पाठ 59 : यूसुफ का बेचा जाना

यूसुफ, राहेल और याकूब का प्रिय पुत्र, अपने पिता के घर में अकेले में बड़ा हुआ। लिआ और उसकी दासियाँ उससे बहुत जलती थीं, क्यूंकि वह अपने पिता का पसंदीदा था। उसके पिता के द्वारा दिए अंगरखा को वह पहन कर उन्हें दिखाता था और उन्हें अपने सपनों के विषय में भी बताता था जिसमें वे उसके आगे झुकते हैं। यह सब उनके लिए बर्दाश्त करना बहुत था। वे उसकी पीठ के पीछे उसे उपहासते होंगे! मुसीबत याकूब के घर में पैदा हो रही थी। 

 

एक समय आया जब यूसुफ के भाई शकेम में जाकर याकूब के पशुओं को चराने ले गए। याकूब उनके विषय में जानना चाहता था, इसलिए उसने उनकी खबर लेने के लिए यूसुफ को भेजा। उसने कहा, "जाओ और देखो कि तुम्हारे भाई सुरक्षित हैं। लौटकर आओ और बताओ कि क्या मेरी भेड़ें ठीक हैं?” तब यूसुफ सत्रह साल का था। 

 

यूसुफ शकेम के लिए रवाना हुआ। यह पचास मील कि यात्रा थी। जब वह वहाँ गया, वह इधर उधर फिरता रहा, लेकिन उसे अपने भाइ कहीं नहीं मिले। अंत में, उसने एक अजनबी से पूछा, और उस अजनबी ने कहा की उसने देखा था। उसने उसके भाइयों को कहते हुए सुना कि वे दोतान को जा रहे हैं। यह लगभग तेरह मील दूर था। यह कितना अजीब है की यह अजनबी जो शकेम का था जानता था कि उसके भाई कहाँ हैं। परमेश्वर ने सही समय पर यूसुफ के लिए सहायता प्रदान की। ऐसा वह अक्सर अपने बच्चों के लिए करता है। 

 

यूसुफ अपने भाइयों को खोजने के लिए निकल पड़ा। यूसुफ के भाईयों ने बहुत दूर से उसे आते देखा। उन्होंने उसे मार डालने की योजना बनाने का निश्चय किया। वे उसके अंगरखा को और उसके सपनों को हमेशा के लिए ख़त्म कर देंगे। वे एक दूसरे से कहने लगे, "'यह सपना देखने वाला यूसुफ आ रहा है। मौका मिले हम लोग उसे मार डालें हम उसका शरीर सूखे कुओं में से किसी एक में फेंक सकते हैं। हम अपने पिता से कह सकते हैं कि एक जंगली जानवर ने उसे मार डाला। तब हम लोग उसे दिखाएंगे कि उसके सपने व्यर्थ हैं।'” अभिशाप कि हिंसा इन लोगों के भीतर दृढ़ता से काम कर रही थी। क्या वे जानते नहीं थे कि वे परमेश्वर के चुने हुए लोग थे? वे कान के बेटों कि तरह काम कर रहे थे। वे शैतान की तरह व्यवहार कर रहे थे। 

 

रूबेन ने जब उन्हें साजिश करते सुना, उसने देखा की वे बहुत गंभीर थे। वह उनमें सबसे बड़ा था, और यह उसकी ज़िम्मेदारी थी कि वह उनकी हरकतों पर नज़र रखे जब तक वे अपने पिता से दूर थे। किन्तु रूबेन यूसुफ को बचाना चाहता था। रूबेन ने कहा, “हम लोग उसे मारे नहीं। हम लोग उसे चोट पहुँचाए बिना एक कुएँ में डाल सकते हैं।” रूबेन ने यूसुफ को बचाने और उसके पिता के पास भेजने की योजना बनाई। सबसे बड़ा पुत्र होकर यह इतना साहसी काम नहीं था। उसकी फटकार कहां थी? वे हत्या की साजिश रच रहे थे!

