पाठ 52 : याकूब का निकास
याकूब अपनी पत्नियों और बच्चों को लेकर वहां से बच के भाग गया था। दस दिन के भीतर ही लाबान और उसके साथियों ने उनका पीछा कर के उनको पकड़ लिया। परमेश्वर ने लाबान को स्वप्न में चेतावनी दी थी कि वह याकूब को नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। लाबान जब याकूब के डेरे पर पहुंचा, उसने अपने दामाद से पूछताछ की।
"'तुमने मुझे धोखा क्यों दिया? तुम मेरी पुत्रियों को ऐसे क्यों ले जा रहे हो मानो वे युद्ध में पकड़ी गई स्त्रियाँ हों?" लाबान ज़बरदस्त आधे सच में बोल रहा था। उसकी बेटियां बंदी नहीं थीं। वे खुशी के साथ याकूब कि योजना में शामिल हुईं थीं। वह उनका पति था!
तब लाबान ने एक और आधा सच बताया। "'यदि तुमने कहा होता तो मैं तुम्हें दावत देता। उसमें बाजे के साथ नाचना और गाना होता। तुमने मुझे अपने नातियों को चूमने तक नहीं दिया और न ही पुत्रियों को विदा कहने दिया। तुमने यह करके बड़ी भारी मूर्खता की।'" आपको लगता है कि लाबान याकूब को खुशी और संगीत के साथ भेजता? कई साल याकूब के परिवार को धोखा दिया था, क्या वह वास्तव में अपने पोतों को अलविदा चुंबन देना चाहता था?
लाबान ने कहा,"' तुम्हें सचमुच चोट पहुँचाने कि शक्ति मुझमें है, किन्तु पिछली रात तुम्हारे पिता का परमेश्वर मेरे स्वप्न में आया।'" लाबान ने याकूब को बताया की किस प्रकार परमेश्वर ने याकूब को नुकसान नहीं पहुँचाने की आज्ञा दी है। लेकिन उसको सम्मान दिखाने के बजाय, वह उसे शर्मिंदा कर रहा था। वह यह स्पष्ट कर रहा था की, यदि वह चाहता तो याकूब को अपना गुलाम बना सकता था, लेकिन परमेश्वर ने स्वयं उसे अनुमति नहीं दी थी। कितना कायर था उसका चाचा। वह निश्चित रूप से एक उदार पिता और दादा कि तरह अभिनय नहीं कर रहा था। वह एक दयालु और सुरक्षात्मक चाचा बिलकुल नहीं था!
लाबान जानता था कि वह याकूब को नुकसान नहीं पहुंचा सकता था, लेकिन उसने अपने घर से गायब की गईं मूर्तियों को वापस देने कि मांग की थी। याकूब को मालूम नहीं था राहेल ने चोरी की थी, सो उसने बड़े आत्मविश्वास से लाबान से कहा,"' ... यदि तुम यहाँ मेरे पास किसी व्यक्ति को, जो तुम्हारे देवताओं को चुरा लाया है, पाओ तो वह मार दिया जाएगा। तुम्हारे लोग ही मेरे गवाह होंगे। तुम अपनी किसी भी चीज को यहाँ ढूँढ सकते हो। जो कुछ भी तुम्हारा हो, ले लो।”
वाह! अब पूरे परिवार का भविष्य खतरे में था। यदि मूर्तियां मिल जाती हैं, तो याकूब एक झूठा और एक चोर कहलाएगा। तब तक, वह एक ईमानदार व्यक्ति था, और यह उसके षडयंत्रकारी चाचा के खिलाफ उसे सत्ता और संरक्षण देता था। पर यदि ऐसा दिख पड़े कि उसने लाबान कि मूर्तियों को चुराया है, तो उसका चाचा सही होगा। वह याकूब को अपना ग़ुलाम बना लेगा, और राहेल को मृत्यु मिलेगी। राहेल की मूर्खता ने पूरे परिवार को भयानक खतरे में डाल दिया था।
