कहानी ५८: पहाड़ पर उपदेश: एक सच्चे दिल से परमेश्वर की सेवा करना

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पहाड़ पर दिए उपदेश के पहले भाग में, यीशु ने उच्च और पवित्र नियम से सिखाया कि प्रेम ही सर्वोच्च लक्ष्य है। फिर उसने अपने चेलों उनको अमल करना सिखाया! स्वर्ग के राज्य के प्रेम को यीशु ने पहाड़ के उद्देश्य को शुद्ध और इंसानियत कि पवित्रता में दिखाया जो उसकी स्तुति करने में इच्छा रखता है। एक इंसान का ह्रदय किसी को कोसने के लिए नहीं बनाया गया। वह स्वर्ग के लिए बनाया गया था, और जब वह घर के विषय में सुनता है तो उसकी चाहत बढ़ जाती है।

जब हम अपने स्वर्गीय पिता को खुश करने के तरीके सोचते  हैं हमारे ह्रदय उसको और अधिक करने कि कोशिश में लग जाता है। वह कितना योग्य है! कई बार, हम इंसान उस उच्च, पवित्र दिशा और उसे बिगडते हैं, जैसे कि फरीसी और सदूकी जो यीशु के दिनों के थे। हर इंसान के लिए यह एक लगातार खतरे के सामान है।हम यीशु कि अच्छाइयों को देखते हैं, परन्तु उसको खुश करने के बाह्य हम उसके विचारों को इस्तेमाल करके अपनी तारीफ में पाते हैं। हमें उसके रास्तों कि खूबसूरती पसंद आती है, लेकिन उस खूबसूरती हो हम अपने लिए इस्तेमाल करते हैं।

यह शुधता स्वार्थपरता में बदलना ह्रदय और दिमाग के शांत कोनो में होता है। यह बहुत जल्द हो सकता है, बिजली के समान, और हम इससे अचंभित हो सकते हैं।  हम ने शुरू में चाहा कि हम यीशु के लिए उस पहाड़ी पर चमकती हुई ज्योति के समान हों। लेकिन लोग देखते हैं, और वे हमारी तारीफ करने लगते हैं। यह सब कितना अच्छा लगता है। हमें अच्छा लगता जब हमें प्यार मिलता है। परमेश्वर के प्रेम को खोजने के बजाय, हमारे साथियों कि तारीफें और प्रेम ज़यादा महत्त्व देते हैं। हम उनके दिए हुए तारीफों पर जीने लगते हैं, और और मिलने के लिए कुछ भी करते हैं। प्रभु को खुश करने कि भूख हममें ख़त्म हो जाती है। हम उसकी प्रशंसा और तारीफ के लिए उस पर निर्भर रहते हैं। अपने विषय में  यह  बहुत कठिन बात है, परन्तु यह यीशु के चेलों के लिए एक लगातार खतरा है। वास्तव में, धार्मिकता में वे जितना चलते हैं और जितना अधिक लोग उसे देखते हैं, उतना ही खतरनाक हो जाता है। यीशु ने चेतावनी देते हुए कहा :

“सावधान रहो! परमेश्वर चाहता है, उन कामों का लोगों के सामने दिखावा मत करो नहीं तो तुम अपने परम-पिता से, जो स्वर्ग में है, उसका प्रतिफल नहीं पाओगे। इसलिये जब तुम किसी दीन-दुःखी को दान देते हो तो उसका ढोल मत पीटो, जैसा कि आराधनालयों और गलियों में कपटी लोग औंरों से प्रशंसा पाने के लिए करते हैं। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि उन्हें तो इसका पूरा फल पहले ही दिया जा चुका है।किन्तु जब तू किसी दीन दुःखी को देता है तो तेरा बायाँ हाथ न जान पाये कि तेरा दाहिना हाथ क्या कर रहा है। ताकि तेरा दान छिपा रहे। तेरा वह परम पिता जो तू छिपाकर करता है उसे भी देखता है, वह तुझे उसका प्रतिफल देगा।'"
मत्ती ६ः१-४

आपने देखा कैसे परमेश्वर उनको सम्मानित करना चाहता जो उसको प्रसन्न करने के लिए ढूंढते हैं? आपने देखा कि कैसे सब विनाश हो जाता जब हम दूसरों को प्रसन्न काने में लग जाते हैं? और यीशु जानता था कि यह धोखा बहुत जल्दी से हर व्यक्ति के ह्रदय में काम करता है! हमारे बाएं तरफ को हमारे दायें तरफ से छुपाना है कि कुछ अछा किया। जिस समय एक तरफ दुसरे को शाबाशी देने लगता है, हम खो जाते हैं। धार्मिकता कि राह में स्वयं संतुष्टि और स्वयं अभिनन्दन करने कि जगह नहीं है। हर अच्छा काम परमेश्वर के सिंहासन पर एक पवित्र भेंट के समान है। हर एक अच्छा कार्य परमेश्वर को खुश करने के लिए होना चाहिए!

