पाठ 49 पौलुस का जुनून

जब पौलुस और बरनबास इकुनियुम पहुंचे, तो सबसे पहले वे कहाँ गए थे? वे हमेशा कि तरह, सीधे यहूदी आराधनालय में गए। संदेश को सुनने वाले सबसे पहले अब्राहम के बच्चे होंगे। चाहे यहूदी अगुओं ने उनके साथ पिछले शहर में बुरा व्यवहार किया हो, फिर भी वे यहूदी लोगों को अपने मसीहा के विषय में सुनने का मौका देना चाहते थे

पौलुस और बरनबास ने यीशु के विषय में पूरे मन के साथ सुनाया और कई यहूदी और गैर- यहूदी विश्वास लाये। परमेश्वर की आत्मा उनमें जीवित थी! इतने लोगों को विश्वास लाते देखना कितना उत्तेजक होगा! एक बार फिर, जो यहूदी विश्वास नहीं करते थे वे पौलुस और बरनबास के विरुद्ध लड़ रहे थे। यहूदी इतने क्रोधित थे कि वे अन्यजातियों के पास गए, जो उनके शत्रु थे, और उन्हें अपने साथी यहूदियों के विरुद्ध कर दिया क्योंकि उन्होंने मसीह पर विश्वास किया था।

उनके वहां होने के बावजूद पौलुस और बरनबास खड़े हुए और परमेश्वर के सत्य के विषय में सिखाने लगे। उन्होंने निडरता के साथ प्रचार किया। पवित्र आत्मा ने साबित किया कि परमेश्वर की शक्ति उनकी ओर थी जिसके द्वारा उन्होंने महान चमत्कार और चिन्ह हर किसी के सामने दिखाए। वे परमेश्वर के दूत थे, और परमेश्वर ने उनके द्वारा अपनी शक्ति प्रदर्शित करके उनकी आज्ञाकारिता का सम्मान किया। इसके द्वारा नए विश्वासी उस पर विश्वास करने लगे जो उन्होंने सीखा था। शहर में हर कोई शिक्षण और चमत्कार के बारे में बात कर रहा था। पूरा शहर विश्वासी और अविश्वासी के बीच बट गया था।

क्या आप पौलुस और बरनवास होने की कल्पना कर सकते हैं? वे एक शहर में प्रवेश करेंगे, और जल्द ही पूरा समाज सुसमाचार के शक्तिशाली संदेश के द्वारा उलट पुलट हो जाएगा। यीशु ने चेतावनी दी थी कि क्रूस और पुनरुत्थान का संदेश केवल शहरों को ही नहीं परन्तु निकटता में रहने वाले परिवारों को भी विभाजित करेगा। पौलुस और बरनबास मसीह के वचनों को सच होते देख रहे थे। पौलुस और बरनवास के विरुद्ध रहने वाले अन्यजातियों और यहूदियों ने उनके विरुद्ध उन्हें पीड़ित करने और पथराव के द्वारा उन्हें मार डालने की योजना बनाई। पौलुस और बरनवास उनकी भयानक योजनाओं के विषय में जान गए। उन्हें जल्दी से बचकर भागना होगा! वे इकुनियुम से बीस मील दूर, लुखा और दिरबे पहुंचे। वे लुकाउनिया के क्षेत्र में दो शहर थे। परमेश्वर के वचन को वे उन सभी को सुनाते गए

पौलुस और बरनबास क्यों यात्रा करते रहे? वे क्यूँ सैकड़ों मील की यात्रा पैदल करना चाहते थे? कभी-कभी उन्हें सड़क के किनारे भूमि पर सारी रात सोना पड़ता था। उनके पास बहुत कम पैसा था जो इस पर निर्भर करता था कि पौलुस तंबू बनाकर कितना कमा पाता है। उन्हें अपने भोजन का भुगतान करने के लिए लगातार लंबे समय तक काम करना पड़ता था, और फिर उन लोगों को सुसमाचार सुनाते और सिखाते थे जिनसे वे पहले कभी नहीं मिले थे।

उनकी कड़ी मेहनत और बलिदान के बावजूद, अक्सर लोग द्वेष और घृणा के साथ उनके विरुद्ध हो जाते थे। वे हार क्यों नहीं मान लेते हैं? दमिश्क के मार्ग पर यीशु के साथ भेंट से पहले पौलुस बहुत प्रभावशाली व्यक्ति था। वह एक फरीसी था, जिसका मतलब है कि वह एक बेहद सम्मानित शिक्षक था। वह कानून का पालन पूरी तौर से करता था। वह नियम का अंत तक पालन करने में अति उत्साही और आवेशपूर्ण रहता था। वह दूसरों के ऊपर बहुत गर्व के साथ अपना सिर ऊँचा रखता था और समझता था कि वह दूसरों से अधिक धार्मिक है।

यीशु के कारण वह खतरे और शत्रुता का सामना करते हुए एक शहर से दूसरे शहर कई दिन बिताता रहा। वह ऐसा करने में कैसे सक्षम रहा? पौलुस ने इसे एक पत्री में समझाया जिसे उसने कई वर्षों बाद फिलिप्पी नामक एक शहर में विश्वासियों को लिखी थी। उसने कहा, किन्तु तब जो मेरा लाभ था, आज उसी को मसीह के लिये मैं अपनी हानि समझाता हूँ। इससे भी बड़ी बात यह है कि मैं अपने प्रभु मसीह यीशु के ज्ञान की श्रेष्ठता के कारण आज तक सब कुछ को हीन समझाता हूँ। उसी के लिए मैंने सब कुछ का त्याग कर

दिया है और मैं सब कुछ को घृणा की वस्तु समझने लगा हूँ ताकि मसीह को पा सकूँ। "

जब पौलुस ने यह लिखा, तो उसने वास्तव में सब कुछ खो दिया था। वह बन्दीगृह में था। जैसे-जैसे हम उसकी कहानी को पढ़ेंगे, हम देखेंगे कि पौलुस को किस प्रकार पीटा गया, पथराव हुआ, बन्दीगृह में फेका गया, शहरों से बाहर निकाला गया, तिरस्कार किया गया, मजाक उड़ाया गया और सताया गया परन्तु वह बलवन्त और साहसी था। पौलुस यीशु को जानता था। वह यीशु से मिला था, और प्रेम और अनुग्रह के द्वारा उसका जीवन आशा या लक्ष्य से अभिभूत रहा। उसने ऐसा इसलिए नहीं किया क्योंकि उसे करना था, परन्तु इसलिए क्योंकि आत्मा के द्वारा उसने अपने जीवन को पूरी तौर से अपने उद्धारकर्ता को समर्पित कर दिया था। वही आत्मा हमारे जीवन में भी कार्य करना चाहती है ताकि हम मसीह के प्रेम को उसी सुंदर रीती से जान सकें।

जैसे-जैसे हम प्रेरितों की कहानी को पढेंगे, हम देखेंगे कि पौलुस और किस-किस प्रकार पीड़ा उठाता है। हम देखेंगे कि पौलुस किस प्रकार यीशु के लिए चलता रहा। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि वह क्या था जो उसे प्रोत्साहित कर रहा था। वह यीशु के प्रेम से प्रेरित था जो वास्तविकता थी, जिसे उसने महसूस किया, और हम भी कर सकते हैं!