कहानी १५८: पिता और आत्मा
एक बार यीशु ने अपने चेलों के साथ प्रभु-भोज, वह उनके साथ आने वाले दिनों कि भेद कि बातों को बताने लगा। उसे उन्हें अपनी ही मृत्यु में तैयार करना था। जो वह अब कहने जा रहा था वह उसके चेलों लिए अलविदा था। जिनके साथ उसने पिछले तीन साल व्यतीत किये थे उन्हें बहुत था। फिर भी सच्चाई में, यह केवल एक शुरुआत थी। उसका जीवन उसके चेलों के साथ बहुत ही सामर्थ्य रूप से आने वाला था और वही उन्हें अनंतकाल के लिए लेकर जाएगा। वह उनके साथ अब शारीरिक रूप से नहीं रहेगा परन्तु उसकी आत्मा उनके भीतर में रहेगी। और एक दिन, जब उनकी सेवा इस पृथ्वी पर समाप्त हो जाएगी, वे उसके साथ अनंकाल में रहेंगे। परन्तु वह इन चेलों को अपने मृत्यु के एक रात पहले कैसे बताता? वे उस महिमा को जो दूसरी ओर है उसे कैसे समझ पाते?
यीशु ने कहा:
“'तुम्हारे हृदय दुःखी नहीं होने चाहिये। परमेश्वर में विश्वास रखो और मुझमें भी विश्वास बनाये रखो। मेरे परम पिता के घर में बहुत से कमरे हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो मैं तुमसे कह देता। मैं तुम्हारे लिए स्थान बनाने जा रहा हूँ। और यदि मैं वहाँ जाऊँ और तुम्हारे लिए स्थान तैयार करूँ तो मैं फिर यहाँ आऊँगा और अपने साथ तुम्हें भी वहाँ ले चलूँगा ताकि तुम भी वहीं रहो जहाँ मैं हूँ। और जहाँ मैं जा रहा हूँ तुम वहाँ का रास्ता जानते हो।'”
यीशु स्वर्ग के विषय में बोल रहे थे। वह जानता था कि वह मरने वाला है, परन्तु इससे भी बड़ी बात यह थी कि वह फिर से जीवित होने वाला था। वह स्वर्ग वापस अपने पिता के दाहिने हाथ जाकर बैठने जा रहा था। वे इस बात से पूर्ण रूप से निश्चित हो सकते थे कि भले ही आने वाले दिन त्रासदी से भरे हों, परन्तु वास्तव में, एक महान विजय होने जा रही थी। यीशु पूर्ण रूप से योग्य था, बिल्कुल सक्षम, और पूर्ण रूप से निश्चित था।
सबसे अद्भुद बात यह थी कि यीशु उस जा रहा था जिससे कि कि पूरी सृष्टि बदल जाएगी, उसने उन बारह चेलों कि ओर देखा और कहा," यह लिए कर रहा हूँ। तुम मेरे लिए बहुत मायने रखते हो। तुम उस बचाव विशेष कार्य के मूल्य भाग हो क्यूंकि तुम मेरे लिए मूलयवान हो। जब और पाप के लिए सोच रहा हूँ, मुझे तुम्हारा ध्यान है। और फिर हम साथ होंगे।" यह शब्द उस महान प्रेम के थे जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की होगी।
परन्तु चेले यह समझ नहीं पाए। थोमा ने उससे कहा,“हे प्रभु, हम नहीं जानते तू कहाँ जा रहा है। फिर वहाँ का रास्ता कैसे जान सकते हैं?”
