यीशु पर दोष लगाने के रास्ते ढूंढ रहे थे। वे इस ताक में थे कि वह ऐसा कुछ करे और वे उसके विरुद्ध में उस चीज़ को इस्तेमाल करें! बस उससे कोई नियम तुड़वा सकते। फिर वे उसे पूरे देश के सामने नीचा दिखाते और उसकी आवाज़ को शांत कर देते। सो उन्होंने साज़िश रची कि यीशु सबत के दिन आये। और अवश्य है कि किसी व्यक्ति को लाया जाये जिसे चंगाई कि आवश्यकता है, वो वह उसे चंगाई देने से रुकेगा नहीं। उसमें ऐसी कुछ बात थी कि वह टूटे हुए को ठीक करने से अपने आप को रोक नहीं सकता।
एक बार सब्त के दिन प्रमुख फरीसियों में से किसी के घर यीशु भोजन पर गया। उधर वे बड़ी निकटता से उस पर आँख रखे हुए थे। वे बहुत ही सुंदर कपड़ों में आकर मेज़ पर अपने ऊंचे पद को दिखाने के लिए बैठ गए।
सोचिए यीशु उन सब के सामने कितना साधारण और तुच्छ लग रहा होगा अपने बढई के कपड़ों में? उसके बिगड़े पाँव और साधारण तरीको से कितने क्रोधित हो रहे थे। यह एक साधारण सा आदमी लोगों में इतना प्रसिद्द कैसे हो सकता था? उसे चंगाई कि सामर्थ कहाँ से मिली और उसने ऐसा बोलना कहाँ से सीखा? यह देखकर बहुत गुस्सा आता था कि यह व्यक्ति इज़ज़तदार लोगों का आदर नहीं करता था जो नियम इस्राएल में ज़माने से स्थापित था।
जैसे ही यीशु अंदर आया, वहाँ एक व्यक्ति जो जलोदर से पीड़ित था, उसके सामने आया। यीशु ने यहूदी धर्मशास्त्रियों और फरीसियों से पूछा,“'सब्त के दिन किसी को निरोग करना उचित है या नहीं?'” किन्तु वे चुप रहे। उन्हें सबक मिल गया था। यीशु के साथ बहस करने से अच्छा वे स्वयं जान गए थे। जीत हमेशा उसी कि होती थी।
सो यीशु ने उस आदमी को लेकर चंगा कर दिया। और फिर उसे भेज दिया। यह कितनी घिनौनी बात है कि वे अगुवे लोगों को यीशु के पास चंगाई के लिए इसलिए ताकि वे चंगाई देने वाले को नष्ट कर सकें! अपने लोगों के लिए प्रेम और दया कहाँ थी? वे इस बात से खुश क्यूँ नहीं हुए कि किसी ने छुटकारा पाया है? उनके ह्रदय यीशु के प्रति और अन्य बातों के लिए भी बहुत कठोर थे!
फिर उसने उनसे पूछा,“'यदि तुममें से किसी के पास अपना बेटा है या बैल है, वह कुँए में गिर जाता है तो क्या सब्त के दिन भी तुम उसे तत्काल बाहर नहीं निकालोगे?'” वे इस पर उससे तर्क नहीं कर सके। वह उन्हें बहुत सब्र के साथ समझाता रहा। ये कितने कठोर मन के थे!
भोजन के लिए जब वे बैठ रहे थे, हर एक जन स्वयं के लिए सम्मानपूर्ण स्थान को ढूंढ रहा था। यहूदी लोगों में, आप जिस स्थान में बैठते हैं वह मेज़बान और समाज कि दृष्टी में आपके सम्मान को दिखाता है। हर एक व्यक्ति अपने लिए सम्मानतपूर्ण स्थान को चुनना चाहता था। उनके ह्रदय कितन टूटे और कमज़ोर थे! वे कितने अंधे थे! यह लोग अपने ही स्वार्थ में कितने उलझे हुए थे।
उनकी अंधी आँखें यह नहीं देख पाईं कि वहाँ उपस्थित परमेश्वर का पुत्र इस बात से बिलकुल बेपरवाह था कि वह किस स्थान में बैठेगा। यीशु यह बात जानता था कि वह परमेश्वर पिता के सिंहासन पर उसके दाहिने हाथ पर जाकर बैठेगा! यदि इन लोगों कि आत्मिक आँखें होती तो वे यीशु को सबसे ऊँचें स्थान पर बैठाते। वे उसके हर एक शब्द को पूरे नम्रता पूर्वक सुनते।
यीशु ने यह देखा कि अतिथि जन अपने लिये बैठने को कोई सम्मानपूर्ण स्थान खोज रहे थे, सो उसने उन्हें एक दृष्टान्त कथा सुनाई। वह बोला:
“'जब तुम्हें कोई विवाह भोज पर बुलाये तो वहाँ किसी आदरपूर्ण स्थान पर मत बैठो। क्योंकि हो सकता है वहाँ कोई तुमसे अधिक बड़ा व्यक्ति उसके द्वारा बुलाया गया हो। फिर तुम दोनों को बुलाने वाला तुम्हारे पास आकर तुमसे कहेगा,‘अपना यह स्थान इस व्यक्ति को दे दो।’ और फिर लज्जा के साथ तुम्हें सबसे नीचा स्थान ग्रहण करना पड़ेगा।
“सो जब तुम्हे बुलाया जाता है तो जाकर सबसे नीचे का स्थान ग्रहण करो जिससे जब तुम्हें आमंत्रित करने वाला आएगा तो तुमसे कहेगा, ‘हे मित्र, उठ ऊपर बैठ।’ फिर उन सब के सामने, जो तेरे साथ वहाँ अतिथि होंगे, तेरा मान बढ़ेगा। क्योंकि हर कोई जो अपने आपको उठायेगा, उसे नीचा किया जायेगा और जो अपने आपको नीचा बनाएगा, उसे उठाया जायेगा।"'” --लूका १४:८-११
उन लोगों को कितना ही विनम्र और अनुग्रकारी तरीका था उन लोगों को समझाना। फिर यीशु मेज़बान कि तरफ मुड़े। वह दूसरे प्रभावशाली लोगों से घिरा हुआ था। वह इनको अधिक महत्व दे रहा था। वह इसी दुनिया में जीना चाहता था। लेकिन यह परमेश्वर का राज्य कि दुनिया नहीं थी। यीशु ने कहा:
“'जब कभी तू कोई दिन या रात का भोज दे तो अपने मित्रों, भाई बंधों, संबधियों या धनी मानी पड़ोसियों को मत बुला क्योंकि बदले में वे तुझे बुलायेंगे और इस प्रकार तुझे उसका फल मिल जायेगा। बल्कि जब तू कोई भोज दे तो दीन दुखियों, अपाहिजों, लँगड़ों और अंधों को बुला।'" --लूका १४:१२-१४
यीशु का यह दृष्टांत स्पष्ट रूप से एक फटकार थी। कमरे में सब कितने असुविधाजनक महसूस कर रहे होंगे। उनके अपने स्वार्थ कि इच्छा और लालच उस व्यक्ति के सामने लाना पड़ा जिसे वे मारने कि कोशिश में थे। परन्तु वे शुद्ध किये जा सकते थे। वे पश्चाताप कर सकते थे! वे मुड़ कर अपने आप को बदल सकते थे, केवल उसके पीछे चल कर! वे गरीबों के लिए दरवाज़ों को खोल कर के परमेश्वर के प्रेम को चमका सकते थे! वे अपने राष्ट्र को बदल सकते थे! वे अपने मसीहा को अपना सकते थे!