कहानी १४०: विजयी प्रवेश : यंत्रणा हफ्ते का पहला दिन (रविवार)
फसह के पर्व के लिए यीशु और उसके चेले बैतनिय्याह से येरूशलेम को गए। लाज़र को लेकर भीड़ इतनी उत्साहित थी कि वह उनके पीछे हर जगह चलती रही। यीशु और उसके चेले जब यरूशलेम के पास जैतून पर्वत के निकट बैतफगे पहुँचे तो यीशु ने अपने दो शिष्यों को यह आदेश देकर आगे भेजा। कुछ विशेष तैयारी करने कि ज़रुरत थी। क्यूंकि आप देखिये, यह दिन बहुत उच्च और पवित्र अर्थ के साथ होने वाला था। जिन बातों कि भविष्यवाणी हज़ारों साल पहले हो गयी थी वे अब सच हो रही थीं।
यीशु ने अपने चेलों को दो विशेष आज्ञाएं दी थीं।
उसने कहा:
"'अपने ठीक सामने के गाँव में जाओ और वहाँ जाते ही तुम्हें एक गधी बँधी मिलेगी। उसके साथ उसका बच्चा भी होगा। उन्हें बाँध कर मेरे पास ले आओ। यदि कोई तुमसे कुछ कहे तो उससे कहना,‘प्रभु को इनकी आवश्यकता है। वह जल्दी ही इन्हें लौटा देगा।’”
फिर जिन्हें भेजा गया था, वे गये और यीशु ने उनको जैसा बताया था, उन्हें वैसा ही मिला। सो जब वे उस गधी के बच्चे को खोल ही रहे थे, उसके स्वामी ने उनसे पूछा,“तुम इस गधी के बच्चे को क्यों खोल रहे हो?”
उन्होंने कहा,“यह प्रभु को चाहिये।” उसके मालिक ने उन्हें अनुमति दे दी और वे उसे यीशु के पास जैतून के पहाड़ पर ले गए। उस समय चेलों को यह सब नहीं समझ आया, बल्कि, जब वह स्वर्ग में उठा लिया जाएगा तब वे उस दिन को याद करके उस महान भविष्यवाणी को समझेंगे जो पूरी हुई।
ज़कर्याह ९:९ में नबी कहता है:
"'सिय्योन, आनन्दित हो!
यरूशलेम के लोगों आनन्दघोष करो!
देखो तुम्हारा राजा तम्हारे पास आ रहा है!
वह विजय पानेवाला एक अच्छा राजा है। किन्तु वह विनम्र है।
वह गधे के बच्चे पर सवार है, एक गधे के बच्चे पर सवार है।'"
ज़कर्याह कि इस पद में, उस समय का वर्णन है जब इस्राएल के राजा यह देखेंगे कि कैसे उनके लोग सताय जाते हैं। परमेश्वर अपने लोगों को आज़ाद करने के लिए बहुत सामर्थी रूप से कार्य करेगा। उनके दुश्मनों पर पूरी तरह से विजय पाने के बाद, उनका सिद्ध राजा येरूशलेम में विजयी होकर आएगा। उसकी विजय ना केवल इस्राएल में शान्ति को लाएगा, परन्तु सारे देशों में भी। वह एक ऐसा उत्तम, आदर्श जैसा कि पहले कभी नहीं देखा गया है। वह बहुत ही विनमा होगा। चाहे वह कितना भी सामर्थी हो, वह सृष्टिकर्ता के आगे समर्पण के साथ, सर्वशक्तिमान परमेश्वर को महिमा देते हुए राज करेगा।
ये आने वाले मसीहा कि भविश्वानियां थीं! यीशु जब अपने पिता कि इच्छा को सम्पूर्ण रीति से कर रहा था, परमेश्वर उन सब बातों को जो पवित्र शास्त्र में पहले से दी गयी हैं, उन्हें कर रहा था। जब चेले उस गधी और उसके बछड़े को यीशु के पास लाये, उन्हें यकीन नहीं था कि वे ज़कर्याह कि बताई हुई बातों का खुलासा होते देखेंगे। उन्होंने केवल आज्ञा मानी। जब वे पहुँचे, उन्होंने राह में अपने कपड़े बिछा दिए। यीशु उस छोटे बछड़े पर बैठा, और दाऊद के शहर में यात्रा निकाली।
यीशु और उसके साथ चलने वाली भीड़ जब येरूशलेम पहुँची तो शहर के लोगों को मालूम हो गया कि यीशु रास्ते में ही है। फिर उन्होंने उसका दौड़ कर स्वागत किया। आनंद और उत्साह के साथ वे उसकी प्रशंसा करने लगे:
‘“होशन्ना!’
