कहानी १७६: मरियम की आवाज
हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते है कि मरियम मगदलीनी ने क्या सोचा और महसूस किया होगा जब वो यीशु के पीछे चलती थी और उनकी मृत्यु और जी उठने से गुजरी। बाइबल हमें कुछ करीबी चित्र देती है जो हमें कल्पना करने में मदद करती है कि उसने क्या कहा होगा। यूहन्ना प्रेरित हमें यीशु के जी उठने की कहानी का लम्बा संस्करण, मरियम के आँखों देखी से बताता है। यीशु ने बहुत महान, भव्य, और शानदार काम किए और कई महाकाव्य घटनाए हुई जब उन्होंने येरूशलेम को ऊपर नीचे कर दिया। लेकिन, मरियम की कहानी में हम देखते है कि कैसे मसीह के लिए अपने प्रिय जनों के प्रति कोमलता एक प्राथमिकता थी। हम यह भी देखते है कि उनका रिश्ता अपने चेलों के साथ शिक्षक और छात्र जैसा अवैयक्तिक नहीं था - बल्कि उससे बहुत बड़ के था। वह एक बिना दिल के कट्टरपंथी आदेश देने वाला देवता नहीं था। यीशु प्यार करते थे, और वे उसके प्यार को महसूस करते थे और उसकी लालसा करते थे। और वे बदले में उसे प्यार करते थे। तो, यहाँ पर उस प्रेम का चित्रण है जो उस व्यक्ति ने महसूस किया होगा जिसको यीशु ने पुनरुथान के बाद सबसे पहले प्रकट होने के लिए चुना।
जब मैंने गिरफ्तारी के बारे में सुना, मुझे समझ में नहीं आया कि मै क्या करू। यह एक कुल आश्चर्य की बात नहीं थी। वे सालों से प्रभु को गिरफ्तार करना चाहते थे, पर किसी तरह, यीशु हमेशा सहज प्रयास के साथ ऐसा होने नहीं देते थे। बल्कि इस बात से हम बहुत मनोरंजित रहते थे। लेकिन इस बार यह वास्तव में हुआ, और इसका विश्वास करना मुश्किल था। यूहन्ना, यीशु की माँ और मुझे लेने आया था। शहर भयंकर कोलाहल में था। यह सब द्वेष कहां से आया? उसने संभवत: ऐसा क्या किया था?वो इधर उधर की जगाहों में हमे चंगाई देता। उन्होंने मुझे चंगा किया। इस बात का कोई मतलब नहीं बनता है।
हम भीड़ में खड़े होकर यह सब देखते रहे। यह भयानक था। सैनिकों ने इन भयानक कीलों को लेकर उनकी कलाई में धड़ से घुसा दिया। बेचारी मरियम। वह उनके हर दर्द से पिस गई। रक्त भयानक था। ठठ्ठा करने वाली भीड़, भयंकर सैनिक, और वो लानत भरे धार्मिक नेता बस वहाँ खड़े रहे। लेकिन किसी तरह, यूहन्ना, मरियम और मैं उनके बहुत पास थे, इतने पास कि सब कुछ पृष्ठभूमि में फीका हो गया।
जबकि वो क्रूस पर लटके थ, तो भी उनकी आवाज कोमल और प्रभावशाली थी। यह उन लोगों को समझाना मुश्किल है जो उन्हें नहीं जानते थे। उनमे महिमापूर्ण गौरव था, जबकि वह नग्न लटके थे, और गंदगी, पसीने और खून से लथपथ थे। अँधेरा एक दया का रूप था, और भूकंप जिसने धरती हिला दी, वो मेरे क्रोध और क्षति की शारीरिक अभिव्यक्ति थी। मै दुनिया को ऐसी हिंसा से झिंझोड़ना चाहती थी, जिसको वो अनसुना नहीं कर सकती थी, और कहना चाहती थी "क्यों?". मैं चीखना चाहती थी "तुम ऐसा कैसे कर सकते हो?"
