कहानी ८३: नासरत में वापसी और चेलों का भेजा जाना
कफरनहूम में अन्धे और मूक के उपचार के बाद, यीशु वापस नासरत अपने गृहनगर कि ओर गया।ऐसा करना एक बहुत साहसिक और बहादुरी का काम था। मसीह के विषय में हमने पिछली बार जो पढ़ा, नगरवासी एक चट्टान उसे दूर फेंकने की कोशिश में थे! यह कहानी शायद इस कहानी के होने के एक साल या डेढ़ साल पहले कि है। यह वसंत ऋतु में था, और यीशु गलील में अगले बारह से अठारह वर्ष गलील में बिताने के लिए चले गए। हमें ठीक तारीखें नहीं पता, परन्तु हम उसकी सेवकाई कि सारी जानकारी ले सकते हैं, और एक बहुत बड़ा अनुमान लगा सकते हैं।
जब यीशु नासरत को इसबार लौटा, उसके चेले उसके साथ थे। वह प्रचार के लिए एक बार फिर से उनके आराधनालय में चला गया। कितना सुंदर अनुग्रह है कि एक बार फिर वह अपने आप को उनके लिए दे रहा है जो उसे एक समय में मरवाना चाहते थे! क्या पूरे गलील में चमत्कारों का बहाव उनके ह्रदयों को नरम करेगा?
यीशु को सुनते समय, लोगों ने अपने कठोर मनो को दर्शाया। ना उन्होंने ने पश्चाताप किया और ना ही उसकी आराधना की। उसके शानदार शिक्षण और लुभावने चमत्कार पर उनकी टिप्पणियां शक और सन्देश से भरे हुए थे। उन्होंने कहा,"' इसको ये बातें कहाँ से मिली हैं? यह कैसी बुद्धिमानी है जो इसको दी गयी है? यह ऐसे आश्चर्य कर्म कैसे करता है?'" वे जानते थे कि उसकी बुद्धि किसी भी साधारण गाव वाले से कहीं अधिक है।
उन्होंने कहा,"'क्या यह वही बढ़ई नहीं है जो मरियम का बेटा है, और क्या यह याकूब, योसेस, यहूदा और शमौन का भाई नहीं है? क्या ये जो हमारे साथ रहतीं है इसकी बहनें नहीं हैं?” सो उन्हें उसे स्वीकार करने में समस्या हो रही थी।
यीशु ने तब उनसे कहा, “किसी नबी का अपने निजी देश, सम्बंधियों और परिवार को छोड़ और कहीं अनादर नहीं होता।” नबी केवल वो नहीं होते जो अतीत में सिखाय हुए वचनों को और बुद्धि को सिखाय। एक नबी परमेश्वर के साथ सीधा संबंध रखता है। वे परमेश्वर के लिए सीधे बोलते हैं। यीशु के अपने गांव के लोग इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाए कि उनके अपने ही गाँव के किसी एक को यह महान कार्य दिया गया। यीशु उनके बीच में एक बहुत महान व्यक्ति होने का दावा कर रहा था। यूहन्ना बपतिस्मा देने के अलावा, सैकड़ों वर्ष के लिए इस्राएल में कोई नबी नहीं हुआ था।
अब सबसे बड़ा नबी आ गया था, और नासरत के लोगों को उसे देखने के लिए विश्वास नहीं था। और क्यूंकि वे विश्वास नहीं करते थे, यीशु ने वहाँ ज़यादा चमत्कार नहीं किये। उन्होंने थोड़े से बीमार लोगों पर हाथ रखा और वे चंगे हुए। केवल टूटे हुए और नासरत के ज़रूरतमंद लोगों को अशिक्षित किया कि वे यह चमत्कार देख सकें कि यीशु कौन था। पर यीशु को अपने नगरवासियों के अविश्वास को देख कर आश्चर्य हुआ।