पाठ 27: सर्वश्रेष्ठ प्रकार की उपासना

यशायाह 58 एक और ऐसा अध्याय है जो बहुत सुंदर है, यह पढ़ कर जानने के लिए अच्छा है कि वह क्या कहता है । यशायाह इस्राएल के लोगों से कह रहा है कि वे यह देखें कि वे कितने पापी हैं । केवल एक समस्या थी कि ये लोग बहुत धार्मिक थे । वे सब "सही" चीज़ें करते थे जिससे लगे कि वे वास्तव में परमेश्वर से प्यार करते हैं I ऐसा लगता था मानो वे परमेश्वर की इच्छा को करना चाहते थे और उसे ही खोजते थे I उन्होंने परमेश्वर से बुद्धि मांगी I उन्होंने उपवास किया और प्रार्थना की । केवल एक बड़ी समस्या थी । वे परमेश्वर को अपने नियंत्रण में करने के लिए वह सब काम करते थे और धर्म के द्वारा जो वे चाहते हैं, उसे प्राप्त करना चाहते थे I उन्होंने ऐसा किया क्योंकि वे अच्छे लगना चाहते थे ! उन्होंने उपवास इसलिए नहीं किया क्योंकि वे परमेश्वर से प्रेम करते थे या उसमें आनंदित थे । उन्होंने प्रार्थना इसलिए नहीं की, ताकि वे उसकी सुन सकें और उसकी इच्छा पूरी करने के लिए सामर्थी हो जाएँ । उन्होंने सोचा कि यदि वे ये सब करते हैं, तो वे परमेश्वर को वो देने के लिए मजबूर कर सकेंगे जो वे चाहते थे !

यह अध्याय बहुत खूबसूरती के साथ यह दिखाता है कि परमेश्वर को हृदय से प्यार करने का क्या अर्थ है I जो उससे प्रेम करते हैं वे समझेंगे कि उसके लिए क्या महत्वपूर्ण है I ये पद यह समझने में मदद करते हैं कि वास्तव में परमेश्वर के लिए क्या मायने रखता है;

 

वे सभी प्रतिदिन मेरी उपासना को आते हैं
    और वे मेरी राहों को समझना चाहते हैं
वे ठीक वैसा ही आचरण करते हैं जैसे वे लोग किसी ऐसी जाति के हों जो वही करती है जो उचित होता है।
    जो अपने परमेश्वर का आदेश मानते हैं।
वे मुझसे चाहते हैं कि उनका न्याय निष्पक्ष हो।
    वे चाहते हैं कि परमेश्वर उनके पास रहे।

 लोग कहते हैं, “तेरे प्रति आदर दिखाने के लिये हम भोजन करना बन्द कर देते हैं। तू हमारी ओर देखता क्यों नहीं तेरे प्रति आदर व्यक्त करने के लिये हम अपनी देह को क्षति पहुँचाते हैं। तू हमारी ओर ध्यान क्यों नहीं देता”

 “उपवास के उन दिनों में उपवास रखते हुए तुम्हें आनन्द आता है किन्तु उन्हीं दिनों तुम अपने दासों का खून चूसते हो। 4 जब तुम उपवास करते हो तो भूख की वजह से लड़ते—झगड़ते हो और अपने दुष्ट मुक्कों से आपस में मारा—मारी करते हो। यदि तुम चाहते हो कि स्वर्ग में तुम्हारी आवाज सुनी जाये तो तुम्हें उपवास ऐसे नहीं रखना चाहिये जैसे तुम आज कल रखते हो। 

यशायाह लोगों को यह बताता है कि परमेश्वर उनकी प्रार्थना का उत्तर इसलिए नहीं दे रहा है, क्योंकि वे वास्तव में परमेश्वर का सम्मान नहीं कर रहे हैं I वे मंदिर में पूजा करने तो जाते हैं, लेकिन फिर वे लोगों के साथ बुरा बर्ताव करते हैं । वे लड़ते हैं और क्रोध दिखाते हैं । परमप्रधान परमेश्वर ने कहा कि जब तक कि वे दूसरों के प्रति दया दिखाकर परमेश्वर के प्रति समर्पण न हो जाएँ, परमेश्वर उन्हें उत्तर नहीं देगा ।

 “मैं तुम्हें बताऊँगा कि मुझे कैसा विशेष दिन चाहिये—एक ऐसा दिन जब लोगों को आज़ाद किया जाये। मुझे एक ऐसा दिन चाहिये जब तुम लोगों के बोझ को उन से दूर कर दो। मैं एक ऐसा दिन चाहता हूँ जब तुम दु:खी लोगों को आज़ाद कर दो। मुझे एक ऐसा दिन चाहिये जब तुम उनके कंधों से भार उतार दो।  मैं चाहता हूँ कि तुम भूखे लोगों के साथ अपने खाने की वस्तुएँ बाँटो। मैं चाहता हूँ कि तुम ऐसे गरीब लोगों को ढूँढों जिनके पास घर नहीं है और मेरी इच्छा है कि तुम उन्हें अपने घरों में ले आओ। तुम जब किसी ऐसे व्यक्ति को देखो, जिसके पास कपड़े न हों तो उसे अपने कपड़े दे डालो। उन लोगों की सहायता से मुँह मत मोड़ो, जो तुम्हारे अपने हों।”