इसलिए लाबान याकूब के तम्बू में और तब लिआ के तम्बू में भी ढूंढने गया। जब वह राहेल के तम्बू में गया, उसने उसे लेटा पाया मानो वह बीमार हो। राहेल ने ऊँट की जीन में देवताओं को छिपा रका था और वह उन्हीं पर बैठी थी। जब लाबान उसके पूरे तम्बू को खोज चुका, तब राहेल ने कहा, "'मुझ पर क्रोध न हो। मैं आपके सामने खड़ी होने में असमर्थ हूँ।'" उसने अपने मासिक अवधि पर दोष डाल दिया। लाबान ने कोई तर्क नहीं किया, इसलिए लाबान ने पूरे तम्बू में ढूँढा, लेकिन वह उसके घर से देवताओं को नहीं पा सका।
लाबान जब खाली हाथ याकूब के पास लौटा तो याकूब बहुत क्रोधित हुआ। वह अपनी भड़ास निकालने लगा। उसे लगा की उस पर चोरी का ग़लत आरोप लगाया गया था। एक अपराधी की तरह बिना किसी कारण के उसका पीछा किया गया। जितना अधिक वह बोलता गया उतना अधिक वह क्रोधित होता गया। दो दशकों का क्रोध अंत में जोर से बाहर निकल कर आ रहा था:
"'मैंने तुम्हारे लिए बीस वर्ष तक काम किया है। इस पूरे समय में बच्चा देते समय कोई मेमना तुम्हारी रेवड़ में से नहीं खाया है। यदि कभी जंगली जानवरों ने कोई भेड़ मारी तो मैंने तुरन्त उसकी कीमत स्वयं दे दी। मैंने कभी मरे जानवर को तुम्हारे पास ले जाकर यह नहीं कहा कि इसमें मेरा दोष नहीं। किन्तु रात—दिन मुझे लूटा गया। दिन में सूरज मेरी ताकत छीनता था और रात को सर्दी मेरी आँखों से नींद चुरा लेती थी। मैंने बीस वर्ष तक तुम्हारे लिए एक दास की तरह काम किया। पहले के चौदह वर्ष मैंने तुम्हारी दो पुत्रियों को पाने के लिए काम किया। बाद में छः वर्ष मैंने तुम्हारे जानवरों को पाने के लिए काम किया और इस बीच तुमने मेरा वेतन दस बार बदला। लेकिन मेरे पूर्वजों के परमेश्वर इब्राहीम का परमेश्वर और इसहाक का भय मेरे साथ था। यदि परमेश्वर मेरे साथ नहीं होता तो तुम मुझे खाली हाथ भेज देते। किन्तु परमेश्वर ने मेरी परेशानियों को देखा। परमेश्वर ने मेरे किए काम को देखा और पिछली रात परमेश्वर ने प्रमाणित कर दिया कि मैं ठीक हूँ।'”
उत्पत्ति 31: 38-42
याकूब एक लालची, धोखा देने वाले और भ्रष्टाचार के एक मनुष्य के विषय में बीस साल से सीख रहा था। ये रिबका के परिवार के तरीके थे। जब याकूब बड़ा हो रहा था, उसकी मां के हेरफेर और धोखे से हमेशा उसके पक्ष में काम करती रही। रिबका ने अपने चतुर तरीकों से अपने पसंदीदा बेटे की मदद की, और उसने अच्छी तरह से अपने सबक को सीखा था।
लेकिन अब याकूब को उन खेलों और धोखे के तहत सामना करना पड़ा था, और वह जान गया था की जो इसके साथ जीते हैं उन्हें इसकी एक भयानक कीमत चुकानी पड़ती है। लाबान के नेतृत्व में जीवन परमेश्वर के भविष्य राष्ट्र के नेता के लिए एक दर्दनाक स्कूल बन गया था। रिबका के तरीके परमेश्वर के तरीके नहीं थे, और वे विश्वास के तरीके नहीं थे। याकूब को आश्चर्यजनक स्पष्टता का एक पल दिया गया था ... वह कौन सा रास्ता चुनेगा? क्या वह परिवार के पैटर्न पर चलता रहेगा जिससे उन्होंने एक परिवार में विश्वास को नष्ट कर दिया था? या फिर वह अपने पिता के परमेश्वर पर विश्वास करेगा?
