कहानी २५: जंगल में यीशु कि परीक्षा

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प्रभु की आत्मा परमेश्वर के पुत्र को एक विशेष और शक्तिशाली रूप में भरने के लिए आया था। यीशु के बपतिस्मे के बाद,पवित्र आत्मा यीशु को यरदन से और यूहन्ना के व्यस्त सेवकाई के वातावरण से दूर ले गया। पवित्र आत्मा ने यीशु को जंगली जानवरों के बीच अकेले शांति के वातावरण में जाने को उत्तेजित किया।चालीस दिन तक यीशु ने उपवास किया और पिता से प्रार्थना की। यह सेवकाई में तीव्र  और बने रहने के लिए तैयार होने का समय था। उस समय के अंत में वह बहुत भूखा हुआ। उस कमजोरी के समय में शैतान ने मौका पा लिया! शायद वह परमेश्वर के बेटे को पाप करने के लिए लुभा सकता था !

सबसे पहले शैतान ने उसे यह साबित करने के लिए कि वह परमेश्वर का पुत्र है , उसे परखने की  कोशिश कि। उसने कहा कि अगर वास्तव में यीशु परमेश्वर का पुत्र है तो यह पत्थर जो उसके पैरों पर पड़े  हैं उन्हें रोटी बनाये। यीशु ने उस परीक्षा लेने वाले कि बातों को नहीं सुना। उसने सीधे परमेश्वर के वचन कि ओर देखा;

"मनुष्य केवल रोटी से ही नहीं जीएगा,
परन्तु हर शब्द से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है'"

ये वचन सीधे सीधे व्य्वस्थाविवरण 8:3 से लिए गए थे! बाइबिल की कहानी के इस भाग में, परमेश्वर ने इस्राएलियों को चालीस साल तक मन्ना खिलाया। जब वे वायदे के देश के किनारे बैठे थे, मूसा ने इस्राएलियों को परमेश्वर कि आज्ञाओं को दोहराया और उन्हें उस परमेश्वर पर भरोसा रखने को कहा जो उनके साथ विश्वासयोग्य था। भोजन महत्वपूर्ण है, लेकिन परमेश्वर का प्रावधान अधिक महत्वपूर्ण है। यीशु भोजन के बिना चालीस दिन और चालीस रात तक रहे, और फिर भी जब शैतान उन्हें लुभाने के लिए आया, उससे विरोध करने उनके पास सामर्थ थी। वह अपने पिता पर निर्भर रहते थे, और उन्हें अपनी पहचान को साबित करने या परमेष्वर की इच्छा के बाहर किसी रीति से अपने पेट को भरने कि ज़रुरत नहीं थी।

शैतान ने फिर से उन्हें लुभाने की कोशिश की। शैतान यीशु को येरूशलेम ले आया और परमेश्वर के मंदिर कि सबसे ऊंची चोटी पर ले गया। यह शहर का सबसे ऊंचा स्थान था। शैतान ने उससे कहा, 'यदि तू  परमेश्वर का पुत्र है, तो अपने आप को नीचे फेंक; क्यूंकि ऐसा लिखा है,

"वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा दें देगा ,कि वे तेरी रक्षा करें ";
और
"वे तुझे हाथों हाथ उठा लेंगे, ऐसा न हो कि तेरे पाओं में पत्थर से ठेस लगे "

अब शैतान भी वचन के हवाले देने लगा। फर्क सिर्फ इतना है कि वह परमेश्वर के वचनों को घुमा फिरा कर यीशु पर अनाग्यता का दबाव डाल रहा था। यह भी एक बहुत ही चालाक प्रलोभन था। यीशु को कैसे पता था कि वह परमेश्वर था? वह कैसे सुनिश्चित हो सकता था? वह भी अन्य मनुष्य कि तरह पैदा हुआ था। अगर वह अपने आप को मंदिर कि चोटी से अपने को फेंक देता और दूत उसे पकड़ लेते तो निश्चित रूप से हर किसी को विश्वास हो जाता! यहूदी लोगों को समझाने के लिए एक तेज़  और आसान तरीका था ! लेकिन यीशु आत्मा और सच्चाई से भरा हुआ था, और यह परमेश्वर की योजना नहीं थी।  एक बहुत ही लम्बा, और कठिन रास्ता उसके आगे था।  शैतान कुछ भी कर सकता था जिससे कि यीशु परमेश्वर कि योजनाओं को पूरा न कर पाए।  उन्होंने कहा ,

