पाठ 26 : बुतपरस्त राजाओं पर परमेश्वर की विजय … धर्मी जन से आशीषें

फिरौन द्वारा दिए गए धन और संपत्ति को लेकर अब्राम मिस्र से लौट आया। लूत की भेड़ बकरियां बड़ी हो गईं थीं इसीलिए दोनों गुट अब एक दूसरे के पास नहीं रह सकते थे। सभी जानवरों को खाने के लिए पर्याप्त नहीं था! सो अब्राम ने लूत को पहली पसंद दे दी, और लूत यरदन के हरे भरे मैदानों में चला गया। लूत और उसका परिवार सदोम के दुष्ट शहर के पास बस गए। इस बीच, अब्राम ने तम्बू लगाकर मम्रे में रहने का फैसला किया, और वहां उसने परमेश्वर की उपासना की। 

उस समय देशों और शहरों के बीच युद्ध छिड़ गई। उस समय के देश और शहर आज के समय कि तरह नहीं थे। प्रत्येक राष्ट्र एक कबीले या जनजाति कि तरह था, और शहर केवल कुछ सौ लोगों से सम्मिलित था। आज हम उन्हें गांव कहते हैं। लेकिन तनाव और दुश्मनी पैदा करना मानव कि निपूर्णता है। बाइबिल बताती है की बाबेल में, इंसान परमेश्वर के प्रति जंगी, और टूटे प्रकृति में बदल गया था। मानवता जब एक बार पूरी तरह परमेश्वर से दूर हो गया, उन्होंने अपने प्रतिशोध और द्वेष को कहीं और निर्देशित कर दिया। परमेश्वर के प्रति जो शातिर संघर्ष दिखाया वह उन्होंने आपस में एक दूसरे पर शुरू कर दिया। पाप पृथ्वी पर तेज़ी से बढ़ रहा था जिसके साथ पीड़ा और नुकसान भी हो रहे थे। आदम और हव्वा के द्वारा दुनिया में जो अभिशाप आया वह कहीं अधिक विनाशकारी और सर्प के झूठ से भी भीषण था। 

पूर्व से चार राज्य पांच अन्य राजाओं के विरुद्ध में एकजुट हो गए। कदोर्लाओमेर एलाम का राजा था, और वह चार राज्यों के पहले समूह के सहयोगी में से एक था। बारह साल तक उसने उन्हें अपने शासन और सत्ता के अधीन में रखा। लेकिन तेरहवें वर्ष में, उन्होंने विद्रोह किया। चौदहवें वर्ष में कदोर्लाओमेर फिर से लड़ने के लिए वापस आ गया, और इस इस बार अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर उसने पूरे क्षेत्र पर विजय प्राप्त की। ऐसे शहरों में रहना कितना डरावना होगा। उनकी जीत बहुत लम्बे समय के लिए नहीं थी। उनके शत्रु, वो पांच राजा, सिद्दिम की घाटी में एक शक्तिशाली सेना के रूप में उनके खिलाफ लड़ने के लिए निकल आये। वे लड़ाई के लिए तैयार थे। 

चार पूर्वी राजा उन पांच के विरुद्ध में लड़ने को तैयार हो गए और लड़ाई शुरू हुई। वो चार राजा और उनके सिपाही जब जीतने लगे, तब सदोम और अमोरा कि सेनाएं वापस पलायन करने लगीं। समस्या केवल यह थी की सिद्दिम की घाटी टार गड्ढों से भरी हुई थी। डरपोक सिपाही लड़ाई से भागते समय उस टार के मोटे, काले ताल में गिर गए। उन चार राजाओं ने उन्हें घर तक उनका पीछा किया। उन्होंने सदोम और अमोरा के नगरों को लूटा और उनके सभी कीमती से क़ीमती सामान और भोजन ले आये। उनके बंदी को भी ले आये। 

क्या आप उन सैनिकों की कल्पना कर सकते हैं जो युद्ध के भय से भरे हुए आपके शहर में तूफान की तरह आ रहे हों? वे दरवाज़ों को तोड़ते हुए और घरों को लूटते हुए वो सब कुछ हासिल करेंगे जो उन्हें मिल जाये। वे कैदियों के रूप में उनके पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को पकड़ लेंगे। वे अक्सर वापस विजयी सेना की भूमि के लिए लंबे जुलूस पर जाने के लिए उन्हें मजबूर कर देंगे। वहाँ उन्हें उच्चतम कीमत चुकाने वाले को एक गुलाम बनाकर बेच सकते हैं।  

अब, लूत सदोम के वास्तविक शहर में रहने को चला गया था। दुष्टता के इतने करीब अपने जीवन का निर्माण करना मूर्खता थी। सेना जब सदोम में घुसी, वे उसको और उसके सभी सामान को अपने साथ ले गई। उनमें से एक बचकर अब्राम के पास पहुंचा और उसे भतीजे के विषय में बताया। अब्राम ने बुद्धिमानी के साथ बुराइयों से अलग एक जीवन चुना। लेकिन अब वो बुराइयां उसके भतीजे के कारण उसकी दुनिया में भी प्रवेश कर रहीं थीं। 

