पाठ 54 द्वितीय प्रचार-यात्रा और आत्मा की अगवाई
बरनवास मरकुस को लेकर साइप्रस के द्वीप पर चला गया। क्या आपको याद है जब पौलुस और बरनबास अपनी पहली यात्रा पर गए थे? यही वह स्थान है। जहां परमेश्वर ने पौलुस और बरनवास का उपयोग सिरगियुस पौलुस को उद्धार देने के लिए किया था। यह वही स्थान है जहां परमेश्वर ने बार- यीशु को अंधा कर दिया था क्योंकि वह पौलुस के संदेश के विरुद्ध बहस कर रहा था!
जिस समय बरनवास और मरकुस एक दिशा में जा रहे थे, पौलुस ने सीरिया और किलिकिया में जाने के लिए सीलास नामक एक धर्मी व्यक्ति के साथ जाने का फैसला किया। वे वहां की कलीसियाओं में अपने भाइयों और बहनों को प्रोत्साहित करना चाहते थे। वे जानते थे कि विश्वासी एक-दूसरे को बल प्रदान करने, एक-दूसरे को सत्य सिखाने और एक साथ आराधना करने के लिए हैं। वे जानते थे कि विश्वासी आपस में प्रेम करने और परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए होते हैं। ऐसा करने में सक्षम होने के लिए सैकड़ों मील की यात्रा करना उनके लिए योग्य था! यह महत्वपूर्ण था। पौलुस और सीलास ने उपवास रखा और फिर अपनी कलीसिया के परिवार के साथ प्रार्थना की। तब उनकी कलीसिया के परिवार के सदस्यों ने दो लोगों पर अपना हाथ रखा और उनके लिए प्रार्थना करके उन्हें उनके मार्ग पर भेज दिया।
पौलुस और सीलास दिरवे की कलीसिया में गए और फिर लुना गए। क्या आपको याद है जब पौलुस पहली बार वहां गया था? वे उन विश्वासियों के पास फिर से गए जिन्होंने उसके प्रचार के द्वारा यीशु के विषय में सीखा था। विश्वासियों में से तीमुथियुस नामक एक युवक था। लुखा और इकुनियुम के विश्वासियों ने तीमुथियुस के विषय में बहुत बड़ाई की थी। क्या आपको याद है कि लूका ने स्तिफनुम और बरनबास के विषय में लिखा था कि वे अच्छे पुरुष थे? वह यहाँ फिर से वही लिखता है। वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि हम जानें कि तीमुथियुस ने अपनी कलीसिया में परमेश्वर की सेवा कितनी निष्ठापूर्वक की थी। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य के लिए उसकी तैयारी का हिस्सा था। अब परमेश्वर पौलुस का उपयोग तीमुथियुस को बुलाने के लिए कर रहा था ताकि वह उन लोगों को सुसमाचार सुनाये जो यीशु को बिल्कुल नहीं जानते थे!
पौलुस चाहता था कि तीमुथियुस सुसमाचार सुनाने के लिए उसके साथ यात्रा में जुड़ जाए। तीमुथियुस की मां एक यहूदी महिला थी जो यीशु के पीछे चलती थी। उनका पिता यूनानी था। इसका मतलब था कि तीमुथियुस का खतना नहीं हुआ था । पौलुस यरूशलेम इसलिए गया था ताकि वह कलीसिया को यह बता सके कि खतना आवश्यक नहीं है। तीमुथियुस को ठीक रहना चाहिए था, है ना?
