पाठ 13: हिजकिय्याह मंदिर को साफ करता है
2 इतिहास 29-31
राजा आहाज को यहोवा पर विश्वास नहीं था। उसके महान पापों के कारण यहूदा के राज्य पर परमेश्वर का न्याय आया । जब भविष्यद्वक्ता यशायाह ने बात की, तो परमेश्वर के सामने पश्चाताप करने के बजाय, आहाज और भी बदतर हो गया I उसका दिल परमेश्वर के विरुद्ध और भी कठोर हो गया, और वह और बढ़कर बुराई करने लगा ।
राजा आहाज ने यरूशलेम में मंदिर की पूजा बंद कर दी I उसने शहर के हर कोने पर झूठे देवताओं के लिए मूर्तियों को स्थापित किया । उसने यहूदा में हर शहर में मूर्तिपूजक देवताओं की पूजा करने के लिए ऊंचे स्थान बनाए । जो यहूदी यहोवा की सेवा करना चाहते थे वे अपने मंदिर में नहीं जा सकते थे I याजकों को परमेश्वर के लिए बलिदान देने की अनुमति नहीं थी I हर जगह मूर्तिपूजा और पाप था । यहूदा की भूमि घातक, अनैतिक व्यवहार की गंदगी से ढँक गई थी । राजा आहाज ने अपने पुत्रों को आग में कनान के देवताओं के लिए बलिदान कर दिया I उसने सर्वोच्च प्रभु को क्रोधित किया I जब वह मर गया, उसे यरूशलेम में दफनाया गया, लेकिन दाऊद के राजाओं के साथ उसे सम्मान की जगह में दफन नहीं किया गया । वह कुल, पूर्ण अपमान था ।
आहाज का बेटा हिजकिय्याह अपने पिता से बिल्कुल अलग था । जब आहाज मर गया, तब हिजकिय्याह यहूदा का राजा बना । राजा के रूप में अपने पहले महीने में, हिजकिय्याह ने मंदिर के द्वार खोल दिए और याजकों को यहोवा की सेवा में वापस लाया । उसने उन्हें स्वयं को साफ करने और मंदिर को शुद्ध करने के लिए कहा ताकि परमेश्वर के लोग फिर से यहोवा की उपासना करने के लिए आ सकें । उसने उनसे कहा;
“हमारे पूर्वजों ने यहोवा को छोड़ा और यहोवा के भवन से मुख मोड़ लिया। उन्होंने मन्दिर के स्वागत—कक्ष के दरवाजे को बन्द कर दिया और दीपकों को बुझा दिया। उन्होंने सुगन्धि का जलाना और इस्राएल के परमेश्वर को पवित्र स्थान में होमबलि भेंट करना बन्द कर दिया। इसलिये, यहोवा यहूदा और यरूशलेम के लोगों पर बहुत क्रोधित हुआ। यहोवा ने उन्हें दण्ड दिया। अन्य लोग भयभीत हुए और दु:खी हुए जब उन्होंने देखा कि यहोवा ने यहूदा और यरूशलेम के लोगों के साथ क्या किया। अन्य लोगों ने यहूदा के लोगों के लिये लज्जा और घृणा से अपने सिर झुका लिये। तुम जानते हो कि यह सब सच है। तुम अपनी आँखों से इसे देख सकते हो। यही कारण है कि हमारे पूर्वज युद्ध में मारे गये। हमारे पुत्र, पुत्रियाँ औऱ पत्नियाँ बन्दी बनाई गईं। इसलिये मैं हिजकिय्याह ने यह निश्चय किया है कि मैं यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर के साथ एक वाचा करुँ। तब वह हम लोगों पर आगे क्रोधित नहीं होगा। इसलिए मेरे पुत्रो, तुम लोग सुस्त न हो या और अधिक समय नष्ट न करो। यहोवा ने तुम लोगों को अपनी सेवा के लिये चुना है। तुम्हें उसकी सेवा करनी चाहिए और उसके लिये सुगन्धि जलानी चाहिए।”
वाह! राजा हिजकिय्याह ने अपने लोगों को अपने परमेश्वर की सेवा करने के लिए प्रेरित करने के लिए निश्चय किया ! उन्होंने वैसा ही किया I याजकों ने इकट्ठे होकर पूरे मंदिर को शुद्ध किया । उन्होंने उन सभी पवित्र वस्तुओं को जिन्हें आहाज राजा ने मंदिर से लिया था, पूरे राष्ट्र में खोजा I उन्होंने उन्हें यहोवा की पवित्र वेदी के सामने रखा I तब राजा हिजकिय्याह ने यरूशलेम के सभी नगर अधिकारियों को याजकों के साथ एक बड़े उत्सव के लिए इकट्ठा किया । उन्होंने मंदिर में जाकर बैल, भेड़ और बकरों और बकरियां और मेढ़े को परमेश्वर के लिए बलिदान किये, और उसकी उपासना की और प्रशंसा की I यरूशलेम में पीढ़ियों से ऐसा कुछ भी नहीं देखा गया था ! उन्होंने दाऊद राजा द्वारा उपयोग किए गए उपकरणों के साथ संगीत बजाय; झांझ और वीणा और गीतों को भेंट चढ़ाते समय बजाया गया I बलिदान के खून ने मंदिर को साफ किया, देश को उनके पापों द्वारा दूषित होने के कारण शुद्ध किया गया । प्रत्येक व्यक्ति यहोवा की उपासना करने के लिए झुका हुआ था, जिस समय गाने वाले परमेश्वर के लिए गीतों को गा रहे थे और तुरहियां उसकी महिमा कर रही थीं !
जब बलिदान चढ़ाना समाप्त हुआ, तब राजा हिजकिय्याह ने प्रत्येक व्यक्ति को प्रार्थना में अपने घुटने टेकने को कहा I उन्होंने दाऊद के शब्द भजन संहिता से चुने । तब कोई भी जो अपना बलिदान लाया था चढ़ा सकता था I लोगों ने दिल की गहराई से अपने परमेश्वर की उपासना की I एक सौ मेढ़े और दो सौ भेड़ के बच्चे के साथ सत्तर बैल मंदिर में लाये गए । उस दिन कुल छह सौ बछड़े और तीन हजार भेड़ और बकरियां बलिदान के लिए अलग रखी गईं ।
सालों की शान्ति के बाद, उसके मंदिर में परमेश्वर की बलि और उपासना की शुरूआत हुई थी ! यह परमेश्वर के लोगों ने अपनी वफ़ादारी को भरकर उंडेला । उन्होंने अपने राजा की वफ़ादारी की प्रतिक्रिया की I परमेश्वर जो अपने लोगों में कर रहा था, सभी लोगों ने उसका आनंद मनाया । वे देश में इतनी जल्दी परिवर्तन को देख कर इतने आश्चर्यचकित हुए था !
तब हिजकिय्याह और उसके सलाहकारों ने इस्राएल के सभी लोगों को एक घोषणा देने का फैसला किया । उसने परमेश्वर के सभी लोगों को उत्तरी राज्य और दक्षिणी साम्राज्य में आमंत्रित किया, ताकि वे यरूशलेम में आकर फसह के पर्व को एकजुट हो कर मना सकें। यरूशलेम में फसह के पर्व को कई वर्षों तक नहीं मनाया गया था क्योंकि कुछ ही याजक स्वयं को शुद्ध रख सके थे । लेकिन अब उन्होंने स्वयं को एक बार फिर परमेश्वर के लिए पवित्र किया I
एक पत्र इस्राएल के देश को भेजा गया ताकि वे अपने परमेश्वर के पास लौट सके और वह उन्हें करुणा और दया दिखा सके । लोगों ने उत्तरी साम्राज्य के सभी क्षेत्रों में पत्र भेजे । लेकिन दूतों का स्वागत करने के बजाय, उत्तरी राज्य के लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया ! उन्होंने उनका तिरस्कार किया और उनसे घृणा की । हिजकिय्याह के विनीत निमंत्रण के बावजूद, उनके दिल कठोर बने रहे I फिर भी कुछ ऐसे लोग थे, जिनके दिल यहोवा के प्रति नरम थे । उत्तरी राज्य के शेष लोग आए और यरूशलेम में फसह के पर्व पर परमेश्वर की उपासना की ।
यहूदियों में दक्षिणी राज्य के लोगों ने फसह को झुंझलाहट के साथ नहीं मनाया I यहोवा का हाथ उन पर था, और आने वाले उत्सव के लिए वे आनंद के साथ एकजुट हुए । यरूशलेम में एक बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई I वे शहर के चारों ओर पूरे समूह के रूप में गए और झूठे देवताओं को सभी वेदियां से निकाला I उन्होंने शहर से मूर्तिपूजा के सभी लक्षणों को दूर किया ।
जश्न में आए कई लोग पापपूर्ण जीवन जी रहे थे और परमेश्वर की नज़र में पवित्र नहीं थे I परमेश्वर के नियम के अनुसार, वहाँ कई बलिदान थे जिन्हें शुद्ध होने के लिए किये जाने चाहिए थे । बाकी देश के साथ फसह का जश्न मनाने से पहले उन्हें ऐसा करना होता था । परन्तु हिजकिय्याह ने उनके लिए प्रार्थना की । उसने कहा;
“यहोवा, परमेश्वर तू अच्छा है। ये लोग तेरी उपासना ठीक ढंग से करना चाहते थे, किन्तु वे अपने को नियम के अनुसार शुद्ध न कर सके, कृपया उन लोगों को क्षमा कर। तू परमेश्वर है जिसकी आज्ञा का पालन हमारे पूर्वजों ने किया। यदि किसी ने सर्वार्धिक पवित्र स्थान के नियम के अनुसार अपने को शुद्ध न किया तो भी क्षमा कर।” (2 इतिहास 30:18ब-19)I
परमेश्वर के लोगों ने अपने दिलों को आनन्दित और परमेश्वर में आशा व्यक्त करके आनंद मनाया । वास्तव में, यह उत्सव केवल सात दिनों के लिए होना था, लेकिन उन्होंने मिलकर और सात बार मनाने का फैसला किया ! लिखा है कि "... यरूशलेम में बहुत आनन्द था । इस पर्व के समान कोई भी पर्व इस्राएल के राजा, दाऊद के पुत्र सुलैमान के समय के बाद से नहीं हुआ था। याजक और लेवीवंशी खड़े हुए और यहोवा से लोगों को आशीर्वाद देने को कहा। परमेश्वर ने उनकी सुनी। उनकी प्रार्थना स्वर्ग में यहोवा के पवित्र निवास तक पहुँची।“
(2 इतिहास 30: 26-27)।
याजकों ने फिर से मंदिर में प्रति दिन परमेश्वर की उपासना की । परमेश्वर के लोग सम्पूर्ण हृदय से अपनी भेंट को लाने लगे I लोग अपने सारे अनाज, शहद, मदिरा और तेल का दसवां हिस्सा लाने में इतने उदार थे, कि इस सब को समाने के लिए मंदिर के गोदामों को फिर से खोलना पड़ा ।
राजा हिजकिय्याह ने ये सब यहोवा पर अपने विश्वासयोग्य विश्वास के कारण शुरू किया । वह इस्राएल के सभी राजाओं में से सबसे महान माना जाता है । उसके नेतृत्व के कारण जो अद्भुत अंतर आया वह यहूदा के लोगों के लिए बहुत मायने रखता था I हिजकिय्याह के बारे में ऐसा लिखा है, "उसने जो भी कार्य...अपने परमेश्वर का अनुसरण करने में किये सभी कार्य अपने पूरे हृदय से किये। उसमें उसे सफलता मिली।“(2 इतिहास 31:21)।