 

सारे भाई सहमत हुए। जब यूसुफ उनके पास पहुंचा, उन्होंने उस पर आक्रमण किया और उसके लम्बे सुन्दर अंगरखा को फाड़ डाला। तब उन्होंने उसे खाली सूखे कुएँ में फेंक दिया।

अपने पालक भाई को उस गड्ढे में फेंकने के बाद, वे भोजन करने बैठ गए। तब उन्होंने नज़र उठाई और व्यापारियों के एक दल को देखा जो गिलाद से मिस्र की यात्रा पर थे। उनके ऊँट कई प्रकार के मसाले और धन ले जा रहे थे। इसलिए यहूदा ने अपने भाईयों से कहा, "अगर हम लोग अपने भाई को मार देंगे और उसकी मृत्यु को छिपाएंगे तो उससे हमें क्या लाभ होगा? हम लोगों को अधिक लाभ तब होगा जब हम उसे इन व्यापारियों के हाथ बेच देंगे।'" यहूदा युसूफ को बचाने के लिए योजना बना रहा था, केवल वह रूबेन से अधिक साहसपूर्वक था। फिर भी उसकी योजना उसके बाकि भाइयों के रूप में दुर्भावनापूर्ण था। किसी का अपहरण करना और उसे गुलामी में बेचना, किसी को मारने से कम भयंकर अपराध नहीं था। गुलामी कि भयावहता मौत जितना बुरा था। 

 

जब उसके भाइयों ने यह सुना, उन्हें लगा की यह एक उत्तम विचार था। ना केवल उन्हें अपने भाई से छुटकारा मिल जाएगा, लेकिन उन्हें इस बात से संतुष्टि मिलेगी कि वह एक गुलाम बन गया था। सबसे बढ़कर, वे हत्या के दोषी नहीं होंगे!

 

जब मिद्यानी व्यापारी पास आए, भाईयों ने यूसुफ को कुएँ से बाहर निकाला। उन्होंने बीस चाँदी के टुकड़ों में उसे व्यापारियों को बेच दिया। व्यापारी उसे मिस्र ले गए।

 

रूबेन उसके पालक भाई के बेचने का हिस्सा नहीं था, जब वह कुएँ पर लौटकर आया तो उसने देखा कि यूसुफ वहाँ नहीं है। रूबेन बहुत अधिक दुःखी हुआ। उसने अपने कपड़ों को फाड़ा। रूबेन भाईयों के पास गया और उसने उनसे कहा, “लड़का कुएँ पर नहीं है। मैं क्या करूँ?” 

 

रूबेन इस तरह कर रहा था जैसे कि और कोई रास्ता नहीं था। यदि वह साहसी होता तो वह बहुत कुछ कर सकता था। वह कहीं तो जा सकता था। वह उस कारवां का पीछा करके यूसुफ को बचा सकता था! उसे अपने छोटे भाइयों के इस भयानक पाप का सामना करना चाहिए था! यूसुफ कि ओर रूबेन की साख बहुत दूर तक नहीं जा पाई। वह अपने भाइयों में शामिल हो गया और यूसुफ को एक विदेशी देश में जाने दिया। 

 

भाईयों ने एक बकरी को मारा और उसके खून को यूसुफ के सुन्दर अंगरखे पर डाला। तब भाईयों ने उस अंगरखे को अपने पिता को दिखाया। याकूब केवल यही मान सकता था कि किसी जंगली जानवर ने यूसुफ को खा लिया है। 

 

याकूब अपने पुत्र के लिए इतना दुःखी हुआ कि उसने अपने कपड़े फाड़ डाले। तब याकूब ने विशेष वस्त्र पहने जो उसके शोक के प्रतीक थे। याकूब लम्बे समय तक अपने पुत्र के शोक में पड़ा रहा। याकूब के सभी पुत्रों, पुत्रियों ने उसे धीरज बँधाने का प्रयत्न किया। किन्तु याकूब कभी धीरज न धर सका। याकूब ने कहा, “मैं मरने के दिन तक अपने पुत्र यूसुफ के शोक में डूबा रहूँगा।”

 

इस बीच, यूसुफ मिस्र में पहुंचा। उन मिद्यानी व्यापारियों ने जिन्होंने यूसुफ को खरीदा था, बाद में उसे मिस्र में बेच दिया। उन्होंने फिरौन के अंगरक्षकों के सेनापति पोतीपर के हाथ उसे बेचा। 

 

परमेश्वर इस चुने हुए परिवार के साथ क्या करने किसोच रहा था? ऐसे परिवार में जहां इतनी गड़बड़ी है, उनके वंशज दुनिया के लिए आशीर्वाद कैसे हो सकते हैं? और कैसे परमेश्वर उन भयानक घटनाओं को अच्छे में बदल सकता है? 

