पाठ 64 : मिस्र में यूसुफ का जीवन

फिरौन ने युसूफ को पूरे मिस्र का अधिकारी बना दिया था। उसने अपनी मुद्रिका उतार कर युसूफ को पहना दी। अंगूठी एक मोहर थी जिसे पिघले मोम के लिए दबाया जाता था। कोई पत्र या पुस्तक पर उस अंगूठी की मोहर फिरौन के द्वारा दिए आदेश के बराबर था। यूसुफ देश में सबसे शक्तिशाली निर्णय निर्माता था! 

अपने नए पद को पाने के बाद, शाही शक्ति के प्रतीक के रूप में युसूफ को कीमती कपड़े पहनाये गए।फिरौन ने यूसुफ को अपने बराबर की सवारी करने के लिए एक दूसरा रथ दिया। यूसुफ सब जगह, भव्यता और राजसी गौरव के साथ जाता था। लोग उसकी उपस्थिति की घोषणा करते हुए, उसके लिए राह बनाने के लिए आदेश देते थे। मिस्र के लोग युसूफ के आगे झुक जाते थे जब वह अपने रथ पर आता था। 

 

 

 

फिरौन राजा ने यूसुफ को एक नया मिस्र का नाम दिया। वह अब सापन तपानेह कहलाएगा। इसका अर्थ है "परमेश्वर बोलते हैं और जीवित हैं।" जितनी बार कोई उसके नाम को पुकारता था, वह इब्राहीम के परमेश्वर की ओर इशारा करता था। फ़िरौन ने आसनत नाम की एक स्त्री, जो ओन के याजक पोतीपेरा की पुत्री थी, यूसुफ को पत्नी के रूप में दी। 

 

परमेश्वर ने जब युसूफ को जेल से बाहर निकाला, तब वह तीस वर्ष का था। मिस्र में गुलामी के तेरह साल बाद, अकाल और आपदा से बचाने के लिए परमेश्वर ने उसे सशक्त किया। 

 

जब से परमेश्वर के सेवकों ने युसूफ के जीवन की कहानी को देखा है, वह एक नमूना ठहरी है। परमेश्वर के सैकड़ों बच्चों के लिए यह कहानी ने बहुत शांति दी है जो कठिनाई और संकट के समय को समझने में मदद करती हैं। हजारों साल बाद, पतरस नाम का एक व्यक्ति, जो परमेश्वर का सेवक और प्रभु का दोस्त है, लिखेगा: "इसलिए परमेश्वर के महिमावान हाथ के नीचे अपने आपको नवाओ। ताकि वह उचित अवसर आने पर तुम्हें ऊँचा उठाए।"(1 पतरस 5: 6) निश्चित रूप से युसूफ उस गौरवशाली सच का एक अद्भुत तस्वीर है। 

          

यूसुफ जब सात सालोँ के भरमार के समय भंडारों कि तैयारी और अनाज को एकत्रित कर रहा था, आसनथ के दो पुत्र उत्पन्न हुए। यूसुफ के पहलौठे का नाम मनश्शे था, जिसका अर्थ है "भूल जाना।" यह परमेश्वर कि स्तुति के लिए था। यूसुफ के जीवन में नया मोड़ और एक क़ीमती बेटे के उपहार ने उसके दर्द और अपने जीवन के अकेलेपन को जो याकूब के घर में और विश्वासघात के कारण मिला था, उसे भूलने में मदद की। अपने नए आशीर्वाद के साथ, मिस्र में तेरह साल की ग़ुलामी और कैदी के रूप में वो समय धुंधला नज़र आने लगा। यूसुफ ने दूसरे पुत्र का नाम एप्रैम रखा, जिसका अर्थ इब्रानी भाषा में "दो बार उपयोगी" है। जो देश युसूफ के लिए कष्टदायक निकला था, वहां परमेश्वर ने उसे जीवन और आनंद से भर दिया था। दूसरे बेटे से यह साबित हुआ की परमेश्वर युसूफ के जीवन को एक बार फिर आशीषों से भर रहे थे। 

