पाठ 37: नई वाचा की उज्ज्वल आशा
याफा के उत्तर में लगभग तीस मील की दूरी पर, वह शहर जहां पतरस शमौन के साथ रह रहा था जो चमड़े का धंधा करता था, वहां कुरनेलियस नामक एक व्यक्ति रहता था। वह एक रोमी सुवेदार था, जिसका अर्थ है कि वह रोमी सेना में एक सेनापति था। वह कम से कम सौ सैनिकों का प्रभारी था। वह एक शक्तिशाली, महत्वपूर्ण काम था! उसका एक बहुत बड़ा परिवार और कई नौकर भी थे। वे यहूदी नहीं थे, लेकिन वे सभी भक्त लोग थे। वे यहूदियों के एकमात्र सच्चे परमेश्वर से डरते थे । कुरनेलियस ने गरीबों को अपना पैसा देकर और प्रार्थना में समय बिताने के द्वारा परमेश्वर के प्रति अपना प्रेम और सम्मान दिखाया। यह परमेश्वर के लिए इतना मूल्यवान था कि बाइबल में तीन बार इसका उल्लेख किया गया है। हालांकि कुरनेलियस ईश्वर से डरने वाला एक व्यक्ति था, फिर भी उसे यहूदी विश्वामियों के साथ शामिल होने की अनुमति नहीं थी। यहूदियों ने याद किया कि किस प्रकार परमेश्वर ने उन्हें विशेष रूप से दुनिया के सभी राष्ट्रों में से अपने देश होने के लिए चुना था। जो यहूदी नहीं था उसे वे "गैर-यहूदी, " कहते थे और अपने आप को अलग रखते थे। यहूदी अपने पुत्रों और पुत्रियों का विवाह किसी भी गैर-यहूदी से नहीं करते थे। यहां तक कि गैर-यहूदी ज यहूदी बन गए थे, उन्हें केवल यरूशलेम में मंदिर के बाहरी आंगनों में आने की ही अनुमति दी गई थी। भीतरी आंगन केवल उन लोगों के लिए था जिनकी यहूदी पैदाईश थी।
यह हमें तुच्छ लग सकता है, लेकिन वास्तव में परमेश्वर सैकड़ों वर्ष पूर्व मूसा के कानून में यह आज्ञा दे चुका था। उन्हें पवित्रता सिखाने के लिए उसने इस्राएल देश को अलग किया ताकि वे शेष दुनिया के लिए एक राज-पदधारी ठहर सकें । अन्य सभी देश झूठे देवताओं की पूजा करते थे। उनके देवताओं के मंदिरों में वेश्याएं थीं। इस्राएल के आस-पास के कई देश अपने बच्चों को होमबलि के लिए चढ़ाते थे अन्य देश दुष्ट आत्माओं की पूजा करते थे, अपने पड़ोसियों को श्राप देते थे, और यहोवा पर भरोसा करने के बजाय अपने भविष्य को खोजने के लिए सितारों को पढ़ने की कोशिश करते थे। वे मृतकों से प्रार्थना करते थे और काला जादू करते थे ।
परमेश्वर नहीं चाहता था कि उसके लोग इनमें से किसी भी भयानक पाप के भागी हो। उसने एक राष्ट्र को चुना जो पूरी दुनिया के सामने पवित्र और सिद्ध ठहरे। वह एक ऐसा देश चाहता था जो इस प्रकार कार्य करे मानो मानवता पर कभी कोई शाप था ही नहीं। वह उन लोगों को चाहता था जो एक दूसरे से उस तरह प्रेम करें जैसे अदन की वाटिका में किया था।
यहोवा ने यहूदी लोगों को सुन्दर नियम दिए जिसने उन्हें शुद्धता और धार्मिकता के साथ जीना सिखाया। इसके द्वारा उन्होंने एक दूसरे से प्रेम करना और दयालुता दिखाना सीखा। गरीबों की रक्षा की। विवाह की रक्षा करने के साथ-साथ यह दिखाया कि परमेश्वर के लिए एक पति का अपनी पत्नी के प्रति समर्पित प्रेम कितना मूल्यवान है । परन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात यह सिखाता है कि, इस्राएल के परमेश्वर पर विश्वास करना, जो स्वर्ग और पृथ्वी का सृष्टिकर्ता है। उन्हें उसके प्रेम और शक्ति. पर ही भरोसा करना है। परमेश्वर जानता था कि जब भी यहूदी गैर-यहूदियों के साथ मिश्रित होते हैं, तो यहूदियों को दूसरे देश के झूठे देवताओं और भयानक अनुष्ठानों का पालन करने का प्रलोभन होता था। परमेश्वर उन्हें पाप से बचाना चाहता था, इसलिए उसने इतिहास के एक विशेष समय में उन्हें अलग करने के लिए नियमों की एक विशेष पुस्तक प्रदान की।