अब्राम के विश्वास के साथ साथ उसकी हिम्मत भी बढ़ रही थी। मिस्र में एक पथिक के रूप में, वह राजा के सामने डरपोक की तरह अपनी पत्नी कि पेशकश की। लेकिन अब वह चार राजाओं की सेनाओं के खिलाफ अपने कर्तव्य को निभाने खड़ा हुआ, लेकिन उसे कुछ रोक नहीं सकता था। लूत के लिए उसका प्यार सम्माननीय और भाई जैसा था, और उसकी मदद के लिए उसे कोई दूसरा विचार नहीं आया था।

अब्राम भी तैयार था। उसने अपने ही घराने से तीन सौ अठारह कुशल सैनिकों को प्रशिक्षित किया। उसने अपने तीन पड़ोसियों के साथ एक गठबंधन बनाया था। मिलकर वे इन चार राजाओं का पीछा करेंगे। इस तरह यह अब्राम का धन और बुद्धि बन गई थी! जब वे हमला करेंगे तब अब्राम की सेना का क्या होगा? क्या वे लूत का बचाव कर पाएंगे? क्या यह नई लड़ाई और युद्ध का आरम्भ अब्राम को बीच में रख कर शुरू होगा? 

परमेश्वर कि कहानी पर अध्ययन।  

अब्राम परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से समर्पित था। वह चाहता था कि सब यह जानें की जो कुछ उसके पास था वह सब परमेश्वर की ओर से था। इसके बजाय कि सदोम का दुष्ट राजा अब्राम के जीवन कि आशीषों का श्रेय अपने ऊपर ले, उसे सारी धन संपत्ति उसके बदले में त्याग देना मंज़ूर था। अब्राम परमेश्वर को सारी महिमा देना चाहता था।  

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।  

लोग जब आप को देखते हैं, क्या वे यह समझ पाते हैं कि आपके जीवन की आशीषें परमेश्वर की ओर से दान हैं? क्या आप अपने जीवन में धन की तलाश करते हैं जो परमेश्वर को महिमा नहीं देता है? अब्राम को यह विश्वास था कि चाहे उसके युद्ध से हासिल धन चला जाये, तौभी उसका परमेश्वर उसे आशीषें देता रहेगा। चुपचाप बैठ कर अपने दिल की उत्सुकता पर ध्यान दीजिये। क्या आपकी भावनाएं आपको यह दिखाती हैं कि जीवन की तमाम बातें जैसे आपका पैसा, अच्छी नौकरी या माता पिता या अपनी प्रतिभा या सुंदरता परमेश्वर के दानों से बढ़कर हैं? क्या कोई ऐसी चीज़ है यदि परमेश्वर आपसे मांगे और आप देने से इंकार कर दें? क्या कोई और आपके लिए परमेश्वर से बढ़ कर है?

परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर। 

एक पल के लिए बैठ कर उन चीज़ों कि कल्पना कीजिये जो आपके लिए अधिक कीमती हैं। यह अन्य लोग, वस्तुएं, स्वास्थ्य या सौंदर्य, या भविष्य की बातें हो सकती हैं। क्या आप अपने मन में उनकी कल्पना कर सकते हैं? अब उन्हें अपनी बाहों में लपेटने की कोशिश कीजिये। ऐसे दिखाइए की आपने इन सब चीज़ों को अपनी बाहों में ले लिया है और आप परमेश्वर के सिंहासन के सामने खड़े हैं।यीशु वहां अपने सिंहासन पर विराजमान है। स्वर्गदूत गौरवशाली सभा में स्तुति कर रहे हैं। परन्तु आपके और यीशु के बीच, आपके लिए दूसरी बातें अधिक महत्व देती हैं! क्या आप अपने आप उसके पैरों पर उन चीजों को समर्पित करते देखना चाहेंगे? जब आप हर चीज़ को उसके चरणों में रखते हैं, आप यह प्रार्थना कर सकते हैं:

"'प्रभु यीशु, मैं आपको आपने पूरे दिल, और पूरे मन, और पूरी सामर्थ के साथ प्रेम करना चाहता हूँ। मैं आपके चरणों पर (माता पिता, घर, स्वस्थ, वस्तुएं, इत्यादि) को रखता हूँ यह दिखाने के लिए कि आप इन सब चीज़ों से अधिक महत्वपूर्ण हैं। मैं इन्हें आपको समर्पित करता हूँ, ये आपके हैं। मेरे जीवन में इन सब को शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद करता हूँ। मेरी सहायता कीजिये की मैं इनके द्वारा आपको महिमा दे सकूँ।"