पाठ 71 : याकूब का अपने पुत्रों को आशीर्वाद देना

इस्राएल कि ताकत निरंतर कम होती चली गयी। यूसुफ को मालूम हुआ कि वह भयंकर रूप से बीमार होता जा रहा था। उनके दादा से मिलाने के लिए वह गोशेन में उसके दोनों पुत्र मनश्शे और एप्रैम को ले आया। जब याकूब को मालूम हुआ की यूसुफ आया था, तो उसे आशीर्वाद देने के लिए उसने हिम्मत जुटा कर उठने की कोशिश की। वह जानता था कि उसके शब्द न केवल उसके पोतों के लिए शक्तिशाली होंगे, परन्तु उन वंशजों के लिए भी जो परमेश्वर उनके माध्यम से उन्हें देने जा रहा था। वह इस विश्वास से आशीर्वाद देने जा रहा था कि परमेश्वर उन्हें उनकी भूमि लौटा कर ले आएगा। तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा,

 

“'कनान देश में लूज के स्थान पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे स्वयं दर्शन दिया। परमेश्वर ने वहाँ मुझे आशीर्वाद दिया। परमेश्वर ने मुझसे कहा, ‘मैं तुम्हारा एक बड़ा परिवार बनाऊँगा। मैं तुमको बहुत से बच्चे दूँगा और तुम एक महान राष्ट्र बनोगे। तुम्हारे लोगों का अधिकार इस देश पर सदा बना रहेगा।"

 

आपने ध्यान दिया किस प्रकार याकूब परमेश्वर के उसके निकट आकर उससे बात करने के विषय में बताता है? यह एक उच्च और दुर्लभ सम्मान और सौभाग्य की बात है। परमेश्वर अपनी वास्तविक, दृश्य उपस्थिति के साथ खुद को प्रकट करता है। यह कोई सपना या दृष्टी नहीं है। परमेश्वर

दिखाना चाहता था कि जो वह कहने जा रहा है, उसमें एक महान महत्व और उद्देश्य था। 

 

परमेश्वर, यूसुफ या उसके भाइयों के सामने एक समान रीती से प्रकट नहीं हुआ था। याकूब इस्राएल के तीन महान कुलपतियों, जो इस्राएल के राष्ट्र थे, में सबसे अंतिम था। परमेश्वर, इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से, वाचा प्रतिबद्धता बनाने के लिए, उनमें से प्रत्येक के लिए आया था। जब याकूब यहाँ बोलता है, वह अपने अधिकार प्राप्त सेवक के रूप में परमेश्वर के अधिकार के साथ बोलता है। वह परमेश्वर के वादों को हर एक पीढ़ी के लिए बोल रहा है। यह परमेश्वर के लोगों के लिए एक शक्तिशाली और महत्वपूर्ण क्षण था! आगे याकूब कहता है; 

 

''और अब तुम्हारे दो पुत्र हैं। मेरे आने से पहले मिस्र देश में यहाँ ये पैदा हुए थे। तुम्हारे दोनों पुत्र एप्रैम और मनश्शे मेरे अपने पुत्रों की तरह होंगे। किन्तु यदि तुम्हारे अन्य पुत्र होंगे तो वे तुम्हारे बच्चे होंगे। किन्तु वे भी एप्रैम और मनश्शे का जो कुछ होगा, उसमें हिस्सेदार होंगे।''                                  उत्पत्ति 48: 3-6 

 

क्या आपने इसे समझा? परमेश्वर ने युसूफ के दोनों पुत्र, एप्रैम और मनश्शे को याकूब के पुत्रों के समान लिया। वे रूबेन और शिमोन कितरह उसके प्रत्यक्ष वंशज के समान थे। याकूब ने बताया की वह कितना उदास था जब यूसुफ की मां, राहेल की, उनके यात्रा के दौरान कैसे मृत्यु हो गई थी। उसे इफ़रात में उसे दफ़न करना पड़ा जो बाद में बेतलेहेम कहलाएगा। उसने उसे केवल दो पुत्र दिए थे, और बिन्यामीन के होने के दौरान उसकी मृत्यु हो गयी थी। अब यूसुफ के दो सबसे बड़े बेटे ऐसे होंगे जिनके लिए राहेल कभी प्रदान नहीं कर पाई। जिस समय इस्राएल की जनजातियों को गिना जा रहा था, एप्रैम और मनश्शे को रूबेन, शिमोन, यहूदा के साथ सूचीबद्ध, में गिना जाएगा। 