लेकिन उसने ऐसा किया, और वह चला गया। लेकिन मैं उसे वहां नहीं छोड़ पाई। मैं बस वहाँ खड़ी रही, मानो लकुआ मार गया हो - जब उन्होंने यीशु के शरीर को नीचे उतरा। वहां था मेरा प्रभु - शिथिल और टूटा हुआ। उसकी मां कितना रोई। आरिमथिया के यूसुफ उनका शरीर लेने आए, पर मै अब भी उस जगह को नहीं छोड़ पाई। मैं उनके साथ उनके पीछे चली गई, और मरियम भी मेरे साथ शामिल हुई। मुझे पता लगाना था कि वे उसे कहाँ ले जा रहे है। मुझे उनके साथ साथ जाना था। मैं छोड़ नहीं पा रही थी। वे उन्हें सफेद कपड़े पहनाने लगे और हम कब्र के सामने बैठ गए। वे बाहर आए और एक बड़े पत्थर के साथ उनकी कब्र को बंद कर दिया। मेरा दिल चिल्ला उठा "यह अंत नहीं हो सकता!" ऐसा कुछ अवश्य होगा जो हम कर सकते थे। यह बहुत छोटा था, बहुत जल्दी। जुलूस कहां थी? सारे यरूशलेम को इस मौत का विलाप करना चाहिए था। पूरी दुनिया को ठहर कर जीवन भर दुःख मानना चाहिए था। तो हम चले गए और वह एकलौता काम किया जो हम कर सकते थे। हम गए और उनके शरीर के लिए अधिक मसाले तैयार करने लगे। हम और कैसे अपने प्रभु का सम्मान कर सकते थे? हम और कैसे उसे फिर से देख सकते थे?
परमेश्वर मुझे माफ करें, लेकिन वो उच्च और पवित्र सबत अति पीड़ादायक था। यह मेरे और मेरे प्रिय के बीच एक बड़ी बाधा की तरह था। मुझे उनके पास जाना ही था। मुझे उनके पास जाना था - सिर्फ उसको छूने के लिए जिसने मुझे छुआ था।
यीशु अक्सर कहानियाँ बताते कि कैसे जो लोग सबसे अधिक प्यार करते थे, उन्हें सबसे ज्यादा माफी की जरूरत होती थी। मुझे लगता है कि यह मेरी हताशा बताती हैं। यीशु के पीछे चलने वाली महिलाओं में से बहुत सी सम्मानजनक तरीके में उसके पास आई। उनका विवाह सत्ता और धन के पुरुषों के साथ हुआ था, और उन्होंने इसका इस्तेमाल परमेश्वर को आशीषित करने और उनकी सेवकाई को आगे बड़ाने के लिए किया। उनके पास देने के लए बहुत कुछ था। मैं कल्पना भी नहीं कर सकती हूँ कि ऐसा कैसा होता होगा। मेरी दुनिया बहुत अलग थी। मेरा परिवार उस प्रकार का था जो अपने बच्चों के जीवन में शैतानी बंधन को आमंत्रित करता था। जब मैं यीशु से मिली, उस समय सात दुष्ट आत्माए मुझे परेशान कर रहीं थी। उसने मुझे अपमान और एक अलगाव के जीवन की ओर ढकेला ... मैं बहिष्कृत थी। मुझे अपने साथ किसी तरह का संबंध स्वीकार करना शर्मनाक लगता था। मुझे छुटकारे का कोई सपना नहीं था। अगर मुझे छुटकारा मिलता भी, मेरे पास प्यार या स्वीकृति के लिए कोई आशा नहीं थी। मग्देला जैसे एक गांव की स्मृति बहुत लंबी है। चाहे कितना परिवर्तन मेरे में आ जाए, मैं हमेशा अपने शर्म के लिए जानी जाउंगी। किसी कारण, मुझे निंदा के जीवन के लिए चुना गया था। परमेश्वर का हाथ मेरे विरुद्ध था।
