पाठ 66 : मिस्र की खतरनाक वापसी यात्रा
यूसुफ के भाइयों ने अन्न को अपने गधों पर लादा और वहाँ से चल पड़े। वे सभी भाई रात को ठहरे और भाईयों में से एक ने कुछ अन्न के लिए अपनी बोरी खोली और उसने अपना धन अपनी बोरी में पाया। अचानक, वह बहुत डर गया। उन्होंने आपस में बातें कि और कहा, "परमेश्वर हम लोगों के साथ यह क्या कर रहा है?” याकूब के बेटे समझ रहे थे कि परमेश्वर इन घटनाओं के माध्यम से काम कर रहा था। परमेश्वर कि धार्मिकता उनके दिलों में दबाव डाल रहा था। वे परमेश्वर के श्रद्धा के प्रति सचेत हो रहे थे।
जब वे घर पहुंचे, उन्होंने याकूब को वो सब बताया जो उनके साथ बीता था। उन्होंने कहा कि बिन्यामीन को वापस मिस्र ले जाना होगा। उस मिस्र के अधिकारी को मनाने का यह एक ही रास्ता था। शिमोन को बचाने का यह एक ही रास्ता था!
जब भाइयों ने अनाज के बोरे खोले, उन्हें एहसास हुआ कि उनकी चांदी अभी भी उनकी बोरियों में थी। इससे वे और अभिक डर गए। उन्हें अब क्या करना चाहिए? उस कठोर मिस्र के अधिकारी को कैसे आश्वासन देंगे की उन्होंने चोरी नहीं की है? उनके पहुंचने पर वह उनके साथ क्या करेगा? इसके बाद क्या वह शिमोन को मुक्त करेगा? इस भयानक गलती के लिए क्या शिमोन को दण्ड मिल चुका होगा?
याकूब बहुत दुखी हुआ। उसने अपने बेटों पर विश्वास नहीं किया। उसने उनसे कहा, "'क्या तुम लोग चाहते हो कि मैं अपने सभी पुत्रों से हाथ धो बैठूँ। यूसुफ तो चला ही गया। शिमोन भी गया और तुम लोग बिन्यामीन को भी मुझसे दूर ले जाना चाहते हो।'” याकूब के बेटों ने विरोध किया। रूबेन ने याकूब से विनती की कि वह बिन्यामीन को उसके साथ आने दे। उसने कहा की यदि बिन्यामीन उनके साथ वापस नहीं आता है तो वह उसके दो बेटों को मार सकता है। याकूब ने उनमें से किसी की भी नहीं सुनी। रूबेन पहले से ही ज्येष्ठ पुत्र के रूप में अपनी नज़रो में गिर गया था, और उनमें से कोई भी बिन्यामीन के अहानिकर लौटने का आश्वासन नहीं दे सकता था। उसने कहा, "मैं बिन्यामीन को तुम लोगों के साथ नहीं जाने दूँगा। उसका भाई मर चुका है। तुम लोग मुझ वृद्ध को कब्र में बहुत दुःखी करके भेजोगे।” याकूब का हृदय अपने बेटों में बट गया था, लेकिन वे सही काम करने के लिए एकजुट हो गए थे।
अकाल और अधिक गंभीर होता चला गया। याकूब के पुत्र मिस्र से जो अनाज लाये थे वह धीरे धीरे खत्म हो रहा था, और उन्हें भूख से मरने का खतरा था। सारी दुनिया में केवल मिस्र में ही अनाज उपलब्ध था। याकूब ने अपने बेटों से और अनाज ख़रीद कर लाने को कहा। यहूदा ने अपने पिता को याद दिलाया कि यदि वे बिन्यामीन को उनके साथ वापस लाएंगे तभी वह मिस्र का अधिकारी उन्हें और अनाज देगा। अन्यथा, उन्हें कोई मदद नहीं प्राप्त होगी।
बहुत हताश होकर याकूब ने उनसे पुछा कि क्यूँ उन्होंने अधिकारी को बताया की उनका एक और भाई था। उन्होंने कहा की उस अधिकारी ने उनके परिवार के बारे में पूछा था। वे इसीलिए ईमानदारी से उसे जवाब दे रहे थे ताकि वह उन्हें जासूस ना समझे। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी बिलकुल नहीं थी कि वह अधिकारी बिन्यामीन को मिस्र में लाने कि मांग करेगा।
