पाठ 21 : बाबेल भाग द्वितीय
परमेश्वर वह सब कुछ देख रहा था जो उसके बनाये हुए मनुष्य कर रहे थे। वह उन्हें देख रहा था जब वे पूर्व कि ओर जा रहे थे, और जब वे उस विशाल ईमारत को बना रहे थे। और फिर परमेश्वर नीचे आया। इसकी कल्पना कीजिए! सर्वशक्तिमान परमेश्वर स्वर्ग में उसके ऊंचे सिंहासन पर विराजमान है। फिर भी वह प्रेम के साथ इन मूर्ख और घमंडी लोगों को देखता था। जब चारों ओर चींटियों की तरह भर गए तब परमेश्वर उनके नन्हे और कमज़ोर ईमारत को देखने के लिए नीचे आया। वह एक बार फिर से उनके विद्रोह को खत्म करने के लिए नीचे आया। कितना अनुग्रहकारी परमेश्वर है!
परमेश्वर के पास एक अद्भुत योजना थी। वह जानता था कि यदि वह दुनिया के लोगों को एक साथ रहने देगा, तो वे परमेश्वर के प्रति अवज्ञा कर सकते हैं। वे मिलकर अच्छे और सही सीमाओं को तोड़ देंगे जो उसने उनके लिए बनाईं थीं। वे वे गहरे से गहरे पाप और विद्रोह के उपायों कि खोज में लगे रहेंगे। सो परमेश्वर ने उन्हें अलग करने का फैसला किया। सुनिए बाइबिल क्या कहती है:
"यहोवा ने कहा, इसलिए आओ हम नीचे चले और इनकी भाषा को गड़बड़ कर दें। तब ये एक दूसरे की बात नहीं समझेंगे।”
"यहोवा ने लोगों को पूरी पृथ्वी पर फैला दिया। इससे लोगों ने नगर को बनाना पूरा नहीं किया। यही वह जगह थी जहाँ यहोवा ने पूरे संसार की भाषा को गड़बड़ कर दिया था। इसलिए इस जगह का नाम बाबुल पड़ा। इस प्रकार यहोवा ने उस जगह से लोगों को पृथ्वी के सभी देशों में फैलाया।"
उत्पत्ति 11: 6a; 7-9
वहीं के वहीं, नूह के प्रत्येक वंशज और जनजाति और कबीले को ऐसी भाषा दी गयी जो अन्य गुट नहीं समझ पा रहे थे। वे एक दूसरे से बात नहीं कर सकते थे। कितनी निराशा वाली बात है यह! विभिन्न भाषाओं का कोलाहल और अराजकता इतनी अव्यवस्थित थी की उस स्थान का नाम "बाबेल" रखा गया। इसका अर्थ है "गड़बड़।" वे अपने नाम गौरवशाली और पराक्रमी करना चाहते थे परन्तु उन्हें मूर्खता का नाम मिला।
तब परमेश्वर ने उन्हें एक दूसरे से दूर कर दिया। उन्होंने सभी एशिया माइनर और उत्तरी अफ्रीका से अधिक भूमि के क्षेत्रों को विभाजित कर के कुछ येपेत के वंशज को, कुछ शेम के वंशज को कुछ, और कुछ हाम के वंशज को दे दिया। इन वंशजों के कुलों में से प्रत्येक अपने स्वयं के क्षेत्रों में आगे तक बिखरे हुए थे। हम जब राष्ट्रों की तालिका पढ़ते हैं, हम उन स्थानों के बारे में पढ़ रहे थे जो परमेश्वर ने फैलाईं थीं।परमेश्वर कि आशीष अभी भी सभी देशों पर थी कि वे फलवन्त हों और फूलें फलें, और वे प्रत्येक अपनी संस्कृति और जीवन के रास्ते के साथदिनचर्या के द्वारा बड़े समाज में में बढ़ते चले गए।
फिर भी विद्रोह और पाप जारी रहा। लोगों ने बाबेल में जो परमेश्वर के अहंकार और अभिमान को दिखाया वह बहुत जल्द उनके स्वयं का दुश्मन बन जाएगा। परमेश्वर के प्रति उनका स्वार्थी द्वेष एक दुसरे के लिए स्वार्थी द्वेष में बदल गया। निम्रोद कि तरह अत्याचारी नेता, हाम के वंशज, मरने के लिए लड़ाई करेंगे, और अपने साम्राज्य का निर्माण और अपनी महिमा के लिए शहरों का निर्माण करने के लिए दूसरे देशों और भाषा वर्ग के लोगों को नष्ट करेंगे। अधिकतर लोग निम्रोद के समान शक्तिशाली नहीं होंगे और वो नहीं कर पाएंगे जो उसने किया। उनका स्वार्थ के कारण उनकी नफ़रत अपने पड़ोसियों और उनके परिवार के सदस्यों और स्वयं पर दिखेगी। पाप कि लड़ाई हर दिल में क्रियाशील थी।
