पाठ 53 यरूशलेम की महासभा

यरूशलेम महासभा की महान बैठक में प्रेरितों और प्राचीनों ने दोनों ओर के तर्क पर विचार किया। क्या मसीह के शिष्यों को खतना कराना आवश्यक था या नहीं? यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विचार था। वे यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि यीशु के साथ युगानुयुग तक रहने के लिए क्या करना है! अगुए चर्चा करते रहे। अंत में, पतरस खड़ा हुआ और बोलने लगा। उसने उन्हें स्मरण दिलाया कि जब पवित्र आत्मा रोमी कुरनेलियस नामक यहूदी के घर में उतरी थी, तब क्या हुआ था। वह एक यहूदी था जिसका खतना नहीं हुआ था। पतरस ने कहा, "अन्तर्यामी परमेश्वर ने हमारे ही समान उन्हें भी पवित्र आत्मा का वरदान देकर, उनके सम्बन्ध में अपना समर्थन दर्शाया था। विश्वास के द्वारा उनके हृदयों को पवित्र करके हमारे और उनके बीच उसने कोई भेद भाव नहीं किया। सो अव शिष्यों की गर्दन पर एक ऐसा जुआ लाद कर जिसे न हम उठा सकते हैं और न हमारे पूर्वज, तुम परमेश्वर को झमेले में क्यों डालते हो? किन्तु हमारा तो यह विश्वास है कि प्रभु यीशु के अनुग्रह से जैसे हमारा उद्धार हुआ है, वैसे ही हमें भरोसा है कि उनका भी उद्धार होगा। "

पतरस के बोलने के बाद, पौलुस और बरनवास ने अपनी सेवकाई यात्रा के विषय में बताया। उन्होंने उन चमत्कारों के विषय में बताया जिन्हें परमेश्वर ने अन्यजातियों को यीशु में लाने के लिए किये थे। अंत में, यीशु का भाई याकूब, खड़ा हुआ। वह यरूशलेम में कलीसिया का मुखिया था। वह साबित करने लगा कि किस प्रकार पुराने नियम से ही परमेश्वर चाहता था कि अन्यजाती परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करें।

याकूब ने फैसला किया कि यह उन गैर-यहूदी लोगों के लिए बहुत कठिन होगा जो मसीह में विश्वास को व्यक्त कर रहे थे । खतना और नियम की सारी आज्ञाएँ अतिरिक्त बोझ थे! इसके बजाय, अगुए उन्हें कुछ सरल दिशानिर्देश देंगे जो उन्हें परमेश्वर का सम्मान करने में मदद करेंगे। कलीसिया में भाइयों और बहनों को अनैतिक नहीं होना था, वे अन्य देवताओं को, जो कुछ चढ़ाया गया हो उसे नहीं खा सकते थे, या उन पशुओं के मांस या लहू को नहीं पी सकते थे जिनका गला ऐंठकर मारा गया हो। प्राचीनों और प्रेरितों और कलीसिया के सभी सदस्यों ने सहमति व्यक्त की कि यह सही निर्णय था । ये दिशानिर्देश सहायक थे, परन्तु मुक्ति केवल मसीह में विश्वास से ही थी।

यरूशलेम के महासभा के अपने निर्णय लेने के बाद, सभी कलीसियाओं के लिए यह जानना महत्वपूर्ण था कि आत्मा उन्हें क्या समझाना चाहती थी। उन्होंने पौलुस और बरनबास को एक पत्र देने के लिए यरूशलेम से कुछ लोगों को चुनकर अन्ताकिया भेजा। वे अन्य लोग यहूदा और सीलास थे, जो यरूशलेम में कलीसिया के दो अगुए थे। पत्र में समझाया गया कि पवित्र आत्मा ने उन्हें यह निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया था। यह केवल पुरुषों ने ही नहीं सोचा था, परमेश्वर ने स्वयं उन्हें जाने का सही तरीका बताने में मदद की थी।

