कहानी १०: स्वर्गदूत, राजा और पवित्र सपने
मत्ती की पुस्तक नए नियम की सबसे पहली पुस्तक है। कई लोगों का यह विश्वास है कि जब शुरू की कलीसियाएं इस बात का निर्णय ले रही थी कि सुसमाचारों में से कौन सी पुस्तक पहले आनी चाहिए, उन्होंने मत्ती की पुस्तक को चुना क्यूंकि उसने बहुत अच्छे तरीके से नए और पुराने नियम को साथ जोड़ा। वंशावलियों ने यह रास्ता बनाया!
मत्ती यीशु के बारह शिष्यों में से एक था। उसने यीशु के जीवन की कहानी इस प्रकार लिखी कि यहूदी लोग समझ जाए कि यीशु ही वास्तव में उनका मसीहा था। सदियों से, नबियों ने इस आने वाले राजा के बारे में बताया था, और मत्ती यह दिखाना चाहता था कि प्रभु ने कैसे अपने जन्म, जीवन, मृत्यु और पुनरुथान से उन भविष्यवाणियों को पूरा किया।
लूका की पुस्तक नए नियम में तीसरी पुस्तक है। यह भी हमें यीशु के जीवन, मृत्यु और जी उठने की कहानी बताती है। लेकिन लूका मत्ती से अलग था। वह यीशु को नहीं जानता था, जब वो इस पृथ्वी पर थे। मसीह के स्वर्ग उठाए जाने के बाद ही, लूका ने यीशु के बारे में सुना था।उसने प्रभु यीशु पर अपना विश्वास डाला क्यूंकि कई वफादार पुरुषों ने उसे यीशु की कहानी बताई थी। वह उद्धार के उपहार के बारे में इतने जोश से भरा था कि उसने उन विश्वास के महान पुरुषों के साथ दुनिया भर की यात्रा की। उसने पौलुस प्रेरित के साथ कई साल यात्रा की और अपने समय के लोगों को शुभ समाचार सुनाया। वह पौलुस के साथ तब भी रहा जब वह जेल में था। एक ऐसा समय आया जब उसने यीशु के जीवन की कहानियों का अनुसंधान करके, उसे लिखने का फैसला किया। वह चाहता था कि उसका दोस्त थियोफिलस और अन्य नए विश्वासी यह सुनिश्चित कर सके कि जो उन्हें यीशु के बारे में बताया जा रहा है वो सच है।
लूका एक डॉक्टर था और एक बहुत सावधान लेखक भी। ताकि पाठक इन घटनाओं के समय को समझ पाए, उसने महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों का रिकार्ड बड़े सावधानी से अपनी पुस्तक में किया। वह अक्सर उन लोगों के साथ, जो हर कहानी का एक हिस्सा थे, उनसे भेट करता और बातचीत करता। जब हम लूका की कहानियों पढ़ते है, हम अक्सर चरित्रकारो के विचारों और भावनाओं के बारे में जानते है क्यूंकि उन्होंने मुंह जुबानी यह लूका के साथ बाटा था! उसके लेखन के माध्यम से, हम उनके प्राचीन शब्द सुन सकते है! और भले ही लूका अपनी कहानियों को लिखने के लिए बहुत मेहनत करता था, वो फिर भी परमेश्वर ही था जिसने अपने पवित्र आत्मा की शक्ति से लूका को चुने हुए शब्द दिए। हम यह विश्वास कर सकते है की लूका के शब्द, जैसे बाइबल में अन्य किताबें है, वो शब्द है जो परमेश्वर चाहता है हम जाने और सुने।
जबकि मत्ती ने अपनी पुस्तक इसलिए लिखी थी कि यहूदी लोग यह जाने की यीशु ही मसीहा है, लूका ने अपनी पुस्तक यह बताने के लिए लिखी थी कि यीशु सारे जातियों और देशों के लिए उद्धार लाए थे। मत्ती हमें सिखाता है कि यीशु कैसे दाऊद का पुत्र, महान राजा, और पुराने नियम के वादों का मसीहा था। लेकिन आपको याद होगा कि पुराना नियम हमें यशायाह की भविष्यवाणी द्वारा एक दुःख उठाने वाले सेवक के बारे में बताता है। यह व्यक्ति गरीबों के लिए आशा और बीमारों के लिए चंगाई लाएगा। वह अपने जीवन को बलि कर देगा, और किसी तरह, अपने घावों से, दूसरों की रिहाई की कीमत चुकाएगा। लूका अपनी कहानियों से यह बताना चाहता था कि पुराने नियम का यह खूबसूरत, रहस्यमय चरित्र हमारा प्रभु और उद्धारकर्ता, यीशु मसीह था।