‘धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है!’
वह जो इस्राएल का राजा है!”
यीशु और उसके चेलों के पीछे बैतनिय्याह से जो भीड़ चली थी वे यीशु के पीछे पीछे बछड़े के ऊपर बैठ कर आ रहा था। उन्होंने यीशु को लाज़र को जीवित करते देखा था और वे कि भी अपेक्षा कर रहे थे जो वह भविष्य में करने वाला था। बहुत जल्द, येरूशलेम से बहुत बड़ी भीड़ उनके साथ जश्न मनाती हुई चली आयी। उन्होंने राह पर उसके लिए कपड़े बिछाय। यह विनम्रता कि निशानी है। वे शारीरिक रूप से अपने राजा को सम्मान दे रहे थे। कितना उत्साह और आनंद था। उन्होंने चमत्कार होते देखे। उन्होंने उसके सामर्थी कामों के विषय में कहानियां सुनीं थीं। वो महान दिन आ गया था!
बहुत लोग सड़कों पर आकर उस व्यक्ति को देखना चाहते थे को जिलाया था। जब धार्मिक वे भी उनके साथ जुड़ गए। जब उन्होंने लोगों को यीशु कि प्रशंसा करते सुना तो वे आपस में बड़बड़ाने लगे।
तब फ़रीसी आपस में कहने लगे,“सोचो तुम लोग कुछ नहीं कर पा रहे हो, देखो सारा जगत उसके पीछे हो लिया है।”
भीड़ में खड़े हुए कुछ फरीसियों ने उससे कहा,“गुरु, शिष्यों को मना कर।”
सो उसने उत्तर दिया,“'मैं तुमसे कहता हूँ यदि ये चुप हो भी जायें तो ये पत्थर चिल्ला उठेंगे।'”
यीशु ना केवल इस्राएल का राजा था, वह पूरे विश्व का राजा था, और इसीलिए उसकी सम्पूर्ण रीति से आराधना करनी चाहिए! परन्तु जिस समय वह उत्साह के साथ सवार कर रहा था, वह दुःख से भरा हुआ था। जब उसने पास आकर नगर को देखा तो वह उस पर रो पड़ा और बोला,
“यदि तू बस आज यह जानता कि शान्ति तुझे किस से मिलेगी किन्तु वह अभी तेरी आँखों से ओझल है। वे दिन तुझ पर आयेंगे जब तेरे शत्रु चारों ओर बाधाएँ खड़ी कर देंगे। वे तुझे घेर लेंगे और चारों ओर से तुझ पर दबाव डालेंगे। वे तुझे धूल में मिला देंगे-तुझे और तेरे भीतर रहने वाले तेरे बच्चों को। तेरी चारदीवारी के भीतर वे एक पत्थर पर दूसरा पत्थर नहीं रहने देंगे। क्योंकि जब परमेश्वर तेरे पास आया, तूने उस घड़ी को नहीं पहचाना।” -लूका १९:४२-४४
यह एक नबी था। येरूशलेम का शहर इतना ज़यादा नष्ट होने वाला था कि उसकी हर एक मंज़िल नष्ट होने वाली थी। परन्तु यीशु केवल येरूशलेम के भविष्य के लिए ही नहीं दुखी हो रहा था। वह पूरे राष्ट्र के लिए दुखी हो रहा था। येरूशलेम केंद्र था जहां, परमेश्वर इस पृथ्वी पर अपना राज स्थापित करेगा। यह इस्राएल के लिए चिन्ह भी था।
लोग जिस समय जश्न मन रहे थे, यीशु जानता था कि आगे क्या होने वाला है। इस समय कि सच्ची महिमा बहुत समय तक रहने वाली नहीं थी। जिस राष्ट्र ने यीशु के अद्भुद सेवकाई का सालों के द्वारा विश्वास नहीं किए, वे अंत में भी मसीह के साथ नहीं होंगे। उसका परिणाम बहुत महान होगा। जब रोमी सेना पूरे शहर को और उसके लोगों के साथ निर्दयता दिखाएंगे, तब वहाँ कुछ भी नहीं बचेगा। हज़ारों सालों के लिए इस्राएल पृथ्वी से गायब हो जाता।
मसीह को इंकार करने के बाद, यहूदी लोग परमेश्वर कि सिद्ध योजना के बजाय परमेश्वर के दुश्मनों के तरीकों को चुना। और इसलिए परमेश्वर उन्हें अपनी मर्ज़ी करने देगा उस विनम राजा को चुनने के बजाय वे दुनिया के दुष्ट रास्तों को चुनते हैं जो उन्हें नष्ट कर देगा। वह कितनी विनम्रता पूर्वक जा रहा था जब कि भीतर वह मनुष्य के विनाशकारी पापों के त्रासदी का दुःख मना रहा था।
अविश्वासी इस्राएल के विनाश के बीच जो वे अपने ऊपर लेकर आ रहे थे, यीशु अपने साथ उज्वल आशा को लेकर आ रहा था। उनके विश्वासघात के बावजूद यीशु कि विजय होगी। उसके सिद्ध जीवन के द्वारा, यीशु पाप और मृत्यु के अधिकार को सिद्ध और निष्कलंक मेमना बनकर जय को पाएगा। अब बलिदान देने का समय आ गया था। जो गहरी और उच्च बात वह करने जा रहा था वह उनकी समझ से परे था। छुटकारा केवल इस्राएल देश के लिए ही सीमित नहीं था। यह पृथ्वी के सारे देशों के लिए ही नहीं था। यीशु सृष्टि को उद्धार देने के लिए आया था। उसकी मृत्यु से वह पूरे विश्व को खरीद लेगा। वह सब कुछ नया कर देगा!