समय बीतता गया और पौलुस और बरनवास अन्ताकिया में सेवा करते रहे। कुछ समय बाद, पौलुस ने अपनी पहली प्रचार यात्रा पर शुरू की गयीं कलीसियाओं के • पास जाने के विषय में बरनावस को बताया। पौलुस उनसे प्रेम करता था और उन्हें अपने परिवार के सदस्य के रूप में मानता था। उसके लिए वे उसके आध्यात्मिक बच्चों की तरह थे। उसने उनके लिए प्रार्थना करके अपने प्रेम को दर्शाया था। पौलुस ने इसका वर्णन इस प्रकार किया:

'मैं जब जब तुम्हें याद करता हूँ, तब तब परमेश्वर को धन्यवाद देता हूँ। अपनी हर प्रार्थना में मैं सदा प्रसन्नता के साथ तुम्हारे लिये प्रार्थना करता है। क्योंकि पहले ही दिन से आज तक तुम सुसमाचार के प्रचार में मेरे सहयोगी रहे हो। मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि वह परमेश्वर जिसने तुम्हारे बीच ऐसा उत्तम कार्य प्रारम्भ किया है, वही उसे उसी दिन तक बनाए रखेगा, जब मसीह यीशु फिर आकर उसे पूरा करेगा। तुम सब के विषय में मेरे लिये ऐसा सोचना ठीक ही है। क्योंकि तुम सब मेरे मन में बसे हुए हो। और न केवल तब, जब मैं जेल में हूँ, बल्कि तब भी जब मैं सुसमाचार के सत्य की रक्षा करते हुए, उसकी प्रतिष्ठा में लगा था, तुम सब इस विशेषाधिकार में मेरे साथ अनुग्रह में सहभागी रहे हो। परमेश्वर मेरा साक्षी है कि मसीह वीशु द्वारा प्रकट प्रेम से मैं तुम सब के लिये व्याकुल रहता है।

मैं यही प्रार्थना करता रहता हूँ: तुम्हारा प्रेम गहन दृष्टि और ज्ञान के साथ निरन्तर बढ़े। ये गुण पाकर भले बुरे में अन्तर करके, सदा भले को अपना लोगे। और इस तरह तुम पवित्र अकलुष बन जाओगे उस दिन को जब मसीह आयेगा। यीशु मसीह की करुणा को पा कर तुम अति उत्तम काम करोगे जो प्रभु को महिमा देते हैं और उसकी स्तुति बनते। फिलिप्पियों 1: 3-11 "

यह कितना महान प्रेम है। पौलुस ने इसके विषय में फिलिप्पी में कलीसिया को लिखा । हम जल्द ही पौलुस के उन दिनों के विषय में पढ़ेंगे जब उसने सुसमाचार का प्रचार किया था। ये वचन उन लोगों के लिए पौलुस के हृदय का वर्णन करते हैं. जिन्होंने यीशु मसीह पर विश्वास किया था। जब वह अन्ताकिया में था, तब जिन कलीसियाओं में वह अपनी पहली प्रचार यात्रा करके गया था, उन्हें प्रोत्साहित करने और दृढ़ करने के लिए वह इच्छुक था।

जब पौलुस और बरनबास यात्रा के विषय में चर्चा कर रहे थे, बरनवास ने कहा कि वह अपने चचेरे भाई युहन्ना, जो मरकुस कहलाता है, के साथ आना चाहता है। मरकुस वह था जो उनके साथ पहली प्रचार यात्रा में शुरुआत से था । वह बहुत जल्द पलट गया और यरूशलेम वापस चला गया। उसने उनका साथ छोड़ दिया था। वह अविश्वसनीय साबित हुआ! बरनवास मरकुस को एक और मौका देना चाहता था। युहन्ना जो मरकुस कहलाता है उनका चचेरा भाई था। मरकुस को लेकर उनकी असहमति इतनी गंभीर थी कि उन्होंने निर्णय लिया कि उन्हें अपनी अगली यात्रा पर एक साथ नहीं जाना चाहिए।