पाठ 25 : दानिय्येल का परमेश्वर से दया और छुटकारे के लिए निवेदन करना

दानिय्येल इस्राएल देश के लिए प्रार्थना करता रहा;

“’हे हमारे परमेश्वर, यहोवा, तूने अपनी शक्ति का प्रयोग किया और हमें मिस्र से बाहर निकाल लाया। हम तो तेरे अपने लोग हैं। आज तक उस घटना के कारण तू जाना माना जाता है। हे यहोवा, हमने पाप किये हैं। हमने भयानक काम किये हैं। 16 हे यहोवा, यरूशलेम पर क्रोध करना छोड़ दे। यरूशलेम तेरे पवित्र पर्वतों पर स्थित है। तू जो करता है, ठीक ही करता है। सो यरूशलेम पर क्रोध करना छोड़ दे। हमारे आसपास के लोग हमारा अपमान करते हैं और हमारे लोगों की हँसी उड़ाते हैं। हमारे पूर्वजों ने तेरे विरूद्ध पाप किया था। यह सब कुछ इसलिये हो रहा है।‘”

अपनी प्रार्थना में दानिय्येल परमेश्वर को उस पहले समय को स्मरण दिलाता है जब परमेश्वर ने इस्राएल को एक देश से निकाल कर वादे के देश में लाया था I इस्राएल के लोग मिस्र में चार सौ वर्ष तक रहे, और परमेश्वर बहुत शानदार तरीके से उन्हें उनके घर में लाया I वह प्रलय संबंधी विपत्तियों लाया और लाल समुन्द्र के दो भाग किया I सभी पड़ोसी देशों ने इन गुलामों के विषय में, जो अब्राहम के बच्चे थे, सुना था, की किस प्रकार उन्होंने दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश को हराया था I जब परमेश्वर ने यहूदी लोगों को मिस्र से छुटकारा दिलाया था और उन्हें याजकों का राज्य बनाया था, उसके द्वारा उसे बहुत महिमा मिली I परन्तु अब, इस्राएल के लोग दूसरे देशों के लिया एक मज़ाक बन गए थे I वे बड़े देशों द्वारा दबाये गए थे I उनका सुंदर मंदिर नष्ट किया गया था I उनके पास कोई शक्ति नहीं थी, उनके पास अपना कोई देश नहीं था, और उनके पास कोई राजा नहीं था I वे अब एक देश नहीं रहे ! और पड़ोसी देश पूछ रहे थे कि, उनके परमेश्वर का क्या हुआ ? इस्राएल की तबाही को देख कर ऐसा लगता था जैसे की उनका यहोवा, इस्राएल का परमेश्वर, अपने लोगों को बचाने के लिए शक्तिहीन है I परमेश्वर की महिमा के लिए, दानिय्येल ने परमेश्वर से बिनती की कि वह इस्राएल के प्रति क्रोध ना करे और उसके बजाय वह अपने लोगों पर दया करे I परमेश्वर की करुणा के साथ आशीषें आती हैं I यदि परमेश्वर इस्राएल को आशीषित करता है, तो उनका अपमान हट जाएगा, और फिर से परमेश्वर को सभी देशों के सामने महिमा मिलेगी I दानिय्येल एक विश्वासी व्यक्ति था I उसे मालूम था कि उसका परमेश्वर इस्राएल को उनके देश में वापस लाएगा I उसने सहायता के लिए बाबेल के शासकों की ओर नहीं देखा, उसने कोई सेना नहीं खड़ी की I उसने परमेश्वर से प्रार्थना की I

   “’अब, हे यहोवा, तू मेरी प्रार्थना सुन ले। मैं तेरा दास हूँ। सहायता के लिये मेरी विनती सुन। अपने पवित्र स्थान के लिए तू अच्छी बातें कर। वह भवन नष्ट कर दिया गया था। किन्तु हे स्वामी, तू स्वयं अपने भले के लिए इन भली बातों को कर। हे मेरे परमेश्वर, मेरी सुन! जरा अपनी आँखें खोल और हमारे साथ जो भयानक बातें घटी हैं, उन्हें देख! वह नगर जो तेरे नाम से पुकारा जाता था, देख उसके साथ क्या हो गया है!’”

क्या आप दानिय्येल के शब्दों में जुनून सुन सकते हैं ? क्या आप उसकी प्रार्थना में निराशा सुन सकते हैं ? परमेश्वर उन्हें प्रतिफल देना चाहता है जो उस पर विश्वास करते हैं और उसे आग्रहपूर्वक खोजते हैं ! दानिय्येल की पश्चाताप की प्रार्थना में, वह यह मानता है कि इस्राएल का देश परमेश्वर कुछ भी नहीं मांग सकता क्योंकि उन्होंने कोई भी अच्छा काम नहीं किया था I उन्होंने साबित कर दिया था कि वे कितने विश्वासघाती थे I दानिय्येल परमेश्वर से इसलिए करुणा को मांगता है क्योंकि वह प्रभु है I दानिय्येल जानता था कि जो कुछ भी उन्हें मिल रहा है वह परमेश्वर के नाहक, अनुग्रह और प्रेम के द्वारा मिला है I और वह परमेश्वर की आशीषों को यहूदी लोगों के लिए नहीं मांगता है I वह परमेश्वर की आशीषों को इसलिए मांगता है क्योंकि उसके द्वारा परमेश्वर के नाम को महिमा मिलेगी I परमेश्वर की सिद्धता, अनुग्रह, और पवित्रता की महिमा और सुन्दरता प्रारंभ से लेकर अंत तक उसका कारण रहा है ! दानिय्येल अपने प्रभु से बिनती करता है, और हताश के साथ रोने की प्रार्थना को परमेश्वर के आगे करता है I वह मांगता है कि परमेश्वर ना केवल सुने परन्तु जल्द कार्य भी करेगा क्योंकि यहूदी लोगों का उनके देश वापस आना उनके परमेश्वर को बड़ी महिमा देगा I