कहानी ४८: पर्वत पर उपदेश: धन्यता 

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यीशु लगातार यह समझा रहे हैं कि वे लोग जो इस पृथ्वी पर हैं उनमें स्वर्ग के राज्य के लिए धन्य कौन है। यीशु ने मन के दीन और वे जो शोकित होते हैं उनके धन्यता के बारे में समझाया इसके बाद, उन्होंने कहा: "धन्य हैं वे नम्र जो पृथ्वी पर राज करेंगे।"

क्या आप नम्र शब्द का अर्थ समझते हैं? क्या यह आपको एक कमजोर और बीमार व्यक्ति के बारे में याद दिलाता है? इसका मतलब यह काफी नहीं है। एक नम्र व्यक्ति डरपोक और अनिश्चित नही होता, वे हर किसी के आदेश पर चलने वाले नहीं होते। बल्कि, यह उसका विपरीत है। नम्रता किसी बलवान व्यक्ति के आधीन में रहने वाली महान शक्ति है।

एक शक्तिमान, निडर घोड़े के विषय में सोचिये जो दरवाज़ों को नीचे लात से और किसी भी सवारी को नीचे गिरा सकता है। फिर उसकी घोड़े कि कल्पना कीजिये जब उसका घुड़सवार उसके ऊपर सवार होता है और वे उसके नियंत्रण में आ जाता है और वही करता है जो उसका मालिक कहता है। सोचिये जब वही घोड़ा अपनी सामर्थ उस मालिक के हाथ में सौंप देता है और वह मालिक उसके साथ बड़े बड़े काम करता है। वह उसके ऊपर सवार होकर लड़ाई में भी जा सकता है यह जानते हुए कि उसका घोडा लड़ने से नहीं डरेगा।

जब हम अपना विश्वास यीशु पर डालते हैं, हमें नया जीवन और नयी सामर्थ मिलती है। नम्रता उसी में है जब हम अपने आप को परमेश्वर के हाथों में उसकी सेवा करने के लिए दे देते हैं। हम अपनी ताक़त अपने स्वामी, यीशु को देते हैं, ताकि वो हमें अपने राज्य के लिए इस्तेमाल कर सके।

दीन लोग परमेश्वर से बहुत आशीषें पाते हैं। वे इस संसार के वारिस होंगे!

कभी कभी लगता है कि इस संसार के स्वार्थी और अभिमानी लोगों कि जीत हो रही है। उन लोगों के विषय में सोचिये जो अपने गुण और ताक़त के बल से सब कुछ हासिल कर लेते हैं जो वे चाहते हैं। वे पैसे ज़यादा बना लेते हैं और उनके पास अधिकार भी ज़यादा होता है। परन्तु परमेश्वर कहता है, कि अंत में, जो दीन हैं जीत उनकी ही होगी। परमेश्वर हा उस शांति से आज्ञाकारी के नम्र कार्य को देखता है, और उन्हें बहुतायत से इनाम देने का वादा भी करता है। वो उन्हें सारा संसार विरासत में दे देगा!

यह मानने के लिए कि अंत में दीन ही हैं जो विजय होंगे बहुत विश्वास कि ज़रुरत है। आज की दुनिया में, इसका विपरीत ही ठीक लगता है। परन्तु वे जो यीशु से प्रेम करते हैं वे इस दुनिया की बातों से आज़ाद होने के लिए उतावले होंगे। उनके पास दीनता कि सामर्थ होगी।

दूसरी बात जो यीशु ने कही, "धन्य हैं वे जो नीति के प्रति भूखे और प्यासे रहते हैं!  क्योंकि परमेश्वर उन्हें संतोष देगा,तृप्ति देगा।" क्या आपको पता है कि बहुत भूख लगना कैसा होता है? आप और कुछ सोच नहीं सकते, और आप पेट भरने के लिए कुछ भी करेंगे। यही भूख है जिसके विषय में यीशु कहता है।

हम जानते हैं कि हम धर्मी अपने स्वयं से नहीं हो सकते। हमें यीशु कि धार्मिकता कि ज़रुरत है! हम उसके कैसे पीछे जा सकते हैं? यीशु ने हमें उसके विषय में बता दिया है! धर्मी व्यक्ति वही है जो दीन है। वे नम्र हैं, और इसीलिए वे अपने पापों के लिए शोकित होते हैं। वे नम्रा हैं, सो उनकी सामर्थ परमेश्वर के आधीन में है, यीशु को महिमा देने के लिए। वे धार्मिकता के ख़ूबसूरत चिन्ह हैं, क्यूंकि येही एक तरीका है यीशु पर पूरे दिल से निर्भर होने का। केवल यीशु ही है जो हमारी भूख को मिटा सकता है! और सबसे अच्छी बात यह है कि परमेश्वर हमें तृप्त करने का वादा करता है!

