कहानी ७१: विलाप करती स्त्री 

फरीसियों में से एक ने अपने घर में भोजन करने के लिए यीशु को आमंत्रित किया। फरीसियों में से कई पहले से ही पूरी तरह से मसीह को अस्वीकार कर चुके थे, लेकिन अभी भी एक यीशु के आने और उनके उल्लेखनीय चमत्कार को समझने के लिए साथ संघर्ष कर रहा था। क्या वह एक नबी हो सकता है? वह उद्धारकर्ता था?

तो प्रभु उसके घर चला गया और खाने की मेज पर उसके साथ बैठ गया। उस समय के यहूदी लोग भूमि से छूती हुई मेज़ पर बैठते थे। वे अक्सर साथ भोजन करते समय एक तरफ को झुक जाते थे।

यीशु उस समय फरीसी के मेज़ पर बैठे हुए थे तभी एक स्त्री द्वार पर आयी। यह स्त्री एक बहुत घोर पापिन थी जिसका नाम विनाशकारी पापों के कारण बदनाम था और उसके इन्ही विनाशकारी पापों के कारण न केवल उसका जीवन खराब होता था बल्कि उन सब का भी जो उसके आस पास थे। वो दूसरों को आज़माइश में डालती थी  पाप करवाती थी। क्षेत्र के वफादार यहूदियों ने शायद यहूदी समुदाय पर उसे जहरीला प्रभाव के लिए उसे अस्वीकार कर दिया था, और ऐसा करना सही था।

लेकिन इस औरत के भीतर कुछ हुआ था। उसके बारे में कुछ बदल गया था। जब उसने सुना कि वह प्रभु यीशु इस फरीसी की मेज पर साथ बैठा है, वह उसे देखने के लिए अंदर गयी। वह संगमरमर के एक पात्र में इत्र लेकर आयी। यह बहुत कीमती था, लेकिन जो वह यीशु से चाह रही थी वह किसी भी वस्तु से ज़यादा अनमोल था।

वह यीशु के पीछे आयी और उसके चरणों पर। वह पश्चाताप और दुःख और शर्म के आसूं। वह जानती थी कि वह कितनी घोर पापिन है। वह जानती थी कि कैसे उसने दूसरों से भी वही पाप कराय और उनके जीवन को भी चोट पहूँचाया। वह जानती थी कि वह क्षमा के, और उसने जो कुछ भी किया था उसके लिए शोकित थी। उसने अपने चेहरे को उस यीशु के चरणों पर रखा जो चंगाई देता था और जहाँ कहीं भी जाता था दया दिखता था। जिसने ऐसा सुन्दर और शुद्ध सच्चाई को सिखाया। उसके चरण उसके आसुओं से भीग गए, और वह अपने बालों से उन्हें पोछने लगी। उसके पाप ने उसे शर्मिंदा और वह यीशु के पास दया का अनुसरण करने के लिए अपने निरादर को ले आयी थी। वह उस पवित्र इंसान के चरणों को चूमती रही और उनपर इत्र डाल दिया।

उस कमरे के दृश्य कि कल्पना कीजिये। फरीसियों के साथ यीशु बैठा हुआ और और वे जो एक धर्मी मनुष्य के साथ बैठने के योग्य थे। और फिर एक पापिन स्त्री, जिसका व्यवहार गृणा करने योग्य था, उसके घर में प्रवेश करते हैं और उसके आने से उनके होज में उलंघन होना। क्या आपको लगता है कि उन लोगों कि बात चीत जारी रही हुई होगी? आप लगता है कि यह सब थम गया होगा ताकि वे लोग उसे स्त्री के रोने और विनम्र स्थिति को देख सकें?

उस फ़रीसी ने जिसने यीशु को अपने घर बुलाया था, यह देखकर मन ही मन सोचा, “यदि यह मनुष्य नबी होता तो जान जाता कि उसे छूने वाली यह स्त्री कौन है और कैसी है? वह जान जाता कि यह तो पापिन है।” क्यूंकि आप देखिये कि उसके विचार से कोई भी धार्मिक व्यक्ति ऐसी स्त्री को अपने निकट आने नहीं देता, उसको छूना और चूमना तो दूर कि बात है!