इस पाप के कारण, जो हृदय का एक भयंकर विरूपण है, जब तक अभिशाप नहीं हटा दिया जाता, मानव समाज कभी भी सही और स्थिर नहीं हो पाएगा। मनुष्य संरक्षण के लिए एकता में एक दूसरे से जुड़े जाएंगे। लेकिन वे एक दूसरे से भी स्वार्थी हो कर प्राप्त करने की कोशिश करेंगे, और यह क्रोध और दुश्मनी को लाता है। क्या आपके पास एक भाई या बहन या एक दोस्त है जिसके साथ आप खेलना पसंद करते हैं? क्या अभी भी खिलौनों के पीछे आप लड़ते हैं? क्या आप नाराज़ हो जाते हैं की जो वे कर सकते हैं वो आप नहीं कर पाते? उन के साथ बहस करने के बाद क्या आप मुसीबत में पड़ जाते है? यदि आपने हाँ कहा, तो वो इसलिए है कि आप एक शापित दुनिया के एक मानव हैं। हम सब करीब होना चाहते हैं और अन्य लोगों के साथ एकता में रहना चाहते हैं। लेकिन हम सभी बहुत पापी हैं, और वास्तव में एक दूसरे से प्रेम रखने के लिए एक स्वर्ग की लड़ाई लड़ते रहते हैं।
आपका परिवार तो बस इस दुनिया के बाकी हिस्सों में जैसा होता है उसकी एक छोटी सी तस्वीर है। परमेश्वर में विश्वास के बगैर और उसके द्वारा एक दूसरे से प्रेम करने करने कि शक्ति के बगैर, इस दुनिया कि सरकार प्रणाली भी विफल रहेगी। हम मानवता के लम्बे इतिहास, और देशों के बीच निरंतर युद्ध और लड़ाई में यह देख सकते हैं। मनुष्य शांति और प्यार को खोये बगैर परमेश्वर के प्रेम और शक्तिशाली शांति से दूर नहीं हो सकते। ब्रह्मांड में जो कुछ सही और अच्छा है वो सब उसकी ओर से है। यह उसका कृपापूर्ण उपहार है। उसके पास से दूर रहकर और दुष्ट की ओर जाना, ये हमेशा दुष्टता, हिंसा, और दुख में बदल जाएगा।
परमेश्वर कि कहानी पर अध्ध्यन।
आपको इस कहानी में क्या पसंद आया? आपको कुछ असहज सा लगा? विशेष रूप से कोई दिलचस्प बात लगी?
मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।
आपके जीवन में कोई ऐसा है जिससे आप प्रेम करते हों परन्तु आपस में बनती नहीं है? बीते कुछ दिनों में या क्षणों में क्या आपने ऐसा कुछ किया है जिसमें प्रेम कि कमी रही हो?
क्या आपक्षमा मांगी? हम अपने प्रत्येक निर्णय के साथ, हम या तो एक दूसरे में परमेश्वर के राज्य का निर्माण करते हैं या फिर अंधकार के साम्राज्य को प्रोत्साहित कर रहे हैं। जब हम पश्चाताप करते हैं और माफी मांगते हैं, यह हमारे पाप का बुरा के प्रभाव को विपरीत कर देता है और उस शांति को ले आता है जो परमेश्वर ने मनुष्य के लिए बनायीं है!
परमेंश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर।
यीशु ने कहा,"धन्य हैं वे जो शांति करते हैं।"
एक पल के लिए शांत हो कर अपने परिवार के हर सदस्य के बारे में सोचिये। अपनी कलीसिया या पडोसी के बारे में सोचिये। क्या कोई ऐसा है जिस पर आपने आपने ध्यान नहीं दिया हो? क्या परिवार ने किसी के भी विरुद्ध हो गये हों या धोखा या अपमान के साथ व्यवहार किया है? क्या कोई ऐसा है जिसके साथ आपने वो अनुग्रह नहीं दिखाया जैसा परमेश्वर ने आपको दिया है? उनके लिए प्रार्थना कीजिये! अब, आप माफी मांगने की जरूरत है? क्या आप उन्हें दया दिखा सकते हैं? ये कार्य छोटे लग सकते हैं, लेकिन वे अत्यंत महत्वपूर्णहैं! वे परमेश्वर कि आशीषों को लाते हैं! शांति बनाने वाले परमेश्वर के बेटे और बेटियों कहलाएंगे!