ह्रदय कि कठोरता
क्या आपको अच्छा लगता है जब कोई आपकी ग़लती को पकड़ता है? आपको कैसा लगता है? क्या आप शर्मिंदा होते हैं? क्या आप बहस करने लगते हैं? या फिर आप उदास और शांत और पश्चाताप करते हैं? अधिकतर लोग यह सुनना नहीं चाहते जब वे कुछ गलत करते हैं। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला यहूदा में इसकी घोषणा कर रहा था। आप सोच रहे होंगे कि यूहन्ना का सन्देश जैसे फैल रहा था, लोग आना बंद कर देंगे! परन्तु लोगों को इसका एहसास था कि परमेश्वर कि आत्मा उसके शब्दों में थी। उसकी सेवकाई कि प्रसिद्धि बढ़ती ही जा रही थी।
येरूशलेम में धार्मिक अगुवे यह देख रहे थे कि यूहन्ना का प्रभाव सारे देश में बढ़ता जा रहा था और यह उन्हें परेशान कर रहा था। क्या अगर वह उनसे अधिक प्रसिद्ध हो गया तो? क्या अगर वह उनके अधिकार के पद को चुनौती दे दे तो? जकरिया महायाजक का यह पुत्र कौन था?
जब यूहन्ना ने उन धार्मिक अगुवों को अपनी ओर आते देखा, वह आक्रोश से भर गया। उसके पिता ने ऐसे लोगों के साथ काम किया था, और वह उनसे अच्छी तरह परिचित था। उनमें से कुछ सदूसी कहलाते थे। वे बहुत ही शक्तिशाली लोग थे जो तोराह में परमेश्वर के नियमों को बहुत गम्भीरता से मानते थे। वे यह नहीं मानते थे कि पुराने नियम का शेष भाग परमेश्वर के पवित्र शास्त्र का एक हिस्सा है। वे भजन सहित और दाऊद राजा कि कहानियों को नहीं पढ़ते थे। वे अलौकिक बातों पर भी विश्वास नहीं करते थे। वे यह मानते थे कि फ़रिश्ते और दुष्ट आत्माएं मनुष्य के विचारों में हैं। वे पुनर जीवन में विश्वास नहीं करते या फिर ये कि परमेश्वर इस संसार में अपना कार्य कर रहा है। परन्तु येरूशलेम में वे यहूदी धर्म पर अपनी शक्ति दिखाते थे, और वे मंदिर के अधिकारी भी थे।
यहूदी अगुवों का दूसरा गुट फरीसी कहलाता था। वे पूरे पुराने नियम में विश्वास करते थे, जैसे कि यीशु करता था। फरिश्तों के विषय में जो वचन सिखाता था कि वे तेजस्वी, जीवित प्राणी थे जो परमेश्वर के दूत थे, इस बात का सम्मान करते थे। वे यह समझते थे कि दुष्ट आत्माएं वास्तव में होती हैं, और मृत्यु के पश्चात् जीवन है इसे सिखाते भी थे। फरीसियों ने ही अराधनालय शुरू किये और उनमें सिखाया भी। इस्राएल के सभी शहरों और गाँव के आराधनालय आराधना करने का स्थान थे जहां साधारण लोगों को बाइबिल सिखाई जाती थी।
यहूदी लोगों के लिए ये फरीसी उनके यहूदी धर्म के लिए सच्चे अगुवे थे। परन्तु वे बहुत ही कठोर अगुवे थे। वे परमेश्वर के नियम को मानने के लिए इतने गम्भीर थे कि वे अपनी ओर से और कठोर नियम जोड़ देते थे जो परमेश्वर कि ओर से नहीं थे। अधिकतर लोग उनके नियमों और मांगों को पूरा नहीं कर पाते थे, और इसीलिए फैरिसी उन्हें अस्वीकार करते थे मानो वे अछूत हों। परमेश्वर और लोगन के प्रति प्रेम से अधिक इन लोगों की अपनी धार्मिक शुधता उनके लिए अधिक महत्वपूर्ण हो गयी थी। उनकी विधिपरायणता ने परमेश्वर के बच्चों को उसके प्रेम को समझने के लिए उन्हें दूर कर दिया था। लोगों के प्रति उनकी सेवा अधिकांश समय डर और अपमान कि थी।
