पाठ 83 : जलती हुई झाड़ी भाग 2
मूसा जीवित परमेश्वर कि उपस्थिति में खड़ा था। परमेश्वर ने मूसा को वह विशेष, पवित्र नाम बताया जिस नाम से उसके लोग उसे पुकारेंगे। वह "मैं हूँ" था। मूसा और इस्राएलियों की भाषा यहूदी कहलाती है क्यूंकि वे यहूदी थे। उनकी भाषा में "मैं हूँ" "य ह व ह" के समान दिखता है। यह हमें "यहोवा" की तरह लगता है। मूसा को मिस्र जाकर इस्राएलियों को बताना था की "मैं हूँ" या "यहोवा" ने उन्हें ग़ुलामी से मुक्त करने के लिए भेजा है। परमेश्वर ने मूसा से कहा;
"'जाओ और इस्राएल के बुजुर्गों (नेताओं) को इकट्ठा करो और उनसे कहो, तुम्हारे, पूर्वजों का परमेश्वर यहोवा, मेरे सामने प्रकट हुआ। इब्राहीम, इसहाक और याकूब के परमेश्वर ने मुझसे बातें कीं।’ यहोवा ने कहा है: ‘मैंने तुम लोगों के बारे में सोचा है और उस सबके बारे में भी जो तुम लोगों के साथ मिस्र में घटित हुआ है। मैंने निश्चय किया है कि मिस्र में तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो उससे तुम्हें बाहर निकालूँ। मैं तुम लोगों को उस देश में ले चलूँगा जो अनेक लोगों अर्थात् कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी, हिब्बी और यबूसी का है। मैं तुम लोगों को ऐसे अच्छे देश को ले जाऊँगा जो बहुत अच्छी चीज़ों से भरा पूरा है।’"
इस्राएल के बुज़र्ग बुद्धिमान और वयोवृद्ध थे जिनके पास जीवन का कई वर्षों का गहरा अनुभव था। उनके कई वर्षों का जीवन लोगों को निर्णय लेने में गम्भीरतापूर्वक योग्य बना रहा था। मूसा को पहले उनके पास जाकर वह बताना था जो परमेश्वर ने उससे कहा था। परमेश्वर उन्हें मुक्त करके उस देश में ले जाएगा जो उसने इब्राहीम से वादा किया था, उस जगह जहां दूध और शहद बहता है।
इसका क्या यह मतलब हुआ कि वहां दूध और शहद बहेगा और वहां एक चिपचिपी नदी बहा करेगी? नहीं। दूध और शहद बहुतायत का प्रतीक थे। मूसा के समय में, आज की तरह, ऐसे देश थे जहां लोगों को खाने के लिए शायद ही पर्याप्त था। जीवन भूख और कमी से भरा था। ऐसी जगाहें थीं जहां हमेशा पर्याप्त भोजन था। मवेशियां और बकरियां हमेशा बहुतायत से दूध देती थीं, और मधुमक्खियां बहुतायत से शहद बनाती थीं, यहां तक किग़रीबों को भी मिलता था।
इस्राएली मिस्र में भयानक गरीबी में रह रहे थे। वे ग़ुलाम थे। लेकिन यहोवा यह सब कुछ बदलने जा रहा था! वे ऐसी जगह में जा रहे थे जहां सबसे गरीब इस्राएली भी पौष्टिक दूध पी सकता था और सुनहरे शहद की मिठास का स्वाद चख सकता था! इन थके हुए, और असहाय लोगों के लिए यह कितना एक सुंदर वादा है। परमेश्वर ने मूसा से कहा:
"'बुज़ुर्ग (नेता) तुम्हारी बातें सुनेंगे और तब तुम और बुजुर्ग (नेता) मिस्र के राजा के पास जाओगे। तुम उससे कहोगे ‘हिब्रू लोगों का परमेश्वर यहोवा है। हमारा परमेश्वर हम लोगों के पास आया था। उसने हम लोगों से तीन दिन तक मरूभूमि में यात्रा करने के लिए कहा है। वहाँ हम लोग अपने परमेश्वर यहोवा को निश्चय ही बलियाँ चढ़ायेंगे।"