" ' दूसरी ओर, यह लिखा है, "आप परीक्षण करने के लिए प्रभु अपने परमेश्वर डाल नहीं होगा.'"

एक बार फिर, यीशु ने व्यवस्थाविवरण से हवाला दिया। इस बार यह 6 अध्याय और 16वी आयत से है, और यह उस समय का है जब मूसा परमेश्वर के लोगों को वायदे के देश में लेजाने के लिए तैयार कर रहा था। केवल समस्या यह थी कि अपने पूरे इतिहास में, इस्राएली अपने परमेश्वर की परीक्षा लेते रहे।फिर, जब इजराइल का देश असफल हो रहा था, यीशु, परमेश्वर के वचन में सिद्द होकर खड़ा रहा। अपनी सुरक्षा और प्रेम पर विश्वास करने के लिए उसे अपने पिता का परीक्षण करने की जरूरत नहीं थी। वह पहले से ही सुनिश्चित था।

शैतान यीशु के पास एक बार फिर आया। इस बार वह यीशु को एक ऊंचे पहाड़ पर ले गया।वहाँ से उसने यीशु को पृथ्वी के सारे महान शक्तिशाली और महीमा से भरे राज्यों को दिखाया। उसने कहा ,

“ये सभी वस्तुएँ मैं तुझे दे दूँगा यदि तू मेरे आगे झुके और मेरी उपासना करे।”

आह! सो अब हम इस दुष्ट सांप का दिल देख सकते हैं।

यह सच है कि शैतान इस दुनिया का राजकुमार है। जब आदम और हव्वा ने शैतान कि बात सुनी तब उन्होंने शैतान को सारी  मानवजाति का अधिकार दे दिया। दुनिया के सारे राष्ट्र और राज्य उसके झूठे अधिराज्य के नीचे हैं। हमें अपने आप से यह पूछना है: क्यों वह मसीह के लिए यह पेशकश करेगा? दुनिया के सारी शक्तियां क्या इस लायक हैं कि उनके लिए सारी महान, विशाल, यशस्वी चीज़ों का त्याग कर देना चाहिए? शैतान यह जानता था कि जो मनुष्य उसके सामने खड़ा है वह परमेश्वर का पुत्र है, जिसकी अनन्त योग्यता और सामर्थ सारे भ्रमाण से परे है। अगर वह परमेश्वर के पुत्र को मनुष्य के कमज़ोर रूप में नष्ट कर देता, तो यह एक परम और अंतिम जीत होती। जो महिमा केवल परमेश्वर कि है उसे पाने के लिए शैतान कितनी कोशिश में लगा रहता है।

परन्तु शैतान यीशु को कुछ ऐसा पेश नहीं कर पा रहा था जो परमेश्वर ने उसे देने का वायदा न किया हो। वह उसे एक छोटा रास्ता दिखा रहा था। जो रास्ता यीशु अपने पिता कि आज्ञा में होकर ले रहा था, वह एक अकल्पनीय पीड़ा और दृडता से भरा रास्ता था। जो राज्य यीशु परमेश्वर के दिखाए हुए पर स्थापित कर रहा था, वह शैतान के दिखाए हुए राज्य से कहीं अधिक यशस्वी था। शैतान यह जानता था कि यदि वह उसे नहीं रोकता है तो वह अन्धकार के राज्य के लिए सब कुछ खो देगा। लेकिन यदि यीशु प्रचलित होता है तो, वह ज्योति के राज्य के लिए सब कुछ जीत लेगा। क्या यीशु अपने प्रभु पर पूरा विश्वास रखेगा? या फिर वह आदम और हव्वा की तरह संदेह और विद्रोह में गिर जाएगा?