यीशु ने उससे कहा,“मैं ही मार्ग हूँ, सत्य हूँ और जीवन हूँ। बिना मेरे द्वारा कोई भी परम पिता के पास नहीं आता। यदि तूने मुझे जान लिया होता तो तू परम पिता को भी जानता। अब तू उसे जानता है और उसे देख भी चुका है।”
फिलिप्पुस ने उससे कहा, “हे प्रभु, हमे परम पिता का दर्शन करा दे। हमें संतोष हो ज गा।” फिलिप्पुस निश्चित होना चाहता था। वह विश्वास करने के लिए और कुछ चाहता था। उसे प्रमाण चाहिए था। परन्तु यीशु तो स्वयं प्रमाण था। फिलिप्पुस ने चमत्कार देखे थे, उसने यीशु के उत्तरों को सुना था जो उसने उन धार्मिक अगुवों को उनके झूठ के लिए दिया था। तीन सालों से उसने यीशु कि सच्चाई को देखा था। फिलिप्पुस अपने विश्वास को लेन के लिए उसकी महिमा को देखना चाहता था। परन्तु सच्चा जीवन अनदेखी बातों पर विश्वास करने से ही आता है। उसे अपने स्वंय के शब्दों पर विश्वास करना था।
यीशु के चेलों के पास परेशन होने कि अच्छी वजह थी। चेले समझ गए थे कि जब यीशु अपने पिता के विषय में बोल रहा था, वह उस परमेश्वर के विषय में बोल रहा था जिसने सृष्टि को बनाया है। यहूदी धर्म में, यह मानना कि एक ही सच्चा परमेश्वर है बहुत ही महत्पूर्ण था। पुराने नियम कि सबसे कीमती पद यह है,"इस्राएल के लोगो, ध्यान से सुनो! यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक है! और तुम्हें यहोवा, अपने परमेश्वर से अपने सम्पूर्ण हृदय, आत्मा और शक्ति से प्रेम करना चाहिए।'" (व्यव विव 6:4-5) वे यह जानते थे कि यीशु ने अपने आप को परमेश्वर का पुत्र कहा था, जिसका मतलब यह है कि वह अपने आप को परमेश्वर के बराबर कर रहा है। परन्तु वह अपने आप को मनुष्य का पुत्र भी कहता है। यह सब कैसे हो सकता है? यह सब भेद कि बातें थीं। यीशु ने अपनी पहचान को ढांप कर रखा हुआ था।
चेले यह मानते थे कि यीशु ही मसीहा है, और वे जानते थे कि वह नबी है, और वे उसे राजा बन कर देखना चाहते थे। ये सब माननीय नाम थे, परन्तु इससे बढ़कर वो सच था जिसे उन्हें समझना था। यीशु ही परमेश्वर था। और यीशु ही परमेश्वर है। परमेश्वर कि त्रीएकता पिता और पुत्र कि उत्तम एकता में ही है। अब समय आ गया था जब यीशु को उसे पूर्ण रूप से स्पष्ट कर देना था:
“'फिलिप्पुस मैं इतने लम्बे समय से तेरे साथ हूँ और अब भी तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है, उसने परम पिता को देख लिया है। फिर तू कैसे कहता है ‘हमें परम पिता का दर्शन करा दे।’ क्या तुझे विश्वास नहीं है कि मैं परम पिता में हूँ और परम पिता मुझमें है? वे वचन जो मैं तुम लोगों से कहता हूँ, अपनी ओर से ही नहीं कहता। परम पिता जो मुझमें निवास करता है, अपना काम करता है। जब मैं कहता हूँ कि मैं परम पिता में हूँ और परम पिता मुझमें है तो मेरा विश्वास करो और यदि नहीं तो स्वयं कामों के कारण ही विश्वास करो।'"
पर्दा हट चुका था। यीशु अपने चेलों को परमेश्वर के भीतरी कार्यों के विषय में समझा रहा था। परन्तु इतना काफी नहीं था। यीशु वो मार्ग दिखाने आया था। उसने स्वर्ग छोड़ कर मनुष्य रूप धारण किया ताकि उस रिश्ते को वापस स्थापित कर सके जो उसका परमेश्वर के साथ था। वह परमेश्वर के साथ हुए अलगाव को पलटने के लिए आया था जो पाप के कारण मनुष्य पर आ गया था। उसकी मृत्यु के कारण, उनके पापों कि कीमत चुका कर वह उनके जीवन को परमेश्वर के लिए खरीद लेगा। वो महान अलगाव समाप्त हो गया था। वे जो यीशु पर विश्वास करेंगे वे नयी सृष्टि बन। जाएंगे वे अंधकार कि राज्य से ज्योति के राज्य में लाये जाएंगे। और उसके मनुष्यत्व जीवन उन सब के लिए एक उदहारण था जिनको उसने बचाया था। अब उनके जीवन परमेश्वर के लिए जीए जा सकते थे और वे उस काम को आगे करेंगे जो यीशु ने शुरू किया था।