 

परमेश्वर कि कहानी पर ध्यान करना।  

परमेश्वर सब कुछ देखता है। यूसुफ के भाइ जब उसे बेच रहे थे, परमेश्वर वो देख रहा था। वह परमेश्वर के परिवार में ऐसा कैसे होने दे सकता था? उसने इसे क्यूँ नहीं रोका? 

क्या आपके अपने जीवन या अपने परिवार में कोई ऐसी भयानक बात हुई है? क्या आपने कभी सोचा है की क्यूँ परमेश्वर ऐसी कठिनाई और कष्ट होने देता है? पता नहीं यदि यूसुफ मिस्र को जाते समय ऐसा कुछ सोच रहा था। हम जब यूसुफ के जीवन के बारे में पढ़ते हैं, तब हम इन सवालों के जवाब को सीख पाएंगे। इसे सुनने के लिए तैयार रहें, यह प्रेरणादायक है! 

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।  

सोचिये युसूफ को कैसा लगा होगा जब उसने अपने भाइयों को उसे बेचने की साजिश करते सुना। सोचिये इतने घंटों उस गड्ढे में अकेले बैठ कर उनकी घृणा को देखते रहना और उनकी अत्यधिक अस्वीकृति को जान लेना कैसा होता होगा। वे कितने कठोर होंगे जब वह उनसे विनती कर रहा होगा की वे उसे ना बेचें। ऐसी अस्वीकृति दिल को कितना गहरा घाव देता है। ऐसा जब हमारे अपने परिवार में होता है, तो यह और भी अधिक दर्दनाक और विनाशकारी होता है। यह निराशा की गहरी भावना को पैदा कर सकता है, और कभी कभी हम भी अस्वीकृति पर विश्वास कर लेते हैं! हमारे लिए यह मान लेना कितना खतरनाक हो सकता है यदि हम अपने जीवन को किसी लायक ना समझें! क्या यह भयानक नहीं है? लेकिन यह सच नहीं है! हम में से हर एक परमेश्वर का एक बच्चा है! हम मसीह में हैं, हम पूरी तरह से परमेश्वर द्वारा स्वीकार कर लिए गए हैं! 

 

परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर। 

एक शापित दुनिया में, हम अक्सर पापी जीवन जीते हैं और लोगों से चोट खाते हैं। कभी कभी, हमारे अपने परिवार का भी पाप हमारे लिए कष्टदायक हो सकता है। आपको इस प्रार्थना के द्वारा सहायता मिल सकती है यदि आप परमेश्वर के पास अपनी अस्वीकृति के घाव को लेकर आते हैं। यदि आपने किसी के साथ दुर्व्यवहार किया है तो आपको पश्चाताप करने में मदद करेगा। यदि आप चाहें, तो अपने शब्दों में भी प्रार्थना कर सकते हैं। यह प्रार्थना केवल एक नमूना है।  

 

"प्रिय परमेश्वर, 

मैं _________ दुर्व्यवहार के लिए माफ़ी मांगता हूँ। मैं गलत था। मुझे उन रिश्तों को सुधारने का रास्ता दिखाएँ। मुझे दिखाएँ यदि किसी भी प्रकार से मैंने किसी को नुकसान पहुंचाया हो।  

हे प्रभु, मैंने  ______, _________ से भयानक वजन और अस्वीकृति को महसूस किया है। परमेश्वर, मैं उन्हें माफ करता हूँ, और मेरे दिल में बदला या नफ़रत करने के सभी अधिकार को छोड़ता हूँ। मेरी मदद करें की जब तक मेरा हृदय पूरी तौर से चंगा नहीं हो जाता, मैं उन सब को क्षमा करता रहूँ। यीशु मुझे पाप के सारे असर से पूर्ण रूप से मुक्त कर दीजिये। यदि वे मेरे खिलाफ पाप करने का प्रयास करते जाते हैं, तो मुझे आपके सच में खड़े रहने की सामर्थ देना। मेरे दुश्मन के हमलों के खिलाफ मैं प्यार दिखा सकूँ, और अपनी सामर्थ के द्वारा मेरी मदद करें। मैं धन्यवाद देता हूँ उन सभी योजनाओं के लिए जो आपने मेरे लिए बनाईं, और मेरी मदद करें की मैं आप पर और अधिक भरोसा करूँ।