पाठ 51 कलीसियाओं की स्थापना और प्राचीनों का चुनाव
पौलुस और बरनवास दिरवे शहर पहुंचे और परमेश्वर के अनुग्रह का सुसमाचार सुनाना आरंभ कर दिया। बहुत से लोगों ने अपना जीवन प्रभु यीशु को दिया और वहां उसके शिष्य बन गए। आत्मा अपना कार्य कर रही थी। दरअसल, भले ही आस-पास के शहरों में कई समस्याएं थीं, फिर भी इकुनियुम, सिस्ट्रा और चिसिडिया के अन्ताकिया में यीशु के कई नए शिष्य थे। फिर भी अभी उन्हें परमेश्वर के विषय में बहुत अधिक ज्ञान नहीं था। पौलुस और बरनवास उनको मिलने के लिए वापस जाना चाहते थे ताकि वे उन्हें लगातार बढ़ने और अपने विश्वास में दृढ
रहने के लिए प्रोत्साहित कर सकें। क्या यह एक बहादुरी का काम नहीं था? प्रत्येक शहर के लोग उन्हें मारना चाहते थे। लेकिन यह जोखिम उठाने के लायक था। अपने प्राणों की परवाह करने के बजाय उन्हें परमेश्वर की सेवा करने और पवित्र आत्मा का पालन करने में अधिक रुचि थी।
प्रत्येक शहर में उन्होंने नए विश्वासियों से कहा, " हमें बड़ी यातनाएं झेल कर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना है," उनके उत्साहशील उदाहरण के द्वारा, उन्होंने नए शिष्यों को सिखाया कि यीशु मसीह को जानना, उसके नाम के निमित कठिन परिस्थितियों से गुज़रना योग्य है। यीशु के लिए उनकी विश्वासयोग्यता और प्रेम, चाहे दुःख क्यूँ न सहना पड़े, उनके जीवित उद्धारकर्ता के प्रति महान महिमा और को शक्तिशाली रूप से दिखाता था!
प्रत्येक शहर में, उन्होंने नई कलीसियाओं के लिए पुरुषों को प्राचीनों या पर्यवेक्षकों के रूप में चुना गया। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण काम था। कई वर्षों बाद पौलुस ने बताया कि परमेश्वर के लोगों के लिए अच्छा पर्यवेक्षक चुनने के लिए किस प्रकार निर्णय लिया जाना चाहिए:
"यह एक विश्वास करने योग्य कथन है कि यदि कोई अध्यक्ष बनना चाहता है तो वह एक अच्छे काम की इच्छा रखता है। अब देखो उसे एक ऐसा जीवन जीना चाहिए जिसकी लोग न्यायसंगत आलोचना न कर पायें। उसके एक ही पत्नी होनी चाहिए। उसे शालीन होना चाहिए, आत्मसंयमी, सुशील तथा अतिथिसत्कार करने वाला एवं शिक्षा देने में निपूण होना चाहिए। वह पियक्कड़ नहीं होना चाहिए, न ही उसे झगड़ालू होना चाहिए। उसे तो सज्जन तथा शांतिप्रिय होना चाहिए। उसे पैसे का प्रेमी नहीं होना चाहिए। अपने परिवार का वह अच्छा प्रबन्धक हो तथा उसके बच्चे उसके नियन्त्रण में रहते हों। उसका पूरा सम्मान करते रहो। यदि कोई अपने परिवार का ही प्रबन्ध करना नहीं जानता तो वह परमेश्वर की कलीसिया का प्रबन्ध कैसे कर पायेगा? वह एक नया शिष्य नहीं होना चाहिए ताकि वह अहंकार से फूल न जाये। और उसे शैतान का जैसा ही दण्ड पाना पड़े। इसके अतिरिक्त बाहर के लोगों में भी उसका अच्छा नाम हो ताकि वह किसी आलोचना में फँस कर शैतान के फंदे में न पड़ जाये।" 1 तीमुथियुस 3: 1-7
