पाठ 20 : बाबुल

यह अगली कहानी आज की दुनिया के विषय में बताती है। यह राष्ट्र कितालिका के समय से पहले कि है। जल प्रलय के बाद, सभी मनुष्य वास्तव में एक साथ जुट गए। वे नूह की भाषा बोलते थे। वे खानाबदोश के रूप में एक साथ दूसरे देशों की यात्रा करते थे। वे अपने पालतू जानवरों के लिए अच्छे पानी की आपूर्ति और चरागाह कि खोज में जगह जगह एक साथ फिरते थे। वे तम्बुओं में रहते थे ताकि उन्हें आसानी से इधर उधर ले जाया सके। 

 

वे एक समूह के रूप में, पूर्व कि ओर बढ़ने लगे। अंत में, उन्हें एक विस्तृत, खुला मैदान जैसा एक देश मिला। यह शिनार नामक स्थान कहलाता था। एक दिन, यह बाबुल बन जाएगा। आज हम उसे प्राचीन क्षेत्र का मेसोपोटामिया कहते हैं। 

 

आपको याद है कि कैसे संख्या सात और दस बाइबिल में प्रतीक के रूप में उपयोग किये गए हैं? जब किसी चीज़ कि संख्या दस में हो तो इसका मतलब वह पूर्ण और पूरी है। जब किसी चीज़ कि संख्या सात है, तो वह दैवीय पूर्ण और पूर्ती को दर्शाता है। खैर, उत्पत्ति में, पूर्व दिशा में जाना अक्सर कुछ संकेत करता है। यह एक बाइबिल का प्रतीक है जिसे एक पाठक को देखना ज़रूरी है। पूर्व कि ओर जाना यानि परमेश्वर से दूर जाना। परमेश्वर हर जगह है, लेकिन पृथ्वी पर उसकी विशेष और गहरी उपस्थिति अदन की वाटिका में ही थी। कान हत्या के बाद पूर्व को चला गया और वहां उसने एक शहर के किले का निर्माण किया। अब पूरी मानव जाति एक साथ पूर्व कि ओर जा रही थी। यह एक अच्छा संकेत नहीं था! तब उन्होंने पूर्व में बसने का फैसला किया। यह उससे भी बदतर है! वे परमेश्वर से दूर रहना चाहता थे!

 

क्यों वे परमेश्वर से दूर जाना चाहते थे? इसकी दो वजहें थीं। एक वजह यह थी, कि परमेश्वर ने पृथ्वी पर बिखर जाने और उसे भर देने का आदेश दिया। लेकिन वे गोंद की तरह एक साथ जुड़े रहना चाहते थे! लेकिन परमेश्वर से दूर जाने के अलावा और कुछ भी था। वे अन्य शक्तियों की उपासना करने लगे और उनके आज्ञाकारी हो गए। वे मूर्तियां बनाने लगे। वे पहले से ही कान के बेटों के शातिर राक्षसी देवताओं के पीछे चलने लगे। विद्रोह पूरी शक्ति में था। 

 

शिनार के मैदानी इलाकों पर बसने के बाद, नूह के वंशज ने बैठकर एक योजना बनाई। वे कुछ महान और शानदार चीज़ का निर्माण करने जा रहे थे। यह केंद्र में एक विशाल मीनार के साथ एक विशाल शहर होगा। यह बुतपरस्त देवताओं के लिए एक शक्तिशाली मंदिर होगा। यह मूर्ति पूजा कि एक विशाल वेदी की तरह होगा। मीनार देवताओं तक पहुंचने का एक मार्ग के रूप में होगा और यह उन्हें गौरव और सम्मान देगा। तब वे एकजुट हो जाएंगे! तब वे ना तो कभी भी एक दूसरे से दूर होंगे और ना ही पृथ्वी भर में बिखरेंगे। 

 

अकेलेपन और अलगाव के भय से, वे परमेश्वर से हट कर स्वयं के समाधान को खोज रहे थे। उसने उन्हें बनाया लेकिन फिर भी वे उसकी वफ़ादारी और प्रेम पर विश्वास नहीं करते थे। वे संख्याओं में अपनी सुरक्षा को खोजते थे। वे उन राक्षसी देवताओं को मानने लगे ताकि वे उनकी इच्छा पूरी कर सकें। मानवता को ब्रह्मांड के अच्छे और शालीन परमेश्वर का पालन करने के लिए बनाया गया था। इस दुनिया की शैतानी शक्तियां बहुत खुश हैं की झूठ और धोखे से वे लोगों कि मदद कर रहे हैं। लेकिन वे वास्तव में बंधन और दासता के जाल में मनुष्य को फसा रहे हैं। 