हमारी कहानी 7 ई.पू. के आसपास, राजा हेरोदेस के समय में शुरू होती है। हेरोदेस वो राजा नहीं था जिसे परमेश्वर ने अपने पवित्र लोगों का नेतृत्व करने के लिए अभिषेक किया था। वह महान राजा दाऊद का वंशज नहीं था। वास्तव में, शक्तिशाली, दमनकारी रोमन साम्राज्य की वजह से, हेरोदेस राजा बना। रोमी लोग इस्राएल के देश पर शासन करते थे और उनकी सरकार और जीवनो को नियंत्रित करते थे। कभी कभी वे उनकी प्रभु पर विश्वास और आज्ञाकारिता पर नियंत्रण और रोक टोक भी करते थे! रोमियों ने यहूदियों पर नियंत्रण रखने के लिए हेरोदेस को राजा बनाया। वे जानते थे कि हेरोदेस उनके साम्राज्य के प्रति वफादार रहेगा।
यहूदी लोगों की आंखों में, हेरोदेस एक गद्दार था। वह एक क्रूर आदमी था जो सबसे उच्च और सच्चे परमेश्वर के मार्गों के बारे में ज़रा भी नहीं सोचता था। यह इस्राएल के लोगों के लिए एक कठिन समय था।कल्पना कीजिए कि वे इस सिंहासन पर बैठे ढोंगी से कितनी घृणा करते थे!
उन दिनों में, जकर्याह नाम का एक आदमी यहूदिया में रहता था। वो हारून ( मूसा के भाई) का वंशज था। इसका मतलब यह था उसे, परमेश्वर के लोगों पर याजक होने का उच्च और पवित्र सम्मान था। उनकी पत्नी एलिजाबेथ भी हारून के वंशज से थी। जब लूका ने यह कहानी लिखी, तो वो यह चाहता था कि हम अच्छे से समझ ले कि जकर्याह और एलिजाबेथ एक बहुत ही महान और सज्जन पति पत्नी थे। उसने लिखा, 'वो दोनों निर्दोषिता से परमेश्वर की आज्ञाओं और नियमों का पालन कर रहे थे और परमेश्वर की दृष्टि में ईमानदार थे।' वाह! परमेश्वर का वचन उनके बारे में इस तरह की अद्भुत बातें कहेगा, तो यह एलिजाबेथ और जकर्याह के लिए क्या ही एक अद्भुत सम्मान था।
जकर्याह और एलिजाबेथ को एक महान उदासी थी। उनके बच्चे नहीं थे। एलिजाबेथ बाँझ थी। उनके समाज में प्रत्येक व्यक्ति इसे एलिजाबेथ के लिए एक महान अपमान के रूप में देखता होगा। वह जकर्याह को एक पुत्र नहीं दे सकी थी! कौन उसके नाम को आगे बढ़ाता? कितने साल के लिए एलिजाबेथ ने एक बच्चे के लिए आशा की और प्रार्थना की, लेकिन अब वह बूढ़ी हो गई थी, और यह असंभव लग रहा था। उसको कैसा दुख होता होगा कि उसने अपनी बाहों में अपने स्वयं के एक बच्चे को कभी नहीं लिया। उसके पति को उसके साथ यह दर्द उठाना पड़ रहा होगा; यह जान कर वह कैसे दुखी होती होगी। उसके लिए कैसा दर्दनाक होता होगा जब वो और औरतों को देखती जिनके घर कई बच्चों की हलचल और चहल पहल से भरे थे।
इस महान दर्द के बावजूद, एलिजाबेथ और जकर्याह ने अपने जीवन से परमेश्वर को आदर दिया। और वे यह नहीं जानते थे, लेकिन परमेश्वर उनके दिल की इच्छाओं द्वारा इस पूरी दुनिया के लिए अपने भव्य योजना को पूरा करने जा रहा था! एलिजाबेथ की दरिद्रता और दुख परमेश्वर की महिमामय उद्धार की कहानी का एक हिस्सा बन जाएगा! उसका दुःख सबसे बड़े आनंद का एक हिस्सा बन जाएगा!