यीशु के पीछे चलने वाले जब धार्मिकता के लिए आगे बढ़ते हैं, उनके ह्रदय कि सब बातें बदल जाएंगी। परमेश्वर कि सेवा करना उनकी गहरी चाहत बन जाएगी। यह उनकी पहली चाहत होगी। उनके जीवन के तौर तरीके वे परमेश्वर कि मर्ज़ी में उसके लिए हर समय करना चाहते हैं। वे परमेश्वर कि मर्ज़ी को खोजते रहते हैं, और उसको पूरे आनंद और आशा के साथ पीछा करते रहते हैं। वे उससे बहुत आनंदित होते हैं।

कई बार, लोग परमेश्वर के तरीकों को ऐसे बोझ समझ लेते जैसे कि उनको मजबूरन करना ही है। हम पाप को ऐसा मानते हैं जैसे कि कोई बलिदान दे रहे हों, और हम शांति से वो दिखाते हैं जो हम चाहते हैं और कर नहीं पाते। परन्तु वह जो धार्मिकता के लिए भूखा और प्यासा होता है वह पाप से घृणा करना समय कि बर्बादी समझता है। वे परमेश्वर कि अच्छाई से इतना प्रेम करते हैं कि वे उसके पीछो भाग रहे हैं, उस तरीके को जिससे कि वे परमेश्वर को खुश कर सकेंगे। यही उनकी सबसे उत्तम ख़ुशी है।

धार्मिकता के लिए भूख और प्यास वह है जो कभी जाती नहीं है। यीशु इस भूख और प्यास को हममें भरता रहता है जब उसके पास आते हैं जो स्वयं धर्मी है। एक बार जब हम उसकी अच्छाई को चख लेते हैं, हम उसे और अधिक मांगते जाते हैं! हम किसी नियम पर नहीं चल रहे, हम अपने जीवन में यीशु कि भलाइयों पर चल रहे हैं। हम उसकी आशा और अपने जीवन के उद्देश्य के लिए आगे बढ़ते जा रहे हैं!

अगली आशीष जो यीशु ने दी वह यह है: धन्य हैं दयालू, क्यूंकि उन पर दया कि जाएगी। "दया" शब्द का क्या अर्थ है? क्या यह भी अनुग्रह है? क्या फर्क है? अनुग्रह वो है जब कोई किसी को प्यार देता है जो इसके योग्य नहीं है। दया वो है जब प्रेम उसे दिया जाता है जो असहाय और ज़रूरतमंद हो। अनुग्रह वो है जब किसी ने यह साबित कर के दिखाया हो कि वह प्रेम के योग्य नहीं है। परमेश्वर हम पर रोज़ अनुग्रह करता है अपनर प्रेम को हम पर न्योछावर कर के। जो दुखी और कष्ट में हैं हम उन पर दया दिखाते हैं। हम सब को परमेश्वर कि दया कि ज़रुरत है क्यूंकि हमारी पाप कि दशा निराशाजनक है। हमें एक बचाने वाले कि बहुत ज़रुरत है! परमेश्वर उसने अपने बेटे को हमारे लिए भेजने में बहुत दयालू और कृपालू था।

जब हम आत्मा में दीन होते हैं और अपनी पापी दशा को पहचान लेते हैं, तब हम यीशु के हमारे प्रति दया और शमा दिखने के लिए बहुत आभारी होते हैं। यह हमारे ह्रदयों को कोमल बनता है और दूसरों को दया दिखने के लिए इच्छा को पैदा करता है। यीशु कि अद्भुद और निराली दया हमारे भीतर से एक ताज़े और शांत झरने के सामान बहेगी!