लेकिन तब यीशु आए, और सब कुछ बदल गया। उन्होंने मेरे उत्पीड़कों को वापस भेजा। लेकिन उससे बड़कर, उन्होंने खुद को मेरे लिए दे दिया। उन्होंने मुझे प्यार किया। और उनके प्यार की वजह से, मैं देखभाल के एक पूरे समुदाय में ले ली गई। लोग जिन्होंने सारी ज़िन्दगी मुझे नहीं स्वीकारा, अब मुझे यीशु के प्यार की रोशनी में देख रहे थे। उनकी अपनी मां मुझसे प्यार करती थी। यह घर था।
मै सुबह तड़के, सलोमी की मां के साथ, कब्र के लिए निकल पड़ी। मुझे लगता है कि हम दोनों बहुत लालसा से वहां गए थे। मैं सिर्फ उनके साथ, उनके बाजू में कुछ अधिक क्षणों को बिताना चाहती थी। मै उनको एक सभ्य दफ़न से सम्मानित करना चाहती थी। हम इसी विचार में थे कि हम पत्थर को कैसे हटायेंगे। लेकिन जब हम वहां पहुँचे, हम सदमे में वहां खड़े हो गए। किसी ने हमसे पहले आकर भारी पत्थर को लुढ़का दिया था। रोमी सैनि,क जो वहां पहरेदारी कर रहे थे, चारों ओर चित्त पड़े हुए थे, मानो कोई गहरी नींद में हो। हम शरीर को देखने के लिए अंदर धीरे से गए। वह वहाँ नहीं थे। मेरा दिल सबसे नीचे, गहरी निराशा में लांघ गया।
अचानक, दो पुरुष शानदार, चमकदार सफेद में दिखाई पड़े। मरियम और मैं भूमि पर अपने चेहरे करके गिर गए। हमने पढ़ा था कि स्वर्गदूत से मिलना कैसा होता है, लेकिन अभी तक किसी ने मुझे इसके लिए तैयार नहीं किया। यह एक ही क्षण में प्रतिभाशाली, भयानक और आनाद्पूर्ण था।
'' "तुम मृतकों में जीवितों को क्यूँ ढूँढ रहे हो? "उन्होंने पुछा। मैं वास्तव में उनका मतलब पकड़ नहीं पाई, लेकिन वे बोलते गए, "'डरो मत, क्यूंकि मै जानता हूँ तुम किसे ढूँढ रहे हो। वह यहाँ नहीं है, वह जी उठा है! याद करो कि जब वो तुम्हारे साथ यहाँ गालील में था तो उसने तुम्हे क्या बताया था- यह आवश्यक है कि मनुष्य का पुत्र पापी पुरुषों के हाथों में डाल दिया जाए, क्रूस पर चढ़ाया जाए और तीसरे दिन फिर से उठाया जाए। "'
अचानक, मुझे यीशु के शब्द याद आए। मैं उन्हें कैसे भूल गई थी? क्या यह सब एक योजना थी?
