पाठ 33 : स्वर्गदूतों का दो तरीके से मनोरंजन

एक दिन, दिन के सबसे गर्म पहर में इब्राहीम अपने तम्बू के दरवाज़े पर बैठा था। यह दिन का सबसे गर्म समय था। इब्राहीम और सारा मम्रे में रहते थे जहां उन्होंने रहने के लिए चुना था। वे उन अनैतिकता और बदनामी के शहरों से दूर थे जिन्हें लूत ने चुना था। इब्राहीम ने आँख उठा कर देखा और अपने सामने तीन पुरुषों को खड़े पाया। इब्राहीम एक ऐसे क्षेत्र में रहता था जहां आगंतुकों का ज़्यादा आना जाना नहीं था। यदि वे आते थे तो बहुत लम्बे सफ़र से आते थे। उन किसेवा करना एक महान सम्मान और अतिथि सत्कार माना जाता था। 

इब्राहीम कूद कर उन लोगों के पास गया जो उस भयानक गर्मी में सफ़र कर के आ रहे थे। इब्राहीम ने उनके आगे झुक कर उनसे कहा, “महोदयों, आप अपने इस सेवक के साथ ही थोड़ी देर ठहरें। मैं आप लोगों के पैर धोने के लिए पानी लाता हूँ। आप पेड़ों के नीचे आराम करें। मैं आप लोगों के लिए कुछ भोजन लाता हूँ और आप लोग जितना चाहें खाएं। इसके बाद आप लोग अपनी यात्रा आरम्भ कर सकते हैं।”   

वे लोग सहमत हुए। इब्राहीम जल्दी से गया और सारा से कुछ रोटी बनाने को कहा। फिर वह सबसे अच्छे बछड़े को लाया और अपने नौकर को उसे तैयार करने को कहा। फिर वह जाकर दही और बकरी का दूध लाया। ये इब्राहीम के दिनों में सबसे उत्तम व्यंजन माने जाते थे, और इब्राहीम इन लोगों को उच्च सम्मान दिखा रहा था। इब्राहीम अपने महान मेहमानों के प्रति कितना ध्यान दे रहा था। तम्बू में रहने वाले एक खानाबदोश परिवार के लिए यह एक भव्य भोजन था! जब तक तीनों पुरुष खाते रहे तब तक इब्राहीम पेड़ के नीचे उनके पास खड़ा रहा। उसकी पत्नी के लिए उन पुरुषों ने पूछा। 

 

इब्राहीम ने कहा "'वह तम्बू में है।'" 

 

आगे बाइबिल जो कहती है वह बहुत दिलचस्प है। इब्राहिम से जो ये इन तीन लोग मिलने आये थे वे साधारण मनुष्य नहीं थे। उनमें से दो स्वर्गदूत थे। उनमें से एक प्रभु था। वाह! वे कुछ बहुत महत्वपूर्ण अतिथि थे। प्रभु ने इब्राहिम से कहा, '“मैं बसन्त में फिर आऊँगा उस समय तुम्हारी पत्नी सारा एक पुत्र को जन्म देगी।”

 

 

सारा तम्बू में सुन रही थी और उसने इन बातों को सुना।

जब उसने सुनाकिप्रभु ने क्या कहा तो वह अंदर ही अंदर हंसी। क्या इस व्यक्ति को पता नहीं था की वह कितनी बूढ़ी है? क्या उसे दिख नहीं रहा था कि अब्राहम अब एक युवक नहीं था? बच्चे होने के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी! उसने अपने आप से कहा, “मैं और मेरे पति दोनों ही बूढे हैं। मैं बच्चा जनने के लिए काफी बूढ़ी हूँ।” ओह, एक औरत का कैसा कोमल हृदय है यह। परमेश्वर के लिए उसका विश्वास भले ही काम था, लेकिन अपनी बाहों में एक औलाद की इच्छुक थी। 

 

परमेश्वर जानता था किसारा के मन में क्या चल रहा था। तब उन्होंने इब्राहीम से कहा, “सारा हंसी और बोली, ‘मैं इतनी बूढ़ी हूँ कि बच्चा जन नहीं सकती। क्या यहोवा के लिए कुछ भी असम्भव है? नही, मैं फिर बसन्त में अपने बताए समय पर आऊँगा और तुम्हारी पत्नी सारा पुत्र जनेगी।” 

 