क्या आपने देखा कि पौलुस ने अध्यक्ष के लिए लिखा कि उसे एक नया विश्वासी नहीं होना चाहिए? पत्री में ये बातें पौलुस इफिसुस में तीमुथियुस को लिख रहा था। कलीसिया वहां कई वर्षों से थी, और वहां कई पुरुष थे जिनमें से तीमुथियुस चुनाव कर सकता था। जिन कलीसियाओं में पौलुस और बरनबास जा रहे थे, ऐसे कोई भी पुरुष नहीं थे जो लंबे समय से विश्वासी रहे इसलिए पौलुस और बरनबास को आत्मा के द्वारा यह समझना था कि सबसे अच्छे पुरुष कौन थे। वे उन्हें चुनेंगे जो कलीसिया की अगवाई कर सकें, और उनके लिए प्रार्थना और उपवास कर सकें। उन्हें इन नई कलीसियाओं को इस विश्वास के साथ सौंपना पड़ा कि परमेश्वर उनके नेतृत्व में अगवाई करेगा। जैसे-जैसे लोग यीशु के पास आ रहे थे, वे परमेश्वर के परिवार का हिस्सा बनते जा रहे थे यह परिवार मिलकर परमेश्वर की आराधना करेगा। वे एक-दूसरे की सुद्धि लेंगे और एक दूसरे को विश्वास में बढ़ने में मदद करेंगे। यह बहुत महत्वपूर्ण था । कई नए विश्वासी जो उन शहरों में रह रहे थे वे अन्य देवताओं की पूजा करते थे। ये वही देवता थे जिनकी उपासना वे शायद यीशु को जानने से पहले से करते थे। उन्हें छोड़ना शायद उनके लिए भयानक बात थी। उनके अपने परिवार और पड़ोसी उनके विश्वासी बन जाने से उतना ही घृणा करते होंगे जितना वे पौलुस और बरनबास से करते थे । उनमें से कुछ को यीशु के पीछे चलने के कारण अपने घरों से या उनकी नौकरियों से निकाल दिया गया था। कलीसिया वास्तव में उन्हें सहायता और सुरक्षा प्रदान कर रही थी। उन्हें ऐसे दृढ़ अगुओं की आवश्यकता थी जो प्रत्येक कलीसिया को मार्गदर्शन करने के लिए पवित्र आत्मा से भरे हुए थे।
पिसिदिया से एक सौ बीस मील की यात्रा करके प्रेरित वहां विश्वासियों को आशीर्वाद देने के लिए गए। वे पंफुलिया से होते हुए अस्सी मील की और यात्रा करके अन्ताकिया पहुंचे। जब वे पिरमा पहुंचे, तो उन्होंने फिर से मसीह का सुसमाचार सुनाया। पूरे क्षेत्र में घूमने और लंबी पैदल यात्रा के कई सप्ताह बाद वे अंततः अत्तलिया के बंदरगाह शहर पहुंचे। अन्तलिया से, वे एक जहाज़ से वापस अन्ताकिया में आए, वह शहर जहां पौलुस और बरनवास ने पहली बार सेवकाई शुरू की थी ।
उनकी पहली मिशनरी यात्रा का काम पूरा हो गया था। उन्होंने वह सब किया जो पवित्र आत्मा ने उन्हें करने के लिए बुलाया था। जब वे पहुंचे, तब उन्होंने सभी विश्वासियों को एक साथ बुलाया ताकि वे उन सब कामों के बारे में वर्णन कर सकें जो परमेश्वर ने उन शहरों में किया था जहाँ वे गए थे । उन्होंने बताया कि किस प्रकार यहूदियों के साथ गैर-यहूदी परमेश्वर के पास आए क्योंकि आत्मा ने उनके हृदय में कार्य किया था। दो प्रेरित एक वर्ष से भी अधिक समय तक अन्ताकिया में शिष्यों के साथ रहे।