 

यूसुफ ने मिस्र के कपड़े पहने और फिरौन के दिए मिस्री नाम को स्वीकार किया। लेकिन वह अभी भी परमेश्वर द्वारा इब्राहीम, इसहाक, और याकूब के साथ किये वाचा के प्रति समर्पित था। हम यह इसीलिए जानते हैं क्यूंकि यूसुफ ने अपने बेटों को मिस्र के नाम नहीं दिए थे। मनश्शे और एप्रैम यहूदी नाम थे, जो यूसुफ के परिवार की भाषा थी। चाहे वह अपने घर से दूर और एक विदेशी देश में बेतहाशा तरीके से सफ़ल था, यूसुफ परमेश्वर के वादे में विश्वास के साथ बना रहा। उसे भरोसा था किएक दिन उसके बेटे परमेश्वर कि वाचा में बहाल किये जाएंगे। 

 

प्रचुर मात्रा में फसल के सात साल का अंत हो गया, और अकाल एक प्रतिशोध के रूप में आ गया था।परमेश्वर ने निर्धारित कर लिया था की वह इतिहास में अधिनियम करेंगे, और मिस्र के शासक को उसके सपने में बता दिया था ताकि फिरौन तैयार हो सके। पूरी दुनिया आने वाले अकाल के कारण दबाव और डर के तहत थी। केवल मिस्र में मुक्ति पाई जा सकती थी। परमेश्वर ने अच्छी तरह से राष्ट्र को तैयार किया था। 

         

बहुत जल्द, मिस्र के लोग मदद के लिए फिरौन को पुकारने लगे। फिरौन राजा ने यूसुफ को संकेत दिया की वह वही करे जो उसने कहा। यूसुफ ने बड़ी ख़ुशी से भूखे लोगों के लिए भंडारों को खोल दिया। परमेश्वर के इस वाचा के पुत्र के माध्यम से, उनके पास खाने के लिए बहुतायत से अनाज होगा, और वे अपने पशुओं को जीवित रख सकेंगे। 

अपने पद के माध्यम से, यूसुफ आसपास के देशों के लोगों को आशीर्वाद देने के लिए सक्षम होगा। जैसे जैसे अकाल और अधिक गंभीर होता गया, सभी आसपास के देशों के लोग अनाज के लिए मिस्र में आने लगे।  

 

कनान देश में याकूब के घर में भी अकाल फैल गया था। उसे अपने परिवार के जीवन कि चिंता होने लगी। फिर खबर मिली की मिस्र में अनाज के भंडार हैं। याकूब को थोड़ा भी संकेत नहीं हुआकिइसका कारण उसका अपना यूसुफ है। याकूब ने अपने बेटों से कहा, "हम लोग यहाँ हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे है? मैंने सुना है कि मिस्र में खरीदने के लिए अन्न है। इसलिए हम लोग वहाँ चलें और वहाँ से अपने खाने के लिए अन्न खरीदें, तब हम लोग जीवित रहेंगे, मरेंगे नहीं।” यूसुफ के भाईयों में से दस अन्य अनाज खरीदने मिस्र गए। लेकिन याकूब ने बिन्यामीन को नहीं भेजा। उसने राहेल के पहलौठे बेटे, युसूफ को जंगली जानवरों द्वारा खो दिया था। या फिर उसे ऐसा लगता था। और अब वह बिन्यामीन को खोना नहीं चाहता था। 

 

एक दिन, यूसुफ, एक सर्वोच्च अधिकारी के रूप में, अपने व्यापार में व्यस्त होते हुए, सब ज़रूरतमंदों को अनाज बाँट रहा था। कुछ दस लोग उसके पास आये और उसे झुक कर प्रणाम किया। युसूफ को ज़्यादा समय नहीं लगा इन लोगों को पहचानने में कि वे उसके अपने भाई थे। आपको यूसुफ के, गेहूं के ढेरों के बारे में उसका सपना याद है? वे उसके भाइयों का प्रतीक थे जब वे उसके आगे झुकेंगे। मालूम नहीं याकूब को अपना सपना याद था कि नहीं। वह सच होने लगा था। अब यूसुफ उनके सामने मिस्र के सभी अधिकार के साथ खड़ा था। ये वो लोग थे जिन्होंने उसकी हत्या कि साजिश रची और एक गुलाम होने के लिए उसे बेच दिया था। अब जब यूसुफ के पास उस परिस्थिति का नियंत्रण था तो अब वह क्या करेगा? 