यहूदी यह नहीं समझ पा रहे थे कि जो नियम परमेश्वर ने उन्हें दिए थे वे एक अस्थायी वाचा थी। यह केवल तब तक के लिए था जब तक मसीह नहीं आता । यीशु की मृत्यु और 'पुनरुत्थान के साथ, परमेश्वर ने एक नई वाचा बनाई थी। और इस नई वाचा के साथ, एक महान रहस्य प्रकट किया गया था। इस्राएल का परमेश्वर अपने उद्धार के कार्य को विस्तार से फैलाने जा रहा था। नई वाचा केवल यहूदियों के लिए नहीं थी, परन्तु किसी भी देश के लिए जिसने यीशु मसीह पर विश्वास किया था।
पुरानी वाचा का चिन्ह खतना था। नई वाचा का चिन्ह पवित्र आत्मा था। जिन लोगों ने यीशु मसीह में उद्धार के सुसमाचार को सुना, उन्होंने पश्चाताप किया, और उस पर विश्वास था कि उन्हें पवित्र आत्मा दी गई है। वह एक मुहर, या एक संकेत की तरह था, कि वे यीशु के लहू द्वारा छुड़ाए गए थे। प्रेरित पौलुस लिखता है कि आत्मा उस पहले जमा राशी की तरह है जो जीवित परमेश्वर के बच्चों के लिए अनन्त जीवन की विरासत की गारंटी देता है। आत्मा विश्वासियों के दिल में परमेश्वर की इच्छा प्रकट के लिए काम करती है। पुराने नियम की तुलना में आत्मा का होना कहीं अधिक बेहतर है। आज्ञाओं ने यहूदियों को नियम तो बताये लेकिन उनके पालन करने में उनकी सहायता करने की कोई शक्ति नहीं थी। आत्मा न केवल विश्वासी को अपने दिल की गहराई से परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता की स्वतंत्रता में रहने के लिए सिखाती है कि किस प्रकार उसे जीना है। वह इसे करने के लिएशक्ति और सामर्थ भी प्रदान करता है। आत्मा जीवन देता है! कलीसिया के प्रारंभिक वर्षों के दौरान समस्या यह थी कि पांच सौ वर्षों से भी अधिक समय से पुरानी वाचा यहूदी विश्वास का हिस्सा थी। यह हर यहूदी के लिए गहराई से जीना एक सम्मानित तरीका था। जो इतने लंबे समय से चला आ रहा था उसे बदलना मुश्किल होगा, यहां तक कि उन लोगों के लिए भी जो वास्तव में यीशु से प्रेम करते थे
यरूशलेम में मंदिर में यहूदी अगुवों के लिए नियम इतने महत्वपूर्ण थे कि वे परमेश्वर को सुनने या उससे संबंध बनाने से अधिक महत्वपूर्ण थे। वे परमेश्वर से प्रेम नहीं करते थे, वे अपने नियमों से प्रेम करते थे। उन्हें इतना पसंद था कि उन्होंने अपने कुछ नियम बनाए और उन्हें परमेश्वर के पवित्र नियम में जोड़ दिया! यही कारण है कि वे नहीं समझ पाए कि यीशु कौन है जब वह आया था। वे उससे उन नियमों को तोड़ने से इतने क्रोधित थे जिन्हें उन्होंने नियमों में जोड़ा था, कि दे यह नहीं देख पाए कि वही है जिसने उन्हें पहले से ही वे नियम दिए थे। वह उनका परमेश्वर था! लेकिन जब वह मनुष्यरूप धारण कर के आया तो परमेश्वर की उपासना करने के बजाय, उन्होंने उसे मार डाला। अब वे उसके शिष्यों को मारने की कोशिश कर रहे थे यीशु के द्वारा, परमेश्वर ने एक नई वाचा दी, और उसने पवित्र आत्मा को भेजा
कि अन्यजाती उस पर विश्वास कर सकें आत्मा कुरनेलियस और उसके परिवार में कार्य कर रही थी। एक दिन, दोपहर के तीन बजे, परमेश्वर ने उसे एक दर्शन दिया। परमेश्वर का एक दूत उसके पास आया और उससे कहा, कुरनेलियस!" " "हे प्रभु, यह क्या है?" उसने उत्तर दिया। 'तेरी प्रार्थनाएँ और दीन दुखियों को दिया हुआ तेरा दान एक स्मारक के रूप में तुझे याद दिलाने के लिए परमेश्वर के पास पहुचें हैं। सो अब कुछ व्यक्तियों को याफा भेज और शमौन नाम के एक व्यक्ति को, जो पतरस भी कहलाता है, यहाँ बुलवा ले। वह शमौन नाम के एक चर्मकार के साथ रह रहा है। उसका घर सागर क किनारे है।" कुरनेलियस ने परमेश्वर की आज्ञा तुरंत मानी। उसने दो सेवकों और एक सैनिक को बुलाया। जो कुछ घटा उसने उन्हें समझाया और उन्हें पतरस नामक एक व्यक्ति की तलाश में याफा को भेज दिया।