पाठ 60 : यहूदा
याकूब का परिवार और अधिक दूर होता गया और टूट गया। यहूदा कबीले से दूर चला गया और एक कनानी स्त्री से शादी कर ली। उनके पहले दो बेटे इतने दुष्ट थे की परमेश्वर ने उनका जीवन छोटा कर दिया ताकि वे और पाप ना कर सकें। तामार, यहूदा के सबसे बड़े बेटे की पत्नी, अकेली और असुरक्षित छोड़ दी गयी थी। घर के मुख्या होने के नाते, यह यहूदा का फ़र्ज़ था की वह यह देखे की तामार के बेटे हों और वह संरक्षित कि जाये। उन मायनों में, विधवा को अगले बेटे से शादी कर के पुत्र को जन्म देना उचित माना जाता था। बच्चा पहले पति का ही माना जाता था। यहूदा के बेटों में से दो की मृत्यु हो गई थी, लेकिन एक तीसरा बेटा भी था। वह तमार के लिए बहुत छोटा था, सो इसीलिए यहूदा ने उसे अपने परिवार में लौटने को कहा जब तक सही समय नहीं आ जाता। यह हमारे लिए अजीब हो सकता है, लेकिन यह उनके समाज में उन लोगों का ख्याल रखने का एक तरीका था जिन्हें समाज में एक सख्त वास्तविकताओं का सामना करना पड़ रहा था।
इस कहानी में, यहूदा ने तामार के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया। वह उसे नजरअंदाज करता था। समय बीतता गया, और तामार आयू में बढ़ती चली गयी और अकेली ही रही। फिर भी यहूदा ने उसे नहीं बुलवाया। उसका बेटा विवाह के लायक भी हो गया, तौभी उसने तमार के लिए कुछ नहीं किया। सोचिये उसे कैसा निर्जन लग रहा होगा जब उसे यह पता चला होगा कि यहूदा ने अपने वादे को पूरा नहीं किया।
लेकिन तामार बुद्धिमान थी। वह जानती थी कि यहूदा का वंश चलता रहेगा। परमेश्वर के वादे का एक भाग यह भी था की इब्राहीम, इसहाक, और याकूब के वंश आकाश में सितारों की तरह होंगे। यदि यहूदा अपने परिवार के नियमों का पालन नहीं करता है, और तामार कि कोई संतान नहीं होती है, तो परमेश्वर के साथ बनाये वाचा के प्रति उन्हें चोट लग सकती है। उसने अपनी समझ के अनुसार समस्या का हल किया। हम यहाँ विस्तार में नहीं जाएंगे। महत्वपूर्ण बात यह है कितामार ने अपने व्यवहार से यहूदा को मजबूर किया की वह देख सकते की उसने उसके विरुद्ध पाप कैसे किया।
परमेश्वर ने यहूदा को निर्णय लेने के लिए एक पल दिया: क्या वह विद्रोह कर के पाप करता रहेगा या पश्चाताप भी करेगा? विनम्रता और धार्मिक प्रदर्शन में, यहूदा ने पछतावा किया। उसने यह घोषित किया तामार उसके तुल्य अधिक धर्मी थी। यह व्यक्ति जिसने अपने भाई को बेच दिया था वह बदल रहा था। परमेश्वर इस याकूब के पुत्र में परिवर्तन का एक शक्तिशाली काम कर रहा था। यहूदा एक महान व्यक्ति बन रहा था। वह तामार का सम्मान करता था। उसने जुड़वां बेटों को जन्म दिया, और वे यहूदा के वंशजों में पहले दो नाम हुए।
लेकिन इस कहानी से यह प्रकट होता है किइससे भी बहुत बड़ी समस्या थी। क्या यदि याकूब के सभी पुत्र कनानी महिलाओं से शादी करना चाहते हों? क्या होगा यदि वे दूर परमप्रधान परमेश्वर के वादे से गिर गए और कनानी लोगों की मूर्तियों कि पूजा करने लगें? याकूब के पुत्र एक पवित्र राष्ट्र बनेंगे जो संसार के लिए आशीष का कारण होंगे। क्या यदि वे अपने पड़ोसियों के पाप और मूर्ति पूजा के प्रभाव में आजाएं?
यहूदा कि यह कहानी कई वर्षों पहले हुई। अपने परिवार से दूर जाने में, और कनानी पत्नी पाने में और संतान होने में उसे वक़्त लगा। तब उन बेटों को शादी की उम्र तक विकसित होना ज़रूरी था। फिर भी परमेश्वर ने उससे एक अद्भुद काम कराया। उसने पश्चाताप किया। यह यहूदा के जीवन का महान और सबसे महत्वपूर्ण मोड़ था। यह एक शानदार बदलाव था। यह एक शानदार परिवर्तन था! शैतान के अभिमानी विद्रोह से वह परमेश्वर का एक विनम्र पुत्र बन गया था। जिस तरह बाइबिल इसका खुलासा करती है, उसके निर्णयों पर ध्यान कीजियेगा। किसी भी अंतर को देखिएगा। क्या उसके पछतावे ने उसे ज़रा भी परिवर्तित किया था?