यीशु ने शैतान के सामने लाये हुए सभी सांसारिक राज्यों को देखा और फिर एक सरल बयान के साथ उसके प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए यह कहा ;

“शैतान, दूर हो! शास्त्र कहता है:
‘अपने प्रभु परमेश्वर की उपासना कर
और केवल उसी की सेवा कर!’”

इस जंगल में दो प्राणियों के बीच का एक शांत क्षण हो सकता है, लेकिन यह मानवता के इतिहास में और अनंत काल का एक महान और शक्तिशाली क्षण था। यह सच का एक अद्भूत, ब्रह्मांड को हिला देने वाला वज्रपात था। एक कमजोर मानव के रूप में, यीशु ने प्रलोभन का पूरा दबाव महसूस किया और उसके खिलाफ आ रहे परमेश्वर के सबसे शक्तिशाली दुश्मन का,फिर भी वह इन सब के बीच में भी आज्ञाकारी बना रहा। जो विजय मानवजाति खुद के लिए नहीं जीत सकता था वह जीत यीशु ने जीती।

यह बहुत दिलचस्प है। जिस समय आदम और हवा बगीचे में थे उनका सामना शैतान कि योजनाओं से हुआ। उनके पाप के कारण वह भयानक अभिशाप आया। यीशु अभिशाप की शक्ति के खिलाफ खड़े हो गए और उसे शैतान के सिर पर दाल दिया। इस्राएलियों के विफलताओं के वे चालीस साल जो उन्होंने जंगल में बिताये थे, वे परमेश्वर कि उपस्थिति में बिताय यीशु के चालीस दिन कि चमकती हुई विजय के द्वारा छुड़ा लिए गए। वह मानवजाति कि असफलताओं को अपनी उत्तम धार्मिकता से भर रहा था! और उसने आत्मा और वचन कि सामर्थ से ऐसा किया।

इस बार, यीशु ने व्यवस्थाविवरण ६ः१३ का हवाला दिया। आपने देखा कि कैसे प्रभु ने सब कुछ परमेश्वर कि वाचा के साथ बांधा जो उसने इस्राएल के साथ बांधी थी? उसने परमेश्वर के महान दुश्मन से लड़ने के लिए वचन कि सच्चाई को अपनी ताकत का आधार बनाया।

जब शैतान ने 'यीशु की फटकार सुनी तो वह वहाँ से चला गया। वह जानता था कि वह केवल उस पल के लिए ही हार है। लेकिन उसने वापस आने की साजिश रची। वह जानता था कि वह सर्वश्रेस्ठ परमेश्वर के खिलाफ हारेगा या यीशु मसीह व्यक्तित्व में जीतेगा, और विनाश करने के लिए उसके पास अभी भी समय था। शैतान के जाने के बाद, स्वर्गदूत हमारे कमज़ोर प्रभु कि सेवा के लिए आये।  यीशु ने अपने आज्ञाकारिता के माध्यम से शैतान को हराते हुए सभी परमेश्वर के स्वर्गीय राज्यों ने देखा होगा। वे सब जानते थे की सारी महान बातें दाव पर लगी हैं। वे जानते थे कि लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है।  लूका की पुस्तक में इस बात का उल्लेख है की शैतान परमेश्वर के पुत्र के माध्यम से परमेश्वर की महाकाव्य बचाव योजना को रोकने के लिए एक अधिक उपयुक्त समय पर वापस आएगा।

मसीह यीशु सदा के लिए सब पापियों के लिए एक सहायक और याजक रहेगा। उसने प्रलोभन का सबसे उच्च और गहरी शक्ति को महसूस किया और उस पर विजयी हुआ! वह पापी पुरुषों और महिलाओं के परीक्षण और संघर्ष को कितनी दयापूर्वक समझ लेता था! कितनी बहादुरी से उसने हम सब के लिए पाप के ऊपर विजय का रास्ता साफ़ किया।