खैर, पौलुस यह भी जानता था कि बहुत से यहूदी इस बात से परेशान होंगे कि तीमुथियुस का खतना नहीं हुआ था। इसलिए यद्यपि यह आवश्यक नहीं था, फिर भी पौलुस ने आगे बढ़कर तीमुथियुस का खतना किया। तीमुथियुस को अपने उद्धार के लिए इसकी आवश्यकता नहीं थी। परन्तु पौलुस जानता था कि अपनी इच्छा पर चलने के बजाय स्थानीय यहूदी विश्वासियों के साथ शांति के साथ रहना और काम करना अधिक महत्वपूर्ण था। बाद में, पौलुस अपनी एक पत्री में लिखता है (रोमियों 14), कि कभी-कभी एक विश्वासी होने के नाते, हम मसीह में अपने भाइयों की मान्यताओं का सम्मान करना चाहते हैं, भले ही हम उनके साथ सहमत न हों। प्रेम दिखाने का एक तरीका उन नियमों का पालन करना है जो अन्य विश्वासियों के लिए महत्वपूर्ण हैं, भले ही हमें लगता है कि वे नियम मूढ़ या अनावश्यक हैं। सबसे महत्वपूर्ण नियम प्रेम है।
पौलुस और सीलास और तीमुथियुस जब उन स्थानों से वापस यात्रा करते हुए आ रहे थे जहां पौलुस ने पहली बार सुसमाचार सुनाया था, उन्होंने सब को यरूशलेम महासभा के निर्णय के विषय में बताया। यद्यपि मसीह की कलीसिया अब पूरे रोम में फैल गई थी, फिर भी इसे विश्वासियों का एक बड़ा देह माना जाता था। वे सब मसीह के लिए अपने आपसी प्रेम से एक साथ बंधे हुए थे, और वे एक ही परिवार के सदस्य थे, जो एक ही आत्मा में बंधा हुआ था। विश्वास के द्वारा मुक्ति की कृपा सभी के लिए थी। कोई भी कलीसिया यह तय नहीं कर सकती थी कि मुक्ति कुछ करने से ही पाई जा सकती है जबकि अन्य लोग यह कहते थे कि यह केवल यीशु पर विश्वास के द्वारा था! केवल एक ही सच्चा परमेश्वर था, और उसने अपने द्वारा एक रास्ता प्रदान किया था। उनकी यात्रा के दौरान, उन्होंने कलीसियाओं को सिखाया कि यरूशलेम के अगुओं को आत्मा अगवाई करती थी कि उन्हें क्या तय करना है। सभी विश्वासियों को हर समय एकता में विश्वास करना था।
जहां भी शिष्य जाते थे, वहां की कलीसिया बढ़ती जाती थी। उन्होंने फ्रूगिया और गलातिया में जाकर सुसमाचार सुनाया। जब वे यात्रा कर रहे थे, उन्होंने ध्यानपूर्वक पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन को सुना। जब उन्होंने एशिया प्रांत जाने का निर्णय लिए, तो उन्हें अवरुद्ध महसूस हुआ । पवित्र आत्मा ने उन्हें वहां जाने से रोका। आत्मा ने उन्हें बितुनिया के क्षेत्र में भी जाने से रोका। परमेश्वर जानता था कि पौलुस और उसके साथियों को कहाँ भेजना है। । परमेश्वर यह भी जानता था कि उसके अपने विशेष सेवकों को कहाँ नहीं जाना चाहिए, और
उन्होंने उसकी सुनी। वे अपने परमेश्वर के पवित्र आत्मा के प्रति संवेदनशील थे। जब वे भूमध्य सागर से त्रोआस पहुंचे, तो पौलुस को एक दर्शन मिला। एक व्यक्ति सामने खड़े होकर उससे विनती करने लगा। "मकिदुनिया में आ और हमारी सहायता कर ।" पौलुस जानता था कि इस दर्शन के द्वारा परमेश्वर उसे बताना चाहता है कि उसे कहां जाना चाहिए। पौलुस और उसके मित्र तुरंत उठकर मकिदुनिया की ओर चले गए।
पौलुस की इस यात्रा में, प्रेरितों का लेखक लूका भी उनके साथ चला गया। वह पौलुस और सीलास के साथ एक सहकर्मी और यात्रा करने वाला साथी बन गया । हम यह जानते हैं क्योंकि, "पौलुस और सीलास गए" जैसी बातें कहने के बजाय, कहानी में ऐसा लिखा है कि, "हम गए"। प्रेरितों का लेखक वहां था! अगली कुछ कहानियां उन बातों का आंखों देखा हाल बताती हैं, क्योंकि लूका वहां उपस्थित था!