कहानी १६: मंदिर में मसीह
यूसुफ़ और मरियम कितना अचंबित हुए होंगे जब चरवाहों ने उन्हें स्वर्गदूतों और उन सभी के चारों ओर परमेश्वर की महिमा के प्रकाश की कहानियाँ बताई होंगी! जब मरियम प्रभु यीशु को दूध पिला और नेहला रही होगी, तो उसने इन भव्य आयोजनों के बारे में क्या सोचा होगा? मरियम और यूसुफ के बीच बातचीत की कल्पना कीजिए!
समय आया जब मरियम और यूसुफ को यीशु का खतना करना था। आपको याद होगा कि खतना एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रतीक था।मांस का एक छोटा सा टुकड़ा लड़के के निजी भाग से काट लिया जाता था, यह दिखाने को कि उसे परमेश्वर के लिए अलग किया गया है। यह इस्राएल के पुत्रों के मांस के माध्यम से एक चिन्ह था कि परमेश्वर ने राष्ट्र को अपने लिए अलग चुन और बुलाया है। उनको पवित्र होना था, और उन्हें सभी अन्य देशों के लिए एक प्रकाश और आशीष बनना था। अब महान ज्योति, दुनिया का उद्धारकर्ता आया था; और उसके माता पिता उसके साथ उनके वाचा के शक्तिशाली प्रतीकों का आदर करने से, परमेश्वर की आज्ञा मानेंगे। वे यीशु को यरूशलेम में महान मंदिर में ले गए जहाँ वो उन्हें प्रभु को प्रस्तुत कर सके।
इस्राएल के परिवारों में जेठा बेटों को एक और खास तरह से परमेश्वर के लिए पवित्र (या अलग) ठहराया जाता था। यह दिखाने के लिए, प्रत्येक परिवार को एक विशेष बलिदान की पेशकश करना आवश्यक था। व्यवस्था के अनुसार, आम परिवारों को मंदिर के याजकों को एक कबूतर की जोड़ी या दो युवा कबूतर लाना था। याजक, मध्यस्थों के रूप में कार्य करते, और परमेश्वर की वेदी पर ले जाकर, उन्हें परिवार के लिए बलि कर देते थे। परमेश्वर ने यह वादा किया था कि उसके लोगों के दिलों से ईमानदार भेटे, उनके लिए एक मनभावन सुगंध होंगी। यूसुफ और मरियम अपने प्रभु से प्रेम करते थे, और वे अपने यहूदी विश्वास के आवश्यक रीतियों को आदर देने का ध्यान रखते थे।
जिस दिन मरियम और यूसुफ यीशु को मंदिर में ले गए, उसी दिन, परमेश्वर की आत्मा ने शिमोन नाम के एक भक्त और विश्वासयोग्य आदमी को वहाँ जाने के लिए ललकाया। सालों साल तक, उसने उस दिन की लालसा की जब परमेश्वर अपना कार्य करेगा और इसराइल को सांत्वना देगा। वह मसीहा को देखना चाहता था। पवित्र आत्मा ने उसे बताया था कि उसके मरने से पहले, वह अभिषिक्त जन को देखेगा। अब वह बूढ़ा हो गया था, और इस विशेष दिन पर, परमेश्वर अपना वादा पूरा करने जा रहा था। जब यूसुफ और मरियम मंदिर के आंगन में आए, शिमोन जानता था कि यही बच्चा वो जन है जिसका वह इंतजार कर रह था। उसने बच्चे को गोद में लिया और परमेश्वर की स्तुति में अपनी आवाज को उठाया:
वाह। जब मरियम और यूसुफ ने इस भले आदमी के शब्दों को सुना, तो उन्होंने अचंबा किया। जो सत्य परमेश्वर ने अपने स्वर्गदूतों द्वारा सपनों के माध्यम से दूसरों को बताया, वह आज भी औरों को इस बात का प्रकाशन दे रहा था! उन्होंने कितना सोचा होगा कि उनके पुत्र के जीवन में क्या लिखा है। वह इस अद्भुत उद्धार को कैसे लायेगा? वह कैसे, दुनिया के अविश्वासी राष्ट्रों के लिए एक प्रकाश होगा? और वह कैसे अपने खुद के देश के लिए गौरव लाएगा? क्या शक्तिशाली बातें, उनकी बाहों में इस छोटे से प्राणी के लिए होनी थी?
