पाठ 48 : याकूब का भागना
एसाव एक कठोर आदमी था। उसने अपने भाई को उसे धोखे से अपने जन्मसिद्ध अधिकार को देने में मूर्खता दिखाई, और अब याकूब ने अपने पिता के आशीर्वाद को भी ले लिया था। उसकी उत्तेजित क्रोध में, वह साजिश और योजनाएं बनाने लगा। इसहाक की मृत्यु के बाद, वह अपने बदला ले लेगा। वह याकूब की हत्या करके उसके जन्मसिद्ध अधिकार को वापस ले लेगा। एसाव के दिल में शैतान का काम हो रहा था। इसहाक का पुत्र होने, वह कान और लेमेक का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी होने का दिखावा कर रहा था।
एसाव कि शातिर योजना के बारे में रिबका को पता चला।अब उसे डर था की उसका जेठा पुत्र उसके छोटे पुत्र को मार देगा। जिस तरह आदम और हव्वा के पाप उनके ऊपर आये, वैसे ही उसकी छलयोजना का परिणाम अब उसके ऊपर आ रहा था। वह याकूब के पास गयी और उसे वहां से जाने को कहा। उसने उसे उसके भाई लाबान के घर जाने को कहा जहां वह सुरक्षित रह सकेगा। जब तक एसाव का क्रोध शांत नहीं हो जाता तब तक याकूब अपने चाचा के साथ रह सकता था।फिर रिबका याकूब को घर वापस बुला लेगी।
एक बार फिर, रिबका अपने को धोखा देने के लिए उसके पास गयी। याकूब को भेजने के लिए उसने सही कारण बता कर उसे ढांपने कि कोशिश की। उसने कहा की वह चाहती थी कि याकूब उसके भाई के यहां जाकर अपने लिए पत्नी की खोज करे। उसने एसाव की कनानी पत्नियों के बारे में शिकायत की, कि उन्होंने उनके जीवन को कठिन बना दिया था। जिस जगह रिबका बड़ी हुई थी वहां लाबान को विरासत में मिला था, और इब्राहीम के दास ने इसहाक के लिए उसे पाया था। शायद परमेश्वर याकूब के लिए भी ऐसा ही करें।
इसहाक ने याकूब को बुलवा कर उसे आशीर्वाद दिया। फिर वह उसे एक आदेश दिया;
"'तुम कनानी स्त्री से विवाह नहीं कर सकते। इसलिए इस जगह को छोड़ो और पद्दनराम को जाओ। अपने नाना बतूएल के घराने में जाओ.… उसकी किसी एक पुत्री से विवाह करो। मैं प्रार्थना करता हूँ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर तुम्हें आशीर्वाद दे और तुम्हें बहुत से पुत्र दे। मैं प्रार्थना करता हूँ कि तुम एक महान राष्ट्र के पिता बनो। मैं प्रार्थना करता हूँ कि जिस तरह परमेश्वर ने इब्राहीम को वरदान दिया था उसी तरह वह तुमको भी आशीर्वाद दे। मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर तुम्हें इब्राहीम का आशीर्वाद दे, यानी वह तुम्हें और तुम्हारी आने वाली पीढ़ी को, यह जगह जहाँ तुम आज परदेशी की तरह रहते हो, हमेशा के लिए तुम्हारी सम्पत्ति बना दे।”
इन आशीर्वाद के शब्दों में बाध्यकारी शक्ति थी। इस समय से, चाहे वह एक लंबी यात्रा पर जा रहा था, याकूब अब्राहम का असली वारिस था। यह आधिकारिक स्थिति के साथ एक सार्वजनिक, कानूनी अभिलेख की तरह था। अब यह और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया था की याकूब परिवार के भीतर शादी करे। इन महान और होनहार आशीर्वाद के साथ, याकूब अपने चाचा के घर के लिए कई मील कि यात्रा के लिए रवाना हो गया।
जब एसाव को मालूम हुआ की याकूब से उसके आशीर्वाद में इसहाक से क्या कहा था, उसे महसूस हुआ की उसकी बुतपरस्त पत्नियों ने उसके पिता को कैसे दुखी किया। इस बार वह इब्राहीम के बेटे इश्माएल की पुत्रियों में से एक को अपनी पत्नी बनाकर इस समस्या को हल करना चाहता था।शायद परिवार से एक स्त्री से शादी करके, वह अपने पिता को खुश कर सकता था। एसाव के साथ कितनी त्रासदी है! उसने परमेश्वर के दिखाए रास्तों को छोड़ गलत तरीकों से सब करने किकोशिश की।