उफ़! जब सारा ने यह सुना तो वह डर गयी। उसने झूठ बोला और नहीं हसने का बहाना किया। लेकिन प्रभु ने उसके साथ बहस की! वह उसके मन को पढ़ सकते थे! उन्होंने कहा, “नहीं, मैं मानता हूँ कि तुम्हारा कहना सही नहीं है। तुम ज़रूर हँसी।”" परमेश्वर ने उसे फटकार के उसे वापस बहाल किया।उन्होंने उसे दिखा दिया की वे उसके विचारों को पढ़ सकते थे। वह उसके संदेह को समझ गए। और निश्चित रूप से जो परमेश्वर उसके मन को पढ़ सकते थे वह उसे एक औलाद भी दे सकते थे।  

 

परमेश्वर कि कहानी पर ध्यान करना।  

परमेश्वर ने अपने पवित्र राष्ट्र के माता पिता होने के लिए इब्राहीम और सारा को चुना! उन्होंने तुरंत उन्हें यह नहीं दिया, और उनकी प्रतीक्षा का एक उद्देश्य था। वे परमेश्वर और उसके समय पर पूरी तरह से निर्भर करना सीख रहे थे! यह आपके खुद के जीवन में कुछ याद दिलाता है? क्या परमेश्वर आपको किसी चीज़ के लिए प्रतीक्षा करा रहा है?

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।  

इब्राहीम और सारा जब एक बेटे के लिए परमेश्वर का इंतजार कर रहे थे, वे वादे के देश में रह कर उस पर भरोसा रख कर उसका इंतज़ार कर रहे थे। क्षेत्र के सभी लोग उन्हें देखते थे, और जानते थे की वे उन मूर्तियों और क्षेत्र के झूठे देवताओं की पूजा करने से इनकार करते हैं। क्या कभी किसी बात के लिए आपको परमेश्वर पर निर्भर करना कठिन हो जाता है? उस पर निर्भर करने के बजाय क्या आप मूर्तियों या अन्य बातों पर निर्भर करना चाहेंगे? आप बता सकते हैं की वे क्या हैं?

 

आपके बाहरी विश्वास कि गवाही शुद्ध और सच्ची होगी जब आप अपने हृदय को परमेश्वर के आगे निर्भरता और विश्वास के साथ लाएंगे चाहे आप प्रतीक्षा करने के समय में हों!

 

जीवित परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर।  

प्रभु यीशु चाहता है की हम उस पर विश्वास करें और उसके कामों पर पूरी तरह से विश्वास और भरोसा करें। 

क्या परमेश्वर ने आपको कोई कार्य करने के लिए एक आशा या दर्शन दिया है? क्या उन्होंने आपको अपने परिवार या अपनी कलीसिया या खोये हुओं की सेवा करने के लिए भावना दी है? यदि दी है, तो उन्हें इस विश्वास से उसे लौटाइए की वह आपके आगे चल कर आपके लिए रास्ता तैयार करेगा। यदि उन्होंने आपको अपनी योजना नहीं दिखाई है तो मांगिये! आप इस तरह प्रार्थना कर सकते हैं,"हे प्रभु, मुझे आपकी इच्छा दिखाइए!"

 

उसके वचन को इसी समय पढ़कर भी आप उसके प्रेम की प्रतिक्रिया कर सकते हैं। इफिसियों की कुछ आयतें हैं जिससे आपको सहायता मिल सकती है:

 

"और क्योंकि हम यीशु मसीह में हैं इसलिए परमेश्वर ने हमें मसीह के साथ ही फिर से जी उठाया और उसके साथ ही स्वर्ग के सिंहासन पर बैठाया। ताकि वह आने वाले हर युग में अपने अनुग्रह के अनुपम धन को दिखाये जिसे उसने मसीह यीशु में अपनी दया के रूप में हम पर दर्शाया है।

परमेश्वर के अनुग्रह द्वारा अपने विश्वास के कारण तुम्हारा उद्धार हुआ है। यह तुम्हें तुम्हारी ओर से प्राप्त नहीं हुआ है, बल्कि यह तो परमेश्वर का वरदान है। यह हमारे किये कर्मों का परिणाम नहीं है कि हम इसका गर्व कर सकें। क्योंकि परमेश्वर हमारा सृजनहार है। उसने मसीह यीशु में हमारी सृष्टि इसलिए की है कि हम नेक काम करें जिन्हें परमेश्वर ने पहले से ही इसलिए तैयार किया हुआ है कि हम उन्हीं को करते हुए अपना जीवन बितायें।"

आप शायद इसे दोबारा पढ़ना चाहें!