कहानी ४९: पर्वत पर उपदेश: शुद्ध मन वालों के लिए आशीषें
यीशु जब उन लोगों के विषय में सिखा रहे थे जो स्वर्ग के राज्य में अशिक्षित होंगे उन्होंने एक और बात कही, "'धन्य हैं वे जो हृदय के शुद्ध हैं क्योंकि वे परमेश्वर के दर्शन करेंगे।'" परमेश्वर को देखना इसका क्या अर्थ है? क्या इसका यह अर्थ है कि हम उसे अपनी आँखों से देखें? ह्रदय से शुद्ध कैसे हो? क्या यह रगड़ने वाले ब्रश से होता है, अपने सीने को खोलकर साबुन से उसे धोना?
यदि हम चाहते हैं यह जानना कि हम शुद्ध मन के हैं या नहीं, हमें कुछ सवाल अपने आप से करने होंगे। सवाल हमारे बाहरी रूप के विषय में नहीं हैं, जैसे कि क्या हम हर हफ्ते गिरजे जाते हैं या नहीं। यह इसमें भी नहीं कि हम कैसे हैं जैसा कि एक मसीही को। हमें सवाल करने हैं जैसे कि हमारे ह्रदय के भीतर क्या है। हमें बेहद ईमानदार होना है। वो बातें हम यीशु को और कैसे दे सकते हैं?
कुछ कठिन सवाल ऐसे होते हैं जैसे कि:
क्या मेरे विचार ऐसे हैं जो मैं दूसरों के साथ बाटने में शर्म करूँ ?
क्या मैं दुर्भावनापूर्ण दूसरों के विषय में सोचता या बात करता हूँ?
क्या मैं यीशु कि सेवा इसलिए करता हूँ ताकि लोगों के न्याय से बच सकूं या उनकी बधाई ले सकूं?
क्या मैं दूसरों कि सेवा इसलिए करता हूँ ताकि मैं उनसे अपने काम के लिए कुछ ले सकूं, या मैं परमेश्वर के लिए एक साफ़ और शुद्ध बली चढ़ाने के लिए करता हूँ?
क्या मैं उन बातों पर हस्ता हूँ जिससे यीशु अपमानित होते हैं?
क्या अमीर होना या अपने को आराम में रखना परमेष्वर के राज्य को फैलाना मेरे लिए ज़यादा लिए महत्वपूर्ण है?
क्या मैं धन या कपड़े या प्रतिष्ठा या दोस्तों से अपने ह्रदय में यीशु के लिए अधिक उत्तेजित हूँ?
क्या कोई ऐसे पाप हैं जो मैं करते जाना चाहता हूँ, जब कि मुझे मालूम है कि वे गलत हैं? क्या कोई ऐसी बातें हैं जो मैं करना बंद नहीं करना चाहता हूँ, लेकिन मैं नहीं चाहता कि और किसी को पता चले?
ये कुछ कठोर सवाल हैं जो हमें अपने ह्रदय को ढूंढ़ने में मदद करते हैं। ये हमें वो स्थान दिखाते हैं जहाँ हम विद्रोही हैं और याशु से दूर होते जा रहे हैं। यीशु हमारे ह्रदय में आना चाहता है और उसे शुद्ध करना चाहता है, अपने उत्तम प्रेम कि ओर खींचने को। जब हम बाकी बातों को एक तरफ रख कर उसे हमारे अंदर काम करने देते हैं, हम उसे और अधिक स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। हम अपने चारों ओर लोगों को और संसार को, शुधता और अच्छाई के साथ देख पाते हैं।
एक दिन जब, यह दौर ख़त्म हो जाएगा और यीशु हमें वर्ग में अनंत जीवन के लिए अपने, हम पूर्ण रूप से बदल जाएंगे और उसके प्रेम में उत्तम शुद्ध किये जाएंगे। हम यीशु के सामान बनाये जाएंगे, और हमारा पाप के संग संघर्ष समाप्त हो जाएगा। लेकिन उस दिन तक, हम उस निशाने कि ओर जाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, और जब हम कर रहे हैं, यीशु अपने राज्य को हमारे भीतर ले आता है।
यीशु ने अपनी बातें जारी रखीं। उसने कहा, "धन्य हैं वे जो शान्ति के काम करते हैं। क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलायेंगे।" यीशु वास्तव में, महान मेल करने वाले हैं। उसने हमारे पाप हमसे दूर कर दिए और हमें अपनी धार्मिकता दे दी। उसने आप में, मुझ में और परमेश्वर के बीच शांति करायी! अब हम इस अद्भुद शुभ सन्देश के साथ जाकर इस पृथ्वी के लोगों को सुना सकते हैं। सर्वश्रेष्ठ पवित्र परमेश्वर ने पापियों के लिए वो रास्ता दिखाया जिससे वे उसके साथ शांति पा सकते हैं!