 

उस परमेश्वर के लिए, जिसमें दया और करुणा है, गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करता है, उसे अपने प्रेम के साथ साबित करने का यह सबसे अच्छा तरीका था । उसके लिए यह बेहतर था कि कोई अपने समय और शक्ति को, बगैर भोजन किये उपवास करने के बजाय, गरीबों की सेवा में लगाये ! देखो, जो लोग अपने पड़ोसियों के प्रति प्रेम दिखाते हैं, उनका क्या होगा:

 

 

यदि तुम इन बातों को करोगे तो तुम्हारा प्रकाश प्रभात के प्रकाश के समान चमकने लगेगा। तुम्हारे जख्म भर जायेंगे। तुम्हारी “नेकी” (परमेश्वर) तुम्हारे आगे—आगे चलने लगोगी और यहोवा की महिमा तुम्हारे पीछे—पीछे चली आयेगी।  तुम तब यहोवा को जब पुकारोगे, तो यहोवा तुम्हें उसका उत्तर देगा। जब तुम यहोवा को पुकारोगे तो वह कहेगा, “मैं यहाँ हूँ।”

तुम्हें लोगों का दमन करना और लोगों को दु:ख देना छोड़ देना चाहिये। तुम्हें लोगों से किसी बातों के लिये कड़वे शब्द बोलना और उन पर लांछन लगाना छोड़ देना चाहिये।  तुम्हें भूखों की भूख के लिये दु:ख का अनुभव करते हुए उन्हें भोजन देना चाहिये। दु:खी लोगों की सहायता करते हुए तुम्हें उनकी आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिये। जब तुम ऐसा करोगे तो अन्धेरे में तुम्हारी रोशनी चमक उठेगी और तुम्हें कोई दु:ख नहीं रह जायेगा। तुम ऐसे चमक उठोगे जैसे दोपहर के समय धूप चमकती है।

यहोवा सदा तुम्हारी अगुवाई करेगा। मरूस्थल में भी वह तेरे मन की प्यास बुझायेगा। यहोवा तेरी हड्डियों को मज़बूत बनायेगा। तू एक ऐसे बाग़ के समान होगा जिसमें पानी की बहुतायत है। तू एक ऐसे झरने के समान होगा जिसमें सदा पानी रहता है।

 बहुत वर्षों पहले तुम्हारे नगर उजाड़ दिये गये थे। इन नगरों को तुम नये सिरे से फिर बसाओगे। इन नगरों का निर्माण तुम इनकी पुरानी नीवों पर करोगे। तुम टूटे परकोटे को बनाने वाले कहलाओगे और तुम मकानों और रास्तों को बहाल करने वाले कहलाओगे।

उन सभी सुंदर चीजों को देखो जो परमेश्वर उन लोगों से वादा करता है जो गरीबों की देखभाल करते हैं और एक दूसरे के प्रति दयालु हैं ! उनका प्रकाश सुबह की तरह चमकेगा !

ऐसा उस समय होगा जब तू सब्त के बारे में परमेश्वर के नियमों के विरूद्ध पाप करना छोड़ देगा और ऐसा उस समय होगा जब तू उस विशेष दिन, स्वयं अपने आप को प्रसन्न करने के कामों को करना रोक देगा। सब्त के दिन को तुझे एक खुशी का दिन कहना चाहिये। यहोवा के इस विशेष दिन का तुझे आदर करना चाहिये। जिन बातों को तू हर दिन कहता और करता है, उनको न करते हुए तुझे उस विशेष दिन का आदर करना चाहिये।

14 तब तू यहोवा में प्रसन्नता प्राप्त करेगा, और मैं यहोवा धरती के ऊँचे—ऊँचे स्थानों पर “मैं तुझको ले जाऊँगा। मैं तेरा पेट भरूँगा। मैं तुझको ऐसी उन वस्तुओं को दूँगा जो तेरे पिता याकूब के पास हुआ करती थीं।” ये बातें यहोवा ने बतायी थीं!

सब्त का दिन परमेश्वर के लिए महत्वपूर्ण था I यह सप्ताह का सातवां दिन था । उसने आदेश दिया कि उसके सभी लोग उस दिन विश्राम करें और उसके साथ समय बिताएं । इसका मतलब था कि परमेश्वर के लोगों ने परमेश्वर की उपासना करने के लिए अपना पूरा जीवन दे दिया था । जो कुछ भी अपने घरों में, उनकी नौकरी पर या उनके खेतों में किया जाना था, उन्हें छह दिनों में करना होता था । परमेश्वर के लोगों ने उसके साथ रहने के लिए एक पूरे दिन को रखा ताकि वे उसके प्रति भक्ति और प्रेम को दिखा सकें । परमेश्वर अपने लोगों को वापस अपने पास बुला रहा था, और वह उन्हें एक दूसरे के प्रति करुणामय होने के लिए बुला रहा था । कितना अद्भुत परमेश्वर है जो अपने लोगों से इतना प्यार करता है I