अंत में, यहूदा ने अपने पिता से कहा,“बिन्यामीन को मेरे साथ भेजो। मैं उसकी देखभाल करूँगा हम लोग मिस्र अवश्य जाएंगे और भोजन लाएंगे। यदि हम लोग नहीं जाते हैं तो हम लोगों के बच्चे भी मर जाएँगे। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि वह सुरक्षित रहेगा। मैं इसका उत्तरदायी रहूँगा। यदि मैं उसे तुम्हारे पास लौटाकर न लाऊँ तो तुम सदा के लिए मुझे दोषी ठहरा सकते हो। यदि तुमने हमें पहले जाने दिया होता तो भोजन के लिए हम लोग दो यात्राएँ अभी तक कर चुके होते।”
वाह! क्या आपने सुना? यहूदा अपने भाइयों और परिवार किखातिर अपनी जान देने के लिए तैयार था। कितना बदला गया था वो! वह एक सिद्ध अगुवा बनता जा रहा था। कम से कम दो दशक पहले, यूसुफ को बेचने का विचार उसका ही था। अब वह अपने भाई को आज़ाद करने के लिए स्वयं को वादे में बांध रहा था।
उसने याकूब के आगे अपने परिवार के भाग्य को रखने का वादा किया यदि वह बिन्यामीन को वापस नहीं ला पाता है। उसने उसकी सुरक्षा का आश्वासन दिया। फिर उसने बिन्यामीन की रक्षा के लिए अपनी जान को आगे रखा। यदि बिन्यामीन वापस नहीं आता है तो वह सारा दोष और सज़ा अपने ऊपर लेने को तैयार था। यहूदा अपने पिता का सम्मान करता था, लेकिन उसने यह स्पष्ट किया कि उनके पास और कोई चारा नहीं था। उन्हें मिस्र जाना था, और उन्हें बिन्यामीन को अपने साथ ले जाना था।
याकूब ने कहा, “यदि यह सचमुच सही है तो बिन्यामीन को अपने साथ ले जाओ। किन्तु प्रशासक के लिए कुछ भेंट ले जाओ। उन चीजों में से कुछ ले जाओ जो हम लोग अपने देश में इकट्ठा कर सके हैं। उसके लिए कुछ शहद, पिस्ते, बादाम, गोंद और लोबान ले जाओ। इस समय, पहले से दुगुना धन भी ले लो जो पिछली बार देने के बाद लौटा दिया गया था। संभव है कि प्रशासक से गलती हुई हो। बिन्यामीन को साथ लो और उस व्यक्ति के पास ले जाओ। मैं प्रार्थना करता हूँ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर तुम लोगों की उस समय सहायता करेगा जब तुम प्रशासक के सामने खड़े होओगे। मैं प्रार्थना करता हूँ कि वह बिन्यामीन और शिमोन को भी सुरक्षित आने देगा। यदि नहीं तो मैं अपने पुत्र से हाथ धोकर फिर दुःखी होऊँगा।”
वाह, सोचिये याकूब को कितना भयानक निर्णय लेना पड़ा। उसने मान लिया था की यूसुफ मर चुका है, और अब शिमोन मिस्र के जेल में था। यदि वह बिन्यामीन को भेजता है, तो हो सकता है कि वह उसे भी खो दे। उसके अन्य सभी बेटों पर मिस्र के शाही खाद्य आपूर्ति की चोरी का आरोप लगने का खतरा था। वे जेल जा सकते थे। यदि वे ऐसा जोखिम उठाते हैं तो उन्हें भुखमरी का खतरा हो सकता था। वाचा से बंधा यह परिवार दांव पर लगा था, और अब परमेश्वर को उन्हें घर सुरक्षित लाना था।
याकूब के बेटे व्यापक उपहार और चांदी लेकर वापस मिस्र के लिए रवाना हो गए। जब यूसुफ ने उन्हें और बिन्यामीन को उनके साथ देखा, उसने अपने नौकरों को आज्ञा दी की उन्हें उसके घर में लेजाया जाये, और एक पशु को वध करके एक बड़ा भोज तैयार किया जाये। यूसुफ उनके साथ भोजन करने के लिए दोपहर में घर जा रहा था। युसूफ के नौकरों ने वैसा ही किया जैसा उनसे कहा गया था। लेकिन यूसुफ के भाई घबरा गए थे। सभी लोगों में, केवल इन्हें ही क्यूँ विशेष ध्यान दिया जा रहा था? क्या उस मिस्र के अधिकारी को उनके थैले में चांदी के बारे में पता था? क्या वह उन पर हमला करके उन्हें ग़ुलाम बनाने जा रहा था?