जब लाबान ने उसके भ्रष्ट नेतृत्व के खिलाफ याकूब कि निंदा को सुना, तो अपने विनाश कर्मों के प्रति अफ़सोस करने के बजाय उसने अपना हृदय कठोर कर लिया था। उसके लिए याकूब कि इतने सालों की वफ़ादार सेवा कोई मायने नहीं रखती थी। उसने कोई कृतज्ञता नहीं दिखाई और बदलने की इच्छा भी नहीं दिखाई। यह जानते हुए कि इब्राहीम का परमेश्वर उसके स्वप्न में आया और उसे धन और सुरक्षा प्रदान की, फिर वह परमेश्वर की ओर कठोर था।
लाबान ने याकूब से कहा, “ये लड़कियाँ मेरी पुत्रियाँ हैं। उनके बच्चे मेरे हैं। ये जानवर मेरे हैं। जो कुछ भी तुम यहाँ देखते हो, मेरा है। लेकिन मैं अपनी पुत्रियों और उनके बच्चों को रखने के लिए कुछ नहीं कर सकता। इसलिए मैं तुमसे एक सन्धि करना चाहता हूँ। हम लोग पत्थरों का एक ढेर लगाएँगे जो यह बताएगा कि हम लोग सन्धि कर चुके हैं।” लाबान जानता था की वह अपने पक्ष में उस स्थिति में हेरफेर नहीं कर सकता, इसीलिए उसने शांति के लिए समझौता कर लिया। लेकिन ओह, क्या आपका खून नहीं उबलता है? कितना भयानक आदमी था!
याकूब ने पत्थरों के ढेर का निर्माण किया। यह शांति के आपस के समझौते का प्रमाण होगा। याकूब को वादा करना होगा की वह लाबान की बेटियों के साथ अच्छा व्यवहार करेगा। लाबान को वादा करना होगा की वह स्तंभ के दूसरे पक्ष पर जमीन में पार और याकूब के जीवन पर आक्रमण नहीं करेगा।याकूब भी लाबान के पक्ष को पार नहीं कर सकता था। दोनों ने एक दूसरे के चतुर तरीकों से सुरक्षित महसूस करने के लिए, एक सीमा को स्थापित किया।
अंत में, संकट और तनाव के इतने वर्षों के बाद, परिवार की रक्षा के लिए ज्ञान को स्थापित किया गया। लाबान ने इब्राहीम के परमेश्वर और अपने पिता नाहोर के नाम पर शपथ ली। याकूब ने अपने पिता इसहाक के डर से उनके नाम में शपथ ली। परमेश्वर के प्रति इसहाक का भय उसका गहरा सम्मान और परमेश्वर के खौफ का संकेत था, और याकूब इससे कुछ सीख रहा था। भोजन के बाद, पूरे कबीले ने वहाँ रात बिताई। अगली सुबह, लाबान ने अपनी बेटियों और अपने पोतों को चूमा और अपने रास्ते पर चला गया।
अपने भयानक लालच में, लाबान ने बहुत साल याकूब को धोखा दिया था। लेकिन परमेश्वर न्याय करने वाला है, और वह याकूब पर अपनी नज़र रखे हुए था। लाबान और उसके पुत्र याकूब के छावनी को छोड़ कर जा रहे थे, परिवार का धन याकूब के साथ ही रहा। लाबान ने अपनी बेटियों और पोतों को खो दिया था।
परमेश्वर कि कहानी पर ध्यान करना।
अब समय आ गया था की, परमेश्वर द्वारा दिए गए वाचा अनुसार, याकूब उस वादे के देश को लौटे। वह परमेश्वर के पवित्र राष्ट्र का पिता होने के लिए परमेश्वर का चुना हुआ वारिस था। दुनिया में, परमेश्वर के कामों के इतिहास में यह एक बड़ी, महत्वपूर्ण घटना थी। उसमें एक शक्तिशाली आध्यात्मिक अर्थ था क्यूंकि, याकूब पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य की स्थापना का एक हिस्सा था।
यीशु के अनुयायियों के रूप में, हमें पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य में स्थापित करने के लिए उस काम में शामिल होना है! जीवते परमेश्वर की आत्मा अब तुम्हारे हमारे भीतर है! जिस समय वह अपने साम्राज्य का विस्तार करेगा, हमें परमेश्वर पर निर्भर होना है! हम याकूब की तरह उसी कार्य के एक हिस्सा हैं!
मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।
लाबान एक प्रवंचना और धोखे का मनुष्य था। उसने अपनी बेटियों के प्रति कोई चिंता नहीं व्यक्त कि, इसीलिए वे उसे छोड़ने के लिए खुश थीं। वाह! क्या यह इसके लायक था? क्या वह अंत में जीता? यदि उसने याकूब के साथ अच्छा व्यवहार किया होता तो क्या हुआ होता?
लाबान और याकूब दोनों शातिर थे, लेकिन वे बुद्धिमान नहीं थे। अंत में, उनका अपना खेल उनके लिए दर्द और नुकसान का एक बहुत कारण बन गया। उनकी लालची मूर्खता उनके जीवन जीने के लिए एक मूर्खता थी।
परमेश्वर चाहता है कि उसके लोग बुद्धिमानी से जीयें। नीतिवचन में, परमेश्वर ने सिखाया की किस प्रकार जीना चाहिए ताकि हम सही दिशा में, और सही समय पर सही काम कर सकें। जब हम खराब, स्वार्थी, और मूर्ख निर्णय लेने का लालच करेंगे, तब यह बुद्धि सही और ईमानदार निर्णय लेने में मदद करेगी।
जीवित परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर।
नीतिवचन कियह कुछ आयतें हैं जिनके द्वारा परमेश्वर चाहते हैं कि हम बुद्धि के विषय में सोचें:
नीतिवचन 2: 1-8
"हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे बोध वचनों को ग्रहण करे और मेरे आदेश मन में संचित करे, और तू बुद्धि की बातों पर कान लगाये, मन अपना समझदारी में लगाते हुए और यदि तू अर्न्तदृष्टि के हेतु पुकारे, और तू समझबूझ के निमित्त चिल्लाये, यदि तू इसे ऐसे ढूँढे जैसे कोई मूल्यवान चाँदी को ढूँढता है, और तू इसे ऐसे ढूँढ, जैसे कोई छिपे हुए कोष को ढूँढता है तब तू यहोवा के भय को समझेगा और परमेश्वर का ज्ञान पायेगा। क्योंकि यहोवा ही बुद्धि देता है और उसके मुख से ही ज्ञान और समझदारी की बातें फूटती है। उसके भंडार में खरी बुद्धि उनके लिये रहती जो खरे हैं, और उनके लिये जिनका चाल चलन विवेकपूर्ण रहता है। वह जैसे एक ढाल है। न्याय के मार्ग की रखवाली करता है और अपने भक्तों की वह राह संवारता है।"
क्या आप इन आयतों को प्रार्थना में परिवर्तित करना चाहेंगे? इस प्रकार शुरू कीजिये, प्रभु, मैं आपके वचन को ग्रहण करता हूँ। मैं आपकी आज्ञाओं को अपने भीतर समां देना चाहता हूँ....." और फिर उन सभी बुद्धिमानी कि बातों को देखिये जो ये आयतें बताती हैं। परमेश्वर ऐसी प्रार्थना का उत्तर देना चाहता है!