सदूसि और फरीसी लगभग हर बात से असहमत रहते थे, और वे एक दूसरे से घृणा करते थे। दोनों गुट मिलकर आराधनालय को बनाते थे, जो यहूदी अगुवों का सबसे प्रभावशाली अधिवक्ता था जो येरूशलेम के मंदिर में यहूदी धर्म के विशाल निर्णय लेते थे। फिर भी दोनों गुट उस परमेश्वर को अपमानित करते थे जिसकी सेवा करने का दावा करते थे। परमेश्वर कि इच्छा से अधिक उन्हें अपने अधिकार के पद और स्वयं कि धार्मिकता अधिक महत्वपूर्ण लगती थी। जब वे उस स्थान पर जा रहे थे जहाँ यीशु प्रचार करता था, वह उन पर क्रोधित हुआ और चिल्लाकर बोला;
"अरे ओ सांप के बच्चो!" उसने पुकारा। उसने उन्हें ज़हरीले साँप कहकर पुकारा! सारी जनता के सामने सबसे शक्तिशाली लोगों का अपमान करने कि उसकी हिम्मत कैसे हुई! भीड़ तो अचंबित रह गयी होगी।
उसने कहा:
यह हमारे लिए सोचना बहुत कठिन होगा कि कैसे ऐसे कठोर शब्द यूहन्ना के समय में उन लोगों को सुनने में लगे होंगे।
वे सब वहाँ यरदन नदी पर खड़े थे। सिपाही, कर लेने वाले और किसान और हर प्रकार के स्त्री और पुरुष वहाँ थे। परन्तु जब ये धार्मिक अगुवे आये, तब सबने उनके लिए रास्ता बनाया। इन लोगों से सभी लोग डरते थे और उनकी सुनते थे। और ये लोग पूरे घमंड के साथ यह मानते थे कि वे ही इस पृथ्वी के सबसे धार्मिक और पवित्र लोग हैं। वे अपने समाज के लोगों द्वारा मिले सम्मान और आदर के बहुत आदि थे। यहाँ यह व्यक्ति था जो ऊँठ कि खाल से बने वस्त्र को पहने हुए था, जो यह घोषित कर रहा था कि वहाँ सभी जन पापी थे! उन्होंने इस सृष्टिकर्ता को गलत मान लिया था। उन्होंने सबसे पवित्र सच के लिए झूठ बोला!
यूहन्ना क्रोधित होकर यह कहता रहा '"…और मत सोचो कि अपने आप से यह कहना ही काफी होगा कि ‘हम इब्राहीम की संतान हैं।’ मैं तुमसे कहता हूँ कि परमेश्वर इब्राहीम के लिये इन पत्थरों से भी बच्चे पैदा करा सकता है। पेड़ों की जड़ों पर कुल्हाड़ा रखा जा चुका है। और हर वह पेड़ जो उत्तम फल नहीं देता काट गिराया जायेगा और फिर उसे आग में झोंक दिया जायेगा।"
यूहन्ना कि बातों को सुनकर सब सुनने वाले अचंबित हो गए होंगे। अब यूहन्ना यहूदियों के सबसे मूलयवान चीज़ों के पीछे पड़ गया था। यह वह था जिससे कि दोनों सदूसी और फरीसी सहमत होंगे। ये लोग समझते थे कि वे सबसे विशेष हैं क्यूंकि वे परमेश्वर के पवित्र राष्ट्र के हिस्सा थे, इब्राहिम के बच्चे। परन्तु अब यूहन्ना यह घोषित कर रहा था कि पूरे राज्य में उनका नेतृत्व सबसे भयंकर था और पूरे राष्ट्र का बहुत कठोरता से न्याय किया जाएगा। वह उस कुल्हाड़ी के समान होगा जो पेड़ को काट डालेगा! यूहन्ना ने कहा कि यह मायने नहीं रखता कि यह इब्राहिम कि ओर से आया है यदि वे अपने जीवन के द्वारा परमेश्वर का आदर नहीं करते हैं। इब्राहिम के सच्चे और धार्मिक बच्चे वे थे जो परमेश्वर प् विश्वास के साथ जीते थे, और यूहन्ना के समय के इस्राएल के अगुवे इन बातों से बहुत दूर थे।
क्या ये धार्मिक अगुवे पश्चाताप करके अपने ह्रदयों को परमेश्वर कि ओर करेंगे? क्या वे प्रभु को वह उन्हें मसीह के आने कि तैय्यारी करें? जब वह आएगा क्या वे उसका सत्कार करेंगे? या फिर वे अपने विद्रोह में चलते रहेंगे और अपने धार्मिक पद को अपनी ही महिमा के लिए उपयोग करते रहेंगे और लोगों पर अत्याचार करते रहेंगे?
जब हम यीशु के जीवन के विषय में पढ़ते हैं, हम भिन्न भिन्न लोगों से मिलेंगे। उनमें से हर एक को यह निर्णय लेना होगा कि वे यीशु पर विश्वास करेंगे या नहीं या फिर उसके विरुद्ध अपने ह्रदयों को कठोर कर लेंगे। यूहन्ना जानता था कि बहुत से मसीह के सन्देश का इंकार करेंगे, और इसीलिए न्याय आने वाला है।