 

ये पूर्व समय के लोग अपने आप को शक्तिशाली महसूस करते थे, और इसलिए वे काम करने में सक्षम थे। वे इस बात कि चर्चा करते थे कि कैसे ईंटों को बनाया जाये और राल का उपयोग कैसे किया जाये। उन्होंने शहर का नक्शा बनाया फिर विचार किया कि मीनार को कहाँ लगाया जाये। वे लोगों को रोजगार आवंटित करने लगे। कुछ ईंटों को बनाते थे, और कुछ उन्हें लगाते जाते थे। दूसरे पूरे काम का अधीक्षण करते थे। वहां काम करने कि हलचल मची हुई थी। इन योजनाओं को पूरा करने में वे अपनी कितनी ताक़त लगा रहे थे, जो केवल उनके स्वयं के गर्व और विद्रोह से प्रेरित था। 

 

मानव जाति पहले ही से कितनी विकृत हो गई थी! उन्हें परमेश्वर की छवि को प्रतिबिंबित और उसे महिमा देने के लिए बनाया गया था, लेकिन स्वयं कि महिमा करने के लिए उन्होंने इन योजनाओं को बनाया। यहाँ वे एक ऐसे मंदिर को बना रहे थे जो उनके परमेश्वर के प्रति कुल अस्वीकृति का संकेत दे रहा था। वे परमेश्वर का पालन करने से स्वयं को बचाने के लिए इसका निर्माण कर रहे थे! वे स्वर्ग की ओर एक मीनार का निर्माण कर रहे थे ताकि वे अपने आप को परमेश्वर से अधिक महान समझ सकें। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? परमेश्वर ने केवल बोल कर ब्रह्मांड में बड़े पैमाने पर, सैकड़ों ज्वलंत सितारों को बना डाला, और ये मूर्ख लोग ईंट और टार से बने मीनार को बनाकर उसके खिलाफ मुकाबला कर सकते हैं। 

 

परमेश्वर की कहानी पर अध्ययन।   

आप ने इस कहानी से परमेश्वर के बारे में क्या सीखा? 

क्यों लोग उस विशाल मीनार का निर्माण करना चाहते थे? 

आप देख सकते हैं की किस प्रकार लोग आसानी से परमेश्वर से भी अधिक महिमा और सम्मान को पाना चाहते हैं? आप देख सकते हैं कि किस प्रकार यह परमेश्वर के विरुद्ध में एक अपराध है जब उसके द्वारा सृजी गयी मानवजाती परमेश्वर के प्रभाव और अधिकार कि उपेक्षा करती है?

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।  

क्या इस कहानी से आप के आसपास चल रहे किसी भी मानव गतिविधियों को याद दिलाता है? मानव जाति कैसे इस तरह पाप की पद्धति में जाता रहता है? हम कैसे परमेश्वर से अपनी स्वतंत्रता को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं? 

 

परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर। 

जब यीशु आया और मर गया, और फिर जी उठा, उसने उस पाप और मृत्यु पर विजय प्राप्त की जो हम रोज़मर्रा के जीवन में देखते हैं। एक दिन, परमेश्वर के नियुक्त किये समय में, पृथ्वी के सभी देशों कि प्रणालियां समाप्त हो जाएंगी। यीशु अपने संपूर्ण अधिकार और धर्म के शासन में हो कर एक नया आकाश और नई पृथ्वी को उत्पन्न करेगा। हर जाति, राष्ट्र और भाषा के लोग हमेशा हमेशा के लिए अपने सच्चे परमेश्वर और उद्धारकर्ता कि उपासना करेंगे! क्या आप अपने आप को वहां पाते हैं? बिना किस दर्द या भय या भूख के साथ जीना कैसा होगा? कैसा होगा जब हम कभी नहीं बूढ़े हों या बीमार होंगे? परमेश्वर के उस आदर्श दुनिया में, हर किसी का पूरी तरह से ख्याल रखा जाएगा। पौधे पूरे वर्ष अच्छे और रसीला फल लाएंगे। हमें ना सूरज और ना ही चन्द्रमा कि रौशनी की आवश्यकता होगी क्यूंकि परमेश्वर का प्रकाश हमारी ज्योति होगी। क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं? आप उस परमेश्वर से क्या कहना चाहेंगे जो आपके लिए अनंतकाल को तैयार कर रहा है?