स्वर्गदूतों ने फिर बोला: "''जल्दी जाओ, उनके चेलों को बताओ कि वो मुर्दों में से जी उठा है। वह गलील में तुम से पहले जा रहा है, वहाँ तुम उन्हें पाओगे, जैसे उन्होंने तुमसे कहा। '"
फिर स्वर्गदूत वहां से चले गये। मरियम और मैं कब्र से बाहर भागते हुए आए। जब हम बाहर आए, तो हम कांप रहे थे, और पूरी तरह से चकित खुशी और चौंकाने वाले भय से जकड़े हुए थे। फिर हम चेलों को यह अकल्पनीय अच्छी खबर बताने के लिए भाग निकले।
बेशक, जब हम वहाँ पहुंचे, तो चेलों ने सोचा कि हम बकवास कर रहे थे। हमने शायद अपने उत्साह में ऐसा थोड़ा किया भी हो। लेकिन जो हमने कहा, उसने पतरस और यूहन्ना के तहत एक चिंगारी जैसी जलाई। वे भागते हुए कब्र की ओर निकले। मैं उनके पीछे - पीछा चली गई। स्वर्गदूतों के शब्दों धीरे धीर वास्तविक लग रहे थे, लेकिन कब्र अभी भी अपने प्रभु के पास होने के लिए सबसे अच्छा तरीका लग रहा था।
मैं पिछले कुछ दिनों दु: ख में इतनी घिरी हुई थी, कि मै घटनाओं के इस उलट फेर को समझ नहीं पा रही थी। पतरस और यूहन्ना आए और गए, लेकिन मैं वहीँ ठहरी रही। मैं बस छोड़ ही नहीं पा रही थी। ऐसा लग रहा था कि स्वर्गदूतों ने जो कहा, उससे कोई फर्क नहीं था---- वह अभी तक गायब था और गलील दूर, बहुत दूर था।
मेरे दु: ख ने मुझे फिर से घेर लिया। मैं कब्र के अंदर एक बार और देख कर रोने लगी। वो दो स्वर्गदूत एक बार फिर वहाँ थे। "'नारी, तू क्यों रोती है?" उन्होंने कहा। मैं एक बेवकूफ की तरह लग रही होंगी, लेकिन यह सब अनंतकाल की दूसरी ओर समझने में बहुत आसान था। "'क्योंकि वे मेरे प्रभु को उठा ले गए है, और मैं नहीं जानती कि उन्होंने प्रभु को कहाँ रखा है।"
और फिर वह मेरे पास आए। मैं यह नहीं जानती कि उन्होंने मुझे उन्हें पहली बार देखने के लिए क्यूँ चुना। शायद इसलिए क्यूंकि मेरी जरूरत सबसे बड़ी थी। मजेदार बात यह है, कि मैंने उन्हें पहली बार में पहचाना नहीं। इस अजीब आदमी ने मुझसे पूछा, "'नारी, तू क्यों रोती है? तुम किसे खोज रही हो?" मुझे लगा यह माली था। स्वर्गदूतों को यह बहुत मनोरंजक लग रहा होगा। मैंने कहा: "'सरकार, अगर आपने उन्हें उठाया है, तो मुझे बताएँ की आपने उसे कहाँ रखा है ताकि मै उन्हें ले जाऊं।"
और फिर यीशु ने मुझसे कहा,' मरियम', और मैं जान गई। उन्होंने जैसे ही मेरा नाम लिया, सब कुछ बदल गया। मैंने उनकी ओर मुड़ा और कहा, "'गुरु!" मैं उनके चरणों में गिर गई और अपने हाथों से उनके पैरों को पकड़ लिया - ऐसा जैसे कि मै उन्हें कभी न छोडूं।
मुझे लगता है कि यीशु हँस रहे थे जब उन्होंने कहा, "मुझे पकड़ों मत, क्यूंकि मै अभी तक अपने पिता के पास नहीं पहुंचा हूँ। इसके बजाय, मेरे भाइयों के पास जाओ और उन्हें बताओ, "मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता, अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास लौट रहा हूँ।"
मैं उनसे हमेशा के लिए चिपटी रह सकती थी, लेकिन मुझे पता था कि मुझे वो करना था जो उन्होंने आदेश दिया। तो मै यह खबर के साथ चेलों के पास गई। आने वाले दिनों और हफ्तों में, हम सब को उन्हें देखने को मिला, और उन्होंने हमें बहुत कुछ सिखाया। उनके पास होना बहुत संतोषजनक रहा था, और जिस समय तक वह स्वर्ग में चढ़ गए, मुझे लगता है कि हम सब यह समझ गए थे कि हम वास्तव में उन्हें खो नहीं रहे थे - जबकि वो एक बहुत अलग तरह से उपस्थित होंगे। लेकिन यह मेरे दिल को नहीं बदलता है। इस दुनिया के प्रस्ताव, उस जीवन की अधिकता जो हम परमेश्वर की उपस्थिति की चमक में महसूस करेंगे, फीके और तुच्छ लगते है। मेरी आशा है कि एक दिन, मैं आपको वहां पाउंगी।