 

यह एप्रैम और मनश्शे के लिए एक महान और उच्च सम्मान था। याकूब के बावन पोते थे, और उन सभी में से, इन दो को विशेष रूप से चुना गया था। उसके निर्देश के अनुसार, परमेश्वर को उस दिन का इंतज़ार था जब याकूब के वंशज वापस वादे के देश में जाएंगे। वह पूरी भूमि का विशाल वर्ग करेगा, और याकूब के प्रत्येक वंश को एक वर्ग देगा। प्रत्येक वंश उसके पुत्रों में से एक समूह था। रूबेन का वंशज एक वंश को बनाएगा और इसी प्रकार शिमोन का भी होगा। लेकिन यूसुफ के वंशज दो जनजातियों के रूप में गिने जाएंगे, और वे उसके दोनों बेटों के नाम पर कहलाये जाएंगे। यूसुफ का अपने खुद के नाम पर एक जनजाति नहीं होगा, लेकिन उसे देश का दुगना भाग प्राप्त हुआ। यह विरासत केवल पहलौठे की ही थी।आपको याद है किस प्रकार याकूब ने एक बार एसाव से पहलौठे का आशीर्वाद लेने के लिए मिलीभगत की थी? खैर, यह महान सम्मान युसूफ को परमेश्वर के द्वारा दी गई थी! 

 

परमेश्वर ने इन बातों को याकूब को बताया, और उसने विश्वास के द्वारा उन्हें स्वीकार किया। उसे विश्वास था की जैसा परमेश्वर ने कहा वह वैसा ही करेगा। एक दिन, परमेश्वर इस्राएल के वंश को वादे के देश में लाएगा, और वे बारह वंश एक महान राष्ट्र को बनाएँगे। 

 

याकूब ने आधिकारिक तौर पर यूसुफ के बेटों को गोद लिया था, लेकिन अभी कुछ करने बाकि था। जब वह यूसुफ के साथ बात कर रहा था, उसने देखा कि मनश्शे और एप्रैम पास में खड़े थे, जबकि वह देख नहीं सकता था। यूसुफ ने कहा, "'वे परमेश्वर के द्वारा दिए मेरे पुत्र हैं।" याकूब ने उन्हें उसके करीब लाने को कहा। याकूब ने अपने पोतों को चूमा और उन्हें गले से लगाया। उसने कहा, "'मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं तुम्हारा मुँह फिर देखूँगा, किन्तु देखो। परमेश्वर ने तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को भी मुझे देखने दिया।'”

 

तब यूसुफ ने बच्चों को इस्राएल की गोद से लिया और वे उसके पिता के सामने प्रणाम करने को झुके। फिर वह उठा और उनके दादा द्वारा आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए अपने बेटों को तैयार किया। इन सभी प्रक्रियाओं से पता चलता है की उनके हृदय में कितना एक दूसरे के लिए प्रेम था।लेकिन वे उस औपचारिक अनुष्ठान का एक हिस्सा थे जो याकूब कर रहा था। यह एक कानूनी लेन-देन था। यह एक अगली पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को पवित्र वादों और आशीर्वाद के हस्तांतरण को देने की एक महत्वपूर्ण धर्मक्रिया थी। यह दुनिया में और भविष्य में काम करने का उच्च, पवित्र और शक्तिशाली कार्य था। 

 

एप्रैम और मनश्शे के सरकारी गोद लेने की प्रक्रिया के समाप्ति के बाद, अब समय आ गया था कि याकूब उन्हें अपना आशीर्वाद दे। यूसुफ ने एप्रैम को अपनी दायीं ओर किया और मनश्शे को अपनी बायीं ओर। किन्तु इस्राएल ने अपने हाथों की दिशा बदलकर अपने दायें हाथ को छोटे लड़के एप्रैम के सिर पर रखा और तब बायें हाथ को इस्राएल ने बड़े लड़के मनश्शे के सिर पर रखा। 

 

तब याकूब ने यूसुफ और उसके पीछे आने वाली वंशज को आशीर्वाद दिया; 

 