जो विश्वासी हैं वे जानते हैं कि परमेश्वर ने असम्भव को अपने ऊपर ले लिया और उसे सम्भव बना दिया। मनुष्य कि दुष्टता और गन्दगी के बीच कट्टर विरोध यीशु के लहू के द्वारा मिलाप हुआ। जब हम जानते हैं कि यह अद्भुद चमत्कार हुआ है, हमें यह बड़ी आशा है कि परमेष्वर हमारी लिए इस दुनिया क्या कुछ नहीं कर सकता! जो लोग एक दुसरे से नफरत करते हैं हम उनके बीच शांति लाना चाहते हैं। हम वहाँ समाधान निकालना चाहते हैं जहाँ समाधान नहीं हो सकता। जो बात क्षमा के लायक नहीं है हम उसे क्षमा देते हैं। हमें अपने लिए लड़ने की ज़रुरत नहीं क्यूंकि यीशु हमारे लिए लड़ेगा जिस पर हमारा भरोसा है। हम अपने घमंड को और कर्मों को नम्रता से दे सकते हैं, और जो क्रोधित लोग हैं उनको हम प्रेम से वश में कर सकते हैं। हम शांति को ले आते हैं।
जब हम इस शत्रुतापूर्ण और विभाजित हुए संसार में शान्ति लाने का कार्य करते हैं, हम आशिक्षित होते हैं। हम परमेष्वर के संतान हो जाते हैं। इसका मतलब हम परमेश्वर के स्वाभाव ले लेते हैं। शांति बनाने वाले होना परमेश्वर के सामर्थी स्वरुप होने के समान है !
आठवे आशीष के उपदेश में यीशु कहता है,"धन्य हैं वे जो नीति के हित में यातनाएँ भोगते हैं क्यूंकि स्वर्ग का राज्य उनका ही है। मसीही इतिहास में धार्मिकता के लिए लोगों को बहुत से तरीकों से सताया गया था। हज़ारों साल से सैकड़ों लोग यीशु के प्रति निष्ठावान होने के लिए पीटे गए, जेल में डाले गए, सताय गए और मारे गए। वे इस संसार में रहते हुए इतने आशीषित नहीं लगे होंगे परन्तु अनंत जीवन में उन पर आशीषें उंडेली जाएंगी। अनंत जीवन एक बहुत लम्बे समय का है, और जब हम सेकड़ो साल तक परमेश्वर के सम्पूर्ण आनंद और शांति में रहेंगे, उसके पश्चात इस धरती पर रहना एक पल....धूल के छोटे से कण के सामान होगा। इस जीवन में स्वर्ग के राजा के लिए जो हम सताय जाते हैं वह तब लगेगा कि सहने लायक था।
सताव यातना और मृत्यु के रूप में आ सकता है। सताव और बहुत से शांत तरीकों से भी आता है। जो हर रोज़ के दिनचार्य में हम अपने आत्मा में दीन रहने के लिए खोजते हैं, हम शायद घमंडी और अभिमानी लोगों के विरुद्ध संधर्ष करते हैं। शायद उनके समान प्रभावशाली या आक्रामक न होने से हमें स्वीकार न किया जाए। जिस समय हम अपने पापों के लिए विलाप करते होंगे और इस पाप से डूबे संसार कि शर्मिंदगी का विलाप करते हैं, ऐसे लोग होंगे जो हमें अपने पापों से पश्चाताप करने से रोकेंगे या श्राप के विरुद्ध परमेष्वर के कार्य को करने से रोकेंगे। जैसे जैसे हम धार्मिकता के लिए भूखे और प्यासे होते जाएंगे, नौकरी में घूस ना लेने के लिए या झूठ बोलने के लिए या ईमानदारी से कमाने के लिए हमें नौकरी से निकाल दिया जाये। जब हम दूसरों को दया दिखाते हैं, दूसरे जो दयालू नहीं हैं वे हमें अस्वीकार कर सकते हैं और जो दयालू होते हैं उनसे कोई वास्ता न हो।
यह संसार बेहद श्रापित है, और अधिकतर लोग विनाश से बहुत दूर होना चाहते हैं। यीशु कि सामर्थ में, हम घमंड को, पद को, पाप में गिरने का घिनौना विलाप को उसकी सामर्थ से हटा सकते हैं और जो इन सब के कारण पीस रहे हैं उनको हम ऊपर उठा सकते हैं। परन्तु यह दुनिए ऐसों को नहीं चाहेगी जो यह करते हैं। ह्रदय कि पवित्रता ऐसे समय में परखी जाती है। क्या हम वही करें जो यीशु चाहता है और अन्धकार में ज्योति और प्रेम लाने कि कोशिश करें? या फिर हम एक स्वार्थी जीवन बिताएं जहाँ हम अपनी ही ज़रूरतों को पूरा करते रहे और अपने लिए और अपने ही परिवार के लिए ही कमाते रहे कि वे ही तृप्त रहे?
दिल से शुद्ध लोग धार्मिकता में, करुणा दिखाने में, और शांति बनाने वालों में स्थिर खड़े रहते हैं, चाहे उन पर सताव आये। अपने परमेश्वर और राजा को आदर देने की अनंत आशा के लिए उनके ह्रदय तरसते हैं, चाहे उनको इस पृथ्वी पर सब खो देना पड़े। सताव के बीच में जब वे यीशु के लिए खड़े रहते हैं, वे स्वर्ग के राज्य को प्राप्त करेंगे, और यह सब बातों में सर्वश्रेष्ठ बात है! यीशु ने कहाँ कि उसके चेलों को सताव के बीच में भी आनंदित और खुश रहने चाहिए। पुराने नियम में नबी और महान संत लोग इसी तरह सताय गए थे, और बड़े गर्व कि बात है कि उनमें गिने जाते हैं। स्वर्ग में इसका इनाम महान होगा!