येरूशलेम में जब सारे लोग मसीह के साथ पहुँचे, वे नहीं जानते थे कि वे किस लिए इतना जश्न मना रहे हैं। परन्तु उनके शोर गुल से सारा शहर हिल गया था। "'यह कौन है?'" उन्होंने पुछा।
"'यह यीशु नबी है, जो नासरी से आया है!'" भीड़ ने पलट कर जवाब दिया।
उन्होंने मंदिर कि ओर तक यात्रा की। अंधे और लंगड़े भी। आये यीशु ने पूर्ण रूप से चंगाई दी और उन्हें पूर्ण और बलवान बना दिया। कितना अच्छा है उन पुरुषों और स्त्रियों को देखना जो एक समय बंधन में और विकृत थे और वहाँ से कूद हुए और आनंदित होकर गए! परमेश्वर के पवित्र महल पर वे जश्न मना रहे थे। बच्चे उत्साह के साथ आनंद मना रहे थे। “होशन्ना! दाऊद का वह पुत्र धन्य है।”
तो वे बहुत क्रोधित हुए। और उससे पूछा,“तू सुनता है वे क्या कह रहे हैं?”
यीशु ने उनसे कहा,“'हाँ, सुनता हूँ। क्या धर्मशास्त्र में तुम लोगों ने नहीं पढ़ा,‘तूने बालकों और दूध पीते बच्चों तक से स्तुति करवाई है।’"
यीशु भजन सहित 8 से बोल रहे थे। भजन सहित को थोड़ा और पढ़ें, तो हम समझेंगे कि यहूदी अगुवे क्रोधित क्यूँ हुए।
"'हे यहोवा, मेरे स्वामी, तेरा नाम सारी धरती पर अति अद्भुत है।
तेरा नाम स्वर्ग में हर कहीं तुझे प्रशंसा देता है।
बालकों और छोटे शिशुओं के मुख से, तेरे प्रशंसा के गीत उच्चरित होते हैं।
तू अपने शत्रुओं को चुप करवाने के लिये ऐसा करता है।'" -भजन सहित ८:१-२
यीशु को इन लोगों को पूरा भजन सहित सुनाने कि ज़रुरत नहीं थे। वे जानते थे कि यीशु क्या कह रहा है। बच्चे जो इस भजन में यीशु कि प्रशंसा कर रहे हैं वे परमेश्वर कि स्तुति कर रहे हैं। वह यह भी स्पष्ट कर रहा था कि दाऊद राजा ने इस घटना का वर्णन पहले ही कर दिया था। बच्चे यीशु कि प्रशंसा उन धार्मिक अगुवों के विरुद्ध में कर रहे थे जिन्होंने अपने आप को यीशु के दुश्मन बना लिया था। जिन लोगों को परमेश्वर के राष्ट्र को अपने मसीह कि आराधना करने में अगुवाई करनी चाहिए थी, वे असफल रहे, उनकी जगह अब बच्चे कर रहे थे।
यीशु ने उनसे पूरे साहस के साथ सच्चाई को बताया, और वह दया और अनुग्रह ही था। अभी भी समय था और यह एक सही चेतावनी थी। वे परमेश्वर कि योजना के विपरीत में थे। क्या वे पश्चाताप करेंगे?
उन्होंने नहीं किया। उन्होंने वैसा ही किया जैसा कि भजन सहित में लिखा है। वे अपने ही विरोध में शांत हो गए, और वे जाकर यह साज़िश करने लगे कि परमेश्वर के पुत्र को मरवाया जाये।
शाम होने को थी, यीशु और उसके चेले येरूशलेम को चले गये, और रात बिताने के लिए बैतनिय्याह को चले गए।