पाठ 2: एक राजा की लालसा

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इस्राएल का देश वादे के देश में लगभग चार सौ वर्ष तक रहा । लगभग उस समय, लोग बड़बड़ाने लगे । प्रभु परमेश्वर उनका राजा भी था । लेकिन अन्य सभी देशों के पास एक मानव राजा था । उन्हें एक मानव राजा भी चाहिए था ! इसलिए परमेश्वर ने शाऊल को उस देश का राजा नियुक्त किया । वह अत्यंत पापी था, इसलिए परमेश्वर ने उसे सत्ता से हटा दिया और एक अन्य व्यक्ति को उसके लोगों पर शासन करने के लिए चुना । यह व्यक्ति विशेष था, वह परमेश्वर का चाहिता था, और उसका नाम दाऊद था । परमेश्वर ने दाऊद राजा से वादा किया कि वह उसके सिंहासन को इस्राएल देश के ऊपर हमेशा के लिए स्थापित करेगा । 

 

दाऊद का एक पुत्र था जिसका नाम सुलेमान था और वह एक राजा के रूप में परमेश्वर के पवित्र देश पर राजा के समान रहता था । सुलेमान राजा ने यरूशलेम के शहर में एक शानदार मंदिर बनाया जहां सब आकर अपने प्रभु परमेश्वर की उपासना कर सकते थे । साल में तीन बार पूरे देश के सभी जाति के लोगों को परमेश्वर के लिए धन्यवाद की भेंट और उन पापों का बलिदान जिन्हें उन्होंने मंदिर में किये थे, लाना होता था । वे एक पूरे राष्ट्र के रूप में आकर परमेश्वर की आशीषों के प्रति कृतज्ञता दिखाते थे और परमेश्वर के विरुद्ध जो विद्रोह किया उनका पश्चाताप करते थे । 

 

  सुलेमान राजा ने एक सुंदर मंदिर का निर्माण किया और इस्राएल देश के लिए बहुत से भव्य और गौरवशाली कार्य किये, लेकिन इन बातों का मूल्य लोगों के ऊपर एक भयानक बोझ बन गया । उसकी मृत्यु के बाद, उसका बेटा रहूबियाम राजा बना । इस्राएल के लोग रहूबियाम के पास आये और उससे कहा कि वह उनके ऊपर से क़र्ज़ का बोझ हटा दे । रहूबियाम ने मना कर दिया । अनुचित कानूनों से क्रोधित होकर, इस्राएल के बारह जनजातियों में से दस जाति राजा रहूबियाम से अलग हो गए । उन्होंने एक भिन्न राजा, यारोबाम, का चुनाव किया, जो उन पर राज करे । अब यारोबाम राजा, जो दाऊद का वंशज था, केवल यहूदा और बिन्यामीन की जनजातियों पर राज करेगा । उसने यरूशलेम, दाऊद का शहर, के महान शहर में से शासन किया, जहां सुलेमान के शानदार मंदिर के याजक प्रतिदिन अति महान परमेश्वर के लिए बलिदान चढ़ाते थे । 

 

अब इस्राएल का देश, जो परमेश्वर के पवित्र लोग थे, दो राज्यों में बट गए थे, दक्षिण और उत्तर । दक्षिण राज्य कभी कभी यहूदा कहलाता था । उत्तर राज्य भी कभी कभी सामरिया या एप्रैम कहलाता था । दक्षिण राज्य इस्राएल के बारह जनजातियों में से दो जनजातियों का बना हुआ था: यहूदा और बिन्यामीन । वे अक्सर परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करते थे । अक्सर, उनके राजा उनके परमेश्वर के विरुद्ध पाप करते थे, और लोग झूठे देवतों के पीछे चलते थे । लेकिन परमेश्वर उन्हें पश्चाताप में वापस ले आता था । वह उन्हें उनका पाप दिखाता था और अच्छे राजाओं को खड़ा करता था जो दाऊद के समान परमेश्वर के प्रति वफादार थे । 

 उत्तरी राज्य इस्राएल के अन्य दस जनजातियों का बना हुआ था । उन्होंने यरूशलेम के डेविडिक राजाओं के विरुद्ध विद्रोह किया था । वे दक्षिणी राज्यों से भी बढ़कर पाप और मूर्तिपूजा करते थे । उनके सभी राजा बुरे थे, कोई भी इस्राएल के परमेश्वर की सेवा पूरे दिल से नहीं करता था । लोग भयंकर पाप में पड़े हुए थे, दुष्ट देवताओं की उपासना करते थे और परमेश्वर के पवित्र नियम को अस्वीकृत करते थे । 

 

जिस कहानी को हम पढ़ने जा रहे हैं वह दक्षिण राज्य के विषय में है । इस समय परमेश्वर के पवित्र देश की कहानी में, जिस समय सुलेमान राजा ने मंदिर बनाया था तब दो सौ वर्ष से भी अधिक समय हो गया था । दक्षिण राज्य, यहूदा के राजा, दाऊद राजा के वंशज थे । वे दाऊद के साथ की गयी परमेश्वर के वाचा का एक भाग थे, और उन्हें परमेश्वर की विशेष सामर्थ और अधिकार परमेश्वर के लोगों पर शासन करने के लिए दिया गया था। 

 

यहूदा के राजाओं और लोगों को वफ़ादारी के साथ परमेश्वर के पीछे चलना चाहिए था । उन्हें उसके पवित्र मंदिर में उसकी उपासना करनी चाहिए थी और उन्हें अपने पूरे हृदय से, मन से, और अपनी पूरी शक्ति से प्रेम करना चाहिए था, जिस प्रकार दाऊद ने किया था । परंतु कई वर्षों से, वे झूठे देवताओं की उपासना करने लगे । उन्होंने मूर्तियों के लिए अपने देश में ऊँचे स्थानों में वेदियां बनायीं और पेड़ों के नीचे दुष्ट आत्माओं की उपासना करने लगे । वे अपने प्रभु के प्रति वफादार नहीं थे । यह उससे भी बुरा है जब एक पति या पत्नी एक दूसरे के प्रति वफादार नहीं रहते हैं ! वे परमेश्वर की पवित्र वाचा को तोड़ रहे थे । 

 

इस कहानी के समय पर, परमेश्वर ने एक महान नबी को उनके राजाओं के पास परमेश्वर को आदर देने के लिए भेजा । उसका नाम यशायाह था, और उसने यशायाह की किताब लिखी थी । हम एक राजा, जिसका नाम उज्जिय्याह था, की कहानी से आरम्भ करेंगे ।