कहानी ४२: हाथ जो चंगा हुआ

येरुशलम में यहूदियों के साथ अपने महान टकराव के बाद, यीशु अपने घर वापस गलील चेलों के साथ गया। एक दिन, यीशु और उसके चेले ग्रामीण इलाकों के अनाज क्षेत्रों से जा रहे थे। यह सबत का दिन, परमेश्वर के लोगों के लिए आराम और परमेश्वर कि आराधना करने का दिन था। जब वे खेतों से जा रहे थे, उसके चेलों ने खाने के लिए अनाज का सिर लेना शुरू कर दिया। यह आप के लिए एक छोटी सी बात हो सकती है, लेकिन फरीसियों ने इसके बारे में सुना, तब वे पूरी तरह से नाराज हुए।

यहूदी लोग जिस प्रकार सबत को मानते थे, यह फरीसियों के लिए एक बहुत बड़ी बात थी। और जहां परमेश्वर कि आज्ञा के अनुसार उसके लोगों के लिए सबत का दिन आराम का दिन होता है ,ये यहूदी उसे बहुत दूर तक ले जाते हैं। उन्होंने सुन्दर, जीवन देने वाले परमेश्वर के नियमों को हटा कर अपने ही कठोर और मनुष्य के बनाये हुए नियमों को अपने उप्पर लागू कर दिया। सबके ऊपर इसे मानने के बंधन थे या फिर उनको दंड का सामना करने पड़ता।

यह इतना अच्छा नहीं लगता है, है कि नहीं? बल्कि, यह बहुत ध्यान को ओझल करने वाला लगता है। परमेश्वर के साथ दिन व्यतीत करने के बिजय सब इस बात कि चिंता में लगे रहते थे कि किसी मुसीबत में न पड़ जाएं। यहाँ तक कि एक सुकून और आराम करने वाला काम जैसे कि खेतों में टहलना, एक बहुत बड़े मुसीबत का सामना करने में न बदल जाये। जब फरीसियों ने यीशु के चेलों को गेहूं के बालों को खाते देखा तब उन्होंने कहा, "'यह बहुत हुआ! यह कार्य है! यह कौन हैं जो सबत के आज्ञाकारी नहीं हैं?'" आपने देखा की इस पर कितना नियंत्रण था? क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि यह कितना थक देने वाली बात है कि कोई निरंतर अपने ही नियम थोपता रहे? सबत के दिन कि खुशियां वे ही लोग छीन रहे थे जिनको आराधना में अगवाई करनी थी!

फरीसी इस तरह नहीं देखते थे। वे यीशु के पास गए और बोले "'आप वो क्यूँ करते हो जो सबत के दिन उचित नहीं है?'" वे अपने ही विचारधारा लाकर उसे सबत के जितना विशेष बनाते थे! यीशु ने परमेश्वर के वचन को देखा। उसने उनको दाऊद कि कहानी याद दिलाई जो एक महान राजा था और अपने विश्वास का महावीर था। उसने कहा;

“क्या तुमने नहीं पढ़ा कि दाऊद और उसके साथियों ने, जब उन्हें भूख लगी, क्या किया था? 4 उसने परमेश्वर के घर में घुसकर परमेश्वर को चढ़ाई पवित्र रोटियाँ कैसे खाई थीं? यद्यपि उसको और उसके साथियों को उनका खाना मूसा की व्यवस्था के विरुद्ध था। उनको केवल याजक ही खा सकते थे। 

वाह! यीशु येरूशलेम के पवित्र मंदिर से भी अधिक महान होने का दावा करते थे! वह सबत के प्रभु होने का दावा करते थे! उन्होंने इन लोगों के सामने खड़े होकर उनको कहा कि वे गलत हैं! सबत परमेश्वर का बहुत ही विनीत, और अच्छा तोहफा अपने लोगों के लिए था। वह उनके लिए एक पवित्र स्थान बना रहा ताकि वे हर हफ़्ते आकर उसके साथ संगती कर सकें! यह पवित्र दिन था जिसमें दया को और भी अधिक तरीके से मनाना चाहिए था! फरीसी बहुत उत्तेजित हो रहे होंगे यह तरीके बना कर!

