पाठ 158 : कोरह के विद्रोह भाग 3
अचानक, जब मूसा ने यह बताना समाप्त किया कि पृथ्वी कोरह और उसके दुष्ट भागीदारों को निगल जाएगी, पृथ्वी गड़गड़ाने और हिलने लगी। पृथ्वी में दरार पड़ने लगी और वह विभाजित होने लगी। वह एक महान मुंह की तरह खुली और कोरह और दातान और अबीराम को निगल लिया। उनके तम्बू और परिवार सब उस दरार में गायब हो गए। पृथ्वी तब फिर से बंद हो गयी। जिन अगुवों ने विद्रोह किया था और जो कुछ उनका था, वह सब पृथ्वी में समां गया।
इस्राएली घबरा गए थे। वे इस डर से भागने लगे कि पृथ्वी उन्हें भी निगल जाएगी। परमेश्वर किउपस्थिति में से आग निकलने लगी। 250 लोग जिन्होंने मिल कर हारून के विरुद्ध विद्रोह किया था, उन सब को वह निगल गयी।
पुरुष अपनी धूपदानी और छोटी वेदिओं को लेकर आये थे। वे अपने ही जिद्दी तरीकों से परमेश्वरकिसेवा करना चाहते थे। वे उस याजक के पद को नष्ट करना चाहते थे जिसे परमेश्वर ने एक महायाजक, और एक याजक के परिवार, और एक वेदी से बनाया था। एक समय था जब हारून के परिवार ने एक भयानक परिणाम का सामना किया था, क्यूंकि उसके पुत्रों ने परमेश्वर का अपमान किया था। अब लेवियों के गोत्र को उनके पापों से उसी तरीके से शुद्ध किया जा रहा था।
इस्राएली अपने तम्बुओं में गए और एक चुनाव किया। क्या वे परमेश्वर के उस दिन के महान, महाकाव्य बातों पर विश्वास कर के पश्चाताप करेंगे? नहीं। विद्रोह कभी खत्म नहीं होगा। अगले दिन, कोरह और उसके पीछे चलने वाले लोगों की मौत के कारण इस्राएली मूसा और हारून के विरुद्ध बड़बड़ाने लगे। उन्होंने हारून और मूसा पर परमेश्वर के लोगों की हत्या का आरोप लगाया। परमेश्वर जो उन्हें दिखा रहा था, सही और गलत की उनकी अपनी राय के द्वारा विद्रोह कर रहे थे। केवल परमेश्वर ही पृथ्वी को खोल सकता था, केवल वही आग को भेज सकता था। तभी भी उन्होंने मूसा पर दोष और अविश्वास का आरोप लगाया।
परमेश्वर कि उपस्थिति मिलापवाले तम्बू में शक्ति और महिमा के साथ चमक रही थी। उसका क्रोध ऊंचा हो रहा था। परमेश्वर पूरे राष्ट्र को उनके जान-बूझकर अंधेपन को करने के लिए उन्हें मारने जा रहा था। वे कब सीखेंगे? मूसा एक बार फिर परमेश्वर के आगे गिरा और अपने लोगों के लिए रोया। मूसा ने हारून को आदेश दिया किवह धूपदानी को लेकर जल्दी से आपातकालीन भेंट चढ़ाये जो लोगों के पापों के प्रायश्चित के लिए होगा। परमेश्वर का प्रकोप एक विपत्ति के रूप में लोगों पर आने लगा था। हारून अपनी भेंट को लेकर साहसपूर्वक लोगों के और परमेश्वर के पराक्रम के प्रकोप के बीच खड़ा था, और परमेश्वर मान गया। उस समय तक 14,700 लोगों की मृत्यु हो चुकी थी।
हारून मिलापवाले तम्बू के द्वार पर मूसा के पास लौट गया। यह कितनी एक भयानक वास्तविकता थी। इस्राएलियों के हृदयों का पता चल गया था। वे परमेश्वर की योजना के प्रति पूरी तरह से बदगुमान थे। वे परमेश्वर के रास्तों को नहीं समझ पा रहे थे, और वे उसकी शक्ति के कामों के प्रति अंधे थे। मूसा और हारून कैसे उन लोगों का नेतृत्व कर सकते थे जो नेतृत्व नहीं चाहते थे? अगर पृथ्वी का खुलना लोगों को इस बात का प्रमाण नहीं दे पाया की परमेश्वर चाहता था कि वे मूसा की सुनें, तो फिर और क्या उन्हें प्रमाण दे सकता है?