 

परमेश्वर कि कहानी पर ध्यान करना। 

क्या आप यूसुफ के जीवन में अचानक आये परिवर्तन कि कल्पना कर सकते हैं? क्या एक स्वर्ण रथ में घूमने की कल्पना कर सकते हैं? एक कैदी से लेकर दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र में दूसरा सर्वोच्च शासक होना कितना लुभावनी है! यदि परमेश्वर उसके लिए ऐसा कर सकते हैं, वह किसी भी स्थिति को बदल सकते हैं। अपनी आशाओं और दर्द और चिंताओं को परमेश्वर के पास ले जाइये और धैर्य से उस पर धीरज रखिये! आप नहीं जानते कब परमेश्वर कोई नई बात कर दे। 

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।  

जब हम देखते हैं कि किस प्रकार परमेश्वर ने यूसुफ को ऊंचा उठाया, तो परमेश्वरकिअच्छाई पर आनन्दित होना अच्छा है। और कितना अधिक हमें यीशु कि उमंग में आनन्दित होना चाहिए! यहाँ फिलिप्पियों कि पुस्तक से इसे मनाने कि कुछ आयतें हैं: 

 

फिलिपियोँ- 2: 5-11 

"अपना चिंतन ठीक वैसा ही रखो जैसा मसीह यीशु का था।

जो अपने स्वरूप में यद्यपि साक्षात् परमेश्वर था,
किन्तु उसने परमेश्वर के साथ अपनी इस समानता को कभी
ऐसे महाकोष के समान नहीं समझा जिससे वह चिपका ही रहे।
बल्कि उसने तो अपना सब कुछ त्याग कर

एक सेवक का रूप ग्रहण कर लिया और मनुष्य के समान बन गया।

इसलिए परमेश्वर ने भी उसे ऊँचे से ऊँचे
स्थान पर उठाया और उसे वह नाम दिया जो सब नामों के ऊपर है
ताकि सब कोई जब यीशु के नाम का उच्चारण होते हुए सुनें, तो नीचे झुक जायें।
चाहे वे स्वर्ग के हों, धरती पर के हों और चाहे धरती के नीचे के हों।
और हर जीभ परम पिता परमेश्वर की
महिमा के लिये स्वीकार करें, “यीशु मसीह ही प्रभु है।”

 

हमारे जीवित परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर।  

वाह! परमेश्वर के पुत्र में हम एक अद्भुत नमूना पाते हैं। वह हमारी सब प्रशंसा के योग्य है! क्या आप परमेश्वर को अपनी प्रशंसा दिखाना चाहेंगे? क्या आप उसे धन्यवाद देना चाहेंगे? आप किस तरह बांटना चाहेंगे? क्या आप उसके लिए गीत गाना चाहेंगे? क्या आप कृतज्ञता के शब्द के साथ प्रार्थना करना चाहेंगे? क्या आप नृत्य या कूदना या चिल्लाना चाहते हैं? क्या आप उन्हें गले लगाना चाहते हैं जिनसे आप प्रेम करते हैं या एक कविता लिखना चाहेंगे? क्या आप अपने पड़ोसियों के साथ उसके प्रेम को बाँटना चाहेंगे? परमेश्वर प्रसन्न होता है जब उसके बच्चे उसके पास आते हैं। उसकी खोज कीजिये और उसके निरंतर, शक्तिशाली प्रेम की प्रतिक्रिया कीजिये!