कहानी २८: यरूशलेम में यीशु

story 29.jpg

काना में शादी के बाद, यीशु कफरनहूम को अपनी मां के साथ वापस आ गया था।  उसके भाई और उसके चेले उनके साथ चले गए और वे कुछ दिनों के लिए एक साथ वहीं रहने लगे। फसह का समय आया गया था। पवित्र भोज पर आराधना करने के लिए प्रभु यीशु यरूशलेम की यात्रा की। जब वह मंदिर पर पहुंचा , तब वह बहुत क्रोधित हुआ। मंदिर के बाहरी कमरे भेड़, बकरियां और कबूतर बेचने वालों से भरा हुआ था।  यह एक साधारण बाज़ार के दृश्य की तरह दिखा! ये सब जीव इस्राएल के लोगों के लिए थे ताकि वे इन्हें खरीद करके मंदिर में परमेश्वर के आगे चढ़ा सकें। ये पवित्र भेंट चढ़ाने के लिए ही थे पर लोगों ने उसे घिनौने व्यापार के लिए यह योजना बनाई। इसलिए उसने एक कोड़ा बनाया और उन सभी मुद्रा बदलने वालों को उससे मारा जो लोगों का फायदा उठा रहे थे। मुद्रा बदलने वालों के सिक्के उड़ेल दिये और उनकी चौकियाँ पलट दीं जब वह मंदिर में से उनके जानवरों को बहार निकाल रहा था। उसने यह आज्ञा दी,“इन्हें यहाँ से बाहर ले जाओ। मेरे परम पिता के घर को बाजार मत बनाओ!”

उसके चेलों को यह स्मरण आया कि पुराने नियम में उसके विषय में लिखा है जो परमेश्वर के मंदिर को बचाएगा। भजन 69:9 " 'तेरे मन्दिर के प्रति मेरी तीव्र लगन ही मुझे जलाये डाल रही है।” परन्तु यहूदी अग्वे यह सोच रहे थे कि यह यीशु कौन है जो इस तरह मंदिर में आता है।  “तू हमें कौन सा अद्भुत चिन्ह दिखा सकता है, जिससे तू जो कुछ कर रहा है, उसका तू अधिकारी है यह साबित हो सके?” ये लोग मंदिर के प्रभारी थे, और इन्होने उन मुद्रा बदलने वालों को और जानवरों को अंदर आने की अनुमति दी थी। केवल एक ही मनुष्य है जो उनके निर्णय को कुचल सकता था और वह वही है जिसे परमेश्वर ने स्वयं भेजा था, और अपनी सामर्थ और चमत्कार कि शक्तियो को साबित करने में सक्षम था।

यीशु ने उन्हें जवाब में कहा, “इस मन्दिर को गिरा दो और मैं तीन दिन के भीतर इसे फिर बना दूँगा।”

वाह! यह एक साहसिक बयान है। मंदिर एक विशाल, भव्य इमारत थी। इस पर यहूदी बोले, “इस मन्दिर को बनाने में छियालीस साल लगे थे, और तू इसे तीन दिन में बनाने जा रहा है?”

परमेश्वर उनसे स्पष्ट रूप से बात नहीं कर रहा था। वह रहस्य और पहेलियों में बोल रहा था क्युंकि उनके ह्रदय कठोर हो चुके थे। जिस मंदिर कि वह बात कर रहा था वह कोई यरूशलेम कि इमारत नहीं थी। वह अपने ही शरीर के मंदिर के बारे में बात कर रहा था। उसके चेले भी नहीं समझ पाये कि यीशु क्या केह रहा था। परन्तु जब यीशु मारा और तीसरे दिन जी उठा, तो सब साफ़ हो गया था। उन्हें सबी स्मरण आया और उन्होंने उसके शब्दों और वचनों पर विश्वास किया।

यीशु जब फसह के लिए यरूशलेम में था उसने बहुत से चमत्कार किया। उन्होंने कहा कि उसके पास परमेश्वर कि एक विशेष शक्ति थी। यह साबित हो चला था कि वह परमेश्वर कि ओर से भेजा गया है। बहुत से लोगों ने इन चिन्हों को देखा और उसके नाम पर विश्वास किया। लेकिन यीशु ने उन पर विश्वास नहीं किया। यीशु इंसान था, और वह परमेश्वर भी था, और वह अपने पिता से यह सब बातें जानता था। इन लोगों के ह्रदय अभी तक एक भरोसेमंद तरीके से विश्वास करने के लिए तैयार नहीं था। वे स्वार्थी कारणों से भरे हुए थे। उनके दिल अभी तक मसीह के राज्य के लिए शुद्ध नहीं थे।

एक रात जब यीशु यरूशलेम में थे, एक फरीसी जो यहूदियों के मंदिर का सलाहकार था उससे मिलने आया। उसका नाम निकुदेमुस था और उसके पास उस जवान व्यक्ति के लिए कई सवाल थे। उसके निडर निंदा और आसचर्यकर्मों के बीच, उसने शहर को उल्टा पुल्टा कर दिया था।

" ' रब्बी ' " नीकुदिमुस ने कहा , ' " हम जानते हैं की आप वह शिक्षक हैं जिसे परमेश्वर ने भेजा है। क्युंकि कोई ऐसे चमत्कार नहीं कर सकता था अगर परमेश्वर उसके साथ न हो तो।" नीकुदिमुस को ठीक से पता नहीं था कि यीशु कौन है, परन्तु उसे विश्वास हो चला था कि वह परमेश्वर कि ओर से आया है। यीशु ने एक बहुत ही दिलचस्प उत्तर दिया।