यीशु जानता था वह फरीसी क्या सोच रहा है और वह उसे सही रास्ता दिखाना चाहता था। सो यीशु ने उससे कहा, “शमौन, मुझे तुझ से कुछ कहना है।” 

उस फरीसी ने कहा, "'बोलिये गुरु। '"

फिर यीशु ने एक कहानी बताई। 

"'किसी साहूकार के दो कर्ज़दार थे। एक पर उसके पाँच सौ चाँदी के सिक्के निकलते थे और दूसरे पर पचास।  क्योंकि वे कर्ज़ नहीं लौटा पाये थे इसलिये उसने दया पूर्वक दोनों के कर्ज़ माफ़ कर दिये। अब बता दोनों में से उसे अधिक प्रेम कौन करेगा?'”

शमौन ने उत्तर दिया, “मेरा विचार है,वही जिसका उसने अधिक कर्ज़ छोड़ दिया।”

“तूने उचित न्याय किया।”  फिर उस स्त्री की तरफ़ मुड़ कर वह शमौन से बोला, “तू इस स्त्री को देख रहा है? मैं तेरे घर में आया, तूने मेरे पैर धोने को मुझे जल नहीं दिया किन्तु इसने मेरे पैर आँसुओं से तर कर दिये। और फिर उन्हें अपने बालों से पोंछा।  तूने स्वागत में मुझे नहीं चूमा किन्तु यह जब से मैं भीतर आया हूँ, मेरे पैरों को निरन्तर चूमती रही है।  तूने मेरे सिर पर तेल का अभिषेक नहीं किया, किन्तु इसने मेरे पैरों पर इत्र छिड़का।  इसीलिये मैं तुझे बताता हूँ कि इसका अगाध प्रेम दर्शाता है कि इसके बहुत से पाप क्षमा कर दिये गये हैं। किन्तु वह जिसे थोड़े पापों की क्षमा मिली, वह थोड़ा प्रेम करता है।”

वाह। ऐसी ख़ूबसूरत बात आज तक लिखी नहीं गयी। इसको दोबारा पढ़ियेगा!

शिमोन से यह बातें कहकर यीशु ने उस स्त्री से कहा, “तेरे पाप क्षमा कर दिये गये हैं।” क्या आप कल्पना कर सकते हैं उन सामर्थी शब्दों को उस टूटी हुई स्त्री के लिए? उसके राहत और एक स्वतंत्र जीवन जो उसने महसूस किया होगा एक गहरे शर्मनाक जीवन के बाद जो उसे मिला? परमेश्वर के सामर्थी अनुग्रह को पाने के बाद उसके पूर्ण परिवर्तित जीवन कि कल्पना कर सकते हैं? यह देखना कितना खूबसूरत है!

परन्तु वे जो यीशु के साथ भोजन कर रहे थे वेइतने अंधे थे कि उस पवित्र अच्छाई को जो उनके सामने थी नहीं देख पाये। वे केवल न्याय ही कर सकते थे। “यह कौन है जो पापों को भी क्षमा कर देता है?” इन लोगों के लिए किसी के भी जीवन का परिवर्तन होना उनके लिए कोई मायने नहीं रखता था क्यूंकि उनके ह्रदय परमेश्वर के ह्रदय से बहुत दूर थे। और उनका यीशु में उसकी करुणा और यीशु कि सुंदरता में हिस्सा ना लेना खतरनाक था। उनके ह्रदय कठोर थे और प्रेम करने योग्य नहीं था। वे परमेश्वर के पुत्र के आने को नहीं देख पाये!

परन्तु यीशु ने अपने चेहरे को उनसे फेर लिया था। उसकी आँखें केवल उसके ऊपर थी जिसने अपने नम्र बना लिया था। उसके ह्रदय केवल उस स्त्री कि ओर था जो अपने पापों के लिए गहराई से पश्चाताप कर रही थी। उसके शब्द उसके लिए थे जिसे एक उद्धारकर्ता कि ज़रुरत थी। उसके आवाज़ कि कोमलता कि कल्पना कर सकते हैं आप? उसने कहा, "'तेरे विश्वास ने तेरी रक्षा की है। शान्ति के साथ जा।”