परमेश्वर कि कहानी पर ध्यान करना।
यूसुफ परमेश्वर पर विश्वास करता था और उसकी महिमा करता था। उसने पूरी तौर से अपने भाइयों को माफ कर दिया था और जेल में रहते हुए भी वह परमेश्वर पर वफ़ादारी से भरोसा करता रहा। उसने परमेश्वर की दृष्टि में अपने आप को दीन किया, और परमेश्वर ने उसे ज़बरदस्त सम्मान दिया। यूसुफ एक बार फिर से आज्ञाकारिता में खड़ा था। अपने परिवार में सुलह और शांति लाने के लिए उसे परमेश्वर के सेवक के रूप में इस्तेमाल किया गया था! एक बार फिर, यूसुफ हमें मसीह कि सेवकाई की एक सुंदर तस्वीर देता है। सुनिए पौलूस II कुरन्थियों 5: 17-20 में क्या लिखता है:
"इसलिए यदि कोई मसीह में स्थित है तो अब वह परमेश्वर कि नयी सृष्टि का अंग है। पुरानी बातें जाती रही हैं। सब कुछ नया हो गया है और फिर ये सब बातें उस परमेश्वर की ओर से हुआ करती हैं, जिसने हमें मसीह के द्वारा अपने में मिला लिया है और लोगों को परमेश्वर से मिलाप का काम हमें सौंपा है। हमारा संदेश है कि परमेश्वर लोगों के पापों कि अनदेखी करते हुए मसीह के द्वारा उन्हें अपने में मिला रहा है और उसी ने मनुष्य को परमेश्वर से मिलाने का संदेश हमें सौंपा है। इसलिये हम मसीह के प्रतिनिधि के रूप में काम कर रहे हैं। मानो परमेश्वर हमारे द्वारा तुम्हें चेता रहा है। मसीह की ओर से हम तुमसे विनती करते हैं कि परमेश्वर के साथ मिल जाओ। जो पाप रहित है, उसे उसने इसलिए पाप-बली बनाया कि हम उसके द्वारा परमेश्वर के सामने नेक ठहराये जायें।"
मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।
परिवार का बंधन कितना शक्तिशाली और गहरा था। वे मज़बूत संबंध होते हैं, और उनमें इतनी ज़बरदस्त क्षमता होती है कि वे या तो परमेश्वर के राज्य के लिए हमें बना सकते हैं, या फिर धोखे और तकलीफ में हमें नीचे गिरा सकते हैं। जब हम परमेश्वर के परिवार को अंधेरी और सबसे दुर्भावनापूर्ण घड़ी से परमेश्वर के दास्तव में जाते देखते हैं, तो हम उन बातों को देख सकते हैं जो परमेश्वर ने हमारे लिए रख छोड़ी हैं। परमेश्वर बहाल करने वाला परमेश्वर है। उसने हमें नई सृष्टि बनाई है। हम अपने प्रियजनों के साथ इस अनमोल उपहार का उपयोग कैसे कर सकते हैं? मसीह के राजदूत होने के लिए क्या हम एक दूसरे के लिए ताकत बन सकते हैं? या फिर हम एक दूसरे को नीचा दिखाएंगे?
हमारे जीवित परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर।
यह अच्छा समय है कि हम परमेश्वर से कहें की वह हमारे दिलों को जाँचे। उसने आपको अपने शक्तिशाली प्रेम और कृपा से पूरी तौर से स्वीकार कर लिया है, और अब वह आपको लगातार शुद्ध और पूर्ण करना चाहता है।
आप यीशु से मांगिये कि वह आपको दिखाए की किस प्रकार आप क्रोधित होते हैं और अन्य ऐसी बातें करते हैं। क्या आप यीशु से मांगेंगे की वह आपको दिखाए की कहाँ से ऐसा पाप आता है? आप किस प्रकार उस पर भरोसा नहीं कर रहे हैं? आप कैसे परमेश्वर के पास ना जाकर दूसरों को दोष दे रहे हैं?परमेश्वर के आगे शांत होकर उसकी सुनें। कौन सी ऐसी बात है जो वह चाहता है की आप मान लें और प्रार्थना करें? सुलह और शांति लाने के लिए आपको किस प्रकार उपयोग करना चाहता है? क्या कोई विशेष चीज़ है जो वो चाहता है की आप करें? दूसरों के प्रति आपका जो दृष्टिकोण है, क्या उसे छोड़ने को कह रहा है? क्या किसी से माफ़ी मांगने की ज़रुरत है? परमेश्वर जिस समय आपको इतने धैर्य और नम्रता के साथ इन बातों को दिखाता है, तो यह ज़रूरी है की आप आज्ञाकारिता के साथ उसकी प्रतिक्रिया करें। उसने आपको अपनी धार्मिकता बनाया है, और अब वह चाहता है कि आप अब उसमें कदम रखें।