परमेश्वर ने मूसा से कहा कि वह इस्राएल के बारह जनजातियों के पास जाये। प्रत्येक जनजाति के अगुवे से उसे एक छड़ी लेनी थी।फिर उसे प्रत्येक अगुवे का नाम उनकी छड़ी पर लिख कर अति पवित्र स्थान में ले जाना था। उसे पूरी रात के लिए उसे वहां छोड़ना था। परमेश्वर ने कहा कि उनमें से एक छड़ी पर नई शाखाएं अंकुरित होंगी। जो रात में बढ़ जाएगी वही परमेश्वर के याजक के पद के लिए चुना जाएगा।
मूसा ने वह सब कुछ किया जो परमेश्वर ने उसे करने को कहा था। अगली सुबह, मूसा छड़ियों को लेने के लिए गया। बेशक हारून की छड़ी पर शाखाएं उग आयीं थीं। इतना ही नहीं, शाखाएं अंकुरित और खिल गयी थीं। उस पर बादाम उग आये थे!
मूसा ने सारी छड़ियां लाकर सभी अगुवों को वापस कर दीं। उन्होंने हारून की छड़ी को देखा और चकित रह गए। सभी इस्राएली दहशत में रह गए। बादाम के उगने के शांत चमत्कार ने उन्हें उनके विद्रोह कि बुराई से जगा दिया। वे हारून को, जो परमेश्वर का नियुक्त किया हुआ याजक था, नष्ट करने की कोशिश कर रहे थे! वे विलाप कर रहे थे इस डर से कि परमेश्वर उनके पापों के लिए उन्हें मौत दे देगा।
परमेश्वर ने मूसा से कहा कि वह हारून की छड़ी को अति पवित्र स्थान में रख दे। वह वहां हमेशा के लिए रखी जाएगी ताकि उससे लोगों को स्मरण रहे की परमेश्वर ने हारून के परिवार को राष्ट्र को निर्देशित करने के लिए चुना था।
हारून और उसके पुत्रों के याजक के पद के विरुद्ध लोगों के विद्रोह करने के बाद, परमेश्वर एक बार फिर उसकी इच्छा के बारे में बता रहा था। हारून और उसके पुत्रों को मिलापवाले तम्बू में बलिदान चढ़ाने के लिए अलग किया गया था। केवल वे ही सेवा करने के लिए अति पवित्र स्थान में प्रवेश कर सकते थे। केवल उन्ही की ज़िम्मेदारी थी कि वे बलिदान के माध्यम से लोगों के पापों से मंदिर का शुद्धिकरण करें। लेवियों को भी एक जनजाति के रूप में बुलाया जाता था। उन्हें हारून और उसके वंशजों के सेवक के रूप में मंदिर किदेखभाल करनी थी। उन्हें मिलापवाले तम्बू के आंगन में प्रवेश करने के लिए अलग और पवित्र किया गया था, लेकिन उन्हें पवित्र स्थान में जाने की अनुमति नहीं थी, और वे वेदी पर बलिदान नहीं चढ़ा सकते थे। प्रत्येक भूमिका परमेश्वर द्वारा दी गयी थी। राष्ट्र के प्रत्येक सदस्य के लिए परमेश्वर कियोजना थी की वह किस प्रकार सेवा करेंगे। परमेश्वर की योजना का अपमान करना एक बहुत गंभीर अनादर था, और यह खतरनाक था। यदि एक लेवी एक याजक के रूप में सेवा करना चाहता है और याजक उसे ऐसा करने देता है, तो यह खतरनाक हो सकता है। परमेश्वरकिआज्ञा का पालन करना जीवन से भी बढ़ कर था।