कहानी ५६: पहाड़ी उपदेश: तुम किसे प्यार करते हो?

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जब यीशु ने पहाड़ी उपदेश पढ़ाया, तो उन्होंने छह प्रकार के तरीके बताये जिससे उनके समय के यहूदी नेता और पूरी यहूदी संस्कृति ने पुराने नियम के उच्च और पवित्र व्यवस्था को विकृत करके उसका दुरुपयोग किया। परमेश्वर ने हत्या, व्यभिचार, और तलाक के खिलाफ आदेश दिए ताकि पाप को लगाम दी जाये। वह  चाहते थे कि उनके बच्चे एक दूसरे से प्यार करने की चाहत और प्रयास करे। ये शक्तिशाली आदेशों को परमेश्वर के लोगों को उनके उच्च और पवित्र रास्तों की ओर दर्शाना था। लेकिन धार्मिक नेताओं ने उन्हें लिया और मन मर्ज़ी मोड़ा। उन्होंने इन व्यवस्थाओं का इस्तमाल लोगों को नियंत्रित और सीमित करने के लिए और अपने को दूसरों से प्यार या त्याग करने से खुद को बचाने के लिए किया।

क्या द्वेष और स्वार्थ धार्मिकता के नाम पर जाईज़ था! कोई आश्चर्य नहीं कि यीशु नेतृत्व की ओर आवेशपूर्ण थे! कोई आश्चर्य नहीं कि यूहन्ना बप्तिस्मा देने वाले ने उन्हें सापों का झुण्ड बुलाया! वे परमेश्वर के वचन को लेकर, खुद को शक्तिशाली और समृद्ध बनाने के लिए इस्तेमाल कर रहे थे! वे अपने से कम शक्तिशाली को वचन का गलत उदहारण देकर और उसमे जोड़कर कुचल रहे थे! इसके बजाय कि वो परम प्रधान परमेश्वर की सेवा करें, वे शैतान के साथ साझेदारी कर रहे थे। उन्होंने भ्रम, लज्जा और भ्रष्टाचार के साथ यहूदी लोगों में जहर घोला।

इस सूची में यीशु की अंतिम घोषणा शायद अब तक की एक मानव भाषा में लिखी गई सबसे उच्चतम और सबसे कठिन मानक है। यह इतना उच्च है, यह असंभव है। यह इस बात की पुष्टि करता है स्वर्ग के राज्य के नियम, सामान्य पुरुष और महिलाओं द्वारा नहीं किये जा सकते है। हम में से हर को उसके उच्च और पवित्र तरीके से रहने के लिए परमेश्वर की शक्ति की जरूरत है! यीशु ने यह कहा:

“तुमने सुना है: कहा गया है ‘तू अपने पड़ौसी से प्रेम कर और शत्रु से घृणा कर।’ किन्तु मैं कहता हूँ अपने शत्रुओं से भी प्यार करो। जो तुम्हें यातनाएँ देते हैं, उनके लिये भी प्रार्थना करो। ताकि तुम स्वर्ग में रहने वाले अपने पिता की सिद्ध संतान बन सको। क्योंकि वह बुरों और भलों सब पर सूर्य का प्रकाश चमकाता है। पापियों और धर्मियों, सब पर वर्षा कराता है।
मत्ती ५ः४३-४५

वाह। क्या आपने कभी एक दुश्मन को प्यार करने की कोशिश की? क्या आप कभी एक क्रूर व्यक्ति की ओर कृपालु हुए है जिसने आपके साथ क्रूरता से बर्ताव किया है; भले ही आप जानते हो कि वो क्रूर होना बंद नहीं होगा? क्या आप ऐसे व्यक्ति के लिए, करुणा भरी प्रार्थना करते रहे जो आपको सक्रिय रूप से नष्ट करने की ताक में हो? यह एक बहुत मुश्किल काम है, फिर भी यह मसीह की आज्ञा है। लेकिन इसके लिए बड़ा इनाम भी है।

अब,पहाड़ी उपदेश में,यीशु कहते है कि जो धार्मिकता के खातिर सताए जाते है, वो लोग धन्य हैं। उन्हें पुराने नबियों और नायकों के साथ गिना जाता है, और वे परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे! यह वास्तव में एक बहुत ही उच्च और महान आशीष है!

लेकिन यहाँ, यीशु और भी एक उच्च आशा को जन्म देते है। जो न केवल धार्मिकता की खातिर उत्पीड़न सहते है बल्कि वो जो अपने अत्याचारियों के लिए प्रार्थना करते है- वो परमेश्वर के पुत्र है। उन्होंने परमेश्वर के चरित्र को ले लिया है! वाह। यह इतना बेहद शानदार और उच्च और उत्कृष्ट है, कि इसे लेखन में डाला नहीं जा सकता। यह लक्ष्यों के इतिहास में सबसे बेहतरीन प्रशंसा और बड़ा लक्ष्य है। लेकिन यह एक काफी दुखदैपूर्ण असंभव बात है - जब तक परमेश्वर की आत्मा स्वयं कार्य न करे और हमें यह करने की सामर्थ न दे।

यीशु समझाते है कि परमेश्वर सूर्यउदय, धरती पर हर किसी के लिए भेजता है। दोनों अच्छे और बुरे पुरुष उसकी प्रकाश और गर्मी के तहत आनंद लेते है और पनपते है। यीशु सूरज को एक चिन्ह के रूप में इस्तमाल कर रहे है जो हर कोई भली चीज़ को दर्शाती है जो परमेश्वर इस दुनिया में लाते है| परमेश्वर पैदा हुए हर व्यक्ति को भली वस्तुए देता है।

यीशु फिर समझाते है कि परमेश्वर दोनों अच्छे और भ्रष्ट लोगों पर बारिश भेजता है। क्या आपने एक गरम, सूखे दिन के बीच, ठन्डे और ताज़े बारिश का लुप्त उठाया है? यह दुनिया का सबसे अच्चा एहसास हो सकता है। जब बारिश खेत की फसलों पर पड़ती है, तो वे बहुतायत के साथ बड़े होते हैं। दुनिया पनपती है। परमेश्वर पूरी दुनिया के लिए बारिश की आशीष भेजते है। बुरे लोग भी आशीषित होते हैं जैसे हिरदय में पवित्र (मत्ती ५ः४५)। अगर परमेश्वर इतना दयालु है, तो निश्चित रूप से उसके अपने लोगों को उसका पालन करना चाहिए!

लेकिन परमेश्वर की उदारता धूप और बारिश और उससे आने वाले जीवन के साथ अंत नहीं होती है। उसने दुनिया के लिए एक ऐसा उपहार भेजा जो सूर्य और बारिश से ज्यादा महत्वपूर्ण है! पिता परमेश्वर ने अपने पुत्र के द्वारा उद्धार की महान अच्छाई को भेजा ताकि मानवजाति बच सके। अगर परमेश्वर ने उन लोगों को इतनी दया दिखाई जिन्होंने उनके विरुद्ध इतना विश्वासघाती पाप किया, तो निश्चित रूप से उनके अनुयायियों को यह प्यार दूसरों को दिखाना है, चाहे वो उनको सता क्यूँ न रहे हो। उन्हें एक समूह  की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए या फिर किसी के पाप की वजह से उसकी अवहेलना नहीं करनी चाहिए।उन्हें अपने को दयापूर्ण प्रेम से हर उस जन के साथ पेश आना है जो परमेश्वर उनके रास्ते लाता है!