फिर शिमोन, मरियम और यूसुफ की ओर मुड़ा और मसीह बच्चे के माता पिता को आशीष दी। उसने मरियम को एक दुःख भरी सच्चाई का सन्देश भी दिया: " “यह बालक इस्राएल में बहुतों के पतन या उत्थान के कारण बनने और एक ऐसा चिन्ह ठहराया जाने के लिए निर्धारित किया गया है जिसका विरोध किया जायेगा। और तलवार से यहां तक कि तेरा अपना प्राण भी छिद जाएगा जिससे कि बहुतों के हृदयों के विचार प्रकट हो जाएं।”
इन शब्दों की सच्चाई, मरियम के लिए अधिक गहरी और शक्तिशाली रही होंगी जब उसने अपने बच्चे को एक आदमी मे बढ़ते देखा होगा। क्या पता उसने यह सब विचारा हो जब उनके उपदेश और चमत्कारों ने इसराइल के राष्ट्र को उलट पुलट कर दिया?
जब उसने अपने युवा बेटे को यरूशलेम में सबसे शक्तिशाली पुरुषों के झूठ का साहसपूर्वक सामना करते देखा होगा और उन्हें परमेश्वर के उद्धार को अस्वीकार करते देखा होगा, तो क्या पता मरियम ने इन शब्दों को याद किया होगा? क्या उसने यीशु को अपने बालक काल में यह सब सिखाया था? जब उसने अपने पुत्र को क्रूस पर मरते देखा, तो क्या यह उसके पास आये? निश्चित रूप से उस भीषण दिन ने एक शातिर तलवार की तरह उसकी आत्मा को छेदा होगा। परमेश्वर जानता था कि यह कष्ट आने वाला है, और उसका कोमल प्रभु उसे तैयार कर रहा था।
जैसे इस छोटे परिवार ने यहूदी धर्म के रीति रिवाजों को सम्मानित किया, परमेश्वर एक और वफादार सेवक लाया। उसका नाम अन्ना था और वह एक नबिया थी। वह फनुएल की बेटी थी। इस्राएल के बारह जनजातियों में से, वह आशेर के गोत्र से आई थी। उसकी युवावस्था में शादी हो गई थी, लेकिन उसका पति केवल सात वर्ष जीवित रहा। अपने जीवन के बाकि वर्ष, उसने अपने को मंदिर में आराधना करने के लिए समर्पित किया था। दिन और रात वह उपवास करती और परमेश्वर के सम्मुख प्रार्थना में रहती।
मसीह के आने के समय तक, वह बहुत बूढ़ी हो गई थी। अब वह चौरासी साल की थी, और परमेश्वर ने उसके विश्वासयोग्यता को इस प्रकाशन से आशीषित किया। वह जानती थी कि यह छोटा सा लड़का, मसीहा है। वह मरियम और यूसुफ के पास गई और प्रभु की स्तुति करने लगी। उसने घोषणा की कि यही वो दिन था जब मसीहा, जीवते परमेश्वर के मंदिर के चौखट पर आए है! फिर वह बाहर गई और उन सब को बताया जो इसराइल की रिहाई के लिए विश्वास में ताक रहे थे।
यूसुफ और मरियम ने परमेश्वर के पवित्र व्यवस्था की सभी आवश्यकताओं को पूरा किया, और मरियम ने अपने दिल में इन यादों को सिंझोया और उन पर विचारा।