क्यों परमेश्वर ने मूसा से केवल तीन दिन मांगे? क्या वह हमेशा के लिए मिस्र से अपने लोगों को मुक्त करने नहीं जा रहा था? तीन दिन की यात्रा एक बहुत ही उचित बात थी। मिस्र के लोग भी अक्सर धार्मिक बलिदान चढ़ाने के लिए कई दिनों के लिए अपने कार्यकर्ताओं को देते थे।परमेश्वर ने मूसा से वह माँगा जो मिस्र में बहुत सामान्य था। फिर भी फिरौन इनकार करेगा। इससे दुनिया देख पाई की फिरौन कितना भयानक था। वह उन्हें यह साधारण और छोटा सा अंतराल भी इनकार कर देगा। परमेश्वर सब कुछ जानता है। वह भविष्य को भी समझता था। और फिर उसने कहा:
“'किन्तु मैं जानता हूँ कि मिस्र का राजा तुम लोगों को जाने नहीं देगा। केवल एक महान शक्ति ही तुम लोगों को जाने देने के लिए उसे विवश करेगी। इसलिए मैं अपनी महान शक्ति का उपयोग मिस्र के विरुद्ध करूँगा। मैं उस देश में चमत्कार होने दूँगा। जब मैं ऐसा करूँगा तो वह तुम लोगों को जाने देगा।
"'और मैं मिस्री लोगों को इस्राएली लोगों के प्रति कृपालु बनाऊँगा। इसलिए जब तुम लोग विदा होंगे तो वे तुम्हें भेंट देंगे। हर एक हिब्रू स्त्री अपने मिस्री पड़ोसी से तथा अपने घर में रहने वालों से मांगेगी और वे लोग उसे भेंट देंगे। तुम्हारे लोग भेंट में चाँदी, सोना और सुन्दर वस्त्र पाएंगे। जब तुम लोग मिस्र को छोड़ोगे तुम लोग उन भेंटों को अपने बच्चों को पहनाओगे। इस प्रकार तुम लोग मिस्रियों का धन ले आओगे।'”
परमेश्वर जानता था कि फिरौन इस्राएलियों को जाने नहीं देगा, चाहे परमेश्वर स्वयं आये और मूसा के माध्यम से पूछे। फिरौन यह दिखाएगा कि वह परमेश्वर का सम्मान नहीं करता है। समस्या का एक हिस्सा यह था कि फिरौन अपने आप को एक देवता समझता था। मिस्र के लोग अपने राजा को परमात्मा समझते थे। वे उन्हें अपने पांच सौ अन्य देवताओं के साथ-साथ पूजते थे। यह इस्राइलियों का देवता कौन था जो उसे बताय कि उसे क्या करना चाहिए? परन्तु सृष्टि का रचने वाला, सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर के पास उसके सवालों का उत्तर था। सारी पृथ्वी जानेगी की किसके पास वह शक्ति है। परमेश्वर ऐसे आश्चर्यजनक चमत्कार भेजने जा रहा था जो यह प्रमाणित करेंगे किइस्राएल का परमेश्वर सारी पृथ्वी में सर्वशक्तिमान है। ना केवल यहोवा अपनी शक्ति से मिस्र पर विजय प्राप्त करेगा, वह इस्राएल के लोगों के लिए अपने धन का एक बड़ा अंश स्थानांतरण करेगा। जब तक इस्राएली मिस्र से निकलेंगे, मिस्र के लोग इस्त्राएलियों को उनके सोने और चांदी और कीमती चीज़ों को देंगे, सिर्फ़ इसीलिए किउन्होंने उन्हें माँगा था। यहूदी ग़ुलाम दुनिया के सबसे बेहतरीन ख़ज़ाने के द्वारा धनवान हो जाएंगे!
