पाठ 34: दमिश्क मार्ग पर अपने निर्माता से शाऊल की भेंट
सुसमाचार का संदेश कई स्थानों तक पहुंच रहा था। सबसे पहले वह सामरिया गया, अब यह इथियोपिया के शाही अदालतों तक पहुँच रहा था! क्रोधित धार्मिक शासक नहीं चाहते थे कि ऐसा ही हो। लेकिन यह वास्तव में परमेश्वर की अद्भुत योजना थी।
इस बीच, शाऊल, जो स्तिफनुस के मारे जाने को अनुमोदित रूप से देख रहा था, वह अभी भी "परमेश्वर के शिष्यों के विरुद्ध हत्या करने की धमकियाँ दे रहा था।" वह उन पर हमला करके संतुष्ट नहीं था जो यरूशलेम में थे। उसने सुना कि कुछ दमिश्क में भी थे। शाऊल के लिए यह खतरनाक था। दुनिया भर से कारवां दमिश्क होते हुए जाता था। शाऊल और महासभा को पता था कि यदि मसीह का संदेश वहां पहुँच गया, तो उसे रोका नहीं जा सकेगा (एनआईवी अध्ययन नोट्स पी 1701)
शाऊल महायाजक के पास गया और एक पत्र मांगा ताकि दमिश्क के आराधानालयों को ईसाई खतरे के विषय में चेतावनी दे सके। यदि उसके पास महायाजक का यह एक पत्र होगा, तो महासभा उसे उन सभी विश्वासियों को गिरफ्तार करने देगा जो उसे मिलते हैं। शाऊल उन्हें सताने के लिए वापस यरूशलेम में लाना चाहता था। शाऊल और उसके साथी इस पत्र के साथ निकल पड़े। जब वे सड़क पर चलते हुए दमिश्क के करीब पहुंचे, तो अचानक एक ज्योतिस्वर्ग से चमकी । शाऊल भूमि पर गिर गया। उसने एक आवाज़ सुनी, "शाऊल, शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?" शाऊल ने पूछा, "हे प्रभु तू कौन हो, ? " "मैं यीशु हूं, पर तू अब खड़ा हो और नगर में जा। वहां तुझे बता दिया जायेगा कि तुझे क्या करना चाहिये। "
शाऊल और उसके साथी दंग रह गए। उन्होंने एक आवाज सुनी थी, परन्तु न तो वे इसे समझ पाए और न ही किसी को देख पाए । शाऊल खड़ा हुआ, परन्तु जब उसने अपनी आंखें खोली तो उसे कुछ दिखाई न दिया। उसके साथी ने उसे हाथ पकड़कर उठाया और वे दमिश्क की ओर चले गए। वह तीन दिनों तक अन्धा रहा, और उसने न कुछ खाया और न पिया ।
शाऊल सही था, दमिश्क में मसीह के शिष्य थे। उन्होंने सुना था कि विश्वासियों के साथ यरूशलेम में बहुत बुरा हो रहा है, और वे जानते थे कि वह महायाजक से पत्र के साथ दमिश्क में आ रहा था। उन्हें पता था कि जो भी यीशु के नाम को पुकारेगा वह उनके लिए गंभीर खतरा होगा। इन धार्मिक शिष्यों में से एक हनन्या नामक व्यक्ति था। परमेश्वर ने उसे दर्शन देकर कहा, "हनन्याह! " ""हाँ, प्रभु।" "हनन्या ने उत्तर दिया। (शाऊल के विपरीत, जब परमेश्वर प्रकट हुआ तो उसे यह नहीं पूछना पड़ा कि कौन है!)
खड़ा हो और सीधी कहलाने वाली गली में जा। और वहाँ यहूदा के घर में जाकर तरसुस निवासी शाऊल नाम के एक व्यक्ति के बारे में पूछताछ कर क्योंकि वह प्रार्थना कर रहा है। उसने एक दर्शन में देखा है कि हनन्याह नाम के एक व्यक्ति ने घर में आकर उस पर हाथ रखे हैं ताकि वह फिर से देख सके। " हनन्याह थोड़ा उलझन में था। "प्रभु मैंने इस व्यक्ति के बारे में बहुत से लोगों से सुना हूँ। यरूशलेम में तेरे संतों के साथ इसने जो बुरी बातें की हैं, वे सब मैंने सुनी हूँ।” लेकिन प्रभु ने हनन्याह से कहा, "तू जा क्योंकि इस व्यक्ति को विधर्मियों, राजाओं और इस्राएल के लोगों के सामने मेरा नाम लेने के लिये, एक साधन के रूप में मैंने चुना है। मैं स्वयं उसे वह सब कुछ बताऊँगा, जो उसे मेरे नाम के लिए सहना होगा।
हनन्याह उठकर उस घर पर गया जहां अन्धा शाऊल प्रार्थना कर रहा था। उसने अपनी आंखों पर हाथ रखा और कहा, "भाई शाऊल, प्रभु यीशु ने मुझे भेजा है, जो तेरे मार्ग में तेरे सम्मुख प्रकट हुआ था ताकि तू फिर से देख सके और पवित्र आत्मा से भावित हो जाये।" तुरंत, शाऊल फिर से देखने लगा, और उसे बपतिस्मा देने के लिए गए। फिर उसने खाया ताकि वह फिर से तंदरुस्त और स्वस्थ हो सके ।
(पौलुस ने अपने अंधेपन को ठीक किया)
क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है? शाऊल ने विश्वासियों को खोजा ताकि उन्हें सता सके और मार सके। कलीसिया में बहुतों ने स्टिफनुस के समान अपने मित्र और परिवार को खो दिया था जिनसे वे बहुत प्रेम करते थे। फिर भी हनन्याह ने एक सच्चे विश्वासी के क्षमाशील, प्रेमपूर्ण प्रतिक्रिया को दिखाया। शाऊल ने पश्चाताप किया और यीशु मसीह पर विश्वास किया। हनन्वाह ने उसे अपना भाई कहा।