याकूब अपने घर से भाग कर उस चाचा के घर को गया जिन्हें वह कभी नहीं मिला था। सूरज के डूबने तक वह अकेले और निर्वासित होकर, जंगल में चला गया। केवल चाँद और सितारों की रौशनी के आलावा कितना अँधेरा हो गया था। याकूब को रात में सोने के लिए एक जगह बनाने की आवश्यकता थी। उसने एक पत्थर को अपना तकिए बनाया। एक राजसी वारिस के लिए इस तरह विश्राम करना कितना कठोर था।
जब वह सो रहा था, उसे एक सपना आया। यह एक ऐसा दृश्य था जो सच और असली और उसे बहुत निकट था। एक सीढ़ी पृथ्वी से स्वर्ग तक पहुँची है। याकूब ने स्वर्गदूतों को उस सीढ़ी पर चढ़ते उतरते देखा और यहोवा को सीढ़ी के पास खड़ा देखा। स्वर्गदूत ऊपर और नीचे करते हुए परमेश्वर की सेवा कर रहे थे। वे उसके सुसमाचार को दे रहे थे और पृथ्वी पर परमेश्वर के संतों कि रक्षा कर रहे थे!
सीढ़ियों से ऊपर सबसे बड़ा एक दृश्य था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर जो सारी सृष्टि का निर्माता है, वहां था। वो अँधेरी पथरीली रात, जीवते परमेश्वर की उज्ज्वल, पवित्र उपस्थिति से भर गयी थी! वह अपने दास याकूब से बात करने के लिए आया था। यह काफ़ी नहीं था की याकूब इसहाक के माध्यम से इब्राहीम की वाचा का उत्तराधिकार प्राप्त करे। परमेश्वर एक औपचारिक, अनन्त प्रतिबद्धता के साथ याकूब के वादे को सील करने के लिए आया था। उन्होंने कहा;
"'मैं तुम्हारे पितामह इब्राहीम का परमेश्वर यहोवा हूँ। मैं इसहाक का परमेश्वर हूँ। मैं तुम्हें वह भूमि दूँगा जिस पर तुम अब सो रहे हो। मैं यह भूमि तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को दूँगा। तुम्हारे वंशज उतने होंगे जितने पृथ्वी पर मिट्टी के कण हैं। वे पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण में फैलेंगे। पृथ्वी के सभी परिवार तुम्हारे वंशजों के कारण वरदान पाएँगे। मैं तुम्हारे साथ हूँ और मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा जहाँ भी जाओगे और मैं इस भूमि पर तुम्हें लौटा ले आऊँगा। मैं तुमको तब तक नहीं छोड़ूँगा जब तक मैं वह नहीं कर लूँगा जो मैंने करने का वचन दिया है।'”
वाह! परमेश्वर ने अपने पूर्वजों को जो महान और शक्तिशाली वादे दिए थे, वे अब याकूब को खुद बताये जा रहे थे। उसके अपने माता पिता के द्वारा जो बताया गया था उसके कारण उसे अब कुछ पता नहीं था। अब वह परमेश्वर की ओर से जान गया था। अब वाचा और उसका कीमती उद्धार एक विशेष और व्यक्तिगत रूप में उसी का था। ब्रह्मांड के परमेश्वर ने अकेले जंगल में सो रहे इस धूर्तता मनुष्य को मानवता के लिए खुद को और अपनी योजना के लिए बांध दिया था। वह इस बेईमान बेटे की रक्षा करेंगे, और वह फिर से उसे वापस घर ले आएंगे।
इस अद्भुत दृष्टि को निश्चित रूप से याकूब ने कमाया नहीं था. यह उसके ऐसे हताश समय में आया जब वह इसके योग्य भी नहीं था। वह परमेश्वर को हेरफेर या धोखा नहीं दे सकता था जिस तरह उसने अपने पिता और भाई के साथ किया था। यह रात के अंधेरे के उस शानदार दर्शन में याकूब के ऊपर परमेश्वर ने खोलकर अपने अनुग्रह और दया को बरसाया। अब याकूब के पास एक विकल्प था। यहाँ एक नया तरीका था। वह या तो धोखे के तरीके को जारी रख सकता है, या वह परमेश्वर पर अपना विश्वास रखे की वह प्रदान करेगा।
याकूब बीच रात में उस दृष्टि से उठा। उसे महसूस हुआकिवह एक पवित्र और शक्तिशाली जगह में सो रहा था। उसने कहा, "यह बहुत महान जगह है। यह तो परमेश्वर का घर है। यह तो स्वर्ग का द्वार है।” इसमें कोई गलत नहीं था की वह वहाँ रुक गया। परमेश्वर के हाथ के नेतृत्व किया था।