जब मूसा उस जलती हुई झाड़ी के पास खड़ा था, उसके लिए ये सब ले लेना बहुत ज़्यादा था। वह अभी भी डर रहा था। परमेश्वर अपने चमत्कारी शक्ति को दिखाकर मूसा के डर को भंग कर देगा:
"तब मूसा ने परमेश्वर से कहा, “किन्तु इस्राएल के लोग मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे जब मैं उनसे कहूँगा कि तूने मुझे भेजा है। वे कहेंगे, ‘यहोवा ने तुमसे बातें नहीं कीं।’”
"किन्तु परमेश्वर ने मूसा से कहा, “तुमने अपने हाथ में क्या ले रखा है?”
मूसा ने उत्तर दिया, “यह मेरी टहलने की लाठी है।”
"तब परमेश्वर ने कहा, “अपनी लाठी को जमीन पर फेंको।”
इसलिए मूसा ने अपनी लाठी को जमीन पर फेंका और लाठी एक साँप बन गयी। मूसा डरा और इससे दूर भागा।"
मूसा भागा! वह चालाक था! उसने उस जंगल में चालीस साल बिताए थे, और वह जानता था कि वहां किस प्रकार के सांप होते हैं। वह जानता था किवे कितने खतरनाक होते हैं:
"किन्तु यहोवा ने मूसा से कहा, “आगे बढ़ो और साँप की पूँछ पकड़ लो।”
वाह। पूंछ से एक सांप को पकड़ना बहुत खतरनाक होता है। सांप अचानक से घूम कर काट सकता है! एक साँप को हड़पने के लिए हमेशा उसके जहरीले मुँह को बंद करके सिर से दबाया जाता है! परमेश्वर मूसा को उसके विश्वास को दिखाने का मौका दे रहा था:
"इसलिए मूसा आगे बढ़ा और उसने साँप की पूँछ पकड़ लीया। जब मूसा ने ऐसा किया तो साँप फिर लाठी बन गयी। तब परमेश्वर ने कहा, “अपनी लाठी का इसी प्रकार उपयोग करो और लोग विश्वास करेंगे कि तुमने यहोवा अर्थात् अपने पूर्वजों के परमेश्वर, इब्राहीम के परमेश्वर, इसहाक के परमेश्वर तथा याकूब के परमेश्वर को देखा है।”
तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं तुमको दूसरा प्रमाण दूँगा। तुम अपने हाथ को अपने लबादे के अन्दर करो।”
इसलिए मूसा ने अपने लबादे को खोला और हाथ को अन्दर किया। तब मूसा ने अपने हाथ को लबादे से बाहर निकाला और वह बदला हुआ था। उसका हाथ बर्फ की तरह सफेद दागों से ढका था।
तब परमेश्वर ने कहा, “अब तुम अपना हाथ फिर लबादे के भीतर रखो।” इसलिए मूसा ने फिर अपना हाथ अपने लबादे के भीतर किया। तब मूसा ने अपना हाथ बाहर निकाला और उसका हाथ बदल गया था। अब उसका हाथ पहले की तरह ठीक हो गया था।
तब परमेश्वर ने कहा, “यदि लोग तुम्हारा विश्वास लाठी का उपयोग करने पर न करें, तो वे तुम पर तब विश्वास करेंगे जब तुम इस चिन्ह को दिखाओगे। यदि वे दोनों चीजों को दिखाने के बाद भी विश्वास न करें तो तुम नील नदी से कुछ पानी लेना। पानी को ज़मीन पर गिराना शुरु करना और ज्यों ही यह ज़मीन को छूएगा, खून बन जाएगा।”
परमेश्वर बार बार मूसा को चमत्कार दिखा रहा था ताकि इस्राएल के लोगों को यह प्रमाण मिले कि वह एक सच्चा परमेश्वर है। ये चिन्ह कोई जादू नहीं थे। उनके देवताओं से कुछ कराने के ये जादू मंत्र नहीं थे जिनसे वह वही करा सके जो वह चाहता था। मिस्र के धर्म इसी पर आधारित हैं। परमेश्वर ने अपने दास को ये चमत्कार दिए ताकि वह एक विशेष और पवित्र कार्य को कर सके। परमेश्वर इस तरह से कार्य करेगा जिससे इस्राएल के लोग समझ सकेंगे। वे एक साँप को छड़ी में बदलते देखेंगे और जानेंगे की मूसा के पक्ष में कोई सामर्थ काम कर रही है। वे उसके हाथ अचानक एक लाइलाज बीमारी से संक्रमित होते देखेंगे, और फिर अचानक चंगा होते देखेंगे, और वे असंभव को देखकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे। परमेश्वर चमत्कार दिखा रहा था जिनसे वे परमेश्वर को अनदेखा नहीं कर सकेंगे। परमेश्वर मूसा के सारे भय को महान उत्तर प्रदान कर रहा था। लेकिन जब दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति का सामना करना और रेगिस्तान में दो लाख लोगों को बाहर निकाल कर लाने का विचार मूसा को विचार आया, तो वह घबरा गया। वह अपने साहस को खो बैठा है। वह ऐसा नहीं करना चाहता था!