जकर्याह इस्राएल का एक याजक था। अपने पूरे जीवनकाल में, जकर्याह को एक विशेष, पवित्र तरीके से इस्राएल के लोगों की सेवा करने के लिए परमेश्वर द्वारा बुलाया गया था। असल में, एक याजक का काम था, परम प्रधान परमेश्वर और उसके प्रेमी लोगों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में होना। प्रभु अपने देश से प्यार करते थे; वे उनकी अमूल्य वास्तु थी, लेकिन वे पापी भी थी। उन्होंने अपने पाप के प्रदूषण से खुद को दूषित कर दिया, और इस बुराई ने परमेश्वर की उज्ज्वल, शुद्ध और पूर्ण पवित्रता को अपमानित किया। तो, परमेश्वर ने लोगों को अपने पवित्र मंदिर में बलिदान लाने के लिए एक रास्ता बनाया। किसी तरह, परमेश्वर की योजना के रहस्यमय सौंदर्य में, यह बलिदान लोगों को शुद्ध कर सकते थे,जिससे वे परमेश्वर की पवित्र उपस्तिथि में रह सकते थे। याजकों का यह काम था कि वो इन लोगों से पाप का बलिदान और प्रशंसा की बलि लेकर, परमेश्वर को भेंट करे। वे परमेश्वर और उसके लोगों के बीच, मेल मिलाप के लिए खड़े होते थे। यह एक कितनी ज्यादा महत्वपूर्ण बात थी!
वह समय आया जब जकर्याह और जिन याजकों के विभाग का वो हिस्सा था, यरूशलेम में प्रभु के महान मंदिर में सेवा करने के लिए बुलाया गया। यह एक बहुत ही उच्च सम्मान था, लेकिन एक उससे भी उच्च सम्मान तय करना था। उन्हें, पवित्र स्थान में जाने के लिए और सोने की वेदी पर धूप जलाने के लिए एक याजक को चुनना था। यह सोने की वेदी को सिनाई पर्वत पर मूसा के कारीगरों द्वारा बनाई गई थी। वेदी के पास,एक मोटा, नीला पर्दा लटका हुआ था।पर्दे की दूसरी ओर, वाचा का सन्दूक रखा हुआ था। इसमें दस आज्ञाए रखी हुई थी। उसके ढक्कन को दया की गद्दी कहा जाता था, और यह पृथ्वी पर परमेश्वर का सिंहासन कमरा था! यह स्वर्ग में परमेश्वर के महिमामय सिंहासन की एक छवि थी! वाह! किस याजक को परमप्रधान परमेश्वर की उपस्थिति में, मंदिर के भीतरी कक्ष में प्रवेश करने और धुप जलाने का अकल्पनीय सम्मान दिया जाएगा?
याजकों ने चिट्ठी डाली। इस तरह से, यहूदी लोगों ने परमेश्वर को अपनी इच्छा प्रकट करने के लिए माँगा था। ऐसा करने पर, जकर्याह यह करने के लिए नियुक्त हुआ! परमेश्वर एक बहुत विशेष तरह से अपनी विशेष योजना पर काम कर रहे थे।परमेश्वर के पास जकर्याह के लिए एक विशेष घोषणा थी, और वह उसे यह घोषणा पृथ्वी पर सबसे पवित्र कमरे में देने जा रहे थे। जकर्याह को सिर्फ कमरे में प्रवेश करने के लिए, तैयारी के अनुष्ठान के माध्यम से जाने था, लेकिन परमेश्वर उससे एक बहुत अधिक रास्ते की तय्यारी कर रहे थे।
जकर्याह ने याजक - रीतियाँ करने के लिए पवित्र स्थान में प्रवेश किया; भक्तों ने बाहर एकत्र होकर प्रार्थना की। लेकिन किसी ने आगे होने वाली घटनाओं की उम्मीद नहीं की थी। जब जकर्याह धूप की वेदी पर खड़ा था, परमेश्वर का एक शक्तिशाली दूत वेदी के दूसरे ओर प्रकट हुआ!