यह कितना दिलचस्पत है कि अगली कहानी बताने से पहले परमेश्वर ने यह कहानी बताई। बाइबिल में, जिस प्रकार परमेश्वर ने बातों को सिखाया, उसमें हमारे लिए क्या सन्देश है यह समझना सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। परमेश्वर ने दो अलग अलग पात्रों को एक दूसरे के बराबर में रखने के लिए, अपने वचन को लिखने वालों को आदेश दिया, ताकि पढ़ने वाले उनकी तुलना कर सकें। इस खंड में, हम पहले कनान में यहूदा के परिवर्तन के बारे में सीखते हैं। अब हम मिस्र में यूसुफ के जीवन के बारे में जानेंगे। जब आप इसे पढ़ें, तो अपने आप से पूछें की यहूदा और यूसुफ के जीवन एक जैसे कैसे हो सकते हैं। इन कहानियों को लिखने का परमेश्वर का क्या उद्देश्य था?
यह याद रखना आवश्यक है की परमेश्वर के परिवार का नेतृत्व करने के लिए आगे ये दोनों पुरुष थे। यहूदा के तीनों पुत्र पाप में गिर चुके थे। उनमें से कोई भी परिवार का पहलौठा होने का उच्च सम्मान लेने के योग्य नहीं था। रूबेन ने याकूब की रखैल के साथ सो करके याकूब को नीचा दिखाया। शिमोन और लेवी ने शकेम के पुरुषों कि हत्या की। अगला यहूदा था। यूसुफ यहूदा से छोटा था, लेकिन वह राहेल का पहलौठा था। अपने पवित्र परिवार के नेतृत्व के लिए परमेश्वर किसे बुलाएंगे?
परमेश्वर कि कहानी पर ध्यान करना।
जब आप यहूदा कि कहानी को सुनते हैं तो आपको कैसा लगता है? उसका पश्चाताप आपके लिए क्या मायने रखता है? इतना पाप करने के बावजूद परमेश्वर ने उसके पश्चाताप को ग्रहण किया, इसका क्या अर्थ है? इसका क्या अर्थ है की, यदि आप पाप करते हैं तो क्या होता है?
मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।
परमेश्वर को इस बात का पूरा ध्यान है कि हम एक दूसरे के साथ किस तरह का व्यवहार करते हैं। इस कहानी में, यहूदा का तामार के जीवन पर बहुत अधिकार था, और उसने उसका सही उपयोग नहीं किया। लेकिन परमेश्वर ने उसे संरक्षित किया और यहूदा बदल गया। इसके लिए परमेश्वर उसका बहुत सम्मान करेंगे। आपको कैसा महसूस होता है जब आप यह देखते हैं की परमेश्वर तामार पर अपनी नज़र रखते हैं? जब सम्मान और करुणा के साथ हम अन्य लोगों के साथ व्यवहार करते हैं तो यह परमेश्वर के लिए कितना महत्वपूर्ण है? क्या कोई है जिसके प्रति आपकी ज़िम्मेदारी है या उन्हें दया दिखानी है?
परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर।
भजन संहिता 51 में, राजा दाऊद ने जब अपनी ताक़त को एक अन्य मनुष्य के विरुद्ध में गलत इस्तेमाल किया था, तब वह इस गीत को लिखता है। यह उसके पश्चाताप और अपने पाप को स्वीकार करने कि एक सुंदर प्रार्थना थी। इसे एक स्वयं कि प्रार्थना में पढ़ना अच्छा है!
"हे परमेश्वर, अपनी विशाल प्रेमपूर्ण
अपनी करूण से
मुझ पर दया कर।
मेरे सभी पापों को तू मिटा दे।
हे परमेश्वर, मेरे अपराध मुझसे दूर कर।
मेरे पाप धो डाल, और फिर से तू मुझको स्वच्छ बना दे।
मैं जानता हूँ, जो पाप मैंने किया है।
मैं अपने पापों को सदा अपने सामने देखता हूँ।
है परमेश्वर, मैंने वही काम किये जिनको तूने बुरा कहा।
तू वही है, जिसके विरूद्ध मैंने पाप किये।
मैं स्वीकार करता हूँ इन बातों को,
ताकि लोग जान जाये कि मैं पापी हूँ और तू न्यायपूर्ण है,
तथा तेरे निर्णय निष्पक्ष होते हैं।
मैं पाप से जन्मा,
मेरी माता ने मुझको पाप से गर्भ में धारण किया।
हे परमेश्वर, तू चाहता है, हम विश्वासी बनें। और मैं निर्भय हो जाऊँ।
इसलिए तू मुझको सच्चे विवेक से रहस्यों की शिक्षा दे।
तू मुझे विधि विधान के साथ, जूफा के पौधे का प्रयोग कर के पवित्र कर।
तब तक मुझे तू धो, जब तक मैं हिम से अधिक उज्जवल न हो जाऊँ।
परमेश्वर, तू मेरा मन पवित्र कर दे।
मेरी आत्मा को फिर सुदृढ कर दे.....
अपनी पवित्र आत्मा को मुझसे मत दूर हटा,
और मुझसे मत छीन।
वह उल्लास जो तुझसे आता है, मुझमें भर जायें।
मेरा चित अडिग और तत्पर कर सुरक्षित होने को
और तेरा आदेश मानने को.....
हे परमेश्वर, मेरी टूटी आत्मा ही तेरे लिए मेरी बलि हैं।
हे परमेश्वर, तू एक कुचले और टूटे हृदय से कभी मुख नहीं मोड़ेगा।