पाठ 18: विपुल कलीसिया
देखिये पतरस कैसे बदल गया! एक बार उसने इनकार किया था कि वह यीशु का मित्र था क्योंकि उसे डर था कि उसे पीटा जाएगा। अब वह यरूशलेम के बीच में खड़े होकर यह घोषित कर रहा था कि यीशु परमेश्वर था! पवित्र आत्मा की शक्ति ने. उसे बदल दिया था। और आत्मा ने सुनने वाले लोगों के दिल में कार्य किया। एक दिन में कलीसिया 120 लोगों से बड़कर तीन हजार हो गयी थी। यह बहुत आनंद का समय था वही आत्मा जिसने पतरस को बदल दिया था, लोगों के हृदय में कार्य करने लगी और उन्होंने मसीह में नया जीवन पाया (एनआईवी 1688)। अब वे समझ गए कि यह यीशु क्या था। पहेली हल हो गई थी। वह मसीहा था। यह पूरी एक नई दुनिया थी।
मसीह के नए शिष्य तुरंत एक साथ पूरा समय बिताने लगे आत्मा ने उन्हें एक दूसरे के लिए सुंदर प्रेम से भर दिया था। वे एक दूसरे के घरों में भोजन एक साथ साझा करने लगे। जो कुछ उनके हृदय में था वे उस विषय के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करने लगे और हर कोई एक दूसरे की चिंता करने लगा। सभी ने महसूस किया कि जो कुछ भी उनके स्वामित्व में था वह केवल उनका था ताकि वे इसे हर किसी के साथ साझा कर सकें। यदि किसी को जरूरत पड़ती है, तो अन्य विश्वासी अपनी चीजों को बेच कर उनकी सहायता करने लगे। किसी को भी अकेला नहीं छोड़ा गया। हर व्यक्ति अपने साथी विश्वासी के प्रेम और संरक्षण से घिरा हुआ था। यह बहुत खूबसूरत था।
जब पवित्र आत्मा सामर्थ के साथ कार्य करती है, तो वह इस दुनिया को बहुत कुछ स्वर्ग की तरह बना देती है। एक दिन में, परमेश्वर ने इन लोगों को अजनबियों से, एक बड़े परिवार में बदल दिया था। नए विश्वासियों ने एक-दूसरे को "पड़ोसी" या "दोस्त" नहीं कहा। उन्होंने एक-दूसरे को "बहन" और "भाई" कहकर पुकारा उन्होंने एक-दूसरे की उस तरह देखभाल की जिस प्रकार एक परिवार स्वयं की परवाह करता है। यदि परिवार में कोई अच्छा नहीं कर रहा था, तो यह हर
किसी की ज़िम्मेदारी थी कि वह उसकी मदद करे। यह परमेश्वर का सज्जा परिवार था। हर दिन, मसीह के नए शिष्य प्रेरितों के सुन्दर सन्देश को सुनने के लिए मंदिर में जाते थे और उन्हें अद्भुत चमत्कार करते देखते थे। जब भी वे किसी ऐसे व्यक्ति को देखते थे जिसके पैर विकृत थे और वह चलने लगता था तो वे कितना आनंद मनाते थे। जब एक अन्धा व्यक्ति देखने लगता था तो वे सभी को कितना आश्चर्य होता था । यह उत्सव और उत्तेजना का समय था क्योंकि परमेश्वर ने अपनी आत्मा को उंडेल दिया था ताकि सारा यरूशलेम देख सके कि परमेश्वर शिष्यों के संदेश का सम्मान कर रहा था। यीशु के विषय में जो सत्य वे बता रहे थे उस पर किसी को भी कैसे सन्देह हो सकता था? यरूशलेम के लोगों ने देखा कि कैसे विश्वासी एक दूसरे से प्रेम करते हैं, और उन्हें उनकी उस भलाई को अनुमोदन करना था जिसे उन्होंने देखा था। प्रति दिन नए लोग प्रभु यीशु के नाम में उद्धार पा रहे थे।
एक दिन, पतरस और यूहत्रा तीन बजे मंदिर में प्रार्थना के लिए गए। जब वे पहुँच ही रहे थे, एक अन्य व्यक्ति को मंदिर में जाने वाले एक फाटक में से ले जाया जा रहा था। किसी को उसे ले जाना पड़ा क्योंकि उसके पैर और टखने विकृत हो गए थे, और वह अपने आप नहीं चल सकता था। प्रति दिन उसे इस फाटक पर जो सुंदर कहलाता था, भीख मांगने के लिए लाया जाता था। यह कांस्य से ढका हुआ था और सूरज में सोने की तरह चमकता था। प्रति दिन वह पैसे के लिए मंदिर जाने वालों से अनुरोध करता था, और प्रति दिन, जब लोग प्रार्थना करने के लिए फाटक से गुज़रते थे, वे उसे वहाँ देखा करते थे। वह वर्षों से वहां आ रहा था, और दुनिया भर के लोग जो यरूशलेम मंदिर में आते थे वे उसे सुंदर नामक फाटक पर बैठे भिखारी के रूप में पहचानते थे।
यह दिन भिखारी के लिए किसी अन्य दिन से अलग होने जा रहा था। उसे नीचे रखने के बाद, उसने ऊपर देखा और पतरस और यूहन्ना को वहां से गुज़रते देखा । जैसे वे दूसरों से मांगता था जो वहां से गुज़रते थे, उसने उन्हें भी पुकारा कि वे उसे पैसे दें। लेकिन पतरस और यूहन्ना भिन्न थे उन्होंने उसकी ओर देखा । यह व्यक्ति यीशु के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा।
पतरस ने कहा, "हमारी और देखो!" भिवारी ने उनकी ओर इस उम्मीद से देखा कि. वे उसे पैसे देंगे पतरस ने कहा, "चांदी और सोना तो मेरे पास है नहीं, जो मेरे पास है वह तुझे देता हूँ, यीशु मसीह नासरी के नाम से चल फिर । परन्तु पतरस ने उसका दाहिने हाथ पकड़ा और उसे उसके पैरों पर उठा खड़ा कर दिया। जैसे ही पतरस ने उसकी मदद की, उसके पैरों और टखनों में जान आ गयी! वह अपने पैरों पर उछला और उत्तेजना के साथ कूदने लगा! इससे पहले वह कभी ऐसा करने में सक्षम नहीं था! मंदिर में प्रवेश करते हुए वह पतरस और यूहन्ना के साथ परमेश्वर की स्तुति करते हुए गया।
जैसे ही ये तीन पुरुष आंगन में आए, सब ने मुड़कर देखा कि यह कैसा शोर था? वह व्यक्ति क्यों कूद रहा था और जश्न मना रहा था? लोग उसे पहचानने लगे कि यह वही व्यक्ति था जिसे वे प्रति दिन सुंदर नामक फाटक पर देखते थे। उनमें से कुछ ने उसे पहले पैसे दिए थे, दूसरे शायद दोषी महसूस करते हुए चले जाते थे। कुछ शायद बिना परवाह किये चले जाते थे परन्तु वे सभी जानते थे कि वह कौन था, उन्होंने उसके विक्षत पैर देखे थे। जो वे देख रहे थे उस पर उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था। वे समझ गए कि यह एक वास्तविक चमत्कार था, और उसे देख कर आश्चर्यचकित थे जो अभी अभी हुआ था। यह बात सब जगह जल्दी फैल गयी और जो हुआ उसके लिए पूरे मंदिर में सारी भीड़ परमेश्वर की प्रशंसा करने लगी और उत्साह के साथ बातें करने लगे।