"किन्तु मूसा ने यहोवा से कहा, “किन्तु हे यहोवा, मैं सच कहता हूँ मैं कुशल वक्ता नहीं हूँ। मैं लोगों से कुशलतापूर्वक बात करने के योग्य नहीं हुआ और अब तुझ से बातचीत करने के बाद भी मैं कुशल वक्ता नहीं हूँ। तू जानता हैं कि मैं धीरे—धीरे बोलता हूँ और उत्तम शब्दों का उपयोग नहीं करता।”
तब यहोवा ने उससे कहा, “मनुष्य का मुँह किसने बनाया? और एक व्यक्ति को कौन बोलने और सुनने में असमर्थ बना सकता है? मनुष्य को कौन देखनेवाला और अन्धा बना सकता है? यह मैं हूँ जो इन सभी चीजों को कर सकता हूँ। मैं यहोवा हूँ। इसलिए जाओ। जब तुम बोलोगे, मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। मैं तुम्हें बोलने के लिए शब्द दूँगा।”
किन्तु मूसा ने कहा, “मेरे यहोवा, मैं दूसरे व्यक्ति को भेजने के लिए प्रार्थना करता हूँ मुझे न भेज।”
यहोवा मूसा पर क्रोधित हुआ। यहोवा ने कहा, “मैं तुमको सहायता के लिए एक व्यक्ति दूँगा। मैं तुम्हारे भाई हारून का उपयोग करूँगा। वह कुशल वक्ता है। हारून पहले ही तुम्हारे पास आ रहा था। वह तुमको देखकर बहुत प्रसन्न होगा। वह तुम्हारे साथ फ़िरौन के पास जाएगा। मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हें क्या कहना है। तब तुम हारून को बताओगे। हारून फ़िरौन से कहने के लिए उचित शब्द चुनेगा। हारून ही तुम्हारे लिए लोगों से बात करेगा। तुम उसके लिए महान राजा के रूप में रहोगे और वह तुम्हारा अधिकृत वक्ता होगा। इसलिए जाओ और अपनी लाठी साथ ले जाओ। अपनी लाठी और दूसरे चमत्कारों का उपयोग लोगों को यह दिखाने के लिए करो कि मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
मूसा जानता था कि वह और अधिक बहस नहीं कर सकता था। उसने परमेश्वर को नाराज़ कर दिया था, और उसका भाई रास्ते में था। वह अकेला नहीं होगा। यह कितना दिलचस्प है की परमेश्वर मूसा के सभी प्रश्नों को लेकर धैर्यवान रहा जब तक किउसने "ना" कहने की कोशिश नहीं की। परमेश्वर और उसके सेवक के बीच के रिश्ते में भय और प्रश्नों के लिए जगह थी। परमेश्वर ने उसे उत्तर दिया और यहां तक कि विशेष समाधान के साथ उसके पास आया! परन्तु जब मूसा परमेश्वर किसेवा करने से आनाकानी कर रहा था तब वह विद्रोह रेखा को पार कर रहा था। परमेश्वर का कोप भड़का, और मूसा जान गया किउसे आज्ञा का पालन करना है।
मूसा वापस अपने ससुर के पास गया और मिस्र में वापस अपने लोगों में लौटने की अनुमति मांगी। यित्रो ने उसे अपनी बेटी और पोते के साथ जाने कि अनुमति दे दी थी। उसने अपने वफ़ादार दामाद को शुभ कामना दी।