यीशु ने कहा:
“'मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ, जो मुझमें विश्वास करता है, वह भी उन कार्यों को करेगा जिन्हें मैं करता हूँ। वास्तव में वह इन कामों से भी बड़े काम करेगा। क्योंकि मैं परम पिता के पास जा रहा हूँ। और मैं वह सब कुछ करूँगा जो तुम लोग मेरे नाम से माँगोगे जिससे पुत्र के द्वारा परम पिता महिमावान हो। यदि तुम मुझसे मेरे नाम में कुछ माँगोगे तो मैं उसे करूँगा।'" यूहन्ना १४ ९-१४
ये कुछ बहुत ही अद्भुद वायदे हैं। फिर यीशु ने कहा:
"'यदि तुम मुझे प्रेम करते हो, तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे। मैं परम पिता से विनती करूँगा और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक देगा ताकि वह सदा तुम्हारे साथ रह सके। यानी सत्य का आत्मा जिसे जगत ग्रहण नहीं कर सकता क्योंकि वह उसे न तो देखता है और न ही उसे जानता है। तुम लोग उसे जानते हो क्योंकि वह आज तुम्हारे साथ रहता है और भविष्य में तुम में रहेगा। “मैं तुम्हें अनाथ नहीं छोड़ूँगा। मैं तुम्हारे पास आ रहा हूँ।'"
अब यीशु अपने चेलों को तीसरे रहस्य के विषय में बता रहे थे। यीशु ही पुत्र है, और वही है जो पिता के साथ है। परन्तु इस उत्तम एकता में एक तीसरा व्यक्ति भी है। वह पवित्र आत्मा है, और पिता और पुत्र को मिला कर वे पवित्र त्रिएकता को बनाते हैं। जब यीशु इस संसार को छोड़ने कि तैयारी कर रहे थे, उसका पिता आत्मा को पृथ्वी पर भेजने कि तैयारी कर रहा था। आत्मा उन सब के भीतर आएगा जो उस पर विश्वास करेंगे, ताकि उन्हें पिता कि ओर से वो शक्ति और अगुवाई और तसल्ली मिल सके।
यीशु अपने चेलों को बताना चाहता था कि वे जानें कि वह उन्हें छोड़ कर नहीं जा रहा है। उसके पास योजना थी उन्हें अपने पास परमेश्वर के सिंहासन के पास बैठने की। यीशु और आत्मा एक हैं, और जिस किसी के पास भी आत्मा है वह यीशु में एक है! परन्तु केवल वे जो यीशु पर विश्वास करते हैं उन्हें वह आत्मा दी जाएगी। वह परमेश्वर के बच्चों के लिए एक कीमती खज़ाना है।
यीशु ने कहा:
"'कुछ ही समय बाद जगत मुझे और नहीं देखेगा किन्तु तुम मुझे देखोगे क्योंकि मैं जीवित हूँ और तुम भी जीवित रहोगे। उस दिन तुम जानोगे कि मैं परम पिता में हूँ, तुम मुझ में हो और मैं तुझमें। वह जो मेरे आदेशों को स्वीकार करता है और उनका पालन करता है, मुझसे प्रेम करता है। जो मुझमें प्रेम रखता है उसे मेरा परम पिता प्रेम करेगा। मैं भी उसे प्रेम करूँगा और अपने आप को उस पर प्रकट करूँगा।'” --यूहन्ना १४:१५-२२
सोचिये किस प्रकार यीशु के पीछे चलने वाले उसके साथ और त्रिएकता में बंध जाएंगे! क्यूंकि वह जीवित है, इसलिए हम भी जीवित हैं। वह पिता में है और हम उस में, इसलिए हम भी पिता में हैं! यीशु जी, स्वर्ग में उठाया जाने वला था, और फिर युगानुयुग कि विजय में रहने वाला था, और वे जो उसके पीछे चलते हैं और उसके आज्ञाकारी हैं, उसके साथ अनंतकाल में रहेंगे। यह इतनी महान आशा है कि या समझना कितना कठिन है। यह किसी भी मनुष्य कि समझ से परे है!
इसीलिए चेले बहुत व्याकुल थे। उनकी आशा उस पर टिकी हुई थी कि पृथ्वी पर क्या होने जा रहा था। इस्राएल देश से यीशु क्यूँ अपने आप को क्यूँ गुप्त रखा हुआ था? परमेश्वर के राज्य को क्या वह जल्द लाने वाला नहीं था? क्या सब यह जान नहीं जाएंगे? उनमें से एक चेले ने कहा,“हे प्रभु, ऐसा क्यों है कि तू अपने आपको हम पर प्रकट करना चाहता है और जगत पर नहीं?”
