कहानी १४: यूसुफ़
यूसुफ को यह कितना अजीब लगा होगा। उसकी मंगनी मरियम से हुई थी। हालांकि उस समय के इस्राएल, में माता पिता अपने बच्चों की शादी तय करते थे, वे अक्सर अपनी पसंद के साथ अपने बच्चों को खुश करने की कोशिश करते थे! एक बार माता - पिता शादी पर सहमत हो जाते, वो कानूनी रूप से बाध्यकारी था। युवक और महिला पहले से ही पति और पत्नी बुलाये जाते थे। इसे तलाक द्वारा ही तोड़ा जा सकता था! केवल शादी का समारोह ही बाकी था। यही स्तिथि यूसुफ और मरियम की थी। पूरी दुनिया के लिए, मरियम और यूसुफ को जीवन भर एक दूसरे के साथ बिताना था।
हर किसी को मरियम की पुण्यता पर यकीन था। लेकिन, इससे पहले कि वो और यूसुफ पति और पत्नी के रूप में जुड़ते, मरियम को गर्भवती पाया गया! बल्कि, जब वह अपने चचेरे भाई के घर की रहस्यमय यात्रा से लौटी, तब वह चार महीने पहले ही पेट से थी! यूसुफ के सदमे की कल्पना कीजिए! यह कैसे हो सकता था? वो ऐसा कैसे कर सकती थी? कई उम्मीदें और सपने उसके आसपास सजाए गए थे, लेकिन अब यह लग रहा था कि उसका असली चरित्र सामने आ रहा था। यूसुफ का तिरस्कार और शर्म भयंकर रहा होगा।
यूसुफ जानता था कि वह एक ऐसी औरत से शादी कभी नहीं कर सकता था जिसने अपने को एक दूसरे आदमी को सौपा हो। इससे परमेश्वर को आदर नहीं मिलता, और यूसुफ एक धर्मी आदमी था। वह अपने परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार चलना चाहता था; और अगर वो ऐसी औरत से शादी करता जिसने व्यभिचार किया हो, तो वह ऐसे होता मानो वो उसके कार्यों की सहमति दे रहा हो।
अगर वह चाहता, यूसुफ उसका अपमान कर सकता था और सार्वजनिक तिरस्कार से उसे बेनकाब कर सकता था। वह हमेशा के लिए उसकी प्रतिष्ठा को नष्ट कर सकता था। व्यवस्था के अनुसार, वह उसकी पत्थरावे से मौत भी करा सकता था। लेकिन फिर, यूसुफ महान धर्म का एक आदमी था। इसके बजाय की वो उसे सार्वजनिक रूप से तालाक दे जहाँ हर किसी को उसके कारणों का पता चले, उसने मरियम को निजी में तलाक देने का फैसला किया। केवल दो या तीन गवाह मरियम के अपमान की पूरी कहानी जानेंगे। शायद वह उसके आने वाले भयंकर दुःख से उसको थोड़ी सुरक्षा दे सके; वह जीवन जो उसने आपने आचरण से पूरी तरह अपंग कर दिया था। धर्मी करुणा की वो क्या मिसाल था!
यूसुफ ने यह अपने दिल में तय करके बिस्तर पर चला गया। उसकी भारी निराशा के बाद, नींद उसे आराम दे रही होगी। जैसे वो सो रहा था, एक उल्लेखनीय दृष्टि उसके मन में बनी। एक शानदार दूत स्वप्न में उसे दिखाई पड़ा। उसने कहा :
हे यूसुफ दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहां ले आने से मत डर; क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है।
वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्वार करेगा।
यह सब कुछ इसलिए हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था; वह पूरा हो।
कि देखो, एक कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा जिसका अर्थ है- परमेश्वर हमारे साथ।
वाह! क्या यह सच हो सकता था? क्या मरियम वास्तव में निर्दोष थी? क्या वह वास्तव में एक कुंवारी थी? क्या यह हो सकता था कि परमेश्वर को वह इतनी प्यारी थी कि उसने उसे अपने पुत्र को जनने के लिए मरियम को चुना हो? यह सब कुछ बदल देगा!
असल में, मरियम और यूसुफ को एक साथ परमेश्वर के पुत्र की परवरिश के पवित्र कार्य के लिए चुना गया था! आठ सौ साल, यूसुफ और मरियम की प्रेम कहानी से पहले, परमेश्वर ने अपने नबी यशायाह के माध्यम से इन अद्भुत घटनाओं के बारे में बताया। उन्होंने कहा: "कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र को जन्म देगी, और वे उसका नाम इम्मानुअल रखेंगे, जिसका मतलब है-परमेश्वर हमारे साथ।' "
यह बच्चा किसी की तरह न था जो दुनिया जानती थी। खुद परमेश्वर, मानव मांस का शरीर धारण कर रहे थे। यह वो प्रभु थे जिसने समय की शुरुआत में सभी सितारों को बनाया! यह वो परमेश्वर था जिसने पूरे ब्रह्माण्ड को अपने शक्तिशाली वचन द्वारा संचालित किया था! और अब वह एक पूरी तरह से नई बात करने आया था! वह अपने स्वयं की बनाई सृष्टि में प्रवेश करने जा रहा था! वह एक कमजोर, छोटे बच्चे (यूहन्ना 1:1-5 ) के रूप में इसका हिस्सा बनने जा रहा था। वो वास्तव में हमारे बीच रहने - चलने आया था! वह लोगों को उनके पापों से बचाने आए थे!
वाह! क्या अद्भुत बातें परमेश्वर ने इस यूसुफ को प्रकाशित की। इस सपने ने उसे दुनिया के उद्धारकर्ता को अपनाने और बढ़ाने के कार्य के लिए बुलाया था। यह चौंका देने वाली खबर थी! यूसुफ अपने परिवार और पड़ोसियों को यह कैसे समझा सकता था? वो उन्हें कैसे यह विश्वास दिला सकता था कि मरियम एक व्यभिचारिणी औरत नहीं वरन कुछ विशेष है? वो उन्हें कैसे विश्वास दिलाता कि यह बच्चा स्वयं परमेश्वर की ओर से था? फिर भी, स्वर्गदूत ने कहा: " मत डर"। महान क्षण आ गया था।
क्या यूसुफ विश्वास करेगा?
जब यूसुफ़ अपने सपने से जाग उठा, तो वो तत्काल आज्ञाकारिता में बाहर निकला।उसने वो किया जो स्वर्गदूत ने आज्ञा दी और मरियम को अपनी पत्नी बना कर घर ले आया। जब यह आदमी परमेश्वर के उद्देश्यों में विश्वास समेत उसके साथ शामिल हुआ, तो आप मरियम की राहत की कल्पना कर सकते है! उसके संगति और समर्थन के सुख की कल्पना कीजिए। दोनों, परमेश्वर के अच्छे और सिद्ध इच्छा के लिए एक साथ एक यात्रा पर थे। लेकिन फिर भी, यूसुफ़ मरियम के साथ उस तरह से नहीं था जैसे एक पति अपनी पत्नी के साथ होता है। उसने बच्चे के पैदा होने तक इंतज़ार किया। उसने उचित समय के लिए इंतजार किया। और जब बच्चा पैदा हुआ, उसने उस शिशु का नाम यीशु रखा, जैसा स्वर्गदूत ने कहा।