कहानी ४४: बारह चेलों का चुना जाना

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यीशु चिकित्सा का और भीड़ को प्रचार करने का भारी मात्रा में कार्य कर रहे थे। गलील और यहूदिया से जो यहूदी लोग यीशु सेवकाई में शुरू से उसके पास, साथ अन्यजाति भी जुड़ गए जो मीलों दूर शहरों से आए थे। उन्होंने उसके विषय में सुना था जो चंगाई देता है, और वे गलील से यीशु को स्पर्श करने के लिए दूर दूर से आए थे।

एक रात, यीशु एक पहाड़ पर प्रार्थना करने के लिए गए। स्वर्गीय पिता से उसकी मर्ज़ी को जानने के लिए वे वहाँ पूरी रात ठहरे रहे।जब वह पहाड़ से नीचे आया तो उसने अपने चेलों को बुलाया। ये वे लोग थे जो यीशु कि सेवकाई में शुरू से थे। बहुतों में से उसने बारह को ही चुना। ये वे थे जिनको परमेश्वर ने अपने बेटे यीशु के लिए चुना था। यीशु इन्हें सुसमाचार फ़ैलाने के लिए तैयार करने वाला था। वे मसीह के साथ सुसमाचार देने वाले होंगे। वह उन्हें दुष्टात्माओं को निकालने का अधिकार देने वाला था। पहले से ही परमेश्वर कि सामर्थ यीशु से उन में से बह रही थी जो उस पर विश्वास करते थे। यीशु स्वयं ही इन्को सीखाने वाला था। वह उन्हें सिखाता और अभ्यास भी कराता। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, वे हर दिन मसीह के साथ चलते थे।वे अपने दिल की अंतरंग विचारों को जानने वाले, संगती के सबसे महत्पूर्ण भाग कहलाने के लिए बुलाय गए थे। उनके पास, जीवित परमेश्वर के पुत्र के नज़दीकी में जाने की अकल्पनीय विशेषाधिकार होगा।

जो सबसे आश्चर्यजनक है वो यह कि इन लोगों को सुसमाचारों के पन्नों में जबरदस्त सम्मान मिला। हम भी मसीह के शिष्य हैं , और हम भी वही बातों को सीख सकते हैं जो उसने अपने बारह चेलों को सिखाईं। और प्रभु यीशु मसीह हमारे भी निकट है, यदि हमने भी पर डाला है। वास्तव में, वह हमारे ज़यादा नज़दीक इसके कि जब वह इस दुनिया में अपने चेलों के साथ था। उसने हमारे लिए अपनी आत्मा को भेजा है और वह हमारे दिल में है !

बारह के नाम ये थे ;
"शमौन (जिसे उसने पतरस नाम दिया), जब्दी का पुत्र याकूब और याकूब का भाई यूहन्ना (जिनका नाम उसने बूअनर्गिस रखा, जिसका अर्थ है “गर्जन का पुत्र”), अंद्रियास,फिलिप्पुस,बरतुलमै,मत्ती, थोमा, हलफई का पुत्र याकूब, तद्दी और शमौन जिलौती या कनानी तथा यहूदा इस्करियोती (जिसने आगे चल कर यीशु को धोखे से पकड़वाया था)।" ( मत्ती ३ः१६-१९)

यह एक बहुत अद्भुत सूची है जिनके नामों को आप सुनते हैं और विचार करते हैं कि ये कहाँ से आये। यह सब लोग यहूदी थे, लेकिन वे यहूदी दुनिया के बहुत विभिन्न भागों से आए थे .

उनमें से कोई भी फरीसी नहीं थे। उनमें से कोई भी यहूदियों के मंदिर या कानून के शिक्षकों का हिस्सा नहीं थे।

बारह शिष्यों को बुलाने के बाद, यीशु पहाड़ से नीचे उतरे। वे एक पहाड़ी एक स्तर पर आये। यीशु ने बाहर देखा और उसके लिए इंतजार कर रहे चारों ओर घूम रहे लोगों की जनता को देखा। वे लगातार आते ही जा रहे थे। वे अगले कई दिनों तक ठहरते थे, ताकि यीशु को अगले दिन भी सुन सकें। उसके चंगाई में सामर्थ थी और उसके प्रचार में भी। सो यीशु बैठ गए और उन्हें फिर से सीखाने लगा। उसके चेले उसके चारों ओर बैठ गए, क्यूंकि वे उसके विशेष छात्र थे। उसके सुसमाचार को दूर दूर तक फ़ैलाने का काम एक उनका ही होगा।