यीशु हमें दिखाएगा कि किस तरह यह परमेश्वर को आदर दे सकता है। जो कुछ भी हम करें, चाहे गरीबों को देना या प्रार्थना और उपवास करना, सब कुछ परमेश्वर के प्रति प्रेम और  भक्ति में हो कर करना चाहिए। ऐसे रिश्ते कि चाहत वो हमसे रखता है। उसके विषय में सोचिये! क्या यह अद्भुद नहीं है?

यीशु ने कहा:
"'जब तुम प्रार्थना करो तो कपटियों की तरह मत करो। क्योंकि वे यहूदी आराधनालयों और गली के नुक्कड़ों पर खड़े होकर प्रार्थना करना चाहते हैं ताकि लोग उन्हें देख सकें। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि उन्हें तो उसका फल पहले ही मिल चुका है। किन्तु जब तू प्रार्थना करे, अपनी कोठरी में चला जा और द्वार बन्द करके गुप्त रूप से अपने परम-पिता से प्रार्थना कर। फिर तेरा परम-पिता जो तेरे छिपकर किए गए कर्मों को देखता है, तुझे उन का प्रतिफल देगा। जब तुम प्रार्थना करते हो तो विधर्मियों की तरह यूँ ही निरर्थक बातों को बार-बार मत दुहराते रहो। वे तो यह सोचते हैं कि उनके बहुत बोलने से उनकी सुन ली जायेगी। इसलिये उनके जैसे मत बनो क्योंकि तुम्हारा परम-पिता तुम्हारे माँगने से पहले ही जानता है कि तुम्हारी आवश्यकता क्या है।'"  -मत्ती ५ः६-८

वाह! एक क्षण के लिए उसके विषय में सोचिये। क्या आप वास्तव में सोचते हैं कि परमेश्वर पिता आपकी शांत प्रार्थनाओं को सुनते हैं? आप मानते हैं कि वो आपको बहुत नज़दीकी से ध्यान देता है? कुछ बातों को हम अपने दिमाग से समझते हैं, लेकिन हमें ह्रदय  कि ज़रुरत है विश्वास करने कि।  क्या आप वास्तव में यह समझते हैं कि जब आप अपने कमरे में शांती से परमेश्वर के पास आते हैं वो आपको सुनता है? क्या यह अचम्भा नहीं कि जो स्वर्ग के सिंहासन पर विराजमान है वह आपकी सुनना माँगता है? वो यशस्वी आश्चर्य इतना शानदार है कि हमारा दिमाग इसे समझ नहीं सकता। कभी कभी उसके सामर्थी प्रेम को हमारा ह्रदय भी समझ नहीं पाता।  परन्तु वो हमेशा वहाँ है, और वो हमसे प्रेम करता है!

यीशु के यह बहुत महत्पूर्ण था कि उसके चेले उसकि ओर निष्ठावान हैं और वे ईमानदार हैं। क्या यह बेहद बुरा नहीं कि जिससे आप प्रेम करते वह इंसान दूसरों को प्रभावित करने के लिए वो सब आपके लिए करे? एक सुन्दर बीवी जो अपने पति से प्रेम करती है उसके विषय में सोचिये। एक दिन वो एक सुन्दर सा तोहफा लेकर आता है। वह एक सोने का हार है। वो कितना महत्वपूर्ण समझेगी!

लेकिन यदि उसे यह मालूम होता है कि उसका पति वो हार इसीलिए लाया क्यूंकि उनका पडोसी अपनी बीवी के लिए भी हार लाया था। उसकी पत्नी का हार केवल इसीलिए इतना मेहेंगा था क्यूंकि वह पडोसी के हार से अधिक बढ़कर और मेहेंगाथा। वो तोहफा फिर कभी उसके पति के गहरे लगन कि निशानी नहीं हो सकती। वह उसके पडोसी के विरुद्ध अहंकार और प्रतियोगिता का चिन्ह बन जाएगा।

दूसरी तरफ, क्या अगर उसके पति ने उसे चुपचाप लाकर दे दिया होता? क्या अगर वो उसे वो शब्द कहता जो केवल वही सुन सकती थी? उसकी एक लौटी पत्नी को यह लगता कि वह उसकी सच्चा खज़ाना है।

परमेश्वर के साथ प्रार्थना का रिश्ता किसी भी सोने के हार से अधिक मूल्य है। सोचिये यीशु को कितना बुरा लगता होगा जब हम अपनी प्रार्थनाओं को दूसरों के साथ प्रतियोगिता करने के लिए उपयोग करते हैं। सबसे छोटे उद्देश के लिए इन ऊंची बातों को उपयोग किया जाता है!

उसके प्रति भक्ति दिखने के लिए परमेश्वर कितना बेचैन होता है! सो जैसे यीशु ने पहाड़ पर के उद्देश्य को सिखाया, उसने अपने चेलों को वो बातें सिखाईं जो परमेश्वर के प्रति निष्कपट प्रेम को दिखाए। जब वे गरीबों के लिए करते थे, वह  करते थे। वह केवल परमेश्वर कि आखों के लिए ही था।यह इतना गुप्त होना था कि चेलों को भी अपने आप से छिपना था ताकि उनको कुछ भी करने में घमंड न आये। वह केवल परमेश्वर का था! यही बात प्रार्थनाओं के लिए भी था!