याकूब दूसरे दिन बहुत सबेरे उठा। याकूब ने उस शिला को उठाया और उसे किनारे से खड़ा कर दिया। तब उसने इस पर तेल चढ़ाया। इस तरह उसने इसे परमेश्वर का स्मरण स्तम्भ बनाया। तब याकूब ने एक वचन दिया। उसने कहा,
“यदि परमेश्वर मेरे साथ रहेगा और अगर परमेश्वर, जहाँ भी मैं जाता हूँ, वहाँ मेरी रक्षा करेगा, अगर परमेश्वर मुझे खाने को भोजन और पहनने को वस्त्र देगा। अगर मैं अपने पिता के पास शान्ति से लौटूँगा, यदि परमेश्वर ये सभी चीजें करेगा, तो यहोवा मेरा परमेश्वर होगा। इस जगह, जहाँ मैंने यह पत्थर खड़ा किया है, परमेश्वर का पवित्र स्थान होगा और परमेश्वर जो कुछ तू मुझे देगा उसका दशमांश मैं तुझे दूँगा।”
उत्पत्ति 28: 20-22
याकूब भय को आपने सुना जब वह परमेश्वर को पुकार रहा था? आपने देखा की उसका भविष्य उसके लिए कितना भयभीत था? वह एक शक्तिशाली राजकुमार का पोता था, और यहाँ उसे पहनने के लिए और खाने के लिए भोजन और कपड़े का डर था। परमेश्वर महान वादों के साथ आये थे। लेकिन आपने ध्यान दिया की याकूब ने परमेश्वर की स्तुति नहीं की? वास्तव में, वह परमेश्वर को वो गहरी श्रद्धा और सम्मान नहीं दिखा पाया जैसा की इब्राहिम ने दिखाया था। इसके बजाय की परमेश्वर को वह शुद्ध आज्ञाकारिता के साथ सम्मान करता, उसने परमेश्वर के साथ सौदेबाजी और शर्तें दीं। वह एक ठग की तरह काम कर रहा था जो हर किसी का फायदा उठाना चाहता था। क्या यह चालबाज़ कभी सीखेगा?
इसहाक का परिवार पूर्ण शांति में रह सकता था, यदि वे परमेश्वर कि योजना के आगे अपने आप को समर्पित करते। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, और अब उन्हें अपने विश्वासघाती चालों और खेल के कारण उस महान दर्द को सहना होगा। रिबका का पसंदीदा बेटा चला गया था। उसे नहीं पता था कि अब वह अगले बीस साल तक वापस नहीं आएगा।
इसहाक के परिवार के सभी पाप और हेरफेर के बावजूद, परमेश्वर कि इच्छा अभी भी जारी थी। अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए उसने उनके पाप और छल का भी इस्तेमाल किया। याकूब परमेश्वर के आशीर्वाद का पुत्र था। याकूब यहोवा के पवित्र राष्ट्र का पिता होगा। जो ख़ूबसूरत कहानी परमेश्वर ने रिबका और इसहाक को दिया था उस का आनंद याकूब नहीं उठा पाएगा। वह वह सम्मानजनक कहानी जिसमें इब्राहीम अपने उच्चतम सेवक को इसहाक के विवाह के लिए स्त्री को ढूँढने के लिए भेजता है, वैसा अब कहीं नहीं दिखाई पड़ता है। जो सोने और भव्य गहने और उपहार जो याकूब के सेवक ने रिबका न्यौछावर किये थे, याकूब उन्हें उस स्त्री को नहीं दे पाएगा जिसे परमेश्वर ने उसके लिए तैयार की थी।
याकूब एक भगोड़े के समान था, और जब वह अपने चाचा के घर पहुंचेगा वह जरूरतमंद और अकेला होगा। उसे अपने चाचा लाबान की दया पर निर्भर रहना होगा जो हर तरीके से अपनी बहन रिबका समान था। लेकिन परमेश्वर की दया से, उसकी यात्रा अब उद्देश्य के साथ थी। उसने स्वर्गीय स्थानों में परमेश्वर का दर्शन पाया था और वह जानता था की उसे नियुक्त किया गया है। उसका जीवन और सब कुछ उसकी बुलाहट के अनुसार था।
परमेश्वर किकहानी पर ध्यान करना।
याकूब जब अपने चाचा के घर कि ओर भाग रहा था क्या आप उसके अकेलेपन की कल्पना कर सकते हैं? वह एक महान राजकुमार के धनी पौत्र के रूप में बड़ा हुआ था, लेकिन अब वह अकेला, एक पत्थर को अपना तकिया बना कर सो रहा था। लेकिन क्या उसकी चालबाज़ तरीके उसके लिए काम आ रहे थे? लेकिन फिर, उसकी महान दया में, परमेश्वर ने अपनी पवित्र उपस्थिति उस पर चमकाई!
