पाठ 159 : पत्थर से पानी निकलना-मूसा का बड़ा नुकसान

इस्राएल का राष्ट्र उनके घातक विद्रोह के बाद अड़तीस साल तक मरुभूमि में फिरता रहा। जब परमेश्वर ने उन्हें लाल सागर के पानी के माध्यम से निकाला था, तो जो प्रौढ़ पीढ़ी थी वह मर रही थी। उन्हें बंजर भूमि में गाड़ दिया गया, जब राष्ट्र यहोवा के निर्देशन के अनुसार जगह जगह भटक रहा था। बाइबिल हमें उस पीड़ादायक समय के बारे में बहुत कम बताती है जब वे मरुभूमि में रुके हुए थे। वे 'साधना के वर्ष' कहलाते हैं क्यूंकि हम ज़्यादा कुछ नहीं जानते हैं। 

हम यह ज़रूर जानते हैं की इस्त्राएलियों की एक पूरी पीढ़ी बंजर भूमि में पली बड़ी। दृश्य नंगा और मरा हुआ था, लेकिन मंदिर कि सुंदरता अभी भी डेरे के बीच में थी, और परमेश्वर के आवास का बादल और आग उन्हें निर्देशित कर रहा था। वे परमेश्वर की दस आज्ञाओं का पालन कर रहे थे। मूसा उनके साथ था, और हारून उनका महायाजक था। परमेश्वर के लोग मिस्र में चार सौ साल ग़ुलामी में रहे, और उनकी संस्कृति और जीवन गुलामी और बुतपरस्त मूर्ति पूजा से रंगी हुई थी। मरुभूमि में, परमेश्वर की नई संस्कृति उत्पन्न हो रही थी और उसके लोगों में मजबूत होती जा रही थी 

बाइबिल की अगली कहानी साधना के वर्षों के बाद शुरू होती है। वह महान पलायन के चालीसवें वर्ष के पहले महीने में था। इस्राएल राष्ट्र सीन के रेगिस्तान में कादेश में डेरा लगाये हुए था। यह उनके विद्रोह करने का पहला स्थान था जहां पहली पीढ़ी ने उस देश में जाने से इनकार कर दिया था। मूसा किबहन, मरियम कि वहाँ मृत्यु हो गई और वहां दफ़ना दी गयी थी। राष्ट्र के पहले अगुवे गुज़रते जा रहे थे। समय आ रहा था की अगली पीढ़ी अब फैसला करे। क्या वे अपने माता-पिता की तरह परमेश्वर का विद्रोह करेंगे? या फिर वे वादे के देश को लेकर उसे पृथ्वी पर परमेश्वर के राष्ट्र की स्थापना करेंगे?

 

सीन का रेगिस्तान एक बहुत ही सूखी जगह थी। यहां पानी नहीं था। लोगों को प्यास लगी और एक बार फिर वे मूसा और हारून के विरुद्ध शिकायत करने लगे। वे उन लोगों के प्रति इतना अनादर दिखा रहे थे जिन्होंने उन्हें कितनी बार परमेश्वर के प्रकोप से बचाया था।उन्होंने कहा;

 

"'क्या ही अच्छा होता हम अपने भाइयों की तरह यहोवा के सामने मर गए होते। तुम यहोवा के लोगों को इस मरुभूमि में क्यों लाए? क्या तुम चाहते हो कि हम और हमारे जानवर यहाँ मर जाए? तुम हम लोगों को मिस्र से क्यों लाएय़ तुम हम लोगों को इस बुरे स्थान पर क्यों लाए यहाँ कोई अन्न नहीं है, कोई अंजीर, अंगूर या अनार नहीं है और यहाँ पीने के लिए पानी नहीं है।'”

गिनती 20: 3बी-5

 

क्या यह कहानी सुनी हुई लगती है? ज़रूर लगनी चाहिए! महान पलायन के पहले महीने में, चालीस साल पहले, लगभग वैसा ही हुआ। परमेश्वर इस्राएलियों को ऐसी जगह ले गया जहां कोई पानी नहीं था। लोगों ने मूसा के विरुद्ध इतना विद्रोह किया की मूसा को डर था कि वे उसे मार डालेंगे। उसने परमेश्वर को पुकारा, और परमेश्वर ने उसे और उसके राष्ट्र को बचाया। उसने मूसा को एक पत्थर के पास जाने को कहा और उसे लाठी से मारने को कहा। मूसा ने वैसा ही किया, और बहुत सारा पानी बाहर फुट कर निकला। परमेश्वर इस बार क्या करेगा?

 

मूसा और हारून एक बार फिर से अपने लोगों के विद्रोह से दुखी थे। वे मिलापवाले तम्बू में गए और परमेश्वर के आगे गिर पड़े। वह उनके सामने अपनी महिमा में आया। परमेश्वर ने मूसा से कहा;

 

"'अपने भाई हारून और लोगों की भीड़ को साथ लो और उस चट्टान तक जाओ। अपनी छड़ी को भी लो। लोगो के सामने चट्टान से बातें करो। तब चट्टान से पानी बहेगा और तुम वह पानी अपने लोगों और जानवरों को दे सकते हो।'”

 

मूसा ने पवित्र स्थान से छड़ी को लिया। उसने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार वही किया। फिर उसने इस्राएल के लोगों को उस महान पत्थर के सामने बुलाया। उसने कहा, "'तुम लोग सदा शिकायत करते हो। अब मेरी बात सुनो। हम इस चट्टान से पानी बहायेंगे।'"

 

फिर उसने दो बार चट्टान पर मारा। पानी बहने लगा और पूरे समुदाय ने इसे पिया। उनके पशुओं ने भी पिया! यह कोई छोटा झरना नहीं होगा। कल्पना कीजिये की यह कितना तेज़ पानी का बहाव होगा जिसने सभी लोगों और सभी पालतू जानवर कि प्यास को संतुष्ट कर दिया।परमेश्वर अपने लोगों पर कितना दयालू था!

 

लेकिन आपने देखा होगा किएक समस्या थी। जो परमेश्वर ने मूसा को करने को कहा था और जो उसने वास्तव में किया था, दोनों में एक अंतर था। परमेश्वर ने उसे केवल बोलने की आज्ञा दी थी और पानी आ जाता। लेकिन मूसा ने छड़ी ली और चट्टान पर मारा। उसने अपना तरीका अपनाया और परमेश्वर कि आज्ञा के साथ नहीं टिका। उसे भरोसा नहीं था की केवल शब्द ही पर्याप्त थे। परमेश्वर ने उससे यह कहा;

"'इस्राएल के सभी लोग चारों ओर इकट्ठे थे। किन्तु तुमने मुझको सम्मान नहीं दिया।मैं उन लोगों को वह देश दूँगा मैने जिसे देने का वचन दिया है। लेकिन तुम उस देश में उनको पहुँचाने वाले नहीं रहोगे।'”

मूसा के लिए यह कितनी बड़ी निराशा थी! उस सब के बाद जो मिस्र में उसके साथ हुआ! सीनै और मरुभूमि में फिरने के बाद! और अब वह महान वादा उसका कभी नहीं होगा! वह कभी भी वादे के देश में प्रवेश नहीं कर पाएगा। अब वह परमेश्वर के लोगों का नेतृत्व उनके लक्ष्य को पाने के लिए नहीं करेगा।