जकर्याह इस शानदार प्राणी को देखकर चौंक गया। वह भय से कांप उठा! स्वर्गदूत वो स्वर्गीय जीव है जिनको परमेश्वर ने दुनिया बनाने से पहले सृजा था। वास्तव में, जब परमेश्वर ने इस ब्रह्मांड की सृष्टि की थी, तो वो यह देखकर खुशी से चिल्लाए होंगे! वे उनके साथ स्वर्ग में रहते हैं, और परमेश्वर के हर शब्द की पूर्ण आज्ञाकारिता के साथ सेवा करते है। अगर आपकी आंखों के सामने एक स्वर्गदूत दिखाई दे, तो आप कैसा महसूस करेंगे; कल्पना कीजिए! यह स्वर्गदूत एक संदेश के साथ आया था। क्या ही एक शक्तिशाली पल, और क्या ही एक महत्वपूर्ण संदेश यह रहा होगा! उसने कहा;
फिर प्रभु के दूत ने उससे कहा, “जकरयाह डर मत, तेरी प्रार्थना सुन ली गयी है। इसलिये तेरी पत्नी इलीशिबा एक पुत्र को जन्म देगी, तू उसका नाम यूहन्ना रखना।
वह तुम्हें तो आनन्द और प्रसन्नता देगा ही, साथ ही उसके जन्म से और भी बहुत से लोग प्रसन्न होंगे।
क्योंकि वह प्रभु की दृष्टि में महान होगा। वह कभी भी किसी दाखरस या किसी भी मदिरा का सेवन नहीं करेगा। अपने जन्म काल से ही वह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होगा।
“वह इस्राएल के बहुत से लोगों को उनके प्रभु परमेश्वर की ओर लौटने को प्रेरित करेगा।
वह एलिय्याह की शक्ति और आत्मा में स्थित हो प्रभु के आगे आगे चलेगा। वह पिताओं का हृदय उनकी संतानों की ओर वापस मोड़ देगा और वह आज्ञा ना मानने वालों को ऐसे विचारों की ओर प्रेरित करेगा जिससे वे धर्मियों के जैसे विचार रखें। यह सब, वह लोगों को प्रभु की खातिर तैयार करने के लिए करेगा।”
लूका १ः१३-१७
जब जकर्याह स्वर्गदूत की बात सुन रहा था, वह तो भी संदेह से भरा हुआ था। उसने कहा, "मैं इस बारे में पूर्ण यकीन कैसे कर सकता हूँ? मैं एक बूढ़ा आदमी हूँ और मेरी पत्नी भी बूढ़ी है।'"
स्वर्गदूत ने उस को उत्तर दिया, और यह क्या एक दिलचस्प जवाब था! उसने कहा, 'मैं गेब्रियल हूँ। मैं परमेश्वर की उपस्थिति में खड़ा होता हूँ, और मुझे तुमको यह अच्छी खबर बताने के लिए भेजा गया है।'" वाह!
जकर्याह के सामने यह जो शानदार, तेजस्वी प्राणी था, वो सभी स्वर्गदूतों में सर्वोच्च था।वह खुद स्वर्ग के सिंहासन के कमरे से एक दूत के रूप में आया था! लेकिन जकर्याह के पास, जो एक याजक था, उस पर विश्वास करने के लिए विश्वास नहीं था! यह बल्कि एक दूत के साथ व्यवहार करने का एक असभ्य तरीका था। तो गेब्रियल ने आगे बोला: "और अब तुम, जब तक वो उचित समय नहीं आएगा जब यह बात सच हो जाएगी, बोल नहीं पाओगे, क्यूंकि तुमने मेरे शब्दों पर विश्वास नहीं किया।'"
जब जकर्याह दूत गेब्रियल के साथ बात कर रहा था, बाहर एकत्रित हुए भक्त सोचने लगे कि ज़कर्याह को क्या हुआ। वह क्यों इतना लम्बा समय ले रहा था? जब जकर्याह बाहर आया होगा, तो वह कितना दंग दिख रहा होगा। वह बात नहीं कर सकता था! उसने उन्हें समझाने के लिए, इशारों से बात करने की कोशिश की होगी। लोगों ने इस बात का एहसास किया होगा कि उसने मंदिर में कोई दर्शन देखा होगा।
जकर्याह मंदिर में तब तक सेवा करता रहा जब तक उसके कर्तव्यों का समय समाप्त हो गया। तब वह अपनी पत्नी को घर लौट आया। जैसे स्वर्गदूत ने कहा, एलिजाबेथ गर्भवती हो गई। उसने अपने को पांच महीने, दुनिया से छिपा कर एकांत में रखा। जैसे वो परमेश्वर के दिए अनमोल, चमत्कारी उपहार का लुप्त उठा रही थी, उसने कहा: "परमेश्वर ने मेरे लिए यह किया है ... इन दिनों में, उसने मुझ पर अनुग्रह किया है, और मेरे लोगों के बीच मेरे अपमान को मिटा दिया है।" क्या ही अनमोल और धन्यवाद से भरा हिर्दय---और क्या ही उदार और महान परमेश्वर!