क्या आपने कभी इतना अकेले महसूस किया है? क्या आपने कभी परमेश्वर से कहा की वह आकर आपको तसल्ली दे?
मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।
अभिशाप के कारण, हमारे दिल मुड़ और टूट गए हैं। हम जीवन को सही और शुद्ध आज्ञाकारिता में प्रेम नहीं करते हैं जिसके लिए वह बनाया गया है। आपने देखा की किस तरह याकूब की कहानी में प्रत्येक मुड़ दिल ने पूरे परिवार में मुड़ विकृतियों को जोड़ा? क्या यदि उनमें से कोई एक विनम्रता के साथ कार्य करने का निर्णय लेले? यदि याकूब ने कहा होता, "नहीं माँ, मैं अपने जीवन से परमेश्वर पर भरोसा करूंगा, और अपने पिता को धोखा नहीं देना चाहता हूँ।" या एसाव ने कहा होता, "मैं जानता हूँ की मेरी माँ ने यह आज्ञा दी है की याकूब उसका आशीर्वाद का बेटा होगा। मैं परमेश्वर की इच्छा का सम्मान करूंगा।" कहानी बहुत अलग होती, है की नहीं? उनके दिलों में ऐसा क्या चल रहा था कि वे एक दूसरे के प्रति चाल चल रहे थे? विश्वासयोग्य होने से बढ़कर उनके लिए जीतना क्यों इतना अधिक महत्वपूर्ण था? क्यों हम परमेश्वर की योजना पर भरोसा करना भूल जाते हो?
जीवित परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर।
इस कहानी में, इसहाक के परिवार के प्रत्येक सदस्य मानता था कि परमेश्वर का सम्मान अपने तरीकों से करना उसके आशीर्वाद से अधिक महत्वपूर्ण था। यही कारण है कि हम सब को एक प्रलोभन है। परन्तु यदि हम मानें की हम प्रत्येक मसीह के अनुयायियों के रूप में बहुत कीमती हैं, तो हमें इस दुनिया के सम्मान को हासिल करने की आवश्यकता नहीं होगी। निम्नलिखित आयतें यीशु में आपके मूल्य को वर्णित करेंगी। जब आप हर एक को पढ़ेंगे, एक पल के लिए रुक करके अपने दिल को सिखाइएगा। अपने आप को बताइये, "यीशु ने कहा, यह मैं हूँ, और इसलिए यह मैं ही हूँ।"
"मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ" (यूहन्ना 1:12)
"मैं एक नई सृष्टि हूँ" (2 कुरिंथियों 5:17)
"मैं परमेश्वर के साथ एकजुट और एक आत्मा हूँ" (2 कुरिंथियों 6:17)
"मैं परमेश्वर का एक मंदिर एक निवास्थान हूँ। उनकी आत्मा और उनका जीवन मुझ में बसता है "(2 कुरिंथियों 12:27).
"मैं परमेश्वर का दास हूँ" (रोमियों 6:22)
"मैं धर्म का दास हूं" (रोमियों 6:18)
"मैं स्वर्ग का नागरिक हूँ, जो मसीह के साथ स्वर्ग में उसके साथ बैठा है" (इफिसियों 2:10)
"मैं परमेश्वर की कारीगरी-उसके हाथ काउसकी हस्तकला, मसीह में नया जीवन पाया हुआ की उसका काम करूं।" (इफिसियों 2:10)