यीशु ने कहा,
“'यदि कोई मुझमें प्रेम रखता है तो वह मेरे वचन का पालन करेगा। और उससे मेरा परम पिता प्रेम करेगा। और हम उसके पास आयेंगे और उसके साथ निवास करेंगे। जो मुझमें प्रेम नहीं रखता, वह मेरे उपदेशों पर नहीं चलता। यह उपदेश जिसे तुम सुन रहे हो, मेरा नहीं है, बल्कि उस परम पिता का है जिसने मुझे भेजा है।'"
एक बार फिर, यीशु ने अपने चेलों को सीधा जवाब नहीं दिया। सुनने के बजाय वे उससे गलत सवाल पूछ रहे थे। उनके स्वयं कि आशाएं और अकांक्षाएं उनके कानों को बंद कर रहे थे। वह चाहते कि यीशु उन्हें बताय कि यहूदी नेतृत्व पर कैसे विजय पाया जा सकता है, रोमी राज को कैसे हराया जा सकता है और अपने जीवन भर में स्वर्ग राज्य को कैसे स्थापित किया जा सकता है। वे चाहते कि वह उन्हें उसकी योजना को उनके सामने प्रकट करे, और वे जानना चाहते थे कि स्वर्ग राज्य में उनका क्या पद होगा।
चेलों के पास यह अच्छी वजह थी मानने के लिए कि यीशु येरूशलेम में राजा बनके राज करेगा। उनकी आशा बाइबिल पढ़ने से आई। एक दिन, उनकी सब आशाएं सच्च में बदल जाएंगी, परन्तु उनके समय के हिसाब से नहीं। हम उस समय के लिए रुके हैं जब परमेश्वर यीशु के राज को इस पृथ्वी पर पूरे सामर्थ के साथ लेकर आएगा।
यीशु ने अपने चेलों के गलत सवालों के लिए उनके पास वापस आकर उन्हें इस जीवन कि सच्ची आशा को बताता रहा। यह दुनियावी ताक़त या धन और पद से नहीं मिल सकता था। उनका जीवन केवल उस आत्मिक क्षेत्र में और परमेश्वर कि नज़दीकी में पाया जा सकता था।
यीशु ने कहा:
“'ये बातें मैंने तुमसे तभी कही थीं जब मैं तुम्हारे साथ था। किन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे परम पिता मेरे नाम से भेजेगा, तुम्हें सब कुछ बतायेगा। और जो कुछ मैंने तुमसे कहा है उसे तुम्हें याद दिलायेगा।'"
पवित्र आत्मा हर उसके भीतर भेजा जाएगा जो यीशु पर अपना विश्वास डालेंगे। हर एक विश्वासी जो परमेश्वर का सम्मान करता है उसे पवित्र आत्मा अगुवाई करेगा और तसल्ली और विजय होने के लिए समर्थ भी देगा। परमेश्वर पिता और परमेश्वर का पुत्र आत्मा के द्वारा अपने आप को प्रकट करेंगे। यीशु के चेले होते हुए उस आत्मा का सहयोग दीजिये और उस पर ही निर्भर रहिये।
अंधकार का राज्य इन जीत से खुश नहीं होगा, और परमेश्वर के बच्चों के लिए बहुत सी परीक्षाएं आएंगी। अंत में, यह सब लायक होगा। इस संसार कि चीज़ें उन बातों के सामने बिल्कुल बेकार हैं जो स्वर्ग में हमें मिलेंगी। परन्तु यीशु उन चुनौतियों को जानता था जो उसके चेलों के सामने आने वाली थीं।
उसने कहा:
“'मैं तुम्हारे लिये अपनी शांति छोड़ रहा हूँ। मैं तुम्हें स्वयं अपनी शांति दे रहा हूँ पर तुम्हें इसे मैं वैसे नहीं दे रहा हूँ जैसे जगत देता है। तुम्हारा मन व्याकुल नहीं होना चाहिये और न ही उसे डरना चाहिये। तुमने मुझे कहते सुना है कि मैं जा रहा हूँ और तुम्हारे पास फिर आऊँगा। यदि तुमने मुझसे प्रेम किया होता तो तुम प्रसन्न होते क्योंकि मैं परम पिता के पास जा रहा हूँ। क्योंकि परम पिता मुझ से महान है। और अब यह घटित होने से पहले ही मैंने तुम्हें बता दिया है ताकि जब यह घटित हो तो तुम्हें विश्वास हो। “और मैं अधिक समय तक तुम्हारे साथ बात नहीं करूँगा क्योंकि इस जगत का शासक आ रहा है। मुझ पर उसका कोई बस नहीं चलता। किन्तु ये बातें इसलिए घट रहीं हैं ताकि जगत जान जाये कि मैं परम पिता से प्रेम करता हूँ। और पिता ने जैसी आज्ञा मुझे दी है, मैं वैसा ही करता हूँ। --यूहन्ना १४:२७-३१
यीशु जानता था कि शैतान अपना कार्य कर रहा है, और उसके बलिदान का समय आ गया था। परमेश्वर पिता ने इतिहास को रचा ताकि शैतान उस महान विजय को लेन में सहभागी हो सके। यीशु क्रूस पर जाने से परमेश्वर के दुश्मन के आगे झुक नहीं रहा था, वह अपने पिता के प्रति प्रेम के कारण कष्ट उठा रहा था। जब शैतान उसने परमेश्वर पिता के प्रति अगयकर्ता को देखेगा तब वह उसके प्रेम कि सामर्थ को इंकार नहीं कर पाएगा। जहां हर इंसान असफल रहा, जहाँ शैतान और उसके साथ के दुष्ट ताक़तें असफल रहीं, यीशु कि विजय होने वाली थी, और वह उन सब को विजय में लेने वाला था जो उस पर विश्वास करते हैं।