फरीसी यहीं नहीं रुके। वे उसे कुछ ऐसा करते हुए पकड़ना चाहते थे, सो उन्होंने सबत को लेकर और उकसाने वाले सवाल करे। "'की सबत के दिन चंगाई देना सही है?'" उन्होंने ने पुछा। उन्होंने उनसे सवाल नहीं पुछा क्यूंकि वे यह सुन्ना चाहते थे कि यीशु क्या कहता है। वे उसके उत्तर को जानते थे। वे उसे फंसाना चाहते थे।

आराधनालय में एक व्यक्ति था जिसका हाथ सूख चूका था। क्या वह एक साधारण, धार्मिक यहूदी था जो हर हफ्ते आता था? क्या वह यीशु के बारे में सुनकर आया था? या वह इसीलिए आया था ताकि यीशु को फंसाया जाये? यीशु दया के लिए माने जाते थे, और यहूदी लोग जानते थे कि यीशु चंगाई करने से नहीं रुकेगा। तब वे उस पर आलोचना लगा सकते थे। यह एक जाल बिछाया हुआ था।

यीशु निडर थे। वह उनके अधिकार के नीचे नहीं था। परमेश्वर कि आत्मा ने उसे उत्तम बुद्धि के लिए अभिषेक किया हुआ था। बिना किसी तनाव के यीशु ने उनसे कहा;

“मानो, तुममें से किसी के पास एक ही भेड़ है, और वह भेड़ सब्त के दिन किसी गढ़े में गिर जाती है, तो क्या तुम उसे पकड़ कर बाहर नहीं निकालोगे?  फिर आदमी तो एक भेड़ से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। सो सब्त के दिन ‘मूसा की व्यवस्था’ भलाई करने की अनुमति देती है।”

वाह! जो कुछ वे लोगों पर आज्ञा चला रहे थे, यह उन सब बातों पर ऐसे फेरा गया। उसने कहा, "'न केवल तुम गलत हो, तुम अनैतिक हो और बिना करुणा के। "

तब यीशु ने कुछ और आश्चर्यजनक किया। उसने उस व्यक्ति जिसका हाथ सूखा हुआ था कि वह सब लोगों के सामने आकर खड़ा हो जाये। साहस! यीशु ने फरीसियों से कहा,"'मैं तुमसे पूछता हूँ कि क्या सबत के दिन अच्छा करना या बुरा करना उचित है, एक जीवन को बचाना या फिर उसे नष्ट होने देना उचित है?'" उसने उन सब के आँखों में देखा जो उसे मारना चाहते थे। फिर उसने उस व्यक्ति जिसका हाथ सूखा था, कहा,"'अपने हाथ को बढ़ा।'"

उस व्यक्ति ने अपना हाथ बढ़ाया, और जैसे ही उसने ऐसा किया, एक महान चमत्कार हुआ। उसका हाथ बिलकुल स्वस्थ हो गया! वह पूरी तरह से ठीक हो गया था! वह उसके दुसरे हाथ कि तरह अच्छा हो गया था! वाह! क्या आप इसे होते हुए देखनी कि कल्पना कर सकते हैं? क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि यह बदलाव उसके जीवन में क्या लाया है? क्या आपको पुरे दिन आनंद मनाने का मन नहीं करेगा?

लेकिन फरीसी इतने गुस्से में थे कि वे आनंद मनाना नहीं चाहते थे। वे इस बात से बहुत द्वेषपूर्ण थे कि वे यीशु को दोषी नहीं बना सके। आप देखिये कि यीशु ने बिना उस व्यक्ति को छुए उसे चंगा कर दिया। उसने उसे केवल हाथ को आगे बढ़ाने को कहा। यीशु ने ऐसा कोई भी काम किया जिसे फरीसी उसे कार्य के रूप में कहें। वे यह भी नहीं केह सकते थे कि उसने सबत को तोडा क्यूंकि सबत के दिन बोलने कि अनुमति थी। और फिर भी यह सबको साफ़ था कि यीशु ने बहुत अच्छे और आश्चर्यजनक चमत्कार किये। यीशु काफी होशियार है, है कि नहीं?

फरीसियों का अविश्वास न केवल दुखभरा था परन्तु खतरनाक भी था, लेकिन यीशु के लिए नहीं। वह अपने पिता कि इच्छा में सुरक्षित था। वे परमेश्वर के पुत्र का कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे जो पिता ने खुद न रचा हो। फरीसियों का अविश्वास उनके लिए खतरनाक था। जिस दिन जब वे मसीह के साथ आनंद मना सकते थे, उन्होंने अपने दिलों को कठोर कर लिया था। वे वह से और क्रोधित हो कर चले गए। वे आपस में षड़यंत्र रचा रहे थे कि वे यीशु को कैसे नष्ट कर दें। और इसीलिए उनके ह्रदय और कठोर होते गए। एक समय आएगा जब वे इतने कठोर हो गये होंगे कि वे पाप में इतने अधिक डूब चुके होंगे कि पश्चाताप भी नहीं कर सकेंगे और परमेश्वर के प्रेम से रहित होकर नष्ट हो जाएंगे।