'''मेरे पूर्वज इब्राहीम और इसहाक ने हमारे परमेश्वर की उपासना की,

और वही परमेश्वर मेरे पूरे जीवन का पथ—प्रदर्शक रहा है।

वही दूत रहा जिसने मुझे सभी कष्टों से बचाया
और मेरी प्रार्थना है कि इन लड़कों को वह आशीर्वाद दे।
अब ये बच्चे मेरा नाम पाएँगे। वे हमारे पूर्वज इब्राहीम
और इसहाक का नाम पाएँगे।

मैं प्रार्थना करता हूँ कि वे इस धरती पर 

बड़े परिवार और राष्ट्र बनेंगे।'” 

उत्पत्ति 48: 15-16 

 

परमेश्वर इन बेटों के लिए एक चरवाहे कितरह होगा। जिस तरह उसने याकूब के पूरे जीवन उसका निर्देशित किया, उसी प्रकार वह उसकी रक्षा और मार्गदर्शन करेगा। याकूब ने इसीलिए आशीर्वाद दिया ताकि परमेश्वर उनका दूत बनकर रहे। जिस प्रकार याकूब ने एक दूत के रूप में परमेश्वर के साथ मल्लयुद्ध किया था और उसके आशीर्वाद को प्राप्त किया, ये बेटे भी आशीर्वाद पाएंगे। वह उनकी सब मुसीबतों से रक्षा करेगा, और जिस प्रकार याकूब का परिवार बढ़ा उसी प्रकार उन्हें भी बढ़ाएगा। 

 

जब यूसुफ ने आशीर्वाद को सुना और याकूब के दाहिने हाथ को एप्रैम के सिर के बजाय मनश्शे के ऊपर देखा, तो वह परेशान हो गया। दाहिना हाथ सबसे बड़े बेटे के सिर पर होता है। यूसुफ ने अपने पिता के हाथ को पकड़ा। वह उसे एप्रैम के सिर से हटा कर मनश्शे के सिर पर रखना चाहता था। यूसुफ ने अपने पिता से कहा, “आपने अपना दायाँ हाथ गलत लड़के पर रखा है। मनश्शे का जन्म पहले है।” वह जानता था की उसके पिता की आँखें अब कमज़ोर हो गयी हैं, और उसने सोचा की शायद याकूब ने कोई ग़लती की है। लेकिन याकूब जानता था की वह क्या कर रहा था। यह जानबूझ कर किया गया था। वह परमेश्वर की इच्छा पर काम कर रहा था। उसने  कहा, “'पुत्र, मैं जानता हूँ। मनश्शे का जन्म पहले है और वह महान होगा। वह बहुत से लोगों का पिता भी होगा। किन्तु छोटा भाई बड़े भाई से बड़ा होगा और छोटे भाई का परिवार उससे बहुत बड़ा होगा।'” फिर उसने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा,

 

"'इस्राएल के लोग तुम्हारे नाम का प्रयोग

 आशीर्वाद देने के लिए करेंगे,

तुम्हारे कारण कृपा प्राप्त करेंगे।
लोग प्रार्थना करेंगे, ‘परमेश्वर तुम्हें

एप्रैम और मनश्शे के समान बनाये।’”

                  (उत्पत्ति 48:20)

 

यदि हम इस्राएल के भविष्य की ओर देखें, तो हम देख सकते हैं कि किस प्रकार याकूब के वंशजों के माध्यम से परमेश्वर एक राष्ट्र को उठाएगा। हम देख सकते हैं की किस प्रकार ये आशीर्वाद सच होते हैं।चार सौ साल याकूब के आशीर्वाद के बाद, दो महान जनगणना लिए जाएंगे। प्रत्येक जनजाति के प्रत्येक वंश की गिनती की जाएगी। चालीस साल में, एप्रैम और मनश्शे के जनजातियां 72,700 से बढ़कर 85,200 पुरुष हो जाएंगे। लेकिन रूबेन और शिमोन के जनजाती 105,800 से घटकर 65,930 हो जाएंगे। कई सालों बाद, एप्रैम का नाम इस्राएल के देश के उत्तरी क्षेत्रों में सभी दस जनजातियों का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, और वह सबसे शक्तिशाली होगा। जब परमेश्वर ने अपने पवित्र राष्ट्र के बारे में अपने सेवकों के माध्यम से बात की, तो उन्होंने उनके समय के लिए ही नहीं परन्तु आने वाले समय के लिए भी बात की। याकूब ने विश्वास के साथ उन आशीर्वाद के बारे में बात की जिन्हें वह देख नहीं सकता था।  

 

परमेश्वर कि कहानी पर ध्यान करना।  

यूसुफ ने परमेश्वर कि इच्छा को स्वीकार किया, जब की उसे कैद में रहना पड़ा। उसने परमेश्वर कि इच्छा को स्वीकार किया जब वह सत्ता में उठाया गया था। उसने परमेश्वर कि इच्छा को तब स्वीकार किया जब उसे उन लोगों को क्षमा करना था जो उसके जीवन को नष्ट करने की कोशिश कर रहे थे। ये सब बातें गहरी विनम्रता कि कृतियाँ थीं। और अब वह परमेश्वर के वाचा परिवार का पहलौठा कहलाने का अकल्पनीय सम्मान पाएगा! उसके वंशज परमेश्वर के पवित्र वादे के देश में सब कुछ दुगने भाग के वारिस होंगे। परमेश्वर कहता है कि जब हम उसकी दृष्टि में खुद को विनम्र करते हैं, वह हमें ऊपर उठाएगा।  

जब आप इन चीजों के बारे में सोचते हैं, तो आप परमेश्वर के विषय में क्या सोचते हैं? 

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।  

जब यूसुफ ने परमेश्वर के सामने विनम्रता दिखाई, तो वह अक्सर साथी मनुष्यों के लिए विनम्रता और सेवा के माध्यम से दिखाता था। बाहर से, ऐसा लगता था कि युसूफ के जीवन किस्थिति नाटकीय रूप से बदल गयी है। लेकिन सच में, जो बातें युसूफ के जीवन में हो रहीं थीं, ये उसके सामने बिलकुल नगण्य थीं। उन्होंने कहा कि परमेश्वर पर उसका दिल पूरे समय निर्धारित किया गया था! उसने पूरे समय परमेश्वर की ओर अपने हृदय को लगाया था। वह एक सनातन कि दृष्टि से जी रहा था।यह उसे पृथ्वी पर मानव स्थितियों में ताकत देती थीं।  

 

हमारे जीवित परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर। 

मनुष्य के लिए इस दुनिया कि चीजों पर आँखें लगाये रखने के बजाय शाश्वत बातों पर आँखें लगाना बहुत कठिन था। प्रेरित पौलुस ने कुलुस्सियों को अपनी पत्री में इसके बारे में लिखा था। ये वो सत्य हैं जिन पर हमें ध्यान करना चाहिए यदि हम उन्हें समझना चाहते हैं। नीचे दिए भाग को ज़ोर से एक दो बार पढ़ें। हर बार, उसके अर्थ के लिए प्रार्थना करें। उन्हें और अधिक गहराई से समझने के लिए परमेश्वर कि सशक्तिकरण का शोध करें: 

 

कुलुस्सियों 3: 1-6; 12 

"'क्योंकि यदि तुम्हें मसीह के साथ मरे हुओं में से जिला कर उठाया गया है तो उन वस्तुओं के लिये प्रयत्नशील रहो जो स्वर्ग में हैं जहाँ परमेश्वर की दाहिनी ओर मसीह विराजित है। स्वर्ग की वस्तुओं के सम्बन्ध में ही सोचते रहो। भौतिक वस्तुओं के सम्बन्ध में मत सोचो। क्योंकि तुम लोगों का पुराना व्यक्तित्व मर चुका है और तुम्हारा नया जीवन मसीह के साथ साथ परमेश्वर में छिपा है। जब मसीह, जो हमारा जीवन है, फिर से प्रकट होगा तो तुम भी उसके साथ उसकी महिमा में प्रकट होओगे। इसलिए तुममें जो कुछ सांसारिक बातें है, उसका अंत कर दो। व्यभिचार, अपवित्रता, वासना, बुरी इच्छाएँ और लालच जो मूर्ति उपासना का ही एक रूप है, इन ही बातों के कारण परमेश्वर का क्रोध प्रकट होने जा रहा है। क्योंकि तुम परमेश्वर के चुने हुए पवित्र और प्रियजन हो इसलिए सहानुभूति, दया, नम्रता, कोमलता और धीरज को धारण करो।'"