पाठ 184: सप्ताह के पर्व और मंदिर का पर्व
एक वर्ष में तीन बार, इस्राएल के परिवारों को उस महान राष्ट्रीय पर्व के लिए अपने घरों और खेतों से मंदिर के लिए यात्रा करनी होती थी। पहला पर्व फसह का पर्व था। दूसरा पर्व सप्ताह का पर्व कहलाता था। इसे पिन्तेकुस्त भी कहा जाता है। इस पर्व को वे गेहूं की पहली फसल से मापना शुरू कर देते थे। उन्हें उसके सात सप्ताह के बाद गिनना होता था, और तब वे पर्व मनाने के लिए जाते थे। उन्हें उस स्थान पर जाना होता था जो यहोवा अपने पवित्र नाम के लिए उस निवास स्थान को चुनेगा। उन्हें अपनी उन फसलों और फलों और पशुओं की भेंट मंदिर में याजक को देनी थी, जिसे परमेश्वर ने आशीषित किया था।
जब परमेश्वर ने उन सभी वर्षों में इस्त्राएलियों के लिए मन्ना मरुभूमि में भेजा था, यह एक स्पष्ट चमत्कार था। क्या हर दिन बाहर जाकर परमेश्वर की ओर से मिले भोजन को खाना अद्भुत नहीं होगा? लेकिन अब वे देश में प्रवेश कर रहे थे, और परमेश्वर एक अलग तरीके से अपने चमत्कारी प्रावधान को दिखाएगा। वह प्रकृति का प्रयोग करेगा। उनकी फसलों और उनके बागों के लिए बारिश भेजेगा। वह उनके पौधों पर सूर्या चमकाएगा ताकि वे विकसित हो सकें। हर साल परमेश्वर अपने लोगों के लिए प्रदान करेगा, और हर साल उन्हें एकत्रित हो कर उसकी स्तुति और प्रशंसा करनी होगी।
इस्राएलियों के लिए, फसलों कि कटाई की कड़ी मेहनत भी यहोवा के प्रति उनकी आज्ञाकारिता और आराधना थी। जो भी वे करुणा के साथ अपनी फसल को लाते थे, वह भी उनकी उपासना का एक रूप था। यहोवा ने आदेश दिया कि उनके क्षेत्रों के कोनों को छोड़ दिया जाये। उन कोनो में गेहूं या जौ उगेगा, और गरीब आकर वहां फसल उगाएंगे। जो धनी ज़मींदार थे, वे परमेश्वर कि वाचा का एक हिस्सा थे। परमेश्वर उनकी फलसों को आशीषित करता था। यदि वे अपने देश के गरीबों का ख्याल नहीं करते थे, तो वे कैसे अपनी फसल का जश्न मना सकते थे? परमेश्वर उनकी भेंट से कैसे प्रसन्न हो सकता था यदि गरीब और विधवा और परदेशी भूखे थे।
यहोवा उन्हें नहीं बताता था कि उन्हें कितना लाना होता है। उसने उन्हें बताया कि वे उस वर्ष के अनुसार लाएं जिस वर्ष परमेश्वर ने उन्हें आशीर्वाद दिया था। सोचिये इस्राएल के लोगों के लिए यह कैसा होगा। हर साल, परमेश्वर के लोग उस पर निर्भर रहते थे कि वह उनके खाने के लिए पशु और अनाज उपलब्ध करेगा और उन्हें समृद्ध करे। जिन सालों में यहोवा ने उन्हें गेहूं और पशुओं के नवजात शिशु और फल से आशीषित किया था, उन्हें इन सब का बड़ी मात्रा में लाकर उसका धन्यवाद देना होता था। यदि यह एक कठिन साल था, और खाने की कमी थी, तब यहोवा उन्हें अधिक लाने से मना करता था। वे अपनी कृतज्ञता इन भेटों द्वारा दिखा सकते थे, और हर एक को जश्न मनाने आना था। एक व्यक्ति भी पूरे कुटुंब से पीछे नहीं रह सकता था। प्रत्येक को यह जश्न मनाने के लिए आना अनिवार्य था।
अंतिम पर्व झोपड़ियों का पर्व कहलाता था। इसे कटाई का पर्व भी कहा जाता था। यह वर्ष के अंतिम फसल के अंत में आता था। फसलों को काटने के बाद राष्ट्र को इसे सात दिन तक मनाना था। एक बार इस्राएली उस देश में प्रवेश कर लेते हैं, वे पास के शहरों के खेतों पर जिएंगे। वे मरुभूमि में अपनी विनम्र शुरुआत को भूल जाएंगे। इसीलिए साल में एक बार, फसह के पर्व पर, पूरा राष्ट्र तम्बुओं को लाकर उनमें रहेगा। वे सात दिन तक जश्न मनाएंगे। प्रत्येक व्यक्ति को मंदिर के लिए कूच करना था और परमेश्वर के लिए जश्न मनाना था। उन्हें अपनी फसल का हिस्सा लाकर सबके साथ उसे बांटना था। कोई भी बगैर भेंट लाये नहीं आ सकता था, उन्हें जश्न का हिस्सा होना था। मूसा जब मोआब के मैदानों पर खड़े होकर इस्राएलियों को उपदेश दे रहा था, तब उनके पास कोई खेत या फसलें नहीं थीं। वे भूमिहीन थे और इधर उधर फिर रहे थे। लेकिन मूसा को परमेश्वर के वादे में पूरा भरोसा था। वह केवल देश ही नहीं जीतेगा। वह उन्हें आने वाले कई वर्षों तक तत्पर फसल और जश्न मनाने के लिए पर्व देगा। यहोवा ने पहले से ही वादा कर दिया था की वह अपने अपरम प्रेम से अपने लोगों के लिए भरपूर फसल देगा।