कहनी ११८: दो राजा
उस समय के आसपास, कुछ फरीसी यीशु के पास आये। उन्होंने उसे चेतावनी दी कि हेरोदेस राजा उसे मारना चाहता था। उन्होंने उसे उस क्षेत्र को छोड़कर जाने को कहा जहां वह रहता था और कहीं और चला जाये। पेरी का क्षेत्र हेरोदेस राजा के शासन के अधीन में था, और उसे जान लेने का अधिकार था। फरीसी यह वास्तव में सोच रहे थे कि यीशु पेरी छोड़कर यहूदिया को भाग जाएगा, जहां वे उसे पकड़ लेंगे।
यीशु उन बनावटी राजाओं से और उनके दुष्ट तरीकों से नहीं डरता था। उसे हेरोदेस के लिए घृणा थी। तब उसने उनसे कहा,“'जाओ और उस लोमड़ से कहो, ‘सुन मैं लोगों में से दुष्टात्माओं को निकालूँगा, मैं आज भी चंगा करूँगा और कल भी। फिर तीसरे दिन मैं अपना काम पूरा करूँगा।’" कोई भी यीशु को उसके पिता के बताय कार्य को करने से रोक नहीं सकता था। हर चंगाई जो परमेश्वर कि ओर से योजनाबद्ध थी, हर एक व्यक्ति जिसे यीशु दुष्ट आत्मा से मुक्त करता है, उसकी स्वयं कि मृत्यु और जी उठना, यह सब परमेश्वर पिता के ना रुकने वाली योजनाएं थीं।
आपने ध्यान दिया कि यीशु ने हेरोदेस राजा जो उद्धार पाने का रास्ता बताने कि कोशिश भी नहीं की? हर एक व्यक्ति जो उस कहानी में था, यहाँ तक कि वे बुरे धार्मिक अगुवे जो यीशु को मरवाना चाहते थे, यीशु ने अपने वालों से इस तरह बात की कि उनके संदेह और ह्रदय कि कठोरता को तोड़ सके। यहाँ तक कि यीशु के कठोर शब्द भी बदलाव लाने के लिए प्रेम और इच्छा का चिन्ह था। लेकिन ऐसा हेरोदेस के साथ नहीं था। यीशु उसके साथ और कुछ नहीं बस उसे पूरी तरह से हटा देना चाहता था। यह सबसे खतरनाक पद है।
यीशु पेरी में अपना सफर समाप्त करनेवाला था क्यूंकि यह पिता कि इच्छा थी। उसे अभी और कार्य करना था और वह अभी मरने वाला नहीं था। क्यूंकि परमेश्वर उसके मरने का समय और स्थान जो येरूशलेम था, ठहराया हुआ था। जल्द ही उसकी यात्रा शुरू होने वाली थी, क्यूंकि वह जानता था कि उसके मरने का समय आ रहा था। उसने कहा "'……क्योंकि किसी नबी के लिये यह उचित नहीं होगा कि वह यरूशलेम से बाहर प्राण त्यागे।'"
यीशु जब येरूशलेम में अपने भाग्य के बारे में सोच रहा था, वह दाऊद के शहर के विरोध के बारे में दुखी होकर रोया। दाऊद राजा यीशु का महान पूर्वज था, और उसने मसीह के आने के विषय में भविष्यवाणी की थी। जब परमेश्वर ने दाऊद से वादा किया था कि उसी के वंश का एक अनंतकाल के सिंहासन पर राज करेगा, वह यीशु के विषय में वादा दे रहा था। यह कितने दुःख कि बात है कि दाऊद के शहर के लोग इतने अंधे थे कि वे उसके आने को देख नहीं पाए।
“'हे यरूशलेम, हे यरूशलेम! तू नबियों की हत्या करता है और परमेश्वर ने जिन्हें तेरे पास भेजा है, उन पर पत्थर बरसाता है। मैंने कितनी ही बार तेरे लोगों को वैसे ही परस्पर इकट्ठा करना चाहा है जैसे एक मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे समेट लेती है। पर तूने नहीं चाहा। देख तेरे लिये तेरा घर परमेश्वर द्वारा बिसराया हुआ पड़ा है। मैं तुझे बताता हूँ तू मुझे उस समय तक फिर नहीं देखेगा जब तक वह समय न आ जाये जब तू कहेगा,‘धन्य है वह, जो प्रभु के नाम पर आ रहा है।’” --लूका १३:३२-३५
क्या आप सुन सकते हैं कि कितनी कोमलता के साथ यीशु अपने लोगों कि चिंता करना चाहता है? क्या आप अस्वीकृति के दुःख को सुन सकते हैं, उनके प्रेम को चाहने के लिए नहीं, बल्कि उस सर्वनाश का जो उनकी दुष्टता उन पर लाने वाला था? वह उनसे कितना प्रेम कर सकता था, पर वे उसे इंकार कर देते! और जब अच्छाई के साधन को इस तरह हटा दिया जाता है, तो केवल तबाही और त्रासदी रह जाते हैं! परमेश्वर ने अपने लोगों को सम्पूर्ण रीति से अपनाने कि कोशिश की, परन्तु उन्होंने उसके प्रेम को ठुकरा दिया।
तब यीशु ने उस सच्चाई को बताया जो कई सालों के बाद होने वाली थी। और क्यूंकि उसने उसे बता दिया था, वह अवश्य होने जा रही थी। वह एक नाज़ुक माँ कि तरह अपने लोगों को पंखों कि आड़ में लेने के लिए फिर येरूशलेम में नहीं जाने वाला था। जब तक लोग उसे गाते, बजाते और जश्न मनाते हुए स्वीकार नहीं कर लेते, येरूशलेम उसे दुबारा नहीं देखेगा।
बाइबिल में कई भविष्यवाणियों में, यीशु के इन शब्दों के दो पूर्णता होनी थे। यीशु जब अगली बार येरूशलेम को गया, वह एक गधे पर सवार होकर गया, जो राजाओं का जानवर हुआ करता था। हम पढ़ेंगे कि कैसे लोग नाचते, गाते और डालियों को लहराते हुए "होसन्ना" गा रहे थे! उन्होंने उसे एक शाही स्वागत दिया, बिना यह जाने कि एक ही हफ्ते के भीतर वे ही लोग उसे क्रूस पर चढ़ा देंगे। परन्तु यीशु उस महान, भयानक वारदात को लेकर के उन्हें बहुत ही खूबसूरत चीज़ों में बदल देगा। वह मौत पर विजय पाकर उसके क़र्ज़ को उतार देगा।
यीशु के क्रूस पर चढ़ने से दूसरी भविष्यवाणी पूरी हो जाएगी। जबकि परमेश्वर ने पूर्ण रूप से येरूशलेम को त्याग दिया था, लेकिनएक दिन भविष्य में, यीशु उस महान दिन में लौट कर आएगा। वह अपने पूरे वैभव में येरूशलेम को लौटेगा। यहूदी लोग उसे देखेंगे और पश्चाताप करेंगे, कि वही मसीह है। वे उसे राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु कि तरह मान लेंगे!
पेरी के रास्ते पर जाते समय यीशु ने उस महिमा को समझा। वह उस युगानुयुग कि दृष्टी में जीया, और उस अनंतकाल कि आशा जिसे कोई भी ना छू सकता है और ना ही नष्ट कर सकता था। वह अपने पिता के पूर्ण आज्ञाकारिता में उत्तम विनम्रता में चलता रहा। वह कितना सुन्दर है!