पाठ 45 बरनबास और शाऊल: पहली मिशनरी यात्रा
बरनबास और शाऊल कुछ समय के लिए अन्ताकिया में विश्वासियों के साथ ठहरे हुए थे। जो आध्यात्मिक दान उन्हें परमेश्वर ने यीशु मसीह के सुसमाचार सुनाने के लिए दिए थे उन्होंने उनका प्रयोग किया। उन्होंने विश्वासियों का एक परिवार बनने में मदद की ताकि वे एक दूसरे के लिए बल और प्रेम का स्रोत बन सकें।
आपको याद होगा कि कुछ भविष्यवक्ता यरूशलेम से आए थे और उन्होंने आत्मा के द्वारा चेतावनी दी थी कि एक महान अकाल पड़ने वाला है। अन्ताकिया में विश्वासियों के बीच एक संग्रह लिया गया ताकि वे अपने भाइयों और बहनों की मदद कर सकें जो अन्यथा भूखे रह सकते थे। अन्ताकिया की कलीसिया ने शाऊल और बरनबास को यरूशलेम की कलीसिया को उपहार देने के लिए भेजा। बहुत शुरुआत से, एक दूसरे से प्रेम करने और एक दूसरे के लिए अपने प्राण देने के यीशु के इन वचनों को कलीसिया सम्मानित करती आई थी। यरूशलेम में कलीसिया को उपहार देने के लिए शाऊल और बरनवास ने कई मील की पैदल यात्रा की। जब मसीह अपने लोगों को अपनी आत्मा के द्वारा निर्देशित करता है, तो अद्भुत बातें होती हैं। आदम और हव्या के द्वारा संसार में जो अभिशाप के कारण दुःख आया था वह अब टूट गया है, और दुनिया में भलाई मजबूत हो गई है। अभिशाप के कारण इस दुनिया में अकाल और भुखमरी है। परन्तु कलीसिया एक-दूसरे की सेवा करके पीड़ा का हिस्सा पूर्ववत कर सकती थी । जब बरनवास और शाऊल अन्ताकिया की यात्रा पर गए, तो वे युहन्ना मरकुस को अपने साथ वापस ले आये। यह वही मरकुस था जिसने मरकुस की पुस्तक लिखी थी । जब पतरस को एक दूत द्वारा बन्दीगृह से मुक्त किया गया था, तो वह सीधे यरूशलेम में मरकुस की मां के घर गया। यही वह स्थान है जहां सभी प्रार्थना करने गए थे। वह बरनबास का चचेरा भाई भी था ।
आप को याद है लूका किस प्रकार चाहता था कि हम यह याद रखें कि बरनवास एक अच्छा मनुष्य था? जो आज्ञाकारिता का जीवन बरनवास ने जीया वह परमेश्वर की उस योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था कि अब वह उसका उपयोग किस प्रकार करेगा। बरनबास, शाऊल और युहन्ना मरकुस यरूशलेम से अन्ताकिया लौट आए । शहर में पुरुषों का एक समूह था जो शिक्षक और भविष्यद्वक्ता थे। वे प्रार्थना करने वाले पुरुष थे। परमेश्वर की आत्मा उनके भीतर से शक्तिशाली रूप से कार्य कर रही थी। उनके नाम बरनवास, शमीन जो नीगर कहलाता था, लुकियुम कुरेनी, मनाहेम (वह राजा हेरोदेस के साथ बड़ा हुआ!) और शाऊल था। एक दिन, जब वे एक साथ परमेश्वर की अराधना और उपवास कर रहे थे, तो पवित्र आत्मा ने उन्हें एक विशेष संदेश दिया।
'बरनबास और शाऊल को जिस काम के लिये मैंने बुलाया है, उसे करने के लिये मेरे निमित्त, उन्हें अलग कर दो।" ध्यान दें कि इन मनुष्यों ने आत्मा को कितना ध्यानपूर्वक सुना। ध्यान दें कि उन्होंने कितनी जल्दी पालन किया। परमेश्वर के पास एक विशेष कार्य था जो वह इन दो पुरुषों के द्वारा कराना चाहता था, और उसने न केवल शाऊल और बरनवास को, बल्कि अन्य पुरुषों को भी स्पष्ट किया। यह मनुष्यों का विचार नहीं था, यह आत्मा की अगवाई थी, और आत्मा ने मार्गदर्शन और समर्थन प्रदान करने के लिए मसीह के समुदाय के माध्यम से कार्य किया। शाऊल और बरनबास मिशनरी यात्रा पर निकल रहे थे। उन्हें आगे के क्षेत्रों ! में यीशु मसीह के सुसमाचार को लेकर जाना था ताकि बहुत से लोग विश्वास करें और बचाए जाएँ।
क्या आपको याद है जब शाऊल दमिश्क के मार्ग पर पहली बार यीशु से मिला था? वह अभी भी एक यहूदी था, जो ईसाइयों को कैद करके विदेशी शहरों में जाकर उन्हें मार डालता था। यीशु ने उसे उसी स्थान पर परिवर्तित किया। उसने पौलुस से कहा कि उसका नया उद्देश्य गैर-यहूदी लोगों को सुसमाचार सुनना है।
अन्ताकिया में यह नया आदेश पौलुस के जीवन की यात्रा के लिए परमेश्वर का अगला कदम था परमेश्वर ने अन्ताकिया में एक समुदाय प्रदान किया ताकि वे जो मसीही भाई हैं, उसके साथ ठहराए गए समय पर जा सकें। उन लोगों ने शाऊल और बरनवास पर अपना हाथ रखा और उन्हें उनकी पहली मिशनरी यात्रा पर भेज दिया।