कहानी १५२: अच्छे से प्रतीक्षा करना और आस लगाना
जब यीशु जैतून के पहाड़ पर अपने चेलों को सिखा रहे थे, तो उन्होंने उन्हें पृथ्वी के भविष्य और यहां रहने वाले सभी मनुष्यों के बारे में शानदार और भयावह अंतर्दृष्टि दी। उन्होंने उन्हें बहुत कुछ सिखाया कि वो किस प्रकार सब बातों का अंत लाएंगे। फिर उन्होंने दो दृष्टांत बताए कि कैसे वो चाहते थे कि उनके चेले उनकी वापसी के लिए इंतजार करे। पहली कहानी एक शादी में दस कुंवारियों की थी। यहूदी रिवाज में, यह युवा अविवाहित लड़कियां, शादी समारोह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थीं। उनके रिवाज़ में, दूल्हा और उसके दोस्त एक जश्न के लिए एकत्रित होते जब वो दूल्हे के घर से दुल्हन के घर की ओर बड़ते। शादी की रस्म दुल्हन के घर पर होती थी, और यह अक्सर रात में होती थी। इन युवा कन्याओं का काम था बाहर जा कर दूल्हे और बारातियों का स्वागत करना। शादी समारोह के बाद, पूरी पार्टी एक शानदार दावत के लिए दूल्हे के घर वापस चली जाती थी। ये बहुत विशेष जानने की बातें है ताकि आप उस कहानी को समझ सके जो यीशु अपने चेलों को बताने जा रहे थे:
“उस दिन स्वर्ग का राज्य उन दस कन्याओं के समान होगा जो मशालें लेकर दूल्हे से मिलने निकलीं।
उनमें से पाँच लापरवाह थीं और पाँच चौकस।
पाँचों लापरवाह कन्याओं ने अपनी मशालें तो ले लीं पर उनके साथ तेल नहीं लिया।
उधर चौकस कन्याओं ने अपनी मशालों के साथ कुप्पियों में तेल भी ले लिया।
क्योंकि दूल्हे को आने में देर हो रही थी, सभी कन्याएँ ऊँघने लगीं और पड़ कर सो गयीं।
“पर आधी रात धूम मची, ‘आ हा! दूल्हा आ रहा है। उससे मिलने बाहर चलो।’
“उसी क्षण वे सभी कन्याएँ उठ खड़ी हुईं और अपनी मशालें तैयार कीं।
लापरवाह कन्याओं ने चौकस कन्याओं से कहा, ‘हमें अपना थोड़ा तेल दे दो, हमारी मशालें बुझी जा रही हैं।’
“उत्तर में उन चौकस कन्याओं ने कहा, ‘नहीं! हम नहीं दे सकतीं। क्योंकि फिर न ही यह हमारे लिए काफी होगा और न ही तुम्हारे लिये। सो तुम तेल बेचने वाले के पास जाकर अपने लिये मोल ले लो।’
“जब वे मोल लेने जा ही रही थी कि दूल्हा आ पहुँचा। सो वे कन्य़ाएँ जो तैयार थीं, उसके साथ विवाह के उत्सव में भीतर चली गईं और फिर किसी ने द्वार बंद कर दिया।
“आखिरकार वे बाकी की कन्याएँ भी गईं और उन्होंने कहा, ‘स्वामी, हे स्वामी, द्वार खोलो, हमें भीतर आने दो।’
“किन्तु उसने उत्तर देते हुए कहा, ‘मैं तुमसे सच कह रहा हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता।’
“सो सावधान रहो। क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को, जब मनुष्य का पुत्र लौटेगा।
--मत्ती २५:१-१३
वाह। बाइबल में, प्रभु यीशु को अक्सर एक दूल्हे के रूप में वर्णित किया जाता है जो अपनी दुल्हन को अनंतकाल के जीवन में लेने आएगा। इस कहानी में, दस कुंवारी हमारे जैसे है जो दूल्हे के आने का इंतजार कर रही हैं। अगर हम बुद्धिमान हैं, तो हम उन कुंवारियों की तरह होंगे जिन्होंने आगे की योजना बना कर सुनिश्चित किया कि वो तय्यार रहे।
प्रभु ने एक और दृष्टान्त बताया। उसमे भी कई विचार समान है। देखिये अगर आप समझ सकते है कि यीशु कैसे चाहते है कि उसके चेले उनके दूसरे आगमन के लिए कैसे इंतेजारी करें:
“स्वर्ग का राज्य उस व्यक्ति के समान होगा जिसने यात्रा पर जाते हुए अपने दासों को बुला कर अपनी सम्पत्ति पर अधिकारी बनाया।
उसने एक को चाँदी के सिक्कों से भरी पाँच थैलियाँ दीं। दूसरे को दो और तीसरे को एक। वह हर एक को उसकी योग्यता के अनुसार दे कर यात्रा पर निकल पड़ा।
जिसे चाँदी के सिक्कों से भरी पाँच थैलियाँ मिली थीं, उसने तुरन्त उस पैसे को काम में लगा दिया और पाँच थैलियाँ और कमा ली।
ऐसे ही जिसे दो थैलियाँ मिली थी, उसने भी दो और कमा लीं।
पर जिसे एक मिली थीं उसने कहीं जाकर धरती में गक़ा खोदा और अपने स्वामी के धन को गाड़ दिया।
“बहुत समय बीत जाने के बाद उन दासों का स्वामी लौटा और हर एक से लेखा जोखा लेने लगा।
वह व्यक्ति जिसे चाँदी के सिक्कों की पाँच थैलियाँ मिली थीं, अपने स्वामी के पास गया और चाँदी की पाँच और थैलियाँ ले जाकर उससे बोला, ‘स्वामी, तुमने मुझे पाँच थैलियाँ सौंपी थीं। चाँदी के सिक्कों की ये पाँच थैलियाँ और हैं जो मैंने कमाई हैं!’
“उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘शाबाश! तुम भरोसे के लायक अच्छे दास हो। थोड़ी सी रकम के सम्बन्ध में तुम विश्वास पात्र रहे, मैं तुम्हें और अधिक का अधिकार दूँगा। भीतर जा और अपने स्वामी की प्रसन्नता में शामिल हो।’
“फिर जिसे चाँदी के सिक्कों की दो थैलियाँ मिली थीं, अपने स्वामी के पास आया और बोला, ‘स्वामी, तूने मुझे चाँदी की दो थैलियाँ सौंपी थीं, चाँदी के सिक्कों की ये दो थैलियाँ और हैं जो मैंने कमाई हैं।’
“उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘शाबाश! तुम भरोसे के लायक अच्छे दास हो। थोड़ी सी रकम के सम्बन्ध में तुम विश्वास पात्र रहे। मैं तुम्हें और अधिक का अधिकार दूँगा। भीतर जा और अपने स्वामी की प्रसन्नता में शामिल हो।’
“फिर वह जिसे चाँदी की एक थैली मिली थी, अपने स्वामी के पास आया और बोला, ‘स्वामी, मैं जानता हूँ तू बहुत कठोर व्यक्ति है। तू वहाँ काटता हैं जहाँ तूने बोया नहीं है, और जहाँ तूने कोई बीज नहीं डाला वहाँ फसल बटोरता है।
सो मैं डर गया था इसलिए मैंने जाकर चाँदी के सिक्कों की थैली को धरती में गाड़ दिया। यह ले जो तेरा है यह रहा, ले लो।’
“उत्तर में उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘तू एक बुरा और आलसी दास है, तू जानता है कि मैं बिन बोये काटता हूँ और जहाँ मैंने बीज नहीं बोये, वहाँ से फसल बटोरता हूँ
तो तुझे मेरा धन साहूकारों के पास जमा करा देना चाहिये था। फिर जब मैं आता तो जो मेरा था सूद के साथ ले लेता।’
“इसलिये इससे चाँदी के सिक्कों की यह थैली ले लो और जिसके पास चाँदी के सिक्कों की दस थैलियाँ हैं, इसे उसी को दे दो।
“क्योंकि हर उस व्यक्ति को, जिसने जो कुछ उसके पास था उसका सही उपयोग किया, और अधिक दिया जायेगा। और जितनी उसे आवश्यकता है, वह उससे अधिक पायेगा। किन्तु उससे, जिसने जो कुछ उसके पास था उसका सही उपयोग नहीं किया, सब कुछ छीन लिया जायेगा।
सो उस बेकार के दास को बाहर अन्धेरे में धकेल दो जहाँ लोग रोयेंगे और अपने दाँत पीसेंगे।”
--मत्ती २५:१४-३०
क्या आप समझ सकते है कि प्रभु यीशु क्या कहने की कोशिश कर रहे थे? समय के दौर में, एक एक चेले को स्वर्ग के राज्य के उपयोग के लिए, उपहार दिए गए है। हम उन्हें कैसे उपयोग करेंगे? अगर हम उनका प्रयोग विश्वासयोग्यता से करते है, चाहे हमारे पास प्रतिभा का भण्डार हो जैसे वो व्यक्ति जिसके पास पांच तोड़े थे या फिर कम, जैसे दो तोड़े, परमेश्वर बहुत प्रसन्न होगा, और हम अच्छे और वफादार सेवक बुलाये जाएंगे। लेकिन जो लोग अपने समय को उड़ा देते है और परमेश्वर के दिए उपहारों का कुछ नहीं करते है, उनके साथ ऐसा होगा जैसे वो यीशु को कभी जानते ही नहीं थे। उन्हें अविश्वासियों के साथ बाहर किया जाएगा